Movie prime

फ़रवरी मार्च में खाली पड़े खेत में करे इस सब्जी की खेती | 44 दिन में बन जाएंगे लखपति

पुस भण्डी
WhatsApp Group Join Now
WhatsApp Channel Join Now

किसान साथियों, गेहूं की कटाई के बाद का समय बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस समय अगर खेत खाली छोड़ दिए जाएं, तो मिट्टी की उर्वरता कम हो सकती है और किसानों की आमदनी पर भी असर पड़ता है। लेकिन अगर इस समय को सही से उपयोग किया जाए, तो यह बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है। आज हम एक ऐसी फसल के बारे में बात करेंगे जिसे गेहूं की कटाई के बाद आसानी से उगाया जा सकता है और यह बहुत कम समय में तैयार होकर अच्छी कमाई का जरिया बन सकती है। हम बात कर रहे हैं पूसा भिंडी-5 की, जो भिंडी की एक उन्नत किस्म है। इसकी खेती कम समय में ज्यादा मुनाफा देने वाली होती है और बाजार में इसकी मांग भी काफी अधिक रहती है। आइए, जानते हैं कि इसकी खेती कैसे करें और इससे कितनी कमाई हो सकती है।

फरवरी-मार्च में करें पूसा भिंडी-5 की बुआई

फरवरी और मार्च का महीना रबी फसलों की कटाई का समय होता है। गेहूं की कटाई के बाद खेतों को खाली छोड़ने की बजाय इसमें पूसा भिंडी-5 की बुआई करना एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है। यह भिंडी की अगेती (early) किस्म है, जिसका मतलब है कि यह जल्दी तैयार हो जाती है और बाजार में जल्दी बिकने से अच्छे दाम भी मिलते हैं।

इस किस्म की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसकी मांग बाजार में बहुत अधिक होती है, क्योंकि भिंडी एक लोकप्रिय सब्जी है जिसे लोग रोजाना अपनी डाइट में शामिल करना पसंद करते हैं। कम समय में तैयार होने और उच्च पैदावार देने वाली इस किस्म की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकती है।

कैसे करें पूसा भिंडी-5 की खेती?

अगर आप पूसा भिंडी-5 की खेती करना चाहते हैं तो इसके लिए सही तकनीक और वैज्ञानिक तरीकों को अपनाना जरूरी है।

मिट्टी का चयन

भिंडी की पूसा भिंडी-5 किस्म की अच्छी उपज के लिए सही मिट्टी का चयन बेहद जरूरी है। रेतीली दोमट (Sandy Loam) और भुरभुरी मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है क्योंकि ये मिट्टी जल निकासी (drainage) में मदद करती है और जड़ों को आसानी से फैलने का मौका देती है। अगर मिट्टी बहुत भारी (clay soil) होगी तो पानी रुक सकता है, जिससे फसल में जड़ सड़न (root rot) जैसी समस्याएं हो सकती हैं।  इसके अलावा, मिट्टी में कार्बनिक तत्वों (organic matter) की मात्रा अधिक होनी चाहिए ताकि पौधों को सभी आवश्यक पोषक तत्व आसानी से मिल सकें। जैविक खाद (organic manure) जैसे गोबर की खाद, वर्मीकंपोस्ट या हरी खाद (green manure) डालने से मिट्टी की उर्वरता (fertility) बढ़ती है और यह अधिक उपजाऊ बनती है। अगर खेत की मिट्टी में आवश्यक पोषक तत्वों की कमी हो तो किसान मिट्टी परीक्षण (soil testing) करवा सकते हैं और उसी के अनुसार उर्वरकों (fertilizers) का उपयोग कर सकते हैं।

खेत की तैयारी

खेत की अच्छी तैयारी से फसल की गुणवत्ता और उत्पादन में काफी सुधार किया जा सकता है। सबसे पहले, खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए ताकि मिट्टी अच्छी तरह से भुरभुरी हो जाए और उसमें मौजूद हानिकारक कीट (pests) और खरपतवार (weeds) नष्ट हो जाएं। जुताई करने के बाद मिट्टी को 2-3 बार हल्की जुताई और पाटा (leveling) लगाकर समतल कर देना चाहिए, ताकि बीज की सही अंकुरण (germination) हो और पौधों को समान रूप से पोषण मिल सके।

नमी बनाए रखने के लिए खेत में गोबर की खाद या जैविक खाद मिलाना बहुत जरूरी होता है। जैविक खाद से मिट्टी की उर्वरता तो बढ़ती ही है, साथ ही यह मिट्टी के भौतिक और जैविक गुणों को भी सुधारता है, जिससे पौधों की जड़ें मजबूत बनती हैं। इसके अलावा, अगर खेत में पहले से कोई खरपतवार (weeds) मौजूद हैं, तो उन्हें निकाल देना चाहिए  | भिंडी की पूसा भिंडी-5 किस्म की बुआई के लिए समतल क्यारियों (flat beds) का उपयोग किया जाता है। इससे पौधों को बढ़ने के लिए सही जगह मिलती है और पानी के जमाव की समस्या नहीं होती। अगर खेत में जल निकासी (drainage) की समस्या है तो उथली नालियां (shallow drains) बनानी चाहिए ताकि अतिरिक्त पानी आसानी से निकल सके।

बीज की मात्रा और बुआई का तरीका

भिंडी की पूसा भिंडी-5 किस्म की अच्छी उपज के लिए बीज की सही मात्रा और बुआई का तरीका बेहद महत्वपूर्ण होता है। इस किस्म की खेती के लिए बसंत-गर्मी के मौसम में 12-15 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। सही मात्रा में बीज डालने से पौधों के बीच आवश्यक दूरी बनी रहती है, जिससे वे अच्छी तरह विकसित हो पाते हैं  भिंडी की बुआई करते समय कतारों के बीच 30-40 सेमी की दूरी रखनी चाहिए, जिससे पौधों को हवा और धूप अच्छी तरह मिल सके। वहीं, पौधों के बीच 10-15 सेमी का अंतर होना चाहिए, ताकि जड़ें और तना अच्छे से फैल सके और फसल ज्यादा घनी न हो जाए। ज्यादा घनी फसल होने से कीट और बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है और पौधों की वृद्धि भी प्रभावित होती है।

बीजों को 2-3 सेमी की गहराई में बोना चाहिए, जिससे उनका अंकुरण (germination) सही तरीके से हो सके। अगर बीज बहुत गहराई में बोए जाते हैं तो उनके उगने में समस्या हो सकती है, और अगर ज्यादा सतही (shallow) बोए जाते हैं तो वे मिट्टी की नमी से सही संपर्क नहीं बना पाते, जिससे अंकुरण कमजोर हो सकता है। बुआई के बाद हल्की सिंचाई करना जरूरी होता है ताकि बीजों को अंकुरित होने के लिए आवश्यक नमी मिल सके। 

सिंचाई प्रबंधन

भिंडी की फसल को अच्छे उत्पादन के लिए सही सिंचाई प्रबंधन जरूरी है। बुआई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए, ताकि बीजों को नमी मिल सके और वे जल्दी अंकुरित हो सकें। अगर सिंचाई बहुत ज्यादा कर दी जाए तो बीज सड़ सकते हैं और अगर कम की जाए तो अंकुरण प्रभावित हो सकता है। गर्मी के मौसम में हर 5-7 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए ताकि मिट्टी में नमी बनी रहे। भिंडी की जड़ों को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती, लेकिन अगर मिट्टी में सूखा पड़ जाता है तो पौधे की वृद्धि रुक सकती है और फूल व फल गिर सकते हैं। खासकर, फूल आने और फल बनने की अवस्था में नियमित सिंचाई बहुत जरूरी होती है, क्योंकि इस समय अगर नमी की कमी हो जाए तो उत्पादन पर विपरीत असर पड़ सकता है।

हालांकि, अधिक पानी देने से भी बचना चाहिए, क्योंकि भिंडी की जड़ें बहुत ज्यादा पानी सहन नहीं कर पातीं। अगर खेत में अत्यधिक पानी भर जाता है, तो पौधों की जड़ें सड़ सकती हैं और रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए खेत में जल निकासी (drainage) की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए 

खाद और उर्वरक प्रबंधन

भिंडी की पूसा भिंडी-5 किस्म की खेती में खाद और उर्वरकों का सही उपयोग करना बहुत जरूरी होता है, जिससे पौधों को सभी आवश्यक पोषक तत्व मिल सकें और वे तेजी से बढ़ सकें। बुआई से पहले खेत में 25-30 क्विंटल गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर डालनी चाहिए। जैविक खाद मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में मदद करती है और पौधों के लिए आवश्यक पोषण उपलब्ध कराती है।

इसके अलावा, नाइट्रोजन (N), फॉस्फोरस (P) और पोटाश (K) का संतुलित उपयोग करना चाहिए। बुआई के समय DAP (Diammonium Phosphate) और पोटाश डालना फसल के लिए बहुत फायदेमंद रहता है, क्योंकि यह पौधों को शुरुआती विकास के लिए जरूरी पोषक तत्व प्रदान करता है।

फसल की बढ़वार के दौरान यूरिया का भी सही मात्रा में उपयोग करना चाहिए, लेकिन इसे अधिक मात्रा में डालने से बचना चाहिए क्योंकि इससे पौधे बहुत ज्यादा पत्तेदार हो सकते हैं और फल कम लग सकते हैं। फूल और फल बनने की अवस्था में उर्वरकों का स्प्रे करना भी लाभकारी होता है, जिससे पौधों की उपज और गुणवत्ता में सुधार आता है। सही खाद और उर्वरक प्रबंधन से भिंडी की फसल स्वस्थ और उत्पादक बनी रहती है, जिससे किसानों को अधिक मुनाफा मिलता है।

कीट एवं रोग प्रबंधन

भिंडी की खेती में कीट और रोगों का सही प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है, सफेद मक्खी और माहू (aphids) जैसे कीट भिंडी के पौधों का रस चूसकर उन्हें कमजोर कर देते हैं, जिससे पौधों की वृद्धि प्रभावित होती है इसलिए इन कीटों से बचाव के लिए जैविक कीटनाशकों का उपयोग करना सबसे अच्छा विकल्प होता है। किसान नीम तेल (Neem Oil) का छिड़काव कर सकते हैं,  यदि संक्रमण अधिक हो जाए, तो बायो-पेस्टिसाइड्स या हल्के रसायनों का नियंत्रित उपयोग किया जा सकता है।

भिंडी में फफूंद जनित रोग (fungal diseases) भी एक बड़ी समस्या बन सकते हैं, जो पौधों की पत्तियों और फलों को खराब कर सकते हैं। इन रोगों से बचने के लिए सबसे अच्छा तरीका उचित फसल चक्र (Crop Rotation) अपनाना है, जिससे मिट्टी में फफूंद और अन्य रोगजनकों की वृद्धि कम होती है। इसके अलावा, खेत की नियमित निगरानी (monitoring) करना जरूरी है ताकि शुरुआती चरण में ही रोगों की पहचान की जा सके और समय रहते सही उपचार किया जा सके। फफूंद से बचने के लिए किसान कार्बेन्डाजिम (Carbendazim) या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (Copper Oxychloride) जैसे फफूंदनाशकों का छिड़काव कर सकते हैं

फसल कटाई

भिंडी की पूसा भिंडी-5 किस्म की फसल बुआई के लगभग 44 दिनों बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। भिंडी की फसल में समय-समय पर तुड़ाई (harvesting) करना बहुत जरूरी होता है, क्योंकि यदि फसल को ज्यादा समय तक पौधे पर छोड़ दिया जाए तो फलियां कठोर हो जाती हैं नियमित तुड़ाई करने से नए फूल और फल बनने की प्रक्रिया तेज होती है आमतौर पर, हर 2-3 दिन में भिंडी तोड़ने की सलाह दी जाती है ताकि बाजार में अच्छी गुणवत्ता की ताजी भिंडी पहुंच सके।

भिंडी की खेती से कितनी होगी कमाई?

अब सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि पूसा भिंडी-5 की खेती से किसानों को कितनी कमाई हो सकती है? यह किस्म अधिक उत्पादन देने वाली है इसलिए इसकी बाजार में अच्छी मांग बनी रहती है। अगर किसान एक हेक्टेयर भूमि में पूसा भिंडी-5 की खेती करते हैं, तो वे लगभग 18 टन (18,000 किलोग्राम) हरी फलियां प्राप्त कर सकते हैं। भिंडी का बाजार मूल्य मौसम और मांग के अनुसार बदलता रहता है, लेकिन सामान्य तौर पर इसका औसत मूल्य 20-25 रुपये प्रति किलोग्राम होता है। अगर 18 टन भिंडी को न्यूनतम 20 रुपये प्रति किलो की दर से बेचा जाए, तो कुल आय 3.6 लाख रुपये होती है। अगर बाजार में भिंडी का मूल्य 25 रुपये प्रति किलो रहता है, तो किसान की कुल कमाई 4.5 लाख रुपये तक पहुंच सकती है

नोट: रिपोर्ट में दी गई जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध सार्वजनिक स्रोतों से एकत्रित की गई है। किसान भाई किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।

👉 चावल के लाइव भाव देखने के लिए लिंक पर क्लिक करे

👉 यहाँ देखें फसलों की तेजी मंदी रिपोर्ट

👉 यहाँ देखें आज के ताजा मंडी भाव

👉 बासमती के बाजार में क्या है हलचल यहाँ देखें

About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।