गेहूँ के खेत को कल्लो और फुटाव से भरना है | तो 5 मिनट की यह रिपोर्ट देख लो
किसान भाइयों, गेहूं की खेती में कई महत्वपूर्ण अवस्थाएँ होती हैं, जिनका फसल की वृद्धि पर गहरा असर पड़ता है। इन अवस्थाओं में से एक बहुत ही खास है CRI (Crown Root Initiation) स्टेज, जिसे हम क्राउन रूट इनिशिएटिव स्टेज भी कहते हैं। यह वह समय होता है जब गेहूं के पौधों की जड़ें विकसित होनी शुरू होती हैं और पौधे की सामान्य वृद्धि की दिशा तय होती है। इस स्टेज के दौरान पौधे को पर्याप्त नमी और पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, ताकि यह सही तरीके से बढ़ सके। अगर इस स्टेज में पौधों को पर्याप्त देखभाल और खाद न मिले, तो इसके परिणामस्वरूप पौधे की जड़ों और कल्ले का विकास ठीक से नहीं हो पाता है, जिससे बाद में बाली का आकार छोटा हो सकता है और उत्पादन में कमी आ सकती है। इस अवस्था में बुवाई के समय खाद देने का असर बाद में मिल सकता है, लेकिन यदि बुवाई के समय खाद छूट गई थी, तो CRI स्टेज में इन खादों का उपयोग करके आप फसल की वृद्धि में सुधार कर सकते हैं। आज हम इस पोस्ट में CRI स्टेज के महत्व पर विस्तार से चर्चा करेंगे और यह जानेंगे कि यदि इस समय खाद की कमी हो गई हो तो इसे कैसे पूरा किया जा सकता है। इसके साथ ही यह भी जानेंगे कि गेहूं की फसल के लिए इस स्टेज में कौन से पोषक तत्व जरूरी होते हैं और उन्हें कब और कैसे देना चाहिए। तो चलिए इन सब बातों पर विस्तार से जानने के लिए पढ़ते हैं यह रिपोर्ट।
CRI स्टेज क्या है
किसान साथियों, CRI स्टेज गेहूं की फसल के जीवन चक्र का एक बहुत महत्वपूर्ण चरण होता है। यह वह समय है जब पौधे की जड़ें पूरी तरह से विकसित होने लगती हैं। जड़ें गेहूं के पौधे के लिए एक तरह से नींव का काम करती हैं, क्योंकि यही जड़ें पौधे को पानी और पोषक तत्वों की आपूर्ति करती हैं। CRI स्टेज के दौरान यदि पौधों को पर्याप्त नमी और पोषक तत्व नहीं मिलते, तो जड़ों का विकास कमजोर हो सकता है और इससे पौधों की वृद्धि प्रभावित होती है। इस स्टेज में कल्ले का विकास भी होता है, जो बाद में गेहूं की बालियों में परिवर्तित होते हैं। यदि इस समय जड़ों और कल्लों का सही विकास नहीं हो पाता, तो फसल का उत्पादन कम हो सकता है। इसलिए CRI स्टेज में पौधे को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
नमी और पोषक तत्वों का उपयोग
किसान भाइयों, CRI स्टेज में गेहूं की फसल में नमी और पोषक तत्वों का योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है। इस समय पौधों को पानी की अत्यधिक आवश्यकता होती है ताकि जड़ों का उचित विकास हो सके। सिंचाई से खेत में नमी बनी रहती है, लेकिन इसके साथ ही खाद और पोषक तत्वों की आवश्यकता भी होती है। अगर इस समय पौधों को पर्याप्त पोषक तत्व जैसे कि नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम और सल्फर नहीं मिलते, तो पौधे का विकास ठीक से नहीं हो पाता और उत्पादन पर प्रतिकूल असर डालता है। नाइट्रोजन फसल के विकास के लिए बहुत जरूरी होता है, क्योंकि यह पौधों में हरे पत्ते और अच्छे कल्लों के विकास में मदद करता है। इसलिए गेहूं की फसल में पहली सिंचाई के साथ नाइट्रोजन की मात्रा अत्यधिक आवश्यक होती है। वहीं, अगर आपने बुवाई के समय खेत में फास्फोरस की मात्रा नहीं डाली तो फास्फोरस डालना भी बहुत जरूरी है क्योंकि फास्फोरस जड़ों के विकास के लिए महत्वपूर्ण है और साथ ही पोटेशियम पौधे की समग्र वृद्धि और स्वास्थ्य में सहायक होता है। इसलिए फसल में पोटेशियम की कमी को पूरा करना भी आवश्यक है। अगर सल्फर की बात करें तो सल्फर की कमी होने पर पौधे का हरा रंग हल्का पड़ सकता है, जिससे फसल की गुणवत्ता पर असर पड़ता है। इसलिए पहली सिंचाई के दौरान आप सल्फर की मात्रा भी फसल में अवश्य डालें। अगर बुवाई के समय खाद देना रह गया हो, तो CRI स्टेज के दौरान इसे डालने की कोशिश की जा सकती है। हालांकि, बुवाई के समय खाद देने का जो प्रभाव होता है, वह बाद में सही तरीके से पोषक तत्वों को उपलब्ध कराने से नहीं होता। फिर भी, यदि इस समय खादों का सही उपयोग किया जाए, तो फसल की वृद्धि को बेहतर किया जा सकता है। इस स्टेज में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम और सल्फर जैसे प्रमुख पोषक तत्वों को देना चाहिए। इन पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए आप, नाइट्रोजन के लिए यूरिया, फास्फोरस के लिए डीएपी, पोटेशियम के लिए एमओपी और सल्फर के लिए बेंटोनाइट सल्फर का उपयोग कर सकते हैं। इन खादों को सिंचाई से पहले खेत में समान रूप से छिड़का जा सकता है, ताकि यह पोषक तत्व पानी के साथ मिलकर जड़ों तक पहुँच सकें।
खाद का प्रयोग कैसे करें?
किसान भाइयों, अगर गेहूं की फसल में CRI स्टेज पर खाद देने का सही तरीका और सही मात्रा की बात करें तो बुआई के समय, डीएपी एक बैग प्रति एकड़ और पोटाश 5 किलो प्रति एकड़ डालना चाहिए। नाइट्रोजन की पूरी पूर्ति के लिए एक बैग यूरिया पहले सिंचाई में जब पौधे की जड़ बन रही हो और एक बैग यूरिया दूसरी सिंचाई के समय फसल में छिड़काव करना चाहिए। बुवाई के समय 2-3 किलोग्राम/एकड़ की दर से जिंक सल्फेट मोनोहाइड्रेट 33% सीधे मिट्टी में डालना चाहिए। ज़रूरत पड़ने पर, खड़ी फसल में 40-45 दिनों के अंतराल पर समान मात्रा में जिंक सल्फेट डालना चाहिए। गेहूं की फसल में ज़्यादा से ज़्यादा जीवांश खादों का इस्तेमाल करना चाहिए। गेहूं की फसल में ज़रूरी और सही मात्रा में उर्वरक का इस्तेमाल करने के लिए, मृदा परीक्षण अवश्य कराना चाहिए।
सिंचाई व्यवस्था
किसान साथियों, गेहूं की फसल में शीर्ष जड़ प्रवर्तन अवस्था (CRI) पर, यानी बुआई के 20 से 25 दिन बाद पहली सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। इस अवस्था को सिंचाई के लिए सबसे अहम माना जाता है। अगर इस अवस्था में सिंचाई न की जाए, तो फसल पर बुरा असर पड़ता है। साथ ही मिट्टी में पर्याप्त नमी न होने के कारण खेत में डाले गए उर्वरक को भी पौधे सही प्रकार से ग्रहण नहीं कर पाते और फसल में उत्पादन में कमी के साथ-साथ उर्वरकों पर किया गया खर्च भी बेकार हो जाता है। गेहूं की फसल में पहली सिंचाई, इस समय से पहले या बाद में करने से पानी की बर्बादी होती है और फसल पर बुरा असर पड़ता है। इसके अलावा गेहूं की फसल में दूसरी सिंचाई, दानियां निकलने की अवस्था यानी बुआई के 40-45 दिन बाद करनी चाहिए। और तीसरी सिंचाई, गांठ बनने की अवस्था यानी बुआई के 60-65 दिन बाद करनी चाहिए। आपको गेहूं की फसल में चौथी सिंचाई, फूल आने से पहले की अवस्था यानी बुआई के 80-85 दिन बाद करनी चाहिए। अगर पानी की मात्रा की बात करें तो सिंचाई की गहराई, फसल की जड़ों की गहराई पर निर्भर करती है। उसी हिसाब से आप अपनी फसल में पानी की मात्रा कम या अधिक कर सकते हैं।
नोट: रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर मौजूद सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। संबंधित किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।
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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।