बालियां निकलते वक्त धान में जिंक की कमी हो सकती है ख़तरनाक | जाने कैसे करें पहचान और उपाय
किसान साथियों जैसा कि आप जानते है धान की फसल में पोषक तत्वों की कमी, विशेषकर जिंक की कमी, फसल की वृद्धि और गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। जिंक की कमी के कारण पौधों की वृद्धि धीमी हो जाती है, और इससे उत्पादन में भी कमी आ सकती है। इस समस्या से निपटने के लिए विशेषज्ञों द्वारा सुझाए गए उपायों का पालन करना महत्वपूर्ण है। वो उपाय क्या है इस पर हम विस्तार से चर्चा करेगे
धान (चावल) की खेती में जिंक (Zn) का महत्व पौधों की अच्छी वृद्धि और अधिक उत्पादन के लिए सूक्ष्म पोषक तत्व अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। सूक्ष्म पोषक तत्वों की सामान्य मात्रा पौधों के लिए कम होती है, लेकिन उनका पौधों की वृद्धि पर बड़ा प्रभाव होता है। जिंक, पौधों के लिए आवश्यक 8 सूक्ष्म पोषक तत्वों में से एक है और इसकी भूमिका विशेष रूप से महत्वपूर्ण होती है।
धान में जिंक पोषक तत्व के फायदे
- जिंक पौधों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण को बढ़ावा देता है, जिससे पौधों में हरापन आता है।
- जिंक कार्बोहाइड्रेट्स के मेटाबॉलिज्म को बढ़ाता है, जिससे पौधों को भोजन निर्माण में सहायता मिलती है।
- जिंक धान की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है।
- जिंक पौधों के वृद्धि में आवश्यक एंजाइमों को सक्रिय करने में मदद करता है।
धान की फसल में जिंक की कमी एक महत्वपूर्ण कृषि समस्या है, जो फसल की वृद्धि और उत्पादन को प्रभावित कर सकती है। जिंक की कमी से संबंधित जानकारी निम्नलिखित है:
1. जिंक की कमी के कारण
- मिट्टी में जिंक की कमी या मिट्टी का पीएच असंतुलित होना।
- त्यधिक वर्षा के कारण मिट्टी से जिंक का धोया जाना।
- केवल नाइट्रोजन, फास्फोरस, और पोटेशियम का उपयोग, जिंक युक्त उर्वरकों का प्रयोग न करना।
- अत्यधिक अम्लीय या क्षारीय मिट्टी जिंक की उपलब्धता को कम कर देती है।
2. जिंक की कमी के लक्षण
- पौधों की निचली पत्तियाँ पीली होने लगती हैं और नर्व्स हरी रहती हैं। यह स्थिति "नर्व इंटरवल पीलीकरण" के नाम से जानी जाती है।
- पौधे छोटी और कमजोर हो जाती हैं, और उनका सामान्य वृद्धि धीमा हो जाता है।
- जिंक की कमी से फूल और फल सही तरीके से विकसित नहीं होते, जिससे उत्पादन में कमी आती है।
- कुछ मामलों में पत्तियों पर सफेद या हल्के भूरे रंग के धब्बे भी देखे जा सकते हैं।
जिंक की कमी का निदान और मिट्टी परीक्षण
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के वैज्ञानिक, ने बताया कि धान की फसल में जिंक की कमी का प्रबंधन करने के लिए सबसे पहला कदम है मिट्टी का परीक्षण करना। इससे यह पता चलता है कि मिट्टी में जिंक की मात्रा कितनी है और पीएच स्तर कैसा है। मिट्टी का पीएच स्तर यह दर्शाता है कि मिट्टी अम्लीय है या क्षारीय, और इसे सुधारने के लिए आवश्यक कदम उठाने की जरूरत होती है।
मिट्टी के पीएच स्तर को नियंत्रित करना
यदि मिट्टी का पीएच बहुत अधिक (अल्कालाइन) या बहुत कम (अम्लीय) है, तो इसे नियंत्रित करना आवश्यक है। इसके लिए चूने का उपयोग एक कारगर उपाय है। चूना मिट्टी के पीएच स्तर को संतुलित करने में मदद करता है, जिससे मिट्टी की पोषक तत्वों को अवशोषित करने की क्षमता बेहतर होती है। पीएच संतुलन से जिंक की उपलब्धता भी बढ़ती है, जिससे पौधे बेहतर ढंग से जिंक को अवशोषित कर सकते हैं।
जिंक युक्त उर्वरकों का उपयोग
जिंक की कमी को दूर करने के लिए जिंक युक्त उर्वरकों का उपयोग एक प्रभावी तरीका है। ये उर्वरक मिट्टी में जिंक की मात्रा को बढ़ाते हैं और पौधों को आवश्यक पोषण प्रदान करते हैं। खेतों में जिंक की कमी को दूर करने के लिए वैज्ञानिकों ने अनुशंसा की है कि किसान जिंक युक्त उर्वरकों का नियमित रूप से उपयोग करें।
पत्तियों पर छिड़काव
यदि फसल में जिंक की कमी बहुत गंभीर हो, तो पत्तियों पर जिंक युक्त घोल का छिड़काव किया जा सकता है। इसके लिए 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट और 2.5 किलोग्राम बुझा हुआ चूना को 1000 लीटर पानी में मिलाकर हर 10 दिनों के अंतराल पर तीन बार छिड़काव करने की सलाह दी गई है। यह पौधों को सीधे जिंक प्रदान करने का एक प्रभावी तरीका है, जिससे फसल की गुणवत्ता में सुधार होता है।
वैकल्पिक उपाय
बुझे हुए चूने की जगह 2% यूरिया का भी उपयोग किया जा सकता है। यह एक वैकल्पिक उपाय है, जो पौधों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करने में मदद करता है। इन उपायों को अपनाकर किसान धान की फसल में जिंक की कमी को प्रभावी ढंग से नियंत्रित कर सकते हैं, जिससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों में सुधार होगा।
गंभीर कमी की स्थिति में, 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट और 2.5 किलोग्राम बुझा हुआ चूना को 1000 लीटर पानी में मिलाकर हर 10 दिन में तीन बार छिड़काव करने की सलाह दी जाती है। इस प्रकार के नियमित स्प्रे से पौधों को आवश्यक मात्रा में जिंक प्राप्त होता है और जिंक की कमी के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
धान की फसल में जिंक की कमी दूर करने के लिए घरेलू उपायों का उपयोग किसानों को सस्ते और प्राकृतिक तरीकों से पोषण प्रदान करने में मदद कर सकता है। कुछ किसान भाई जिंक कि कमी को जिंक की कमी दूर करने के लिए चाय की पत्तियों , अंडे के छिलके का पाउडर,गुड़ के पानी का स्प्रे , गोबर की खाद , हरी खाद, शहद और नींबू का मिश्रण ,नमक में भी जिंक की कुछ मात्रा होती है। हालांकि, इनका उपयोग बहुत सावधानी से करना चाहिए क्योंकि इनका अधिक मात्र में प्रयोग करने से पौधों के लिए हानिकारक हो सकता है। इन घरेलू उपायों को अपनाकर भी आप धान की फसल में जिंक की कमी को प्राकृतिक और सस्ते तरीके से दूर कर सकते हैं। हालांकि, गंभीर जिंक की कमी की स्थिति में वैज्ञानिक सलाह और उचित उर्वरक का उपयोग करना भी महत्वपूर्ण हो सकता है।
धान की फसल में जिंक का स्प्रे करने का सही समय और तरीका
जिंक का स्प्रे फसल की गुणवत्ता और उत्पादन में सुधार के लिए महत्वपूर्ण है। जिंक का स्प्रे निम्नलिखित परिस्थितियों में किया जाना चाहिए:
जिंक की कमी के लक्षण जैसे कि पौधों की वृद्धि रुकना, पीले या भूरे रंग की पत्तियाँ, और पौधों का छोटा होना स्पष्ट होने पर जिंक का स्प्रे करना चाहिए। इन लक्षणों को पहचानना और तुरंत प्रतिक्रिया करना जरूरी है ताकि फसल की गुणवत्ता प्रभावित न हो।
धान की फसल में जिंक स्प्रे का सबसे प्रभावी समय पौधों के फूल आने के चरण के दौरान होता है। इस समय पर जिंक का स्प्रे पौधों की फुलिंग को बेहतर बनाता है और उपज को बढ़ाता है।
स्प्रे करने के लिए आदर्श मौसम सुबह या शाम का होता है जब सूर्य की रोशनी कम हो। ऐसा करने से स्प्रे का अधिकतर हिस्सा पौधों द्वारा अवशोषित किया जा सकता है और जलने की संभावना कम रहती है।
- नर्सरी में: यदि आप नर्सरी में जिंक स्प्रे कर रहे हैं, तो पौधों के 2-3 सच्चे पत्तियों के विकास के बाद इसे करें।
- मुख्य फसल में: प्रमुख वृद्धि चरण में जब पौधे पर्याप्त रूप से विकसित हो चुके हों, जिंक स्प्रे करने का समय होता है।
निष्कर्ष:
धान की फसल में जिंक का स्प्रे सही समय पर और उचित मात्रा में करना महत्वपूर्ण है। जिंक की कमी के लक्षण दिखते ही, फूल आने के समय, और मौसम की अनुकूल परिस्थितियों के अनुसार स्प्रे करना फसल के स्वास्थ्य और उत्पादन में सुधार कर सकता है। नियमित अंतराल पर जिंक स्प्रे करने से आप अपनी फसल को जिंक की कमी से बचा सकते हैं और उच्च गुणवत्ता की फसल प्राप्त कर सकते हैं।
नोटः दी गई जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इन्टरनेट पर उपलब्ध भरोसेमंद स्त्रोतों से जुटाई गई है। किसी भी जानकारी को प्रयोग में लाने से पहले नजदीकी कृषि सलाह केंद्र से सलाह जरूर ले लें
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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।