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इस तरीके से करें गेहूं की देख रेख | उत्पादन के टूट जाएंगे सारे रिकॉर्ड

उत्पादन के टूट जाएंगे सारे रिकॉर्ड
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किसान साथियों गेहूं की फसल को बुवाई से लेकर कटाई तक कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जो फसल की उत्पादकता और गुणवत्ता पर असर डाल सकते हैं। खासकर ठंड के मौसम और बदलते पर्यावरणीय प्रभावों के कारण, किसानों को गेहूं की फसल में पाला, जलभराव, नमी की कमी, खरपतवार, और पोषक तत्वों की कमी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन समस्याओं के कारण गेहूं की फसल की पैदावार और गुणवत्ता में गिरावट आ सकती है, लेकिन इन समस्याओं के समाधान के लिए उचित प्रबंधन और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से फसल की देखभाल की जा सकती है।

पाला (Frost) और उसके प्रभाव:

सर्दियों में तापमान के अत्यधिक गिरने से पाला (Frost) फसल को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। पाले के कारण गेहूं की पत्तियां जल जाती हैं और पौधे कमजोर हो जाते हैं। इसका मुख्य कारण है नमी की कमी। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, हल्की सिंचाई करके पाले के असर को कम किया जा सकता है। सिंचाई से खेत में नमी बनी रहती है, जिससे तापमान स्थिर रहता है और फसल को पाले से बचाव मिलता है।

इसके अलावा, किसान रसायनिक उपायों का भी सहारा ले सकते हैं। एक विशेष प्रकार का केमिकल आता है, जिसे पानी में मिलाकर छिड़काव किया जाता है। यह फसल को पाले के प्रभाव से बचाने में कारगर साबित होता है। किसानों को सलाह दी जाती है कि वे विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार इस रसायन का उपयोग करें ताकि फसल को किसी तरह का नुकसान न हो।

जलभराव से बचाव

गेहूं की फसल को जलभराव से भी बड़ा खतरा होता है, खासकर तब जब खेत में पानी भर जाता है और कई दिनों तक निकल नहीं पाता। जलभराव से फसल की जड़ें सड़ने लगती हैं, जिससे पौधों की वृद्धि रुक जाती है और उपज प्रभावित होती है।

जलभराव की स्थिति में किसानों को पानी निकालने के लिए पंपिंग सेट या पारंपरिक तरीके जैसे दोलोन का उपयोग करना चाहिए। पानी निकालने के बाद खेतों को जल्दी सूखाने के लिए जिंक सुपर फास्फेट जैसे उर्वरकों का छिड़काव करना फायदेमंद होता है। ये उर्वरक मिट्टी में पानी को अवशोषित करने में मदद करते हैं और फसल को पोषण भी प्रदान करते हैं।

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, खेतों में नमी ज्यादा होने के कारण फसल पीली पड़ने लगती है। इसे रोकने के लिए जिंक का छिड़काव किया जाता है, जिससे पौधों को जरूरी पोषण मिलता है और उनकी वृद्धि में सुधार होता है।

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार गेहूं की फसल के लिए एक बड़ी समस्या है क्योंकि ये मिट्टी से पोषक तत्वों को अवशोषित कर फसल की वृद्धि को प्रभावित करते हैं। खरपतवार पर नियंत्रण के लिए सल्फास फ्यूरान (Sulfas Furan) और क्लोडिनोफॉप (Clodinofop) जैसी दवाओं का उपयोग किया जाता है।

  • सल्फास फ्यूरान: प्रति एकड़ 13.5 ग्राम।
  • क्लोडिनोफॉप: प्रति एकड़ 160 ग्राम।

इन दवाओं का छिड़काव फ्लैटफैन नॉजल से करने की सलाह दी जाती है ताकि दवा समान रूप से फैले और प्रभावी परिणाम दे।

यूरिया और उर्वरक प्रबंधन

गेहूं की फसल में यूरिया का सही उपयोग पौधों के लिए जरूरी नाइट्रोजन की पूर्ति करता है, जिससे उनकी वृद्धि तेज होती है। विशेषज्ञों के अनुसार, पहली सिंचाई के बाद या बुआई के 25-30 दिन बाद प्रति एकड़ 50 किलो यूरिया का छिड़काव करना चाहिए।

दूसरी सिंचाई के बाद भी समान मात्रा में यूरिया का उपयोग करने की सलाह दी जाती है। इससे फसल मजबूत बनती है और उपज बढ़ती है। हालांकि, अत्यधिक यूरिया का उपयोग जड़ों को कमजोर कर सकता है, जिससे पौधे गिरने लगते हैं।

बारिश के बाद, जब खेत में अधिक नमी हो जाती है, तो यूरिया का संतुलित उपयोग और मिट्टी की जांच कराना बेहद जरूरी है। विशेषज्ञों के अनुसार, प्रति एकड़ सवा दो बैग से अधिक यूरिया का उपयोग नहीं करना चाहिए।

बुवाई का सही समय

दोस्तों गेहूं की बुवाई का सबसे अच्छा समय 15 नवंबर से 15 दिसंबर तक का होता है। इस अवधि में की गई बुवाई से अच्छी पैदावार होती है। हालांकि, बाद में की गई बुवाई से उत्पादन पर असर पड़ता है। समय से बोए गए गेहूं और देरी से बोए गए गेहूं दोनों एक साथ पकते हैं, लेकिन समय पर बोए गए गेहूं की पैदावार अधिक होती है। इसीलिए, किसानों को सलाह दी जाती है कि वे बुवाई समय पर करें और जरूरत पड़ने पर ही लेट बुवाई को अपनाएं।

मिट्टी और पानी की जांच

किसानों को मिट्टी और पानी की जांच कराकर ही उर्वरकों का उपयोग करना चाहिए। यह जांच फसल की जरूरतों के अनुसार उर्वरक प्रबंधन में मदद करती है। कृषि विभाग समय-समय पर प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित करता है, जिससे किसानों को नई तकनीकों और उर्वरक उपयोग के बारे में जानकारी मिलती है। हालांकि, फसल सुरक्षा के लिए किसानों को स्वयं सतर्क रहना पड़ता है क्योंकि कई बार सरकारी सहायता पर्याप्त नहीं होती।

दोस्तों इस बार मौसम अच्छा रहने के कारण गेहूं की फसल से बेहतर उपज की उम्मीद है। हालांकि, मौसम में अचानक बदलाव आने पर फसल को नुकसान भी हो सकता है। इसलिए किसानों को मौसम विभाग से समय-समय पर जानकारी लेनी चाहिए।

  नोट: रिपोर्ट में दी गई जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध सार्वजनिक स्रोतों से एकत्रित की गई है। किसान भाई किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।