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गेहूं के लिए DAP खरीदने में छूट सकते हैं छक्के | जाने कितना कम हुआ DAP आयात

गेहूं के लिए DAP खरीदने में छूट सकते हैं छक्के | जाने कितना कम हुआ DAP आयात
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किसान भाइयों पिछले तीन-चार साल के दौरान देखा गया है कि फसलों की बिजाई के समय डीएपी की भारी मात्रा में कमी हो जाती है। इस परंपरा को जारी रखते हुए इस समय भी देश में डीएपी की भारी कमी बनी हुई है। साथियों जैसा कि आपको पता है की डीएपी के बिना किसान अपनी फसल की बिजाई करने के बारे में सोच भी नहीं सकते। डीएपी हर फसल के लिए एक महत्वपूर्ण खाद है जो फसल के उत्पादन को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मौजूदा समय में अंतरराष्ट्रीय बाजार में डीएपी के कच्चे माल में आई तेजी के कारण डीएपी के दामों में बढ़ोतरी के साथ-साथ आयात पर भी बहुत अधिक असर पड़ रहा है। जिसके कारण घरेलू बाजारों में डीएपी की कालाबाजारी भी शुरू हो गई है, जिसका नुकसान सबसे ज्यादा किसान को उठाना पड़ता है। दोस्तों इस समय डीएपी का संकट देश के कई राज्यों में बढता जा रहा है। रबी सीजन की फसलों की बुआई के लिए खासकर हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, और मध्य प्रदेश जैसे अधिक कृषि उत्पादक राज्यों में डीएपी की  मांग अधिक बढ़ रही है। लेकिन  डीएपी के आयात में आई  कमी के कारण घरेलू बाजारों में डीएपी की भारी कमी बनी हुई है। और अनुमान लगाया जा रहा है कि अक्टूबर और नवंबर के महीने में डीएपी संकट और बढ़ सकता है, क्योंकि अक्टूबर और नवंबर महीने में गेहूं की अत्यधिक बजाई होती है। इस समय बाजारों में डीएपी की मांग अधिक बढ़ जाती है। लेकिन हाल फिलहाल के स्टॉक और आयात में आई कमी ने हालातो को और भी मुश्किल बना दिया है। डीएपी के मौजूदा हालात ऐसे बने हुए हैं कि किसान भाइयों को मजबूरी में डीएपी को ब्लैक में खरीदना पड़ रहा है और दुकानदार किसानों से अच्छे खासे पैसों की वसूली कर रहे हैं। डीएपी के आयात में आई कमी और घरेलू बाजारों में डीएपी की बढ़ती मांग को लेकर सरकार भी सोचने पर मजबूर हो गई है।आज की रिपोर्ट में हम उन घटकों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे, जिनके कारण डीएपी के आयात में कमी ,और डीएपी के दामों में तेजी बन रही है, तो आईए इस रिपोर्ट के माध्यम से इस बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं।

आयात में कमी
किसान भाइयों इस समय देश में सितंबर के आखिर तक डीएपी का भंडार केवल 21.76 लाख मिट्रिक टन रह गया है। जो कि पिछले साल के सितंबर तक के आंकड़ों को देखें तो 37.45 लाख मीट्रिक टन था। आयात में आई कमी का सबसे बड़ा कारण वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय बाजारों में डीएपी और इसके कच्चे माल की कीमतों में लगातार हो रही तेजी को बताया जा रहा है। अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में हो रही तेजी के कारण खाद कंपनियां आयात में कटौती कर रही हैं इस चालू वर्ष के शुरुआती 5 महीनो में (अप्रैल से अगस्त) सिर्फ 15.9 लाख टन डीएपी का आयात हुआ है, जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में यह आंकड़ा 32.5 लाख टन था।

डीएपी की मांग
किसान साथियों इस साल डीएपी की मांग में भी बढ़ोतरी हुई है। क्योंकि इस साल गेहूं के रकबे की बिजाई में भी बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस बार रबी सीजन में देश में लगभग 52 लाख मीट्रिक टन डीएपी की मांग होगी। इसमें से 20 लाख मीट्रिक टन डीएपी का उत्पादन किया जाएगा, जबकि बाकी की मात्रा आयात से पूरी की जाएगी। इसके बावजूद, मौजूदा हालातों को देखते हुए, स्टॉक में कमी और आयात में कमी के कारण इस मांग को पूरा करना बहुत ही मुश्किल कार्य हो सकता है।

डीएपी की बढ़ती कीमतें
किसान भाइयों डीएपी के आयात में आई कमी का एक मुख्य कारण इसकी अंतरराष्ट्रीय कीमतों में आई वृद्धि है। जून से सितंबर के बीच डीएपी की कीमतें 509 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 620 से 640 डॉलर प्रति टन हो गई हैं। जबकि देश में डीएपी की अधिकतम खुदरा कीमत 27,000 रुपये प्रति टन है, सरकार इस पर 21,676 रुपये प्रति टन की सब्सिडी देती है। हालांकि, उर्वरक कंपनियों को प्रति टन 7,100 रुपये का घाटा हो रहा है, जिससे आयात में कमी आ रही है।

कच्चे माल का आयात
किसान भाइयों डीएपी के उत्पादन को बढ़ाने के लिए जिस कच्चे माल ( रॉक फॉस्फेट और सल्फ्यूरिक एसिड) की आवश्यकता पड़ती है, उसका आयात भी महंगा हो गया है। इस कारण से घरेलू उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है। जो डीएपी की कीमतों और आयत पर बहुत अधिक प्रभाव डाल रहा है।

ईवी बैटरियों की भूमिका
किसान साथियों डीएपी की बढ़ती कीमतों और उत्पादन में आई कमी का एक प्रमुख कारण इलेक्ट्रिक वाहनों  में फॉस्फेट से तैयार होने वाली बैटरियों का उपयोग भी बताया जा रहा है। टेस्ला जैसी कंपनियों ने अपने इलेक्ट्रिक गाड़ीयों में  लिथियम-आयन फॉस्फेट बैटरियों का उपयोग बढ़ा दिया है। 2023 में दुनियाभर के 40% ईवी में इस प्रकार की बैटरियों का उपयोग किया गया, जो 3 साल पहले मात्र 6% था। फॉस्फेट की बढ़ती मांग ने डीएपी की कीमतों को भी प्रभावित किया है।

चीन के निर्यात में गिरावट
किसान साथियों दुनिया का सबसे अधिक डीएपी का निर्यात चीन करता है। चीन, जो दुनिया का सबसे बड़ा डीएपी निर्यातक है, उसने भी अपने निर्यात में कटौती की है। 2023 में चीन ने भारत को 17 लाख टन डीएपी का निर्यात किया, लेकिन अब डीएपी की बढ़ती मांग को देखते हुए चीन ने भी डीएपी की कीमतों में बढ़ोतरी कर दी। चीन ने अपनी डीएपी की कीमतों में 20-25% की वृद्धि कर दी, जिससे भारत को आपूर्ति में कठिनाई हो रही है और देश के घरेलू बाजारों में डीएपी के आयात में आई कमी और डीएपी  के दामों में हो रही बढ़ोतरी का कारण है।

समाधान
किसान साथियों डीएपी के संकट से निपटने के लिए सरकार को कुछ विशेष नीतियां बनानी पड़ेगी और उन नीतियों पर जल्द ही कोई फैसला लेना होगा। डीएपी की कमी का संकट कई कारकों से प्रेरित है, जिसमें अंतरराष्ट्रीय कीमतों में वृद्धि, कच्चे माल की आपूर्ति में कठिनाइयां और ईवी बैटरियों में फॉस्फेट का बढ़ता उपयोग शामिल है। हालांकि, सरकार और उर्वरक कंपनियां इस संकट से निपटने के लिए प्रयासरत हैं। डीएपी के आयात को बढ़ाने के लिए आयात और उत्पादन के बीच संतुलन बनाकर और डीएपी की कीमतों को नियंत्रित कर, इस संकट का समाधान ढूंढ़ा जा सकता है। अगर चीन अपनी डीएपी की कीमतों को घटाकर, निर्यात को बढ़ाता है तो काफी हद तक डीएपी के संकट को कम किया जा सकता है।

नोट:-किसान भाइयों रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी सार्वजनिक स्रोतों और इंटरनेट के माध्यम से इकट्ठा की गई है। हम रिपोर्ट में दी गई किसी भी जानकारी की आधिकारिक पुष्टि नहीं करते।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।