गेहूं की ये दो बीमारी कर सकती हैं बड़ा नुकसान | जाने का हैं लक्षण और इलाज
दोस्तो हमारे किसान साथी गेहूं का उत्पादन बढ़ाने के लिए दिन रात एक कर देते हैं। लेकिन अक्सर ऐसा होता है कि गेहूं का प्रति एकड़ उत्पादन 50 मण से भी कम रह जाता है। अगर आपके साथ भी ऐसा होता है तो यह रिपोर्ट सिर्फ आपके लिए है । आज की रिपोर्ट में हम ऐसे दो कीट के बारे में बतायेंगे जो आपकी गेहूं की फ़सल में नुकसान पहुंचाते हैं। इसके लक्षण एवं उपचार के तरीकों पर भी प्रकाश ड़ाला गया है। WhatsApp पर भाव देखने के लिए हमारा ग्रुप जॉइन करें
1. सेना का कीड़ा
किसान साथियो सेना का कीड़ा जिस बीमारी को हम आर्मीवर्म (मिथिम्ना सेपरेटा वॉकर) नाम से भी जानते है ये कीड़ा मध्य भारत की गर्म जलवायु और कुछ हद तक उत्तरी मैदानी इलाकों में पाया जाता है। ये कीड़े आमतौर पर रात के दौरान या सुबह के समय गेहूं के पौधे पर हमला करते हैं। गीले और नम जलवायु में वे दिन के दौरान भी नुकसान कर सकते हैं। आप की जानकरी के लिए बता दे कि खास तौर पर चावल और गेहूं की फसल प्रणाली में इन कीटों का हमला देखा जाता है और ये गर्मियों के दौरान चावल जैसी बाद की फसलों में भी जीवित रहते हैं और गेहूं की फसल के खेत में उगने से पहले चावल के ठूंठों में भी मौजूद रहते हैं।
सेना का कीड़ा से होने वाला नुकसान और उसके लक्षण
साथियो अब हम बात करेंगे कि इस कीड़े से गेहूं की फ़सल को क्या नुकसान है और इसके क्या लक्षण है। आप की जानकरी के लिए बता दे कि इन कीड़ों का आक्रमण आमतौर पर फसल की शुरूआती अवस्था में होता है। युवा लार्वा कोमल पत्तियों को खाते हैं, किनारों से मध्यशिरा तक चबा जाते हैं। इसके बाद फिर तने को अंदर से खाते हैं जिससे पौधे पूरी तरह से झड़ जाते हैं। वे सिर पर पतले ब्रिसल्स से उल्टा लटकते हैं और गेहूं के बीजों को विकसित करने की युक्तियों पर फ़ीड करते हैं इसके चलते गेहूं उत्पादन में काफी कमी आती है। और इस संक्रमण से पौधे की बढ़ती लम्बाई रुक जाती है। और यही नहीं ये एक खेत की फसल नष्ट करने के बाद रुकते नहीं है ये दूसरे खेत में चले जाते हैं और उन खेतो की भी फसल को नष्ट कर देते है ।
सेना के कीड़े के प्रकोप से फसल को कैसे बचाये
1. आप जब अपने खेत में नाइट्रोजन उर्वरक का उपयोग करते है तब नाइट्रोजन उर्वरक का अधिक उपयोग न करे क्योंकि ज्यादा नाइट्रोजन का प्रयोग आर्मीवॉर्म की अधिक आबादी को आकर्षित करता है।
2. कीट की आबादी जब प्यूपा अवस्था में होने तब खेत में पानी नहीं देना चाहिए।
3. गेहूं के देर से बुवाई करने से भी ये बीमारी आती है तो गेहूं की फसल की देर से बुआई न करें।
4. स्थानिक क्षेत्रों में, मेजबान फसलों जैसे चावल, मक्का आदि के साथ गेहूं की फसल को न बोये ।
5. वैकल्पिक मेज़बान यानी टिमोथी घास जिसे फ़्लूम प्रैटेंस से भी जानते है इस को नष्ट जरूर करें।
सेना का कीड़ा का जैविक प्रबंधन
किसान साथियो प्राकृतिक शत्रु जैसे कोटेसिया रूफिक्रस, कोकिनेलिड्स, ब्रैकोनिड वास्प्स, ग्रीन लेसविंग्स, ड्रैगनफलीज़, मकड़ियों, डाकू मक्खियाँ, रेडुइड्स, प्रेयरिंग मेंटिस और फायर चींटियाँ कीट को नियंत्रित करने में उपयोगी हो सकते हैं। 10/एकड़ पर सीधे पक्षी बसेरा करने से कीटभक्षी पक्षियों का शिकार बढ़ सकता है।
सेना का कीड़ा का रासायनिक नियंत्रण
रासायनिक नियंत्रण में आप क्विनालफॉस 25 ईसी 800 मिली प्रति हेक्टेयर का छिड़काव कर सकते हैं । इसके अलावा वैकल्पिक रूप से, इमामेक्टिन बेंजोएट 12.5 ग्राम एआई/हेक्टेयर या क्लोरेंट्रानिलिप्रोएल 37 ग्राम एआई/हेक्टेयर के हिसाब से इसका छिड़काव किया जा सकता है।
ये भी पढ़े :- जल्द रुकेगी धान में मन्दी: लौटेगी तेजी की बाहर, जानें पूरी खबर
2. गुलाबी तना छेदक
किसान साथियो गुलाबी तना छेदक सेसमिया इनफेरेंस जिसे वॉकर के नाम से भी जाना जाता है ये मूल रूप से चावल का एक कीट था, लेकिन अब इसके द्वारा चावल-गेहूं प्रजनन मॉडल को अपनाने के कारण यह गेहूं का एक स्थापित कीट बन गया है। भारत में ओडिशा, उत्तरांचल, राजस्थान, सिक्किम के कुछ हिस्सों और पंजाब, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, छत्तीसगढ़, और तमिलनाडु में इस बीमारी की जानकारी मिली है । और पिछले दो से तीन दशकों में भारत में इसके मामले अत्यधिक बढ़े हैं।
गुलाबी तना छेदक के क्या है लक्षण
किसान साथियो यह आमतौर पर तना छेदक का य़ह कीट गेहूं की फसल पर अंकुरण अवस्था में हमला करता है। लार्वा युवा पौधे के तने में घुस जाते हैं, जिससे विकास बिंदु सूख जाता है और "मृत हृदय" बन जाता है। गोलाकार कट-आकार के छल्ले कभी-कभी निचले इंटरनोड्स पर देखे जाते हैं। गंभीर क्षति के कारण तना टूट जाता है। बालियों में अंकुरण के समय इसके आक्रमण से "सफ़ेद बालियाँ" उत्पन्न होती हैं जिनमें दाने छोटे या भूसे के रंग के होते हैं।
कीट के प्रकोप से परंपरागत तरीके से फसल को कैसे बचाये
1. चावल के साथ गेहू की फसल को न बोये।
2. लार्वा को मारने के लिए सबसे प्रभावित है खेत की जुताई और पानी भरना ।
3. फसल के ठूंठों को काट देना या उसे नष्ट करना चाहिए।
गुलाबी तना छेदक का जैविक नियंत्रण
गुलाबी तना छेदक के प्राकृतिक शत्रु परजीवी हैं: अपेंटेल्स, टेट्रास्टिकस, टेलीनोमस, ट्राइकोग्रामा जैपोनिकम, टी. चिलोनिस, ब्रेकन आदि
और इसके शिकारी है: मकड़ियों, ड्रेनिड्स, जलीय कीड़े, मिरिड, डेमसेल्फिश मक्खियाँ, ड्रैगनफलीज़, मीडो टिड्डे, स्टैफिलिनिड बीटल और कैरबिड , कोकिनेलिड्स, आदि
व्यापक-स्पेक्ट्रम कीटनाशकों के छिड़काव से बचने और लक्षित कीटों को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों की न्यूनतम खुराक का उपयोग करने से प्राकृतिक शत्रुओं को संरक्षित करने में मदद मिल सकती है। 10/एकड़ पर सीधे पक्षी बसेरा करने से कीटभक्षी पक्षियों का शिकार बढ़ सकता है।
गुलाबी तना छेदक का रासायनिक नियंत्रण
किसान साथियो अगर आप रासायनिक विधि से नियंत्रण करना चाहते हो तो क्विनालफॉस 25 ईसी 800 मिली प्रति एकड़ आवश्यकता के अनुसार छिड़काव कर दे ।
नोटः दी गई जानकारी किसानों के निजी अनुभव एवं इंटर्नेट पर उपलब्ध विश्वसनीय स्त्रोतों से प्राप्त की गई है किसी भी जानकारी ko प्रयोग में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञ की सलाह जरूर ले लें।
👉 यहाँ देखें फसलों की तेजी मंदी रिपोर्ट
👉 यहाँ देखें आज के ताजा मंडी भाव
👉 बासमती के बाजार में क्या है हलचल यहाँ देखें
About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।