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आलू के किसानों के लिए आ गई है एरोपोनिक तकनीक | कम खर्चे में लाखों की कमाई

आलू के किसानों के लिए आ गई है एरोपोनिक तकनीक | कम खर्चे में लाखों की कमाई
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किसान साथियों आजकल खेती में आ रहे बदलावों के साथ, एरोपोनिक तकनीक आलू की खेती में एक क्रांति ला रही है। पारंपरिक खेती के विपरीत, जहां मिट्टी, पानी और श्रम की अधिक आवश्यकता होती है, एरोपोनिक तकनीक से आलू की खेती बिना मिट्टी के ही संभव हो गई है। यह तकनीक किसानों के लिए बेहद लाभदायक है क्योंकि इससे न केवल आलू का उत्पादन बढ़ता है बल्कि आलू की गुणवत्ता भी बेहतर होती है। विशेष रूप से, सीमित भूमि और संसाधनों वाले किसानों के लिए यह तकनीक काफी फायदेमंद साबित हो रही है।

किस तकनीक से करे आलू की खेती
आलू की खेती में एरोपोनिक तकनीक एक नई क्रांति लेकर आई है। पारंपरिक खेती में जहां मिट्टी का उपयोग किया जाता है, वहीं एरोपोनिक तकनीक में पौधों को हवा में लटका कर उनकी जड़ों को पोषक तत्वों से भरपूर किया जाता है। इस तकनीक में आलू के पौधों को विशेष बक्सों में लटकाया जाता है और इन बक्सों में आलू की जड़ों पर पोषक तत्वों की धुंध का छिड़काव किया जाता है। इस धुंध में सभी आवश्यक पोषक तत्व होते हैं जो पौधों के विकास के लिए आवश्यक होते हैं। एरोपोनिक तकनीक का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें मिट्टी का उपयोग नहीं होता है। इससे मिट्टी से संबंधित सभी समस्याएं जैसे कीड़े, बीमारियां और खरपतवार आदि से मुक्ति मिल जाती है। नतीजतन, आलू की फसल स्वस्थ और उच्च गुणवत्ता की होती है। इस तकनीक के माध्यम से कम जगह में अधिक उत्पादन लिया जा सकता है और यह तकनीक पर्यावरण के लिए भी अधिक अनुकूल है।

एरोपोनिक तकनीक से आलू की बढ़ाये पैदावार
एरोपोनिक तकनीक आलू उत्पादन में एक नई क्रांति ला रही है। इस तकनीक में पौधे को मिट्टी की बजाय हवा में पोषक तत्वों के घोल में लटका दिया जाता है। पारंपरिक खेती के मुकाबले एरोपोनिक खेती में आलू की पैदावार कई गुना अधिक होती है। एक पौधे से 40 तक आलू प्राप्त किए जा सकते हैं, जो कि पारंपरिक तरीकों से प्राप्त आलू की संख्या से कहीं अधिक है। इस तकनीक में पौधों को अनुकूल वातावरण मिलता है और उन्हें आवश्यक पोषक तत्व नियमित रूप से दिए जाते हैं, जिससे आलू के पौधे तेजी से बढ़ते हैं और उनकी गुणवत्ता भी बेहतर होती है। टिश्यू कल्चर और बायोटेक्नोलॉजी के उपयोग से तैयार किए गए आलू के पौधे इस तकनीक के माध्यम से और अधिक तेजी से विकसित होते हैं। कुल मिलाकर, एरोपोनिक तकनीक किसानों को अधिक उत्पादन और बेहतर गुणवत्ता वाले आलू उपलब्ध कराकर कृषि क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत कर रही है।

एरोपोनिक तकनीक से आलू की खेती एक नवीनतम तरीका है जिसमें मिट्टी का उपयोग किए बिना ही आलू उगाए जाते हैं। इस तकनीक से एक पौधे से लगभग 40 आलू प्राप्त किए जा सकते हैं। इस विधि में पौधों की जड़ों को हवा में लटका दिया जाता है और उन्हें पोषक तत्वों से भरपूर धुंध के माध्यम से पोषण दिया जाता है। इस तरह पौधों को लगातार पोषण मिलता रहता है और उनकी गुणवत्ता भी बेहतर बनी रहती है। एरोपोनिक खेती में पौधों का pH स्तर भी नियंत्रित किया जाता है। इस प्रक्रिया में, सबसे पहले पौधों को टिश्यू कल्चर की मदद से तैयार किया जाता है। फिर इन्हें कोकोपिट में रखा जाता है ताकि उनकी जड़ें मजबूत हो सकें। लगभग 20 दिनों के बाद, इन पौधों को एरोपोनिक सिस्टम में स्थानांतरित कर दिया जाता है। यह तकनीक पारंपरिक खेती से काफी अलग है क्योंकि इसमें मिट्टी का उपयोग नहीं होता है और पौधों को कृत्रिम वातावरण में उगाया जाता है।

किस तकनीक से करे पौधों की की देखभाल
एरोपोनिक तकनीक में आलू की खेती एक नई और आधुनिक विधि है। इस तकनीक में पौधों को मिट्टी की जगह हवा में उगाया जाता है। पौधों की जड़ों को पोषक तत्वों से युक्त धुंध के माध्यम से पोषण दिया जाता है। यह धुंध जड़ों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करती है, जिससे आलू की गुणवत्ता और आकार में सुधार होता है। इस तकनीक में पौधों की जड़ों का लगातार निरीक्षण किया जाता है, जिससे किसी भी समस्या को जल्दी पहचानकर समाधान किया जा सकता है। एरोपोनिक खेती की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें पारंपरिक खेती की तुलना में कम लागत आती है और अधिक मुनाफा होता है। चूंकि इसमें मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती और कम पानी में भी अच्छे परिणाम मिलते हैं, इसलिए यह तकनीक किसानों के लिए लाभदायक साबित हो सकती है।

एरोपोनिक तकनीक से होगी 10 गुना पैदावार
एरोपोनिक तकनीक से आलू की खेती पारंपरिक तरीकों के मुकाबले कई फायदे प्रदान करती है। इस तकनीक से आलू की पैदावार अधिक होती है और फसल चक्र भी छोटा होता है। हर तीन महीने में एक नई फसल प्राप्त की जा सकती है, जबकि पारंपरिक खेती में साल में एक बार ही फसल ली जाती है। मिट्टी के सीधे संपर्क में न होने के कारण एरोपोनिक में उगाए गए आलू की गुणवत्ता बेहतर होती है। ये पौधे कीटों और बीमारियों से मुक्त रहते हैं, जिससे आलू का आकार, रंग और स्वाद बेहतर होता है। इस तकनीक से प्राप्त बीज भी रोगमुक्त होते हैं, जिससे अगली फसल भी अच्छी होती है। कुल मिलाकर, एरोपोनिक तकनीक से आलू का उत्पादन और गुणवत्ता दोनों में वृद्धि होती है।
नोट: रिपोर्ट में दी गई जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध सार्वजनिक स्रोतों से एकत्रित की गई है। किसान भाई किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।