रुपया और डॉलर के बीच की जंग: 10 फरवरी से 18 फरवरी तक की स्थिति पर गहरी नजर
दोस्तों, आर्थिक जगत में हर दिन कुछ न कुछ नया घटित होता रहता है। हाल के दिनों में भारतीय रुपया और अमेरिकी डॉलर के बीच की जंग ने सबका ध्यान खींचा है। इस रिपोर्ट में हम समझेंगे कि साप्ताहिक रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक सप्ताह में रुपया किस तरह डॉलर के मुकाबले मजबूत हुआ और इस मजबूती के पीछे क्या कारण रहे। इन कारकों को सही ढंग से समझने के लिए रुपया और डॉलर के बीच इस उतार-चढ़ाव के कारणों को जानना बेहद जरूरी है, क्योंकि यह सिर्फ हमारे आर्थिक जीवन स्तर पर ही नहीं, बल्कि पूरी भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी असर डालता है। खासतौर से ऐसे समय में, जब वैश्विक आर्थिक माहौल लगातार बदल रहा है, ऐसे में भारतीय मुद्रा की स्थिति पर नजर रखना बेहद महत्वपूर्ण है। आपको बता दें कि लगातार दूसरे दिन गिरावट के चलते भारतीय रुपये ने 18 फरवरी को 5 पैसे कम खोले, जो अपनी नीचे की गति को जारी रखता है, क्योंकि यह शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 87-मार्क को पार करने के करीब रहा है। पिछले सत्र की क्लोजिंग दर 86.8788 की तुलना में, 86.9487 पर गिरने से पहले लोकल करेंसी ने प्रति डॉलर 86.9287 पर ट्रेडिंग शुरू की। आइए अब बात करते हैं कि 10 फरवरी के बाद रुपया कैसे डॉलर के मुकाबले ताकतवर बना और उसकी मजबूती को किस प्रकार समझा जा सकता है। दोस्तों, 10 फरवरी 2025 को भारतीय रुपया अपने इतिहास में सबसे कमजोर स्तर पर था। उस समय डॉलर के मुकाबले रुपया 88 के करीब था, जो भारतीय मुद्रा के लिए एक नया रिकॉर्ड था। लेकिन इसके बाद अचानक कुछ ऐसा हुआ, जिसने सभी को चौंका दिया। रुपया ने जबरदस्त वापसी की और देखते-देखते 14 फरवरी तक डॉलर के मुकाबले 1.5 प्रतिशत से अधिक मजबूत हो गया। लेकिन फिलहाल पिछले दो दिनों से डॉलर के मुकाबले रुपया में फिर से गिरावट देखी जा रही है। इस बदलाव को समझने के लिए हमें दो महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान देना होगा: पहला, वैश्विक बाजार में डॉलर का उतार-चढ़ाव और दूसरा, भारतीय अर्थव्यवस्था से जुड़ी कुछ प्रमुख घटनाएं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर की स्थिति का असर भारतीय रुपया पर पड़ता है। क्योंकि जब डॉलर मजबूत होता है, तो भारतीय मुद्रा कमजोर हो जाती है। लेकिन अगर डॉलर कमजोर होता है या बाजार में किसी कारण डॉलर की मांग कम होती है, तो रुपया खुद को मजबूत करता है। फिलहाल भी पिछले कुछ दिनों में यही हुआ। इसके अलावा, भारत की घरेलू आर्थिक स्थिति और वित्तीय रणनीतियों ने भी रुपया की मजबूती में अहम भूमिका निभाई। इसके अलावा भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का सक्रिय हस्तक्षेप, विदेशी पूंजी निवेश और कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव ने भारतीय मुद्रा को सहारा दिया। तो चलिए, रुपया और डॉलर के इस उतार-चढ़ाव के चक्कर को विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं इस रिपोर्ट के द्वारा।
रुपया की मजबूती के कारक
साथियों, पिछले सप्ताह रुपया की मजबूती के कई कारण रहे हैं, जिनमें प्रमुख रूप से विदेशी निवेश, कच्चे तेल के दामों में आई गिरावट, और आरबीआई का हस्तक्षेप महत्वपूर्ण रहे हैं। दोस्तों, भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी पूंजी निवेश की स्थिति काफी महत्वपूर्ण है। क्योंकि जब विदेशी निवेशक भारतीय बाजार में निवेश करते हैं, तो रुपया की मांग बढ़ती है, जिससे वह मजबूत होता है। पिछले कुछ दिनों में भारतीय इक्विटी बाजार में जो हलचल रही, उसने रुपया को स्थिर रहने में मदद की। इसके अलावा, पिछले दिनों कच्चे तेल की कीमतों में आई गिरावट ने भी रुपया को मजबूती देने में अपना योगदान किया था, क्योंकि भारत एक बड़े तेल आयातक देश के तौर पर, कच्चे तेल की कीमतों से गहरे रूप से प्रभावित होता है। जब तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो भारत को अपने आयात बिल को चुकाने के लिए ज्यादा डॉलर की जरूरत पड़ती है, जिससे रुपया कमजोर होता है। लेकिन अगर तेल की कीमतें गिरती हैं, तो इसका सीधा फायदा रुपया को मिलता है। इसके अतिरिक्त रिजर्व बैंक की भूमिका भी इस दौरान अहम रही है। क्योंकि जब डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो रहा था, तब RBI ने मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप किया और रुपया को स्थिर किया। इसका परिणाम यह हुआ कि रुपया डॉलर के मुकाबले मजबूत हो गया। इन सभी कारणों के अलावा, आर्थिक माहौल भी भारतीय मुद्रा की स्थिति पर असर डालता है। क्योंकि डॉलर की स्थिति कई अंतरराष्ट्रीय कारकों पर निर्भर करती है, जैसे कि अमेरिका की ब्याज दरें, वैश्विक व्यापारिक तनाव, और अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं का प्रदर्शन।
डॉलर की कमजोरी
साथियों, जब हम रुपये और डॉलर के बीच के रिश्ते पर गहराई से विचार करते हैं, तो हमें यह समझना होता है कि सिर्फ रुपया ही नहीं, बल्कि डॉलर भी कई बार कमजोर हो सकता है। पिछले कुछ दिनों में डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया काफी मजबूत हुआ है। 10 फरवरी को डॉलर के मुकाबले रुपया 87.99 के स्तर पर था, और अब 14 फरवरी तक यह 86.50 के आसपास पहुंच चुका था। लेकिन 17 और 18 फरवरी को फिर से रुपये में गिरावट देखी जा रही है। 14 फरवरी तक रुपये की मजबूती का एक अहम कारण यह है कि अमेरिकी डॉलर में हल्की कमजोरी आई है। डॉलर के मुकाबले यूरो, पाउंड और जापानी येन जैसी प्रमुख मुद्राएं भी कमजोर हो गई हैं। यह वैश्विक वित्तीय माहौल का परिणाम है, जो डॉलर के लिए अच्छा नहीं था।
रुपया में गिरावट का कारण
दोस्तों, हालांकि पिछले कुछ दिनों में रुपया ने मजबूती दिखाई है, लेकिन 17 फरवरी से लेकर 18 फरवरी तक डॉलर के मुकाबले रुपये में हल्की गिरावट देखी गई है। 18 फरवरी को भारतीय रुपया 5 पैसे कमजोर होकर खुला, और यह अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 87 के स्तर के करीब पहुंचने की संभावना दिखा रहा था। पिछले सत्र की क्लोजिंग दर 86.8788 से गिरकर यह 86.9487 तक चला गया, और शुरुआती कारोबार में यह 86.9287 पर ट्रेंड कर रहा था। रुपये में यह गिरावट कई घरेलू और वैश्विक कारकों का परिणाम है, जैसे अमेरिकी डॉलर की मजबूत मांग, कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव, और विदेशी निवेश प्रवृत्तियों में बदलाव। इसके अलावा, आर्थिक आंकड़े और वैश्विक राजनीतिक तनाव भी बाजार की भावना को प्रभावित कर रहे हैं, क्योंकि जब विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से अपने पैसे निकालते हैं, तो रुपये पर दबाव पड़ता है। इससे रुपया में थोड़ी गिरावट हो सकती है। इसके अलावा, कुछ घरेलू आर्थिक समस्याएं भी रुपये की गिरावट का कारण बनती हैं। भारत के वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि जनवरी 2025 में निर्यात में गिरावट आई है और व्यापार घाटा बढ़ा है। इसके अलावा, देश में सोने का आयात भी बढ़ा है, जिससे रुपये पर और दबाव पड़ा है। अगर इस बारे में और चर्चा करें तो कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि वैश्विक आर्थिक स्थिति में अनिश्चितता ने भी डॉलर को मजबूत किया है। अमेरिकी ब्याज दरों में बढ़ोतरी और अन्य वैश्विक मुद्दों ने डॉलर की मांग को बढ़ाया, जिससे रुपया थोड़ा कमजोर हुआ।
आगे क्या स्थिति रहेगी रुपये की
साथियों, विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर घरेलू इक्विटी बाजार स्थिर रहते हैं और विदेशी निवेशकों का भरोसा भारत में बना रहता है, तो रुपया और मजबूत हो सकता है। इसके अलावा भारतीय रिजर्व बैंक का भी सक्रिय हस्तक्षेप रुपये की मजबूती में सहायक साबित हो सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर रुपया 86.50 के नीचे स्थिर रहता है, तो यह 85.80-86.00 के स्तर तक जा सकता है, जो रुपये की और मजबूती को दर्शाता है। रुपया की मजबूती और डॉलर की कमजोरी के बीच की जंग लगातार बदलती रहती है। हालांकि, भारतीय मुद्रा ने हाल के दिनों में काफी सुधार किया है, लेकिन इसके भविष्य का निर्धारण कई आर्थिक और वैश्विक कारकों पर निर्भर करेगा।
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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।