सरसों के किसानों ने किया ऐलान, 6000 रुपये से नीचे नहीं बेचनी अपनी सरसों
नमस्कार किसान साथियों और व्यापारी भाइयों, बीते कुछ दिनों से तिलहन के किसानों की स्थिति डामाडोल सी चल रही है | सरसों और सोयाबीन जैसी तिलहन फसलों के दामों में गिरावट के कारण किसानों को उनकी फसलों का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है, जिससे किसानों को उनकी लागत भी नहीं निकल पा रही है। खासतौर पर सोयाबीन के किसान की स्थिति तो और भी खराब चल रही है हैं। सोयाबीन के किसानों को तो MSP से नीचे ही अपनी फसल को बेचना पड़ रहा है सरसों के किसानों की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर है, लेकिन उनमें भी मूल्य वृद्धि की उम्मीद कम है। इस कारण ही ,राजस्थान के किसानों ने 'गांव बंद' आंदोलन के बाद एक और महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। किसान महापंचायत के नेतृत्व में, उन्होंने 1 से 15 मार्च तक सरसों नहीं बेचने का निर्णय लिया है। यदि किसी व्यापारी को सरसों खरीदनी है, तो उसे कम से कम 6000 रुपये प्रति क्विंटल से बोली शुरू करनी होगी
किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने बताया कि पिछले वर्ष न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 5650 रुपये प्रति क्विंटल होने के बावजूद, किसानों को सरसों के लिए केवल 4600 रुपये प्रति क्विंटल तक ही मिल पाए थे। इस वर्ष भी, सरसों का MSP 5950 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है, लेकिन बाजार में भाव इससे कम हैं। इसलिए, किसानों ने निर्णय लिया है कि जब तक उन्हें उचित मूल्य नहीं मिलता, वे अपनी सरसों की फसल नहीं बेचेंगे। इसलिए किसान पंचायत की अगुवाई में इस आंदोलन को आगे बढ़ाया जा रहा है। इस फैसले का उद्देश्य व्यापारियों के शोषण से बचाव करना और किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाना है।
क्यों उठानी पड़ी यह मांग ?
पिछले साल किसानों को अपनी सरसों MSP से कम दाम पर बेचनी पड़ी थी, क्योंकि सरकारी खरीद में गड़बड़ियां थीं और लक्ष्य पूरा नहीं किया गया था। नतीजतन, किसानों को मजबूरी में व्यापारियों को कम दामों पर अपनी फसल बेचनी पड़ी। इसी अनुभव से सीख लेते हुए किसानों ने इस बार 'सरसों सत्याग्रह' का निर्णय लिया है। किसानों का स्पष्ट कहना है कि यदि कोई व्यापारी हमारी सरसों खरीदना चाहता है, तो उसे कम से कम 6000 रुपये प्रति क्विंटल से बोली से शुरूआत करनी होगी। सरकार ने रबी मार्केटिंग सीजन 2025-26 के लिए सरसों का MSP 5950 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है, जो पिछले साल की तुलना में 300 रुपये अधिक है। हालांकि, किसानों को अब भी इस बात की चिंता है कि खरीद प्रक्रिया में गड़बड़ी न हो। राजस्थान देश का सबसे बड़ा सरसों उत्पादक राज्य है, जहां देश की कुल सरसों का 48% उत्पादन होता है। लेकिन सरकारी नियमों के अनुसार राज्य के कुल उत्पादन का 25% तिलहन MSP पर खरीदा जाना चाहिए, फिर भी पिछले साल सरकार मुश्किल से 10% ही खरीद पाई थी। इसका सीधा असर किसानों पर पड़ा, जिन्हें औने-पौने दाम पर अपनी फसल बेचनी पड़ी।
क्या हैं ? मांगें किसानों की
किसानों ने इस बार सरकार के सामने स्पष्ट मांगें रखी हैं, जिनमें रोजाना खरीद की सीमा 25 क्विंटल से बढ़ाकर 40 क्विंटल करना, हर गांव में सहकारी समितियों के जरिए खरीद सुनिश्चित करना, राज्य में सरसों का कम से कम 25% हिस्सा MSP पर खरीदना और खरीद प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना शामिल है। किसानों का कहना है कि सहकारी समितियों के माध्यम से खरीद होने से उन्हें लंबी दूरी तय नहीं करनी पड़ेगी, जिससे समय और खर्च दोनों की बचत होगी। साथ ही, खरीद लक्ष्य पूरा होने से व्यापारियों की मनमानी से बचाव होगा और किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिल सकेगा। इसके अलावा, सरकारी खरीद केंद्रों पर अनावश्यक देरी और भ्रष्टाचार को खत्म करने की भी मांग की गई है ताकि किसानों को उनकी मेहनत का पूरा लाभ मिल सके।
सहकारी समितियों की भूमिका
ग्राम सेवा सहकारी समितियां न केवल किसानों को अल्पकालीन ऋण देती हैं, बल्कि खाद-बीज और कीटनाशक का भी वितरण करती हैं। अगर इन्हें सरकारी खरीद केंद्रों के रूप में इस्तेमाल किया जाए, तो किसानों को दूर-दराज के खरीद केंद्रों तक जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इससे न केवल समय की बचत होगी, बल्कि परिवहन और अन्य खर्चों में भी कटौती होगी।
राजस्थान किसान महापंचायत के वरिष्ठ सदस्य रामेश्वर प्रसाद चौधरी का कहना है कि सरकार हर साल खरीद प्रक्रिया में बदलाव करती है। शुरुआत में 25 क्विंटल सरसों की खरीद होती है, लेकिन किसानों के विरोध के बाद इसे 40 क्विंटल किया जाता है। इस बार किसान चाहते हैं कि शुरुआत से ही 40 क्विंटल की सीमा तय कर दी जाए, जिससे किसी को परेशानी न हो और सरकारी खरीद ज्यादा से ज्यादा किसानों को लाभ पहुंचा सके। सरसों सत्याग्रह के तहत किसानों ने प्रदेश के 21 जिलों में अभियान चलाया है, जिससे इस आंदोलन को जबरदस्त समर्थन मिल रहा है। अगर सरकार समय रहते किसानों की मांगों पर ध्यान नहीं देती है, तो इस आंदोलन का असर मंडियों में सरसों की आपूर्ति पर भी पड़ सकता है।
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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।