70 दिन का गेहूं हो गया है तो ये काम जरूर कर लेना | उत्पादन होगा 80 मण पार
किसान साथियों गेहूं की फसल की देखभाल का सबसे अहम समय तब होता है जब आपकी फसल 70 दिन की उम्र पार कर चुकी होती है। इस समय गेहूं गाभा अवस्था में पहुंचता है, मतलब बालियां निकलने की शुरुआत होती है, और यही वो समय होता है जब उत्पादन तय होता है। इस दौरान फसल का अच्छे से निरीक्षण करना जरूरी है, जैसे कि पौधों का रंग, पत्तियों की हालत और जड़ों की मजबूती को देखना।
हालांकि, गेहूं की फसल को अच्छी गुणवत्ता और ज्यादा उपज देने के लिए हर चरण में देखभाल की जरूरत होती है, लेकिन 55 से 75 दिन की अवस्था में खास ध्यान देना पड़ता है। इस समय फसल को सही पोषण देना और पीजीआर (प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर) का सही इस्तेमाल करना बहुत जरूरी होता है। ये उपाय फसल को गिरने से बचाते हैं, बालियों की लंबाई बढ़ाते हैं और दानों का भराव भी अच्छा करते हैं।
खाद और माइक्रो न्यूट्रिएंट्स का महत्व
जब किसान भाइयों ने गेहू की बुआई की थी, उस समय डीएपी, यूरिया और पोटाश जैसे पोषक तत्व डाले थे। पहली और दूसरी सिंचाई के समय भी खाद का समुचित उपयोग किया गया। हालांकि, 50-55 दिन के बाद नीचे से खाद डालने का असर कम हो जाता है क्योंकि ठंड के कारण जड़ें पोषक तत्वों को धीमी गति से अवशोषित करती हैं। इस स्थिति में फसल को ऊपर से फोलियर स्प्रे के माध्यम से आवश्यक पोषण देना सबसे प्रभावी उपाय होता है। फोलियर स्प्रे में वॉटर-सॉल्यूबल फर्टिलाइजर या माइक्रो न्यूट्रिएंट्स का उपयोग करना चाहिए। यह न केवल पौधे को तत्काल पोषण प्रदान करता है बल्कि पीलापन या अन्य समस्याओं को भी दूर करता है।
मौसम की स्थिति को ध्यान में रखते हुए सिंचाई और स्प्रे का प्रबंधन करें। यदि खेत में नमी है और फसल पीली पड़ रही है, तो फंगल संक्रमण का खतरा हो सकता है। यदि पत्तियां पीली हैं, तो आयरन, जिंक, या मैंगनीज जैसे पोषक तत्वों का छिड़काव करें। एनपीके फर्टिलाइजर: 19:19:19 या 20:20:20 ग्रेड का फोलियर स्प्रे उपयोग करें।यदि आप जैविक खेती कर रहे हैं, तो नीम के तेल या जैविक मल्टीन्यूट्रिएंट्स का उपयोग करें।
पीजीआर का महत्व
55 से 65 दिनों के बीच, जब गेहूं के पौधे में पहली गांठ (नोड) बनती है, यह समय पौधे की तेज वृद्धि और ऊंचाई बढ़ने का होता है। इस अवस्था में प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर (पीजीआर) का छिड़काव करना बेहद जरूरी है, ताकि इंटरनोड (गांठों के बीच की दूरी) की लंबाई को नियंत्रित किया जा सके और पौधा मजबूत बना रहे। एक मजबूत तना न केवल पौधे को गिरने से बचाता है, बल्कि दानों की गुणवत्ता और उपज को भी बनाए रखता है। इसके लिए बीएसएफ कंपनी का लिहोसिन उपयोग किया जा सकता है। इसे 200 मिलीलीटर मात्रा में प्रति एकड़, 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। इस स्प्रे से पौधे की इंटरनोड की दूरी कम होती है और तना मोटा और मजबूत बनता है। यदि पीजीआर का उपयोग नहीं किया जाए, तो गांठों के बीच की दूरी अधिक रहती है, जिससे पौधा कमजोर होकर गिर सकता है। इसलिए, इस अवस्था में पीजीआर का छिड़काव करना आवश्यक है।
फास्फोरस और पोटाश का महत्व
बालियों में दानों के बेहतर भराव और उनकी लंबाई बढ़ाने के लिए फास्फोरस और पोटाश का संतुलित उपयोग बेहद जरूरी है। शुरुआती अवस्था में डीएपी के रूप में फास्फोरस दिया जाता है, लेकिन 60-70 दिनों के बाद इसका प्रभाव समाप्त हो जाता है। इस समय दानों के भराव और पौधे की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए एनपीके ग्रेड 0:52:34 का उपयोग करना चाहिए। 1 किलो एनपीके 0:52:34 को 120-140 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें, जिससे पौधे को आवश्यक फास्फोरस और पोटाश मिल सके। पोटाश पौधे द्वारा भोजन को बालियों तक पहुंचाने में मदद करता है और जड़ों द्वारा अवशोषित पोषक तत्वों को बालियों और दानों तक ले जाने में महत्वपूर्ण
बोरॉन और माइक्रो न्यूट्रिएंट्स का प्रयोग
बालियों के निर्माण और दानों के भराव में बोरॉन (Boron) का विशेष योगदान होता है। बोरॉन का उपयोग परागण (Pollination) प्रक्रिया को बेहतर बनाता है, जिससे दानों का आकार और गुणवत्ता बढ़ती है। इसके लिए 100 ग्राम बोरॉन को 100-125 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा, यदि फसल में पीलापन या कमजोरी दिख रही हो, तो पानी में वॉटर-सॉल्यूबल माइक्रो न्यूट्रिएंट्स मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। यह पौधे को तत्काल पोषण प्रदान करता है और उसकी वृद्धि में सुधार करता है
फसल के गिरने से बचाने के उपाय
फसल को गिरने से बचाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण उपाय किए जा सकते हैं। सबसे पहले, पीजीआर का सही समय पर छिड़काव पौधे की ऊंचाई को नियंत्रित कर तने को मजबूत बनाता है, जिससे फसल गिरने की संभावना कम होती है। इसके साथ ही, फास्फोरस और पोटाश का संतुलित उपयोग पौधे को बेहतर पोषण प्रदान करता है, जिससे बालियां मजबूत बनती हैं और दानों का भराव अच्छा होता है। इसके अलावा, मौसम का भी ध्यान रखना जरूरी है। यदि मौसम में अधिक नमी हो, तो सिंचाई से बचें क्योंकि अत्यधिक नमी से फसल में फंगस जनित बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है
नोट: रिपोर्ट में दी गई जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध सार्वजनिक स्रोतों से एकत्रित की गई है। किसान भाई किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।
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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।