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किसान क्या एमएसपी कानून की मांग कर रहे है | एमएसपी कानून से किसानो को क्या क्या फायदा होगा

किसान क्या एमएसपी कानून की मांग कर रहे है | एमएसपी कानून से किसानो को क्या क्या फायदा होगा
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किसान साथियो एक बार फिर बीते साल के बाद किसान फिर अपना आंदोलन शुरू किये हैं, जैसा कि किसान आंदोलन का पांचवा दिन है। सरकार और किसानों के बीच तीन दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन हर बार सुई एमएसपी पर आकर अटक जाती है। किसान लंबे समय से इस पर कानून बनाने की मांग कर रहे हैं, और कहा जा रहा है कि सरकार इस मांग को मानने के लिए बिलकुल बभी राजी नहीं है. केंद्र की मोदी सरकार का तो ये भी दावा है कि उनके शासन में एमएसपी दोगुनी हो गई है, फिर भी एमएसपी पर कानून बनाने से सरकार को क्या ऐतराज है ? पता नहीं कानून बनाने से सरकार पीछे क्यों हट रही है। WhatsApp पर भाव देखने के लिए हमारा ग्रुप जॉइन करें

सबसे पहले तो यह समझिये कि एमएसपी क्या है? और इसका फसल से क्या संबंध है तथा किसानों द्वारा खरीफ व रबी सीजन की कुछ फसलों पर एमएसपी यानि न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती है, जिसका सीधा से अर्थ है कि किसानों को फसलों पर लगी लागत के लिए उनके श्रम व फैमिली लेबर प्राप्त हो और सरकार व मंडियों में भी तय एमएसपी भाव पर फसलें किसान बेच सकता है। देश में करीब 23 फसलें ऐसी हैं जिनका न्यूनतम समर्थन मूल्य सरकार तय करती है। यदि बाजार में इन फसलों के दाम गिर भी जाएं, तो सरकार किसानों से तय दामों पर ही फसल खरीदती है। कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिशों पर सरकार तय करती है।

मुख्य रूप से इन फसलों के नाम यह बताये जाते हैं जिन पर एमएसपी सरकार तय करती है। अनाजों में गेहूं, धान, मक्का, बाजरा, ज्वार, जौ और रागी। दालों में चना, अरहर, उड़द, मूंग और मसूर तथा तिलहनों में मूंगफली, सोयाबीन, सरसों, सूरजमुखी, कुसुम, निगरसीड, तिल के अलावा जो कमर्शियल फसलें कपास, खोपरा, कच्चा जूट, गन्ना । वहीं किसानों का कहना है कि सरकार फसलों पर एमएसपी तो तय कर देती है, मगर इस पर कानून बनाने की बारी आती है तो सरकार वहां चुप हो जाती है तथा बीते दो- तीन सालों से देखा भी जा रहा है। वहीं सरकार का कहना है कि लोग दिल्ली से लगते यूपी, हरियाणा व पंजाब के बॉर्डर पर धरने पर बैठ जाते हैं तथा हो-हल्ला करते हुए आने वाले लोगों को डिस्टर्ब भी करते हैं।

सम्पन्न किसानों का यह कहना है कि एमएसपी पर कोई ठोस कानून न बनने की एवज पर सरकारी नीति है जिसमें कोई भी सत्ता में सरकार हो जब चाहे एमएसपी को घटा सकती है और जब चाहे इसे हटा भी सकती है। यही कारण है कि किसान एमएसपी पर कानून की मांग कर रहे हैं जिसमें उनकी फसलों की खरीद एमएसपी पर ही की जाएगी। सरकार का तो यहां तक कहना है कि बीते एक दशक में तो केन्द्र सरकार ने एमएसपी को दोगुना कर दिया है। उदाहरणत: 2014-15 में चावल की खरीदी 1345 रुपये प्रति क्विंटल पर होती थी, वह अब 2023-24 में 2203 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है। इसी तरह बाजरा 1250 रुपये से 2500 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।