लहसून का कन्द बढ़ाने का फार्मूला मिल गया है | फटाफट करें यह काम | लद जाएंगी ट्रॉलियां
दोस्तों अब अधिकतर स्थानों पर लहसुन की फसल अपनी अंतिम अवस्था में पहुँच चुकी है, अर्थात 100 दिनों से अधिक समय व्यतीत हो चुका है। इस समय किसान भाइयों का ध्यान पूरी तरह से लहसुन के कंद की वृद्धि पर केंद्रित है। प्रत्येक किसान यही सोच रहा है कि लहसुन का कंद जल्द से जल्द मोटा कैसे किया जाए, कौन सा खाद डाला जाए, कौन सी स्प्रे की जाए, और कौन सा टॉनिक प्रयोग किया जाए ताकि कंद का आकार शीघ्रता से दुगुना हो जाए तथा उसकी गुणवत्ता उत्कृष्ट बनी रहे। किसान यही प्रयास कर रहे हैं कि जब वे लहसुन को मंडियों में लेकर जाएँ तो उन्हें उच्चतम मूल्य प्राप्त हो। इस वर्ष लहसुन की फसल में हुए व्यय की तुलना पिछले वर्षों से कहीं अधिक है, और किसान भाई इसे शीघ्र पूरा करने के साथ-साथ कुछ लाभ भी अर्जित करना चाहते हैं। इस वर्ष लहसुन की बुआई के समय बीज की कीमत अपने उच्चतम स्तर पर थी, जिससे किसानों पर वित्तीय दबाव बढ़ गया। इसके अतिरिक्त, लहसुन की खेती में प्रयुक्त उर्वरकों, स्प्रे, और अन्य आवश्यक सामग्रियों की लागत भी अन्य वर्षों की अपेक्षा अधिक रही। किसानों का प्रमुख उद्देश्य यही था कि उनकी फसल शीघ्र तैयार हो और जल्द से जल्द मंडियों तक पहुँच सके ताकि वर्तमान में जो मूल्य चल रहे हैं, उन्हें समय रहते प्राप्त किया जा सके और कीमतों में किसी भी संभावित गिरावट से बचा जा सके।
तो किसान साथियों लहसुन की फसल को जल्दी तैयार करने के लिए कौन सा उर्वरक उपयोग किया जाए, कौन सी स्प्रे की जाए, कौन सा टॉनिक डाला जाए, जिससे कंद का आकार शीघ्रता से बढ़े और फसल समय पर मंडियों में पहुँच जाए। इस संदर्भ में, अंतिम चरण में लहसुन की फसल में कुछ महत्वपूर्ण उर्वरकों और पोषक तत्वों का समावेश आवश्यक है।
सबसे पहले, पोटाश (MOP) का प्रयोग आवश्यक है, क्योंकि यह कंद के विकास को गति प्रदान करता है और उसे ठोस व भारी बनाता है। इसके अलावा, सल्फर भी लहसुन के कंद की वृद्धि के लिए आवश्यक होता है, जिससे उसकी गुणवत्ता में सुधार आता है। बोरॉन और कैल्शियम का भी प्रयोग किया जाना चाहिए, क्योंकि यह कोशिकाओं की मजबूती और कंद के आकार को बढ़ाने में सहायक होते हैं। इन पोषक तत्वों को जल में घोलकर स्प्रे के माध्यम से या मिट्टी में मिलाकर दिया जा सकता है।
लहसुन के कंद के विकास को तीव्र करने के लिए सही समय पर स्प्रे करना भी आवश्यक है। पौधों की अंतिम अवस्था में पोटाश और बोरॉन का घोल तैयार करके स्प्रे करना अत्यंत लाभकारी सिद्ध होता है। यह न केवल कंद की वृद्धि को बढ़ाता है, बल्कि उसके रंग, चमक, और वजन में भी सुधार करता है। इसके अतिरिक्त, ह्यूमिक एसिड और अमीनो एसिड युक्त स्प्रे का भी उपयोग किया जा सकता है, जो पौधों को आवश्यक ऊर्जा प्रदान करता है और कंद के भीतर संचित ऊर्जा को त्वरित रूप से नीचे पहुँचाने में सहायक होता है। यह प्रक्रिया लहसुन की गुणवत्ता को उत्कृष्ट बनाती है और बाजार में उसकी माँग बढ़ाती है।
लहसुन की फसल को जल्दी तैयार करने के लिए अंतिम चरण में उपयुक्त टॉनिक का प्रयोग भी आवश्यक है। यह टॉनिक पौधों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करता है और उनके कंद को शीघ्र बढ़ाने में सहायक होता है। फसल के अंतिम 20-25 दिनों में उच्च गुणवत्ता वाले जैविक टॉनिक का प्रयोग करने से लहसुन के कंद की वृद्धि में तेजी आती है | विशेष रूप से, पोटाश और सल्फर युक्त तरल टॉनिक का प्रयोग करने से पौधे स्वस्थ रहते हैं और उनका विकास तेज होता है। इसके साथ ही, ऐसे टॉनिक का प्रयोग किया जाना चाहिए, जिनमें अमीनो एसिड और समुद्री शैवाल (सीवीड) के तत्व मौजूद हों, क्योंकि यह पौधों की ऊर्जा को संतुलित रूप से वितरित करता है और कंद को आवश्यक पोषण प्रदान करता है।
फसल की अवस्थाएँ
फसल की वृद्धि तीन मुख्य अवस्थाओं में विभाजित की जाती है। पहली अवस्था बुवाई से लेकर लगभग 40 से 50 दिन तक की होती है, जिसे प्राथमिक अवस्था कहते हैं। इस दौरान पौधा अपनी जड़ों को विकसित करता है और अपनी संरचना का निर्माण करता है। इस अवस्था में पौधे की जड़ें मिट्टी के अंदर गहराई तक जाती हैं और पौधे के तने एवं पत्तियों का विकास होता है।
दूसरी अवस्था 50 से 90 दिनों तक होती है, जिसे द्वितीयक अवस्था कहा जाता है। इस समय पौधे की वनस्पति वृद्धि पूरी हो जाती है, तना मजबूत हो जाता है और पौधे के अंदर ऊर्जा का संचय होता है। यह ऊर्जा जड़ों के माध्यम से खनिज तत्वों को ग्रहण करके और पत्तियों के माध्यम से प्रकाश संश्लेषण द्वारा प्राप्त की जाती है। इस अवस्था में तना ऊर्जा को संचित करके धीरे-धीरे कंद की ओर भेजता है।
तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण अवस्था 90 से 120 दिनों तक होती है, जिसे अंतिम अवस्था कहते हैं। इस समय फसल की गुणवत्ता और उत्पादन तय होता है। इस अवस्था के बाद पौधा एक प्रकार से निष्क्रिय हो जाता है।
फसल की अंतिम अवस्था में खाद प्रबंधन
इस अवस्था में खाद एवं पोषक तत्वों का उचित उपयोग आवश्यक होता है ताकि कंद का आकार बड़ा हो, उसकी गुणवत्ता उत्कृष्ट बनी रहे, उसका छिलका मजबूत हो और उसका विस्तार उचित हो। यह सभी कारक बाजार में अच्छे मूल्य प्राप्त करने के लिए आवश्यक होते हैं। इस अवस्था में चार प्रमुख पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है: नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, और कैल्शियम। प्रत्येक पोषक तत्व को सही मात्रा और समय पर देना अनिवार्य होता है ताकि पौधे की वृद्धि सुचारू रूप से हो सके।
नाइट्रोजन की बहुत कम मात्रा की आवश्यकता होती है, क्योंकि इसका अधिक प्रयोग अंतिम अवस्था में फसल की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है। हालांकि, पौधे को न्यूनतम नाइट्रोजन की जरूरत होती है ताकि वह अपनी शेष वृद्धि कर सके। यदि फसल 90 से 105 दिनों की अवस्था में है और अभी तक कैल्शियम नाइट्रेट का प्रयोग नहीं किया गया है, तो प्रति बीघा लगभग 15 किलो कैल्शियम नाइट्रेट सिंचाई के बाद देना उचित रहेगा। कैल्शियम नाइट्रेट में 15.5% नाइट्रोजन और 18.8% कैल्शियम होता है, जो कंद के आकार को बड़ा करने में सहायक होता है।
फास्फोरस की भूमिका
फास्फोरस के बिना किसी भी फसल के कंद का विकास संभव नहीं है। यदि पहले से डीएपी या सिंगल सुपर फॉस्फेट का प्रयोग किया गया है या एनपीके 00:52:34 का छिड़काव किया गया है, तो उसका प्रभाव पहले ही दिखने लगता है। फिर भी, 90 से 110 दिन की अवस्था में फसल को कुछ मात्रा में फास्फोरस की आवश्यकता बनी रहती है।
फास्फोरस की पूर्ति के लिए जब फसल इस अवस्था में होती है, तब प्रति एकड़ 4 से 5 किलो एनपीके 00:52:34 को पानी में घोलकर सिंचाई के माध्यम से दिया जाना चाहिए। एनपीके 00:52:34 में 52% फास्फोरस और 34% पोटाश होता है, जो पौधे को तेजी से उपलब्ध हो जाता है। यदि फास्फोरस या पोटाश को सीधे डीएपी या पोटाश खाद के रूप में छिड़का जाता है, तो इसका प्रभाव सात से दस दिनों में दिखाई देता है, जबकि जल में घुलनशील उर्वरकों का प्रभाव दो से तीन दिनों के भीतर स्पष्ट हो जाता है। यही कारण है कि जल में घुलनशील उर्वरकों का उपयोग अधिक प्रभावी होता है, क्योंकि पौधे इन्हें तुरंत अवशोषित कर लेते हैं और परिणाम शीघ्र दिखते हैं।
पोटाश का उपयोग और उसके लाभ
अब बात करते हैं पोटाश की—इसका सही तरीके से उपयोग कैसे करें? एनपीके 05:52:34 के माध्यम से पहले ही 34% पोटाश मिल चुका होता है। जब आपकी फसल 90 से 110 दिन के बीच की हो और आप सिंचाई कर रहे हों, चाहे वह अंतिम सिंचाई हो या अंतिम से पहले की, तब आपको एनपीके 00:50 का 4 से 5 किलो प्रति एकड़ पानी में घोलकर देना चाहिए। यह विधि कंद के आकार को बढ़ाने, चमक बढ़ाने, छिलके को मजबूत करने और फसल को किसी भी प्रकार के तनाव से बचाने में सहायक होती है। यह तनाव पर्यावरणीय हो सकता है या किसी स्प्रे के गलत परिणामों के कारण उत्पन्न हो सकता है। पोटाश फसल को इन सभी समस्याओं से बचाने में मदद करता है।
स्प्रे प्रबंधन और फसल की सुरक्षा
फसल को ऊपर से स्प्रे के माध्यम से पोषक तत्व और सुरक्षा प्रदान करना अत्यंत आवश्यक है। फसल चाहे 90 दिन की हो या 110 दिन की, जितनी अधिक अवधि तक वह हरी-भरी बनी रहेगी, उतनी ही अच्छी गुणवत्ता का कंद विकसित होगा। इसके लिए आवश्यक है कि पत्तियों में अधिकतम क्लोरोफिल मौजूद हो ताकि पौधा सही तरीके से प्रकाश संश्लेषण कर सके और कंद को अधिकतम पोषण मिल सके।
बढ़ते तापमान में फसल को रस-चूसक कीटों से बचाना आवश्यक है, क्योंकि इन कीटों के कारण ओस के संपर्क में आने पर फसल झुलसा रोग से प्रभावित हो सकती है। यदि पत्तियों की ऊपरी सतह जलती हुई प्रतीत हो रही है, तो समझ लें कि फसल किसी फंगल रोग से ग्रसित हो चुकी है। यदि स्प्रे सही समय पर नहीं किया गया, तो फसल पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। यदि पहले से फंगल संक्रमण हुआ है, तो सही फंगीसाइड स्प्रे करके उसे रोका जा सकता है और नई पत्तियों को स्वस्थ रखा जा सकता है।
कीट और फंगल रोग नियंत्रण
रस-चूसक कीटों जैसे थ्रिप्स से बचाव के लिए प्रभावी कीटनाशकों का प्रयोग आवश्यक है। यदि फसल में कीटों की अधिकता दिखाई देती है, तो डेलीगेट, एक्सपोनस या ट्रेसर का उपयोग किया जा सकता है। यदि कीटों की संख्या अधिक नहीं है, तो 40% इमिडाक्लोप्रिड और 40% फिप्रोनिल का मिश्रण उपयोग कर सकते हैं। पोल्टन (परफोफो-साइपरमैथ्रिन) और एसीफेट का संयोजन भी प्रभावी होता है।
फंगल रोगों की रोकथाम के लिए टेबुकोनाजोल और ट्राईफ्लॉक्सिस्ट्रोबिन या टेबुकोनाजोल के साथ एजॉक्सिस्ट्रोबिन का उपयोग करें। यदि ब्रांडेड उत्पादों की बात करें, तो बीएसएफ कंपनी का कैबरी टॉप या वेसमा उपयुक्त फंगीसाइड हैं।
पीजीआर और टोनिक का उपयोग
फसल जब 110-115 दिन की हो जाती है, तब उसमें प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर (पीजीआर) का उपयोग किया जा सकता है। यदि तना मोटा हो गया हो और ग्रोथ लगातार बढ़ रही हो, तो सिंजेंटा का कल्टर या ताबो (जिसमें पैक्लोब्यूटाजोल होता है) उपयोगी होता है। यह पौधे के अंदर संचित ऊर्जा को कंद तक पहुंचाने में सहायक होता है। पीजीआर को इंसेक्टिसाइड और फंगीसाइड के साथ मिलाकर स्प्रे किया जा सकता है।
इन सभी उपायों को अपनाने से फसल के कंद का आकार शीघ्र ही दोगुना होगा और उसकी गुणवत्ता उच्च स्तर की होगी।
नोट: रिपोर्ट में दी गई जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध सार्वजनिक स्रोतों से एकत्रित की गई है। किसान भाई किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।👉 चावल के लाइव भाव देखने के लिए लिंक पर क्लिक करे
👉 यहाँ देखें फसलों की तेजी मंदी रिपोर्ट
👉 यहाँ देखें आज के ताजा मंडी भाव
👉 बासमती के बाजार में क्या है हलचल यहाँ देखें
About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।