रूस के गेहूं निर्यात की कीमतों में देखी जा रही है स्थिरता। लेकिन कीमतों में बदलाव की संभावना अभी भी बरकरार
किसान साथियों, रूस और भारत के गेहूं बाजार में हाल ही में कई महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिले हैं। रूस में नई फसल की निर्यात कीमतें स्थिर बनी हुई हैं, जबकि भारत में सरकारी खरीद ने रिकॉर्ड स्तर को छू लिया है। इन दोनों देशों के गेहूं बाजार की स्थिति को समझना आवश्यक है, क्योंकि ये वैश्विक खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। रूस, जो दुनिया का सबसे बड़ा गेहूं निर्यातक है, वर्तमान में नई फसल की निर्यात कीमतों में स्थिरता देख रहा है। आईकेएआर (IKAR) के अनुसार, जुलाई के दूसरे पखवाड़े में डिलीवरी के लिए 12.5% प्रोटीन वाले गेहूं की कीमत $225 प्रति टन पर बनी हुई है। वहीं, सॉवइकॉन (Sovecon) ने पुरानी फसल की कीमत $240-243 प्रति टन बताई है, जो पिछले सप्ताह की तुलना में थोड़ी कम है। निर्यात की कीमतों में स्थिरता का कारण है कि पुरानी फसल की आपूर्ति लगभग समाप्त हो गई है, जिससे बाजार में नई फसल की प्रतीक्षा हो रही है। इसके अलावा, रूस के उप-प्रधानमंत्री द्वारा निर्यात ड्यूटी की गणना में संभावित बदलाव की घोषणा के कारण कीमतों में अनिश्चितता बनी हुई है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इन सभी कारकों के बावजूद, रूस की गेहूं निर्यात नीति और वैश्विक मांग में बदलाव के कारण भविष्य में कीमतों में उतार-चढ़ाव संभव है। गेहूं की कीमतों को लेकर आने वाले समय में अंतरराष्ट्रीय बाजार और घरेलू बाजार, दोनों में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव और चुनौतियां देखने को मिल सकती हैं। तो चलिए इन सब को विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं इस रिपोर्ट में।
भारत में गेहूं की सरकारी खरीद
भारत में 2025 की रबी सीजन में गेहूं की सरकारी खरीद ने 298.1 लाख मीट्रिक टन का आंकड़ा पार कर लिया है, जो पिछले वर्षों की तुलना में काफी अधिक है। यह उपलब्धि मुख्य रूप से राजस्थान और मध्य प्रदेश में बढ़ी हुई खरीद के कारण संभव हुई है। भारत सरकार ने किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के साथ बोनस भी प्रदान किया है, जिससे किसानों को प्रोत्साहन मिला है। वर्तमान में, हरियाणा और पंजाब में गेहूं की आपूर्ति का दबाव है, लेकिन सरकारी खरीद के चलते बाजार में स्थिरता बनी हुई है। हालांकि, 15 जून के बाद जब सरकारी खरीद बंद हो जाएगी, तो प्राइवेट सेक्टर का गेहूं मंडियों में आने लगेगा, जिससे कीमतों पर दबाव पड़ सकता है। इसलिए, किसानों को सलाह दी जाती है कि वे इस समय का लाभ उठाकर अपने उत्पाद को बेचें।
रूस और भारत दोनों ही देशों में गेहूं बाजार की स्थिति में स्थिरता और अनिश्चितता दोनों ही देखने को मिल रही हैं। जहां रूस में नई फसल की कीमतें स्थिर हैं, वहीं भारत में सरकारी खरीद ने रिकॉर्ड स्तर को छू लिया है। इन दोनों देशों की नीतियाँ और बाजार की स्थिति वैश्विक गेहूं बाजार पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती हैं।
अंतरराष्ट्रीय बाजार
रूस लगातार दुनिया का सबसे बड़ा गेहूं निर्यातक बना हुआ है। 2024-25 में भी उसने 4.45 करोड़ टन गेहूं निर्यात करने की योजना बनाई है, लेकिन इस बार निर्यात ड्यूटी में बदलाव की बात चल रही है। अगर रूस ड्यूटी बढ़ाता है तो FOB (Free on Board) कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे बाकी देशों के लिए गेहूं खरीदना महंगा हो सकता है। क्योंकि इससे अंतरराष्ट्रीय कीमतें ऊपर जा सकती हैं, खासकर अफ्रीका और एशिया के देशों में जो गेहूं आयात करते हैं। अमेरिका के कुछ हिस्सों और कनाडा में सूखा और अनियमित बारिश से गेहूं की फसल पर असर पड़ा है। USDA की रिपोर्ट में बताया गया है कि हार्ड रेड विंटर व्हीट (HRW Wheat) की क्वालिटी पहले से कमजोर है। इसका मतलब ये है कि सप्लाई कम होगी, और अगर मांग बढ़ती है तो दाम भी ऊपर जाएंगे।
यूरोप में फसल अच्छी लेकिन निर्यात में सुस्ती
फ्रांस और जर्मनी में फसल की हालत फिलहाल संतोषजनक बताई जा रही है, लेकिन यूरोप के कुछ देशों में निर्यात में तेजी नहीं आ रही क्योंकि डॉलर में मजबूती और रूस की सस्ती पेशकश ने उनका मार्केट छीन लिया है। इसका असर ये हो सकता है कि कुछ समय के लिए वैश्विक बाजार स्थिर रहें, लेकिन रूस की कीमतें अगर अचानक बढ़ीं, तो यूरोप से मांग लौट सकती है। इसके अलावा, चीन अभी बड़ी मात्रा में भंडारण कर रहा है, जबकि मिस्र, इंडोनेशिया जैसे देश अगले तीन महीनों में नई बुकिंग कर सकते हैं। अगर ये देश एक साथ बड़े ऑर्डर देते हैं, तो कीमतों में उछाल आ सकता है।
भारत का घरेलू बाजार
सरकार ने इस साल बहुत आक्रामक तरीके से खरीद की है, खासकर राजस्थान और मध्य प्रदेश से, लेकिन अब ये खरीद 15 जून के बाद बंद हो जाएगी। इसके बाद प्राइवेट ट्रेडर्स और मिलर्स मंडियों में एक्टिव हो जाएंगे। इससे मंडियों में आमद बढ़ेगी और दाम थोड़े नरम पड़ सकते हैं। क्योंकि एफसीआई के पास पर्याप्त मात्रा में स्टॉक बताया जा रहा है। लेकिन ओपन मार्केट में बिकवाली बनी रह सकती है। माना जा रहा है कि सरकार ओपन मार्केट सेल स्कीम (OMSS) के तहत गेहूं बेचेगी ताकि आटा महंगा न हो। इससे थोक बाजार में कीमतें कंट्रोल में रहेंगी, लेकिन किसान को अच्छा भाव मिलना मुश्किल हो सकता है।
गेहूं की डिमांड बढ़ सकती है
अगस्त-सितंबर में जैसे-जैसे त्योहार नज़दीक आएंगे, आटे की खपत बढ़ेगी और मिलर्स को स्टॉक बनाना पड़ेगा। ऐसे में गेहूं की मांग बढ़ सकती है। अगर इस समय तक मंडियों में स्टॉक कम हो जाए तो कीमतों में 100-150 रुपए प्रति क्विंटल तक तेजी आ सकती है। इसके अलावा, अगर खरीफ फसलों की बुआई समय पर नहीं हो पाती या मानसून कमजोर रहता है तो किसान गेहूं स्टॉक को जल्दी निकाल सकते हैं। इसके विपरीत, अगर बारिश अच्छी हुई तो किसान माल रोक कर रख सकते हैं, जिससे दाम बढ़ने की संभावना बढ़ सकती है। नवंबर तक भारत से गेहूं का निर्यात प्रतिबंधित है। अगर सरकार किसी खास देश को गेहूं भेजने की इजाज़त देती है (जैसे अफगानिस्तान या श्रीलंका), तो घरेलू बाजार में हलचल हो सकती है। इस स्थिति में प्राइवेट ट्रेडर्स ज्यादा भाव देने लगेंगे, खासकर बंदरगाहों के पास।
मंडियों के ताजा भाव
04 जून 2025 को देशभर की प्रमुख मंडियों में गेहूं के भाव: दिल्ली लॉरेंस रोड पर MP, UP और राजस्थान के नए गेहूं के भाव 2740 रुपए प्रति क्विंटल रहे, वहीं दाहोद मंडी में मिल गेहूं भाव 2590 रुपए प्रति क्विंटल और बाजार भाव 15 रुपए की तेजी के साथ 2600 रुपए प्रति क्विंटल रहे। श्रीगंगानगर में गेहूं 2500 से 2540 रुपए प्रति क्विंटल रहा, वहीं खन्ना मंडी में नेट भाव 2600 से 2625 रुपए प्रति क्विंटल पर स्थिर रहे। उदयपुर में 1.5% छूट वाला गेहूं 2620 रहा, जिसमें 20 रुपए की मंदी देखी गई, और जलगांव में 3.5% छूट वाला गेहूं 2750 रुपए प्रति क्विंटल पर स्थिर रहा। अलवर मंडी में नया गेहूं 2580 रुपए प्रति क्विंटल पर स्थिर रहा, जबकि सिवानी मंडी में 2515 रुपए प्रति क्विंटल का भाव रहा। सियाना, बुलंदशहर (UP) में गेहूं 2530 रुपए प्रति क्विंटल रहा, औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में लोकल गेहूं के भाव 2600 से 2650 रुपए प्रति क्विंटल पर स्थिर रहे और डबरा मंडी में मिल क्वालिटी गेहूं 2620 रुपए और बढ़िया राज गेहूं 2700 रुपए प्रति क्विंटल रहा।