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गेहूं में बुवाई के समय कोन सा जिंक कितना डालें | जिंक डालने में 90% किसान करते हैं गलतियाँ

जिंक का गेहूं में महत्व
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किसान साथियों, भारत एक कृषि प्रधान देश है। भारत की लगभग 70 से 80% भूमि गेंहूं की फसल के लिए उपजाऊ है। गेंहूं, जो भारतीय खाद्य सुरक्षा का अभिन्न हिस्सा है।  गेंहूं की खेती भारत में सर्दियों के मौसम में की जाती है, जब तापमान में गिरावट होती है और यह गेंहूं के लिए अनुकूलतम परिस्थितियाँ प्रदान करता है। इसके अलावा, गेंहूं की वृद्धि और उपज में सफलता के लिए पौधों को विभिन्न पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, जिनमें से एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व है – जिंक। जिंक, एक सूक्ष्म पोषक तत्व होते हुए भी, गेंहूं की वृद्धि और उत्पादन में अहम भूमिका निभाता है। यह फसल के विभिन्न जैविक और जैवरासायनिक कार्यों में सहयोग करता है। जबकि गेंहूं के लिए यह पोषक तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस, और पोटाश जैसे प्रमुख पोषक तत्वों की तुलना में कम आवश्यक होता है, फिर भी इसकी कमी से फसल की वृद्धि में बाधा उत्पन्न हो सकती है। जिंक की कमी से गेंहूं की फसल में कई प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं जैसे पत्तियों का आकार छोटा रहना, प्रोटीन की कमी और समग्र उत्पादन क्षमता में गिरावट आना। खासकर ठंड के मौसम में, जब मिट्टी में जिंक की उपलब्धता कम हो जाती है, तब यह पोषक तत्व गेंहूं के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो जाता है। भारत के उत्तरी और पश्चिमी क्षेत्रों में गेंहूं की खेती में जिंक की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि इन क्षेत्रों में ठंड के मौसम में मिट्टी का pH स्तर भी अपेक्षाकृत उच्च होता है, जो जिंक के अवशोषण में समस्याएँ उत्पन्न करता है। इस प्रकार, यह आवश्यक हो जाता है कि जिंक का सही समय पर और उचित तरीके से उपयोग किया जाए ताकि गेंहूं की फसल की समग्र गुणवत्ता और उपज को बढ़ाया जा सके। इस लेख में हम जिंक के सही उपयोग के समय, विधि और मात्रा के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे, ताकि किसान इस महत्वपूर्ण पोषक तत्व का अधिकतम लाभ उठा सकें और अपनी गेंहूं की फसल को अच्छे परिणाम दे सकें। आज की रिपोर्ट में हम गेंहूं की फसल में कमी के उन प्रमुख कारकों पर चर्चा करेंगे जिनकी कमी गेंहूं की फसल में जिंक के कारण होती है। इस रिपोर्ट में हम जिंक के गेंहूं की फसल में महत्व, उपयोगिता, मात्रा और डालने के सही समय के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

जिंक की कमी का असर

किसान भाइयों, जिंक एक सूक्ष्म पोषक तत्व है। इसकी कमी से गेंहूं के पौधों में कई प्रकार की समस्याएँ पैदा हो सकती हैं, जो गेंहूं की फसल की गुणवत्ता और उत्पादकता को प्रभावित करती हैं। अगर हम गेंहूं की फसल में जिंक की कमी के कारण पड़ने वाले प्रभाव की बात करें तो सबसे पहले, जिंक की कमी के कारण पौधों का आकार छोटा हो जाता है। इससे पौधों का विकास सही तरीके से नहीं हो पाता और उपज की क्षमता में गिरावट आती है। जिंक का पर्याप्त मात्रा में सेवन न करने वाले गेंहूं के पौधों की पत्तियाँ छोटी और फीकी हो जाती हैं, जो पौधों के सामान्य विकास को रोकती हैं। आगे चलकर यही कमी गेंहूं की फसल में उत्पादन और गुणवत्ता में कमी का कारण भी बनती है। इसके अलावा, जिंक की कमी से कल्ले भी कम निकलते हैं। जिंक का प्रमुख कार्य एंजाइमों की गतिविधि को सक्रिय करना और पौधों में प्रोटीन निर्माण को बढ़ावा देना है। जिंक की कमी के कारण प्रोटीन निर्माण की प्रक्रिया धीमी हो जाती है, जिससे गेंहूं के दाने की गुणवत्ता में गिरावट आती है और उनका आकार भी सामान्य से छोटा रहता है। इसके परिणामस्वरूप, किसान को कम उत्पादन और कम गुणवत्ता वाले दाने मिलते हैं, जो आर्थिक दृष्टि से हानिकारक साबित हो सकते हैं। इसलिए, जिंक का समय पर और उचित तरीके से उपयोग गेंहूं की फसल के लिए अत्यंत आवश्यक है, ताकि इन समस्याओं से बचा जा सके और गेंहूं की अधिकतम उपज प्राप्त की जा सके।

सही समय और तरीका

किसान साथियों, गेंहूं की फसल में जिंक डालने का सबसे उपयुक्त समय बुवाई का समय होता है। बुवाई के समय यदि जिंक को सही तरीके से बीज के पास जड़ क्षेत्र में डाला जाए, तो यह पौधों के लिए अत्यधिक लाभकारी साबित होता है। इस समय पौधों की जड़ें पूरी तरह से विकसित नहीं होतीं, और जैसे ही जड़ें फैलती हैं, वे जिंक से संपर्क करती हैं, जिससे पौधों को इस पोषक तत्व की उचित मात्रा मिलती है। बुवाई के समय जिंक देने से पौधों की शुरुआत मजबूत होती है और बाद में उगने वाली फसल अच्छी गुणवत्ता की होती है। किन्हीं कारणों से यदि बुवाई के समय जिंक का उपयोग न किया गया हो, तो खड़ी फसल में छिड़काव के माध्यम से इसे दिया जा सकता है। यह छिड़काव 25-30 दिनों के बाद और फिर 40-50 दिनों के अंतराल पर किया जा सकता है। अगर आप छिड़काव विधि से फसल में जिंक का उपयोग करते हैं तो आपको दो बार छिड़काव करना आवश्यक है। दो छिड़कावों से बहुत अच्छे परिणाम मिलते हैं। जिंक के छिड़काव से पौधों के विकास में सुधार आता है और वे तेजी से बढ़ते हैं। यदि आप जिंक सल्फेट का छिड़काव कर रहे हैं, तो 21% प्रोटीन वाले जिंक सल्फेट का उपयोग करें। इसे 5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर पूरे खेत पर छिड़कना चाहिए। अगर आप 33% प्रोटीन वाले जिंक का प्रयोग कर रहे हैं, तो सिर्फ 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में डालें। यह मिश्रण पौधों के लिए उपयुक्त होता है और सही मात्रा में जिंक प्रदान करता है।

जिंक की मात्रा

किसान भाइयों, गेंहूं की फसल में जिंक का उपयोग अगर आप बुवाई के समय 21% प्रोटीन वाला जिंक सल्फेट प्रयोग कर रहे हैं, तो आप जिंक की मात्रा 10 किलोग्राम प्रति एकड़ ले सकते हैं। और यदि आप 33% प्रोटीन वाला जिंक सल्फेट प्रयोग कर रहे हैं, तो 6 किलोग्राम प्रति एकड़ की मात्रा पर्याप्त होगी। यदि आप बाद में छिड़काव विधि के द्वारा अपनी फसल में जिंक का उपयोग करते हैं तो 21% प्रोटीन वाला जिंक सल्फेट 5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़कें। और यदि आप 33% प्रोटीन वाले जिंक का छिड़काव करते हैं तो इसका उपयोग आप 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में करें।

21% (हेप्टाहाइड्रेट) और 33% (मोनोहाइड्रेट) वाले जिंक में अंतर

किसान भाइयों, जिंक सल्फेट 33% (मोनोहाइड्रेट) का गुण सफेद तरल पाउडर, हवा में आसानी से घुलने वाला, पानी में घुलनशील, अल्कोहल में थोड़ा घुलनशील, एसीटोन में अघुलनशीलता वाला होता है। वहीं अगर हम जिंक सल्फेट 21% (हेप्टाहाइड्रेट) की बात करें तो यह रंगहीन, गंधहीन और कसैला स्वाद वाला होता है। इसमें ऑर्थरहॉम्बिक क्रिस्टल और दाना या पाउडर के गुण भी होते हैं। इन दोनों में कुछ ऐसे गुण भी हैं जिनकी कुछ अलग विशेषताओं के कारण ये एक दूसरे से अलग बनते हैं, जो इस प्रकार हैं:

1.आंतरिक नियंत्रण सामग्री में अंतर
किसान भाइयों जिंक सल्फेट मोनोहाइड्रेट पाउडर की जिंक सामग्री 34.5% से अधिक है, जबकि जिंक सल्फेट हेप्टाहाइड्रेट पाउडर की जिंक सामग्री 21.5% से अधिक है। जिंक सल्फेट मोनोहाइड्रेट कणों की जिंक सामग्री 33% से अधिक है, और जिंक सल्फेट हेप्टाहाइड्रेट कणों की जिंक सामग्री 21% से अधिक है। कणिकाओं को डिस्क ग्रैनुलेशन द्वारा पाउडर बनाया जाता है, और जिंक सामग्री खो जाती है, इसलिए कणिकाओं की जिंक सामग्री पाउडर की तुलना में कम होगी।


2.पानी में घुलनशीलता में अंतर

 साथियों, आम तौर पर जिंक सल्फेट हेप्टाहाइड्रेट की पानी में घुलनशीलता जिंक सल्फेट मोनोहाइड्रेट की तुलना में बेहतर होती है, क्योंकि जिंक सल्फेट हेप्टाहाइड्रेट में  पानी के अणु होते हैं। हालांकि, उत्पादन निगरानी के संदर्भ में, आम तौर पर जिंक सल्फेट की पानी में अघुलनशील सामग्री 0.05% के भीतर एक योग्य उत्पाद है। जिंक सल्फेट मोनोहाइड्रेट और जिंक सल्फेट हेप्टाहाइड्रेट दोनों को पानी में घुलनशील उर्वरकों के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। यह आपके द्वारा उपयोग की जाने वाली विधि पर निर्भर करता है।

3.कीमत में अंतर

दोस्तों, आम तौर पर, जिंक सल्फेट की कीमत उत्पाद की जिंक सामग्री के अनुसार निर्धारित की जाती है। जिंक की मात्रा जितनी अधिक होगी, कीमत उतनी ही अधिक होगी। इसलिए, जिंक मोनोहाइड्रेट पाउडर की कीमत जिंक हेप्टाहाइड्रेट पाउडर की तुलना में अधिक महंगी है। जिंक सल्फेट के कण जिंक सल्फेट पाउडर की तुलना में अधिक महंगे होने का कारण यह है कि जिंक सल्फेट कणों के निर्माण की लागत में श्रम लागत में वृद्धि होती है।

नोट: रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट के सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। संबंधित किसी भी जानकारी का उपयोग करने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।