DAP को लेकर आयी बड़ी अपडेट | जानिए धान के सीज़न में DAP होगी या नहीं
किसान साथियों उर्वरक उद्योग से जुड़े सूत्रों के अनुसार, पिछले वित्त वर्ष में भी डीएपी (डाय-अमोनियम फॉस्फेट) के आयात में लगी कंपनियों को भारी घाटा उठाना पड़ा था। मौजूदा वित्त वर्ष में यह अंतर और अधिक बढ़ गया है, जिससे आयात के सौदे कम हो रहे हैं। कई निजी कंपनियों ने तो इस वर्ष डीएपी का आयात ही नहीं किया है। हालांकि, जो कंपनियां देश में डीएपी का उत्पादन कर रही हैं, वे अपना उत्पादन जारी रखे हुए हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि इन कंपनियों ने डीएपी उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे माल, जैसे रॉक फॉस्फेट और फॉस्फोरिक एसिड, की आपूर्ति के लिए निर्यातक देशों की कंपनियों के साथ दीर्घकालिक अनुबंध (लॉन्ग टर्म कांट्रैक्ट) किए हुए हैं। भारत में डीएपी की कुल खपत का एक बड़ा हिस्सा आयात पर निर्भर करता है। पिछले साल एक प्रमुख निजी कंपनी को डीएपी के आयात में भारी नुकसान झेलना पड़ा था, जिससे उसके प्रबंधन को मैनेजिंग बोर्ड के कड़े सवालों का सामना करना पड़ा था। इसके परिणामस्वरूप, उस कंपनी के प्रबंधन में बड़े स्तर पर बदलाव कर दिए गए थे।
आगामी खरीफ सीजन में देश में डाई-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की संभावित किल्लत को लेकर चिंता बढ़ रही है। वैश्विक बाजार में डीएपी के दाम बढ़ने और डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट आने के चलते भारत की उर्वरक कंपनियां इसके आयात से किनारा कर रही हैं। सरकार के निर्देशों के बावजूद निजी कंपनियों ने आयात की गति को धीमा कर दिया है, जबकि सहकारी क्षेत्र की कंपनियां भी फायदे-नुकसान का आकलन करने के बाद ही कोई ठोस कदम उठाने की रणनीति अपना रही हैं। यदि अगले दो महीनों में आयात में तेजी नहीं आई, तो आगामी खरीफ सीजन में डीएपी की भारी कमी हो सकती है, जिससे किसानों को दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।
महंगे आयात के चलते कंपनियों ने धीमी की खरीद
दोस्तों डीएपी की वैश्विक कीमतों में तेजी और रुपये में गिरावट के कारण आयात कंपनियों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रहा है। वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय बाजार में डीएपी की कीमत लगभग 640 डॉलर प्रति टन है। वहीं, भारतीय रुपये की विनिमय दर 87 रुपये प्रति डॉलर होने के कारण डीएपी की आयात लागत 55,680 रुपये प्रति टन पड़ रही है। इसके अतिरिक्त, सीमा शुल्क, पोर्ट हैंडलिंग, बैगिंग और डीलर मार्जिन जैसी अन्य लागतों को जोड़ने पर यह लागत 65,000 रुपये प्रति टन से अधिक पहुंच जाती है। वहीं, उर्वरक कंपनियों ने डीएपी का अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) 1350 रुपये प्रति 50 किलो बैग तय किया है, जिसे सरकार बरकरार रखना चाहती है। हालांकि, डीएपी जैसे विनियंत्रित उर्वरकों के मूल्य निर्धारण का अधिकार कंपनियों के पास होता है, लेकिन वास्तव में इसकी कीमतें सरकार की नीतियों के कारण परोक्ष रूप से नियंत्रित रहती हैं।
क्यो है नुकसान में कंपनियां
किसान साथियों भारत सरकार ने चालू रबी सीजन (1 अक्टूबर 2024 से 31 मार्च 2025) के लिए न्यूट्रिएंट बेस्ड सब्सिडी (NBS) योजना के तहत डीएपी (डाय-अमोनियम फॉस्फेट) पर 21,911 रुपये प्रति टन की सब्सिडी प्रदान की है। इसके अलावा, सरकार ने कंपनियों को डीएपी के लिए 3,500 रुपये प्रति टन का विशेष प्रोत्साहन (स्पेशल इंसेंटिव) भी दिया है, जिससे कुल सब्सिडी और प्रोत्साहन मिलाकर कंपनियों को 25,411 रुपये प्रति टन की सहायता मिल रही है। इस समर्थन के बावजूद, डीएपी की लागत और बिक्री मूल्य के बीच का अंतर कंपनियों के लिए घाटे की स्थिति पैदा कर रहा है। कंपनियां वर्तमान में डीएपी को 27,000 रुपये प्रति टन की दर से बेच रही हैं, जिससे उनकी कुल आय (सब्सिडी सहित) 52,400 रुपये प्रति टन तक पहुंचती है। हालांकि, वैश्विक बाजार में डीएपी का आयात मूल्य 65,000 रुपये प्रति टन से अधिक होने के कारण कंपनियों को प्रति टन लगभग 12,600 रुपये का भारी घाटा हो रहा है। इस आर्थिक नुकसान के कारण उर्वरक कंपनियां डीएपी के आयात से दूरी बनाए हुए हैं और "धीरे चलो" (Go Slow) की नीति अपना रही हैं, जिससे भविष्य में डीएपी की उपलब्धता पर प्रभाव पड़ सकता है। यदि सरकार अतिरिक्त राहत प्रदान नहीं करती या अंतरराष्ट्रीय कीमतों में कमी नहीं आती, तो किसानों को डीएपी की आपूर्ति में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है, जिससे रबी फसलों के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है।
आ सकती है आगामी खरीफ सीजन में डीएपी की किल्लत
वर्तमान में डीएपी के आयात को लेकर निजी और सहकारी क्षेत्र की कंपनियां अत्यधिक सतर्कता बरत रही हैं। निजी क्षेत्र की कई प्रमुख उर्वरक कंपनियों ने डीएपी के आयात से पूरी तरह दूरी बना ली है, क्योंकि मौजूदा आयात लागत और बिक्री मूल्य के बीच भारी अंतर के कारण उन्हें प्रत्येक टन पर बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है। दूसरी ओर, सहकारी क्षेत्र की प्रमुख कंपनियां, जैसे इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव लिमिटेड (इफको) और कृभको (KRIBHCO), भी आयात को लेकर बहुत ही सतर्क दृष्टिकोण अपना रही हैं। इन संस्थानों ने यह निर्णय लिया है कि वे तभी डीएपी का आयात करेंगी जब उन्हें आर्थिक रूप से संतोषजनक स्थिति प्राप्त होगी। वर्तमान में वैश्विक बाजार में डीएपी की ऊंची कीमतों के कारण कोई भी बड़ा सौदा नहीं किया जा रहा है, जिससे घरेलू आपूर्ति बाधित हो सकती है। यदि अगले दो महीनों में डीएपी के आयात की गति नहीं बढ़ी, तो आगामी खरीफ सीजन के दौरान देश में डीएपी की गंभीर किल्लत हो सकती है। खरीफ सीजन में डीएपी की मांग अपने उच्चतम स्तर पर होती है, क्योंकि यह उर्वरक चावल, मक्का, गन्ना और अन्य प्रमुख फसलों की शुरुआती वृद्धि के लिए आवश्यक होता है। यदि समय रहते आयात नहीं बढ़ा, तो किसानों को डीएपी की ऊंची कीमत चुकाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा, जिससे उनकी उत्पादन लागत बढ़ेगी। इसके परिणामस्वरूप, कृषि उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है और किसानों को वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। सरकार और उर्वरक कंपनियों के लिए यह आवश्यक हो गया है कि वे जल्द से जल्द इस समस्या का समाधान निकालें, ताकि खरीफ फसलों की बुवाई और उत्पादन प्रभावित न हो।
DAP के आयात, उत्पादन और बिक्री में भारी गिरावट
दोस्तों, चालू वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान उर्वरक उद्योग में डीएपी (डाय-अमोनियम फॉस्फेट) के आयात, उत्पादन और बिक्री में भारी गिरावट दर्ज की गई है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2024 से जनवरी 2025 के बीच डीएपी के आयात में 16.2% की गिरावट आई है। इस अवधि में भारत ने केवल 43.09 लाख टन डीएपी आयात किया, जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में यह आंकड़ा 51.44 लाख टन था। आयात में इस कमी का असर घरेलू आपूर्ति पर भी पड़ा है, जिससे किसानों को डीएपी की उपलब्धता में समस्या का सामना करना पड़ा है।
घरेलू उत्पादन की बात करें तो इस अवधि में डीएपी का उत्पादन भी 9.1% कम हो गया है। पिछले वर्ष जहां अप्रैल 2023 से जनवरी 2024 के दौरान 37.67 लाख टन डीएपी का उत्पादन हुआ था, वहीं चालू वित्त वर्ष में यह घटकर 34.25 लाख टन रह गया। उत्पादन में इस गिरावट के पीछे मुख्य रूप से कच्चे माल की उपलब्धता में कमी और लागत में बढ़ोतरी जैसे कारक शामिल हैं।
डीएपी की बिक्री में भी भारी गिरावट दर्ज की गई है। अप्रैल 2024 से जनवरी 2025 के बीच डीएपी की कुल बिक्री 87.12 लाख टन रही, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि में 101.46 लाख टन थी। यह दर्शाता है कि डीएपी की मांग के बावजूद आपूर्ति में आई गिरावट के कारण किसानों को पर्याप्त मात्रा में उर्वरक उपलब्ध नहीं हो पाया। इसके अलावा, डीएपी की कीमतों में उतार-चढ़ाव और सरकार द्वारा सब्सिडी में संभावित कटौती भी बिक्री पर असर डालने वाले कारकों में शामिल हो सकते हैं।
कितना असर पड़ा रबी सीजन में किसानों पर
दोस्तों, रबी सीजन के दौरान डीएपी की आपूर्ति में आई कमी के कारण किसानों को बाजार में एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) से अधिक कीमत पर खाद खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ा था। उर्वरक उद्योग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि यह संकट सरकार और उद्योग दोनों के संज्ञान में था, लेकिन इसे रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। इस कारण किसानों को उर्वरकों के लिए अधिक कीमत चुकानी पड़ी, जिससे उनकी लागत बढ़ गई।
अब जब खरीफ सीजन नजदीक आ रहा है, तो डीएपी की वैश्विक कीमतें अगर घटती नहीं हैं और सरकार द्वारा सब्सिडी में वृद्धि नहीं की जाती है, तो किसानों को डीएपी की भारी कमी का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में, राज्य सरकारों के लिए एक विकल्प यह हो सकता है कि वे डीएपी के आयात को बढ़ावा देने के लिए निजी आयातक कंपनियों को अतिरिक्त सब्सिडी दें। हालांकि, उर्वरक उद्योग के विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा करना संभव तो है, लेकिन यह एक व्यावहारिक समाधान नहीं है क्योंकि इस व्यवस्था को लागू करने में कई तकनीकी और प्रशासनिक बाधाएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
उठाने होंगे ठोस कदम
डीएपी की लगातार घटती उपलब्धता और बढ़ती कीमतों के मद्देनजर, सरकार और उर्वरक उद्योग को जल्द से जल्द ठोस कदम उठाने की जरूरत है, ताकि किसानों को आगामी खरीफ सीजन में किसी भी तरह की कमी का सामना न करना पड़े। यदि इस समस्या का समाधान समय रहते नहीं किया गया, तो किसानों को डीएपी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ सकता है, जिससे कृषि उत्पादन पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इसके समाधान के लिए सरकार को आयात नीति में बदलाव करने, घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने और डीएपी पर सब्सिडी बढ़ाने जैसे महत्वपूर्ण कदम उठाने होंगे। मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए केंद्र सरकार को जल्द ही कोई ठोस निर्णय लेना आवश्यक है। सरकार या तो डीएपी पर दी जाने वाली सब्सिडी और विशेष प्रोत्साहन राशि में वृद्धि कर सकती है, जिससे उर्वरक कंपनियों को हो रहे घाटे की भरपाई हो सके, या फिर आयात लागत को कम करने के लिए वैश्विक स्तर पर कूटनीतिक उपाय अपना सकती है। इसके अलावा, भारत में डीएपी के घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए नई औद्योगिक नीतियां और निवेश योजनाएं लागू की जानी चाहिए, ताकि देश को आयात पर अत्यधिक निर्भर न रहना पड़े। यदि सरकार और उद्योग एक साथ मिलकर इस संकट का समाधान निकालते हैं, तो आने वाले सीजन में किसानों को किसी भी तरह की परेशानी से बचाया जा सकता है और कृषि क्षेत्र की स्थिरता सुनिश्चित की जा सकती है।
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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।