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इस तरीके से करें फसलों की सिंचाई | कम खर्च में मिलेगा बम्पर उत्पादन

इस तरीके से करें फसलों की सिंचाई | कम खर्च में मिलेगा बम्पर उत्पादन
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किसान साथियो भारत का एक बड़ा हिस्सा गांवों में रहता है और खेती उनकी आजीविका का मुख्य साधन है। हालांकि, अधिकांश किसान निर्वाह खेती पर निर्भर हैं, कुछ युवा किसान नई तकनीकों को अपनाकर खेती में क्रांति ला रहे हैं। इनमें से एक हैं उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले के जगनदीप सिंह। जगनदीप सिंह खेती में पानी की बर्बादी को कम करने के लिए स्प्रिंकलर सिंचाई का प्रयोग कर रहे हैं। उनके अनुसार, स्प्रिंकलर सिंचाई से फसलों को पर्याप्त पानी मिलता है और पानी की बर्बादी भी नहीं होती है। विशेषकर तराई क्षेत्र में जहां गेहूं की खेती प्रमुख है, वहां स्प्रिंकलर सिंचाई सबसे उपयुक्त है। जगनदीप का मानना है कि इस विधि से गेहूं की पैदावार भी बढ़ सकती है।

इंजन से सिंचाई करने में क्या दिक्कत आती है
जगनदीप ने बताया की परंपरागत इंजन से सिंचाई करने पर खेत में अक्सर जरूरत से ज्यादा पानी भर जाता है। अधिक पानी की वजह से फसलें पीली पड़ने लगती हैं और खराब होने का खतरा बढ़ जाता है, जिससे उत्पादन पर बुरा असर पड़ता है। इस समस्या के समाधान के लिए तराई क्षेत्र के किसान अब स्प्रिंकलर विधि अपना रहे हैं। इस विधि में पानी को बूंद-बूंद करके पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है, जिससे पानी का बर्बाद होना कम होता है और फसल को आवश्यक मात्रा में पानी मिल पाता है।

क्या है सिंचाई असली विधि
स्प्रिंकल विधि एक आधुनिक सिंचाई तकनीक है जिसमें पानी को बारीक बूंदों के रूप में फव्वारे की तरह फसल पर छिड़का जाता है, ठीक वैसे ही जैसे बारिश होती है। यह विधि पानी की बचत के मामले में बेहद प्रभावी है और फसल की पैदावार बढ़ाने में भी मदद करती है। गेहूं, चना, सरसों और दलहनी फसलों के लिए यह विधि विशेष रूप से उपयुक्त मानी जाती है। स्प्रिंकल सिंचाई का एक बड़ा फायदा यह है कि इसमें सिंचाई के दौरान ही पानी में खाद या कीटनाशक मिलाया जा सकता है, जो सीधे पौधों की जड़ों तक पहुंचता है, जिससे खाद और कीटनाशकों का अधिकतम उपयोग होता है और फसल की वृद्धि भी बेहतर होती है।

सूखे क्षेत्रों में कैसे करे सिंचाई
ड्रिप सिंचाई एक ऐसी तकनीक है जिसमें पानी को बूंद-बूंद करके सीधे पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है। इस विधि से खेत में जलभराव की समस्या नहीं होती, जिससे मिट्टी में नमी बनी रहती है और सभी पौधों को एक समान मात्रा में पानी मिलता रहता है। खासकर उन क्षेत्रों में जहां जमीन ऊंची-नीची हो, वहां इस विधि का उपयोग करके आसानी से सिंचाई की जा सकती है। पानी की कमी वाले क्षेत्रों में यह विधि बेहद उपयोगी साबित होती है क्योंकि इसमें पानी का बर्बाद होना बहुत कम होता है।

नोट: रिपोर्ट में दी गई जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध सार्वजनिक स्रोतों से एकत्रित की गई है। किसान भाई किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।