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गेहूं की बालियों में दानों को बढ़ाने और मोटा करने का अचूक फार्मूला | उत्पादन 80 मण पार

गेहूं की बालियों में दानों को बढ़ाने और मोटा करने का अचूक फार्मूला | उत्पादन 80 मण पार
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अगर गेहूं की बोलियों में दोनों की संख्या बढ़ानी है तो करें स्प्रे का उपयोग, रिजल्ट देखकर रह जाओगे हैरान। 

किसान भाईयों के लिए फसल की देखभाल करना बहुत महत्वपूर्ण होता है, खासकर जब बात गेहूं की फसल की हो। क्योंकि गेहूं और इसके उत्पादन में कई कारक प्रभाव डालते हैं। इसलिए सही समय पर सही तरीके से की गई देखभाल से गेहूं की फसल में न सिर्फ वृद्धि होती है, बल्कि उसका उत्पादन भी बेहतर होता है। किसान भाईयों के लिए, गेहूं की फसल के विकास के विभिन्न चरणों में विभिन्न स्प्रे और उर्वरक का उपयोग करना फसल की अच्छी वृद्धि के लिए जरूरी है। स्प्रे से फसल को सूक्ष्म पोषक तत्व मिलते हैं और इससे बाली का आकार और दाने का भराव भी अच्छा होता है। इसके अलावा, यह फसल को रोग और कीटों से बचाने में भी मदद करता है। इस रिपोर्ट में, हम गेहूं की फसल में किए जाने वाले स्प्रे के महत्व और उसमें इस्तेमाल होने वाली सामग्री पर चर्चा करेंगे। तो चलिए, जानते हैं कि गेहूं की फसल में किस समय और कौन-कौन सी स्प्रे करनी चाहिए और इसका क्या फायदा होता है। इन सब बातों पर विस्तार से चर्चा करते हैं इस रिपोर्ट के माध्यम से।

गेहूं में स्प्रे का समय

किसान साथियों, जब गेहूं की फसल लगभग 60 से 75 दिन की हो जाती है, तो इसका विकास अधिकतम अवस्था में होता है। इस समय फसल की बाली निकलने वाली होती है और इसका तना भी मजबूत हो रहा होता है। इस चरण में, गेहूं को अतिरिक्त पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है ताकि यह न केवल स्वास्थ्यपूर्ण रहे, बल्कि उसका उत्पादन भी बेहतर हो। इस अवस्था में गेहूं की फसल में सिंचाई की बहुत जरूरत होती है। इसके अतिरिक्त सिंचाई के साथ-साथ, इस समय पर कुछ विशेष स्प्रे करने से न सिर्फ फसल के विकास में सहायता मिलती है, बल्कि यह रोगों से भी बचाता है। उदाहरण के लिए, यदि आप गेहूं की फसल में पौष्टिक तत्वों की कमी महसूस कर रहे हैं, जैसे पीलापन या पत्तियों का मुड़ना, तो इसका मतलब है कि आपको स्प्रे करनी चाहिए।

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पीजीआर का उपयोग

किसान साथियों, हम अब बात करते हैं पीजीआर या प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर के बारे में। पीजीआर, गेहूं की फसल में खासतौर पर तब उपयोगी होता है जब फसल की हाइट बढ़ने लगती है और तने में मोटाई लानी होती है। अगर गेहूं के पौधे की हाइट बहुत ज्यादा हो रही है, तो इसको गिरने से बचाने के लिए पीजीआर का इस्तेमाल किया जाता है। पीजीआर का सबसे अच्छा उदाहरण लिहोसिन है, जो बीएसएफ कंपनी का उत्पाद है। इसको 200 मि.ली. प्रति एकड़ के हिसाब से 100 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़कना होता है। इससे पौधे का तना मजबूत बनता है और उसके ढांचे को मजबूती प्रदान करने में भी सहायता मिलती है, जिसके कारण तेज हवा में भी पौधे के गिरने का खतरा बहुत कम होता है। इसके अलावा, पीजीआर का एक और फायदा यह है कि यह इंटरनोड की दूरी को कम कर देता है, यानी पौधे के पत्तों के बीच की जगह घट जाती है, जिससे पौधा मजबूत बनता है। अगर आपने इस स्प्रे का सही समय पर उपयोग किया, तो आपकी फसल का उत्पादन बेहतर हो सकता है।

फास्फोरस और पोटाश का महत्व

किसान साथियों, फास्फोरस और पोटाश दोनों ही गेहूं की फसल के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण पोषक तत्व होते हैं। फास्फोरस का मुख्य कार्य पौधों की जड़ों और तनों के विकास में मदद करना होता है, और यह गेहूं की बाली बनने के बाद भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अतिरिक्त, पोटाश, दूसरी ओर, पौधों में ऊर्जा का संचयन करता है और दानों का आकार बढ़ाता है। जब गेहूं की फसल की बालियां निकलने वाली होती हैं, तो फास्फोरस और पोटाश का सही संतुलन बहुत जरूरी होता है। इसके लिए NPK 05234 ग्रेड की फर्टिलाइजर का उपयोग सबसे प्रभावी होता है। इसमें 52% फास्फोरस और 34% पोटाश होता है, जो फसल को अच्छे दाने भरने में मदद करता है। अगर इसके स्प्रे की मात्रा की बात करें तो 1 किग्रा एनपीके को 200 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें। गेहूं की फसल में यह छिड़काव बुआई के बाद पहले 60 दिन में, तो दूसरा छिड़काव इसके 20 दिन बाद और तीसरा छिड़काव 15 दिन बाद किया जाना चाहिए। लगातार 2-3 साल इस तरह प्रयोग करके धीरे-धीरे बिना खाद की फसल तैयार की जा सकती है। इसके अलावा, इससे बालियों में दाने अच्छे से भरते हैं और दाने का आकार भी बड़ा होता है। इसके साथ ही, यह स्प्रे फसल को सर्दी और अन्य मौसम की कठिनाइयों से भी बचाता है।

माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की अहमियत

किसान भाइयों, कभी-कभी, गेहूं की फसल में कुछ सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी हो सकती है, जैसे बोरन या आयरन। इन तत्वों की कमी से फसल का विकास रुक सकता है या इसके दाने ठीक से नहीं भर पाते। इसके लिए फसल की इस स्थिति में, माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की स्प्रे करनी जरूरी हो जाती है। गेहूं की फसल में बोरन का इस्तेमाल इस समय विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह फूलों और दानों के पोलिनेशन (परागण) में मदद करता है। बोरन की कमी से दानों का भराव कम हो सकता है और उत्पादन प्रभावित हो सकता है। इसके लिए बोरन को 100 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से 100 से 120 लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करना चाहिए। इसके अलावा, अगर फसल में पीलेपन की समस्या है, तो आपको आयरन या अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों का भी उपयोग करना चाहिए। ये तत्व मिट्टी में मौजूद होते हैं, लेकिन कभी-कभी फसल इनका अवशोषण सही तरीके से नहीं कर पाती। ऐसे में इनका आवश्यकता अनुसार स्प्रे करना बेहद लाभकारी साबित होता है।

नोट: इस रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर मौजूद सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। संबंधित किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।