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अगर धान में ब्लैक फंगस आ गया है तो तुरंत करें यह इलाज | जाने क्या है घरेलू तरीका

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काली कवक (ब्लैक फंगस) धान की फसल में एक खतरनाक रोग है, जिसे "ब्लास्ट रोग" भी कहा जाता है। यह कवक "Pyricularia oryzae" नामक फंगस के कारण होता है, जो गर्म और आर्द्र मौसम में तेजी से फैलता है। सितंबर के महीने में लगातार बारिश के कारण पश्चिम चम्पारण के खेतों में जल जमाव की स्थिति तेजी से बढ़ रही है। यह स्थिति धान की फसल के लिए बेहद खतरनाक साबित हो रही है, क्योंकि जल जमाव के कारण धान की फसल पर काली कवक (ब्लास्ट डिजीज) तेजी से फैल रही है। इस कवक के कारण पौधों पर काले धब्बे बनते हैं, जो धीरे-धीरे पूरी फसल को नष्ट कर सकते हैं। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, यदि इस कवक का प्रकोप दो सप्ताह से अधिक समय तक रहा, तो फसल के सड़ने का खतरा और भी बढ़ सकता है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में, विशेष रूप से धान उत्पादक क्षेत्रों में, यह कवक फसल के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुका है।

काली कवक की उत्पत्ति

काली कवक के फैलने का मुख्य कारण जल जमाव और उच्च आर्द्रता है। जैसे ही बारिश की अधिकता होती है और खेतों में पानी जमा हो जाता है, फंगस के लिए यह उपयुक्त वातावरण तैयार हो जाता है। सितंबर माह में, जब मानसून अपने चरम पर होता है, खेतों में लगातार पानी भरने से काली कवक का फैलाव बढ़ जाता है। पश्चिम चम्पारण जैसे क्षेत्र, जहां धान की फसल अधिक मात्रा में होती है, इस कवक से विशेष रूप से प्रभावित हो रहे हैं।

काली कवक के लक्षण

ब्लास्ट डिजीज और इसके प्रभाव

कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक बताते हैं कि काली कवक (ब्लास्ट डिजीज) एक प्रकार का फफूंद है, जो नमी और अधिक पानी की वजह से फैलता है। यह कवक मुख्यतः धान के पौधों के तनों, पत्तियों, और दानों पर हमला करता है धान के पौधों पर अगर काले धब्बे दिखने लगे हैं, इस कवक के कारण पौधे कमजोर हो जाते हैं और अगर समय पर इलाज न किया जाए, तो पूरी फसल सड़ सकती है।तो यह काली कवक का संकेत हो सकता है। इसके प्रमुख लक्षण हैं:

  • पत्तियों पर छोटे काले धब्बे, जो धीरे-धीरे बढ़कर बड़े होते जाते हैं।
  • पौधों के तनों और पत्तियों पर काले या भूरे रंग के निशान।
  • फसल में धीमी वृद्धि और पौधों का सूखना।
  • अनाज का आकार छोटा होना या खराब होना।

यदि यह समस्या दो सप्ताह से अधिक समय तक बनी रहती है, तो फसल सड़ने का खतरा बढ़ जाता है, जिससे किसान की पूरी फसल बर्बाद हो सकती है।

काली कवक से बचाव के प्राकृतिक उपाय

धान की फसल में काली कवक जैसी समस्याओं से निपटने के लिए कई प्रभावी घरेलू उपाय मौजूद हैं, जिन्हें किसान आसानी से अपना सकते हैं। ये उपाय प्राकृतिक होते हैं और रसायनों की तुलना में सुरक्षित और किफायती होते हैं। आइए कुछ प्रमुख घरेलू उपायों पर नजर डालते हैं:

1. नीम का अर्क

नीम में प्राकृतिक रूप से मौजूद एंटीफंगल गुण होते हैं जो फसल को कवक से बचाने में मदद करते हैं।

  • बनाने का तरीका:
    • 500 ग्राम नीम की पत्तियों को 5 लीटर पानी में उबाल लें।
    • इसे ठंडा होने के बाद छान लें और स्प्रेयर में डालकर धान की फसल पर छिड़काव करें।
    • यह कवक को फैलने से रोकता है और पौधों को स्वस्थ रखता है।

2. छाछ (मट्ठा) का छिड़काव

छाछ में मौजूद लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया कवक को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं।

  • बनाने का तरीका:
    • 10 लीटर पानी में 2 लीटर छाछ मिलाएं।
    • इसका छिड़काव धान की फसल पर नियमित रूप से करें।
    • छाछ का यह मिश्रण फफूंद को रोकने में कारगर होता है और पौधों को सुरक्षित रखता है।

3. बेकिंग सोडा का उपयोग

बेकिंग सोडा एक सरल और किफायती घरेलू उपाय है, जो कवक को नियंत्रित करने में सहायक होता है।

  • बनाने का तरीका:
    • 1 लीटर पानी में 1 चम्मच बेकिंग सोडा मिलाएं।
    • इस घोल को फसल पर स्प्रे करें।
    • यह पत्तियों पर लगे काले धब्बों को कम करने में मदद करता है और कवक को फैलने से रोकता है।

4. दही का उपयोग

दही में प्राकृतिक रूप से मौजूद लैक्टोबैसिलस बैक्टीरिया कवक को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं।

  • बनाने का तरीका:
    • 5 लीटर पानी में 1 लीटर दही मिलाकर घोल तैयार करें।
    • इस मिश्रण का स्प्रे धान की फसल पर करें।
    • यह कवक को नियंत्रित करता है और पौधों को मजबूत बनाता है।

5. गाय के गोबर का घोल

गाय के गोबर में कई प्राकृतिक गुण होते हैं, जो फफूंद और अन्य रोगों से बचाव में सहायक होते हैं।

  • बनाने का तरीका:
    • 1 किलो गोबर को 10 लीटर पानी में मिलाकर 24 घंटे के लिए छोड़ दें।
    • इसे छानकर फसल पर छिड़काव करें।
    • यह मिश्रण पौधों को पोषण देता है और कवक के प्रसार को रोकता है।

6. हल्दी और नीम का घोल

हल्दी और नीम दोनों में एंटीफंगल गुण होते हैं, जो फसल को कवक से बचाने में मदद करते हैं।

  • बनाने का तरीका:
    • 100 ग्राम हल्दी पाउडर और 500 ग्राम नीम की पत्तियों को 5 लीटर पानी में उबालें।
    • ठंडा होने के बाद इसे छान लें और स्प्रेयर की मदद से फसल पर छिड़काव करें।
    • यह कवक को फैलने से रोकने का प्रभावी घरेलू उपाय है।

7. लहसुन और अदरक का घोल

लहसुन और अदरक में प्राकृतिक एंटीफंगल तत्व होते हैं जो कवक के खिलाफ लड़ने में मदद करते हैं।

  • बनाने का तरीका:
    • लहसुन और अदरक को बराबर मात्रा में पीस लें और इसे 5 लीटर पानी में मिलाकर उबाल लें।
    • ठंडा होने के बाद इसका छिड़काव फसल पर करें।
    • यह घोल कवक के प्रसार को रोकता है और पौधों को सुरक्षित रखता है।

8. चूने और सल्फर का घोल

यह एक पुराना घरेलू उपाय है जो फसल को कवक से बचाने के लिए बहुत कारगर होता है।

  • बनाने का तरीका:
    • 50 ग्राम चूना और 50 ग्राम सल्फर को 5 लीटर पानी में मिलाएं।
    • इसका छिड़काव धान की फसल पर करें।
    • यह कवकनाशी के रूप में काम करता है और काले धब्बों को खत्म करता है।

9. गुड़ और गोमूत्र का घोल

गुड़ और गोमूत्र का मिश्रण फसल की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और कवक से लड़ने में मदद करता है।

  • बनाने का तरीका:
    • 1 किलो गुड़ और 5 लीटर गोमूत्र को 10 लीटर पानी में मिलाकर 24 घंटे के लिए छोड़ दें।
    • इसके बाद इसका छिड़काव फसल पर करें।
    • यह घरेलू उपाय कवक को नियंत्रित करता है और फसल को स्वस्थ बनाता है।

10. सिरका (विनेगर) का उपयोग

सिरका में एसिटिक एसिड होता है जो कवक के प्रसार को रोकने में मदद करता है।

  • बनाने का तरीका:
    • 1 लीटर पानी में 100 मिलीलीटर सफेद सिरका मिलाएं।
    • इस घोल को फसल पर स्प्रे करें।
    • यह फफूंद को नियंत्रित करने और पौधों को स्वस्थ रखने में मददगार है।

अतिरिक्त बचाव उपाय

खेतों में जल जमाव को रोकना सबसे महत्वपूर्ण है। इसके लिए किसानों को पानी की निकासी के लिए उचित व्यवस्था करनी चाहिए ताकि बारिश का पानी अधिक समय तक खेतों में न रुके।

कृषि विशेषज्ञ किसानों को फसल में कवकनाशी (फंगीसाइड) के छिड़काव की सलाह देते हैं। इसके लिए, कार्बेंडाजिम या मेनकोजेब जैसे प्रभावी फंगीसाइड का प्रयोग किया जा सकता है। छिड़काव के लिए सही समय और खुराक का ध्यान रखना जरूरी है।

जैविक उपायों में ट्राइकोडर्मा जैसे जैविक कवकनाशक का उपयोग करना एक अच्छा विकल्प हो सकता है। यह पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित होता है और फसल को बिना किसी हानि के कवक से बचाता है।

धान की फसल के लिए उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का चयन करना चाहिए। बीज उपचार भी एक महत्वपूर्ण उपाय है, जिससे फसल को रोगों से बचाया जा सकता है।किसानों को अपनी फसल की नियमित रूप से जांच करनी चाहिए। शुरुआती लक्षणों को देखते ही, तुरंत बचाव के उपाय अपनाने चाहिए।

कवकनाशी चुनने से पहले किसी कृषि विशेषज्ञ से सलाह लें ताकि आप अपनी फसल के रोग के अनुसार सही उत्पाद का चयन कर सकें। आमतौर पर कार्बेंडाजिम, मेनकोजेब, या ट्राइकोडर्मा जैसे फंगीसाइड धान की फसल में काली कवक के लिए प्रभावी होते हैं।

2. उपयुक्त समय पर छिड़काव करें

  • कवकनाशी का छिड़काव सुबह या शाम के समय करें, जब सूरज की सीधी किरणें तेज न हों। इससे छिड़काव का प्रभाव अधिक रहता है और धूप में तेजी से सूखने का खतरा नहीं होता।
  • छिड़काव तब करें जब मौसम शुष्क हो। बारिश के समय छिड़काव न करें, क्योंकि बारिश से दवा बह सकती है और प्रभावी नहीं रहेगी।

3. दवा की सही मात्रा मिलाएं

  • कवकनाशी को सही मात्रा में पानी में मिलाना आवश्यक है। दवा के लेबल पर दिए गए निर्देशों का पालन करें और दवा को अधिक या कम मात्रा में न मिलाएं।
  • उदाहरण के लिए, यदि कार्बेंडाजिम या मेनकोजेब का छिड़काव कर रहे हैं, तो 1-2 ग्राम दवा को प्रति लीटर पानी में घोलकर इस्तेमाल करें।

4. स्प्रे उपकरण का उपयोग करें

  • स्प्रेयर (छिड़काव उपकरण) का उपयोग करें, जिसमें आप मिश्रित कवकनाशी डाल सकें।
  • स्प्रेयर को फसल की ऊंचाई और फैलाव के अनुसार सेट करें ताकि दवा हर पत्ते और तने पर समान रूप से पहुंचे।
  • छिड़काव करते समय यह सुनिश्चित करें कि फसल के सभी हिस्सों पर दवा पहुंच रही हो। खासतौर पर, पौधों की पत्तियों के नीचे और तनों पर ध्यान दें, क्योंकि फंगस वहां अधिक पनप सकता है।
  • छिड़काव को समान और धीमी गति से करें ताकि कोई भाग छूट न जाए। 
  • छिड़काव के बाद कुछ समय के लिए खेत में काम न करें ताकि दवा का प्रभाव पूरी तरह से हो सके।
  • अगर बारिश हो जाती है, तो एक बार और छिड़काव की आवश्यकता हो सकती है।
  • छिड़काव के बाद फसल की स्थिति की निगरानी करें। यदि फंगस दोबारा दिखाई दे, तो आवश्यकतानुसार दोबारा छिड़काव करें।

सही तरीके से छिड़काव करने से आप अपनी धान की फसल को काली कवक जैसी गंभीर समस्याओं से बचा सकते हैं और अच्छी पैदावार सुनिश्चित कर सकते हैं।

अन्य उपाय और सावधानियां

किसानों को तत्काल प्रभाव से प्रभावित पत्तियों और पौधों को खेत से हटाकर दूर करना चाहिए, ताकि कवक अन्य स्वस्थ पौधों तक न फैले। यह तरीका फसल के बड़े हिस्से को बचाने के लिए जरूरी है।

कवक फैलने का मुख्य कारण अत्यधिक नमी है। इसलिए, किसानों को सिंचाई के दौरान यह सुनिश्चित करना चाहिए कि खेत में अधिक पानी न रुके। जल निकासी की उचित व्यवस्था करनी चाहिए ताकि जल जमाव न हो और फसल को हानि न पहुंचे।

 नोटः दी गई जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इन्टरनेट पर उपलब्ध भरोसेमंद स्त्रोतों से जुटाई गई है। किसी भी जानकारी को प्रयोग में लाने से पहले नजदीकी कृषि सलाह केंद्र से सलाह जरूर ले लें

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।