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धान की रोपाई से पहले इन बातों का रखें ध्यान, पैदावार हो जाएगी दोगुनी

पैदावार हो जाएगी दोगुनी
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किसान साथियों खेती केवल मेहनत का खेल नहीं, समझदारी और वक्त की पहचान भी उतनी ही ज़रूरी होती है। खासतौर से जब बात धान की खेती की हो, तो हर एक कदम सोच-समझकर उठाना पड़ता है। धान की फसल वैसे भी मेहनत की मांग करती है और उसमें अगर मिट्टी की उर्वरता पहले से दुरुस्त कर ली जाए, तो आगे चलकर किसान को कम मेहनत में बेहतर उत्पादन मिलता है। आजकल किसान रासायनिक खादों से हटकर प्राकृतिक तरीकों को अपनाने लगे हैं। इसमें सबसे आगे नाम आता है वर्मी कंपोस्ट (Vermicompost) का, जिसे खेत में देने से न सिर्फ मिट्टी की सेहत सुधरती है, बल्कि फसल की गुणवत्ता और मात्रा दोनों में जबरदस्त सुधार होता है। साथ ही, यदि गोबर की सड़ी हुई खाद सही तरीके से डाली जाए तो वह भी कमाल का असर करती है। मगर ध्यान ये रखना है कि इन जैविक खादों का इस्तेमाल सिर्फ डालने भर से नहीं होता - उसे सही तरीकों और सही समय पर देना भी उतना ही जरूरी है। चलिए अब एक-एक करके समझते हैं वो सभी जरूरी बातें, जिन्हें जानकर आप भी धान की पैदावार को दोगुना कर सकते हैं।

वर्मी कंपोस्ट

वर्मी कंपोस्ट एक ऑर्गेनिक खाद है, जिसे केंचुओं की मदद से तैयार किया जाता है। यह खाद मिट्टी को पोषण देने के साथ-साथ उसकी संरचना को सुधारने में भी मदद करती है। धान की खेती में वर्मी कंपोस्ट का उपयोग करने से कई फायदे होते हैं। वर्मी कंपोस्ट में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व होते हैं, जो पौधों की ग्रोथ के लिए जरूरी हैं। साथ ही यह खाद मिट्टी को पोरस (छिद्रयुक्त) बनाती है, जिससे पानी ज्यादा देर तक रुकता है और सूखे की स्थिति में भी फसल को नुकसान नहीं होता। इसके अलावा वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल करने से केमिकल फर्टिलाइजर्स पर निर्भरता कम हो जाती है, जिससे लागत घटती है और पर्यावरण भी सुरक्षित रहता है।

वर्मी कंपोस्ट का उपयोग

साथियों इसका सही तरीके से उपयोग करने के लिए धान की रोपाई से लगभग 15-20 दिन पहले खेत में वर्मी कंपोस्ट डालकर हल्की जुताई कर देनी चाहिए। वर्मी कंपोस्ट डालने से पहले इसकी मात्रा का ध्यान रखना भी जरूरी है। खेत में प्रति एकड़ लगभग 2-3 टन वर्मी कंपोस्ट पर्याप्त होती है। ज्यादा मात्रा में डालने से कोई खास फायदा नहीं होता। इसके अलावा वर्मी कंपोस्ट को दोपहर की तेज धूप में नहीं डालना चाहिए, क्योंकि इससे खाद के पोषक तत्व नष्ट हो सकते हैं।

गोबर की खाद

गोबर की खाद भारतीय किसानों के लिए एक पारंपरिक और किफायती विकल्प है। यह न सिर्फ मिट्टी को उपजाऊ बनाती है, बल्कि इसमें मौजूद माइक्रोऑर्गेनिज्म (सूक्ष्मजीव) पौधों को रोगों से बचाने में भी मदद करते हैं। गोबर की खाद खेत के लिए अत्यधिक फायदेमंद होती है। गोबर की खाद मिट्टी को भुरभुरा बनाती है, जिससे जड़ों को फैलने में आसानी होती है। इसके अलावा यह खाद पौधों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है, जिससे रोग और कीटों का प्रकोप कम होता है। लेकिन केमिकल खाद की तुलना में गोबर की खाद का असर धीरे-धीरे होता है, लेकिन यह लंबे समय तक मिट्टी को पोषण देती रहती है।

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गोबर की खाद का उपयोग

साथियों, गोबर की खाद को खेत में इस्तेमाल करने से पहले एक बात का ध्यान रखें कि खेत में गोबर की पुरानी और गली-सड़ी खाद का ही उपयोग करें। अगर गोबर की खाद अधपकी होगी, तो इसमें मौजूद खरपतवार के बीज और हानिकारक बैक्टीरिया फसल को नुकसान पहुंचा सकते हैं। खेत में इसका सही उपयोग करने के लिए धान की रोपाई से 3-4 सप्ताह पहले खेत में गोबर की खाद डालकर जुताई कर देनी चाहिए। अगर इसकी मात्रा की बात करें तो प्रति एकड़ 8-10 टन गोबर की खाद पर्याप्त होती है।

मिट्टी की जांच

धान की अच्छी पैदावार के लिए सबसे पहले मिट्टी की जांच कराना जरूरी है। इससे पता चलता है कि मिट्टी में कौन-कौन से पोषक तत्वों की कमी है और कितनी खाद डालनी चाहिए। मिट्टी की जांच करवाने से सही मात्रा में खाद डालने से फर्टिलाइजर की बचत होती है और मिट्टी में पोषक तत्वों का संतुलन बनाकर उत्पादन 20-30% तक बढ़ाया जा सकता है। बिना जांच के ज्यादा खाद डालने से मिट्टी खराब हो सकती है।

कैसे कराएं मिट्टी की जांच

अगर आप अपने खेत की मिट्टी की जांच करवाना चाहते हैं तो खेत के अलग-अलग हिस्सों से मिट्टी के सैंपल लें और उन्हें मिलाकर एक किलो मिट्टी निकालें। इस सैंपल को किसी सॉइल टेस्टिंग लैब में भेज दें। फिर रिपोर्ट आने के बाद, उसमें बताई गई सिफारिशों के अनुसार खाद और उर्वरकों का इस्तेमाल करें।

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खेत की तैयारी

धान की रोपाई से पहले खेत की अच्छी तरह तैयारी करना बेहद जरूरी है। कई बार छोटी-छोटी गलतियों की वजह से पैदावार प्रभावित हो जाती है। इसलिए कुछ बातें हैं जिन पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। सबसे पहले आप खेत को समतल बनाएं। अगर खेत में ऊंचे-नीचे हिस्से होंगे, तो पानी का वितरण असमान होगा, जिससे कुछ पौधे सूख सकते हैं। उसके बाद धान की जड़ें ज्यादा गहराई तक जाती हैं, इसलिए 12-15 इंच गहरी जुताई करनी चाहिए। फिर रोपाई से पहले खेत से सभी खरपतवार और पिछली फसल के अवशेष निकाल दें।

पानी प्रबंधन

धान को ज्यादा पानी की जरूरत होती है, लेकिन गलत तरीके से सिंचाई करने पर फसल खराब हो सकती है। इसलिए आपको सिंचाई का सही तरीका अपनाना चाहिए। शुरुआत में ज्यादा पानी देने से पौधे गिर सकते हैं। जैसे-जैसे पौधे की ग्रोथ बढ़ती है यानी जब पौधे 30-45 दिन के हो जाएं, तब खेत में 2-3 इंच पानी भरकर रखें। और आगे जब धान की बालियां आने लगें, तो पानी की मात्रा धीरे-धीरे कम कर देनी चाहिए।

नर्सरी तैयार करने का सही तरीका

धान की रोपाई के लिए स्वस्थ पौध मिलना बहुत जरूरी है। इसलिए सबसे पहले आपको चाहिए कि आप नर्सरी को सही प्रकार से तैयार करें क्योंकि अगर नर्सरी में ही पौधे कमजोर होंगे, तो पूरी फसल प्रभावित होगी। सही नर्सरी तैयार करने के लिए सबसे पहले आप उन्नत किस्म के बीज ही लें, जो रोगरोधी हों। उसके बाद बुवाई से पहले बीजों को फफूंदनाशक से उपचारित कर लें। नर्सरी में बीजों की बिजाई करने से पहले आप ध्यान रखें कि नर्सरी के लिए हल्की दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है।

नोट:- रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर मौजूद सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है संबंधित किसी भी जानकारी को अमल मे लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य ले।


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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।