अब भारत वैश्विक अनाज बाजार में नहीं रहा प्रमुख सप्लायर | जाने इसके पीछे क्या है कारण
किसान साथियो पिछले कुछ वर्षों में भारत की अंतरराष्ट्रीय खाद्य बाजार में प्रमुख आपूर्तिकर्ता के रूप में भूमिका में उल्लेखनीय कमी आई है। इसका मुख्य कारण घरेलू बाजार में खाद्यान्न की मांग में अत्यधिक वृद्धि है। बढ़ती घरेलू मांग को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार को कई नीतिगत बदलाव करने पड़े हैं। यूएस कृषि विभाग (USDA) के अनुसार, व्यापार वर्ष 2020-21 से 2023-24 के दौरान भारत से मक्के का निर्यात 86 प्रतिशत तक, चावल का निर्यात 20 प्रतिशत तक और गेहूं का निर्यात 90 प्रतिशत तक घट गया है। यह स्पष्ट है कि घरेलू खपत को प्राथमिकता देने के कारण भारत अब अंतरराष्ट्रीय बाजार में उतना खाद्यान्न निर्यात नहीं कर पा रहा है जितना पहले करता था।
यूएसडीए की खाद्यान्न बाजार और व्यापार रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने 2021-22 की तुलना में अपने खाद्यान्न निर्यात को लगभग आधा कर दिया है। 2021-22 में देश से रिकॉर्ड मात्रा में खाद्यान्न का निर्यात किया गया था। इस बदलाव के पीछे कई कारण हैं। भारत सरकार द्वारा लागू की गई इथेनॉल नीति के कारण मक्के की घरेलू मांग बढ़ गई है। इसके अलावा, पोल्ट्री उद्योग में भी मक्के की मांग बढ़ने से निर्यात प्रभावित हुआ है। कुछ किस्मों के चावल के निर्यात पर प्रतिबंध और गेहूं के निर्यात पर रोक लगाने के कारण भी भारत का खाद्यान्न निर्यात कम हुआ है। यूएसडीए का अनुमान है कि यह स्थिति कम से कम अगले कुछ समय तक बनी रहेगी और 2024-25 में इसमें सुधार होने की संभावना है।
गेहूं के निर्यात में आई गिरावट
कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के आंकड़ों के अनुसार, भारत के खाद्यान्न निर्यात में हाल के वर्षों में काफी कमी आई है। विशेष रूप से, गैर-बासमती चावल, गेहूं और मक्के के निर्यात में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है। वर्ष 2022-23 में गैर-बासमती चावल का निर्यात 17.78 मिलियन टन था, जो एक रिकॉर्ड स्तर था। हालांकि, वर्ष 2024 में इस निर्यात में कमी आई है। गेहूं का निर्यात तो और भी अधिक प्रभावित हुआ है। वर्ष 2021-22 में 7.23 मिलियन टन गेहूं का निर्यात किया गया था, जो पिछले वर्ष घटकर केवल 0.19 मिलियन टन रह गया। मक्के के निर्यात में भी गिरावट देखी गई है। वर्ष 2021-22 में 3.69 मिलियन टन मक्के का निर्यात किया गया था, जो इस साल घटकर 1.44 मिलियन टन रह गया। यह पहली बार है जब इस सदी में भारत को मक्का का आयात करना पड़ रहा है। खाद्यान्न बाजार में मक्के का व्यापार सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। ये गिरावटें विभिन्न कारकों के कारण हुई हैं, जिनमें घरेलू खपत में वृद्धि, सरकार की नीतियाँ, और वैश्विक बाजार में उतार-चढ़ाव शामिल हैं।
अब मक्के का होगा आयात
यूएसडीए के अनुसार, भारत इस सदी में पहली बार मक्के का निर्यात करने के बजाय आयात करने की स्थिति में पहुंच गया है। भारत में पोल्ट्री उद्योग के विस्तार के साथ-साथ इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा दिए जा रहे प्रोत्साहन के कारण घरेलू बाजार में मक्के की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 2019-20 से ही यह स्थिति देखने को मिल रही है। इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय बाजार में मक्के की कीमतों में लगातार गिरावट आने से भारतीय निर्यातक कम प्रतिस्पर्धी हो गए हैं। पिछले कुछ वर्षों में मक्के की कीमतों में लगभग 15% की गिरावट आई है, जिसके कारण भारतीय निर्यातक सस्ते दामों पर मक्का बेचने को मजबूर हुए हैं। इन सभी कारकों के संयुक्त प्रभाव के परिणामस्वरूप भारत को अब मक्का का आयात करना पड़ रहा है।
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मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।