गेहूं के बाजार में सरकारी खरीद, स्टॉक लिमिट और मंडियों की चाल
किसान साथियों, देश की गेहूं की मंडियों में इस हफ्ते काफी कुछ देखने को मिला। केंद्र सरकार ने जब 28 मई को अचानक भंडारण सीमा (स्टॉक लिमिट) लागू कर दी, तब बाजार में खलबली मच गई। ट्रेडर्स और मिलर्स को उम्मीद नहीं थी कि रबी सीजन में ही यह फैसला ले लिया जाएगा। लेकिन इसके बावजूद, कीमतों में बहुत बड़ी गिरावट नहीं आई। इसका सीधा मतलब है कि बाजार में मांग अब भी बनी हुई है और सरकारी स्टॉक भी मजबूत है। इस बार सरकार की सरकारी खरीद (Procurement) का लक्ष्य 300 लाख टन था, लेकिन यह लक्ष्य भी अधूरा रह सकता है। क्योंकि मई के आखिरी सप्ताह तक करीब 297 लाख टन की खरीद ही हो पाई है। यानी टारगेट से थोड़ा पीछे। खास बात यह है कि प्राइवेट सेक्टर (Private Buyers) की खरीद ने इस बार बड़ा रोल निभाया, जिसकी वजह से सरकारी एजेंसियों की खरीद पर असर पड़ा।
मंडियों के भाव
इस हफ्ते, मंडियों में गेहूं के भाव में कुछ जगहों पर नरमी रही तो कुछ जगहों पर स्थिरता। दिल्ली में गेहूं का थोक भाव 2750 रुपए प्रति क्विंटल के करीब बना रहा। यही नहीं, यहां 27 मई को मिल क्वालिटी गेहूं 2755 रुपए पर और 28 मई को 2760 रुपए प्रति क्विंटल पर बिका। यानी दिल्ली का बाजार स्थिर बना रहा। अब बात करें इंदौर की, तो वहां थोड़ा उतार-चढ़ाव रहा। इस हफ्ते गेहूं का भाव करीब 210 रुपए तक गिरकर 2430/2870 रुपए प्रति क्विंटल पर आ गया। जबकि इटारसी में 50 रुपए की गिरावट के साथ यह 2500/2550 तक पहुंच गया। इसके अलावा राजकोट में कोई खास उतार-चढ़ाव नहीं देखा गया। यहां गेहूं का दाम पूरे सप्ताह 2500 से 3000 रुपए प्रति क्विंटल के दायरे में बना रहा। वहीं राजस्थान की मंडियों में भी बदलाव देखने को मिला। कोटा और बूंदी में गेहूं के भाव में 50 रुपए की गिरावट दर्ज की गई। और उत्तर प्रदेश की मंडियों में हल्के उतार-चढ़ाव रहे जैसे कि शाहजहांपुर में भाव 10 रुपए चढ़ा तो हरदोई में 10 रुपए की गिरावट देखी गई।
सरकार के फैसले का असर
28 मई को जब भंडारण सीमा (Stock Limit) लागू की गई, तो मंडी में घबराहट का माहौल बन गया। लेकिन यह लिमिट बहुत सख्त नहीं है क्योंकि आमतौर पर व्यापारियों और मिलों के पास इससे ज्यादा स्टॉक नहीं होता। इससे साफ है कि सरकार ने इस कदम से सिर्फ मूल्य नियंत्रण (Price Control) का संकेत दिया है, न कि बाजार में बड़ा झटका देने की कोशिश की। सरकार के पास अभी केंद्रीय पूल में 357 लाख टन से ज्यादा स्टॉक है, यह पिछले चार सालों में सबसे ज्यादा है। और अगर ओपन मार्केट में आपूर्ति करनी पड़ी तो OMSS (Open Market Sale Scheme) के तहत जुलाई से गेहूं की बिक्री की जा सकती है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक सरकार 60 लाख टन गेहूं तक खुले बाजार में बेच सकती है। इसका फायदा यह होगा कि अगर कीमतें और ऊपर जाती हैं, तो सरकार तत्काल हस्तक्षेप कर सकेगी।
खरीद की राज्यवार स्थिति
पंजाब में इस बार 130 लाख टन गेहूं मंडियों में आया, जिसमें से सरकारी एजेंसियों ने 119 लाख टन खरीदा। जबकि प्राइवेट खरीद भी बढ़कर 11 लाख टन पहुंच गई, जो पिछले साल सिर्फ 7 लाख टन थी। वहीं हरियाणा में सरकारी खरीद लगभग 11 लाख टन हुई — यह पिछले साल जितनी ही रही। यानी स्थिर। लेकिन उत्तर प्रदेश की हालत कुछ खराब रही। यहां का सरकारी खरीद टारगेट था 30 लाख टन, लेकिन अब तक सिर्फ 10 लाख टन की खरीद हो पाई है। इसका कारण प्राइवेट खरीद का बढ़ना और सरकारी तंत्र की ढिलाई को माना जा रहा है। मध्य प्रदेश ने सबसे बेहतर प्रदर्शन किया। मध्य प्रदेश में सरकारी खरीद के द्वारा 78 लाख टन गेहूं खरीदा गया, इसमें 175 रुपए प्रति 100 किलो का बोनस और अच्छा मौसम बड़ा कारण रहे। राजस्थान में भी सरकारी गेहूं की खरीद के आंकड़े ठीक-ठाक ही रहे। राजस्थान से सरकार द्वारा लगभग 18 लाख टन गेहूं खरीदा गया और 150 रुपए प्रति 100 किलो बोनस दिया गया।
उत्पादन ने तोड़े रिकॉर्ड
इस साल सरकार ने गेहूं उत्पादन का अनुमान 1175.10 लाख टन का लगाया है, जो पिछले साल के 1135 लाख टन से काफी ज्यादा है। लेकिन इसके बावजूद कीमतें मजबूत बनी हुई हैं, क्योंकि बाजार में मांग बनी हुई है और किसानों के पास भी स्टॉक है, जिसे वह अभी नहीं बेचना चाहते। खाद्य मंत्रालय को यह बात थोड़ी हैरान कर रही है कि रिकॉर्ड उत्पादन और प्राइवेट खरीद के बावजूद दाम स्थिर या मजबूत कैसे बने हुए हैं। शायद इसकी एक बड़ी वजह यह हो सकती है कि सरकार खुद तीन महीने का राशन अग्रिम तौर पर वितरित कर रही है, जिससे स्टोरेज और सप्लाई पर दबाव बना है।
आगे की तस्वीर
दोस्तों, जुलाई की शुरुआत से पहले ही OMSS के तहत बिक्री शुरू हो सकती है। इससे मंडियों में भाव काबू में रहने की संभावना है। वैसे भी इस बार सरकार के पास पर्याप्त स्टॉक है और वह बाजार को नियंत्रित करने के लिए तैयार है। 2025-26 में सरकार के पास शुरुआत में 110 लाख टन ओपनिंग स्टॉक था और 300 लाख टन की खरीद के बाद भी, यदि PDS का आवंटन बढ़ जाए तो भी सरकार के पास 80 लाख टन से ज्यादा गेहूं बच जाएगा। इससे साफ है कि अगर आगे दाम ज्यादा बढ़े तो सरकार के पास दखल देने के कई विकल्प हैं।