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गेहूं में बालियां निकलने के समय ये एक काम जरूर कर लेना | 50% तक बढ़ जाएगा उत्पादन

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गेहूं में बालियां निकलने के समय ये एक काम जरूर कर लेना | 50% तक बढ़ जाएगा उत्पादन

किसान भाईयों के लिए गेहूं की खेती का एक अहम दौर अब शुरू हो चुका है। क्योंकि अगेती बुवाई वाली गेहूं की फसल की बाली पूरी तरह से बाहर आ चुकी है और दाना भरने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। यह वह समय है, जब गेहूं की फसल मिल्किंग स्टेज में पहुंच चुकी है, यानी दाने के अंदर पानी की मात्रा बढ़ने और फसल के आकार में सुधार होने की प्रक्रिया जोरों पर है। इस समय किसान भाई अक्सर सोचते हैं कि फसल को और बेहतर बनाने के लिए क्या करें, ताकि बालियां बड़ी हों, दाने का आकार बढ़े, और उनकी फसल से अधिक उत्पादन प्राप्त हो सके। इस सोच में वे अक्सर फिजूलखर्ची कर बैठते हैं और अधिक टॉनिक या अन्य रासायनिक पदार्थों का छिड़काव करने लगते हैं, जो जरूरी नहीं कि फसल के लिए लाभकारी हो। लेकिन असल में, किसानों को यह समझने की जरूरत है कि फसल में कोई भी अतिरिक्त उर्वरक या टॉनिक डालने से पहले यह जानना जरूरी है कि उस समय पौधों को किस तत्व की जरूरत होती है। यदि कोई किसान फसल की मिल्किंग स्टेज पर किसी ऐसे तत्व का छिड़काव करता है जो पहले ही पर्याप्त मात्रा में दिया जा चुका है, तो यह न केवल पैसे की बर्बादी होगी, बल्कि पौधों की सेहत पर भी प्रतिकूल असर डाल सकता है। आज हम इसी बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे और समझेंगे कि मिल्किंग स्टेज में कौन से उर्वरक देने चाहिए, ताकि गेहूं की फसल का उत्पादन बेहतर हो और खर्च भी कम से कम हो। तो चलिए इन सब बातों को जानने के लिए शुरू करते हैं आज की यह रिपोर्ट।

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मिल्किंग स्टेज पर उर्वरकों का उपयोग

किसान साथियों, जब गेहूं की फसल मिल्किंग स्टेज में पहुंच जाती है, तो यह समय है पौधों को सही पोषण देने का ताकि दाने का आकार बढ़ सके और उनमें चमक आ सके। गेहूं की फसल में इस समय खासकर पोटाश (Potash) की जरूरत होती है। पहले से दिए गए नाइट्रोजन (Nitrogen), फास्फोरस (Phosphorus), और जिंक (Zinc) जैसे तत्व अब पौधों के लिए उतने जरूरी नहीं होते। क्योंकि जब फसल इस स्टेज पर होती है, तो उसे ज्यादा फास्फोरस या नाइट्रोजन की आवश्यकता नहीं होती। यहां सिर्फ पोटाश और कुछ अन्य माइक्रो न्यूट्रिएंट्स जैसे मैग्नीशियम (Magnesium) की जरूरत होती है। जिनका इस समय पर सही मात्रा में उपयोग करने से गेहूं की फसल के उत्पादन को काफी अधिक मात्रा में बढ़ाया जा सकता है।

एनपीके 00-50 का छिड़काव

किसान साथियों, जैसा कि हमने बताया कि गेहूं की फसल में यह समय पोटाश देने का होता है और इसके लिए एनपीके 00-50 एक अच्छा विकल्प है। एनपीके 00-50 का छिड़काव गेहूं की मिल्किंग स्टेज पर करना बहुत फायदेमंद होता है। इस उर्वरक में पोटाश की उच्च मात्रा होती है, जो दाने के आकार को बढ़ाने में मदद करती है। पोटाश का उपयोग करने से दानों की गुणवत्ता में सुधार आता है और दाने में चमक भी बढ़ती है। अगर किसान इस समय एनपीके 00-50 का सही तरीके से छिड़काव करते हैं, तो इससे उनका उत्पादन निश्चित रूप से बढ़ सकता है। गेहूं की फसल में 00-50 एनपीके का इस्तेमाल करने के लिए, एक एकड़ में 1 किलो एनपीके 00-50 को 120 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करना चाहिए। अगर एनपीके की मात्रा बढ़ानी हो, तो पानी की मात्रा भी बढ़ानी होगी। लेकिन ध्यान रखें कि एनपीके की मात्रा बढ़ाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य ले लें।

फिजूलखर्ची से बचें

किसान साथियों, बहुत सारे किसान भाई यह सोचते हैं कि अगर उन्होंने मिल्किंग स्टेज पर भी अधिक रासायनिक तत्वों का छिड़काव किया, तो फसल में और भी बेहतर परिणाम मिलेंगे। लेकिन ऐसा नहीं होता। फसल में पोषक तत्व जितना जरूरी है उतना ही देना चाहिए। जैसे पहले से पौधों में नाइट्रोजन और फास्फोरस दिया जा चुका है, अब इनकी कोई आवश्यकता नहीं है। अगर आप इनका अधिक उपयोग करते हैं, तो यह सिर्फ फिजूल का खर्च होगा और फसल के लिए नुकसानदायक हो सकता है। इसके अलावा पौधों में अत्यधिक नाइट्रोजन देने से उन्हें बीमारी का खतरा भी बढ़ सकता है। इसलिए, किसानों को समझना होगा कि हर स्टेज पर पौधों को जरूरी पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। लेकिन किसी भी अनावश्यक रासायनिक तत्व का उपयोग करने से बचना चाहिए। किसानों को यह ध्यान रखना चाहिए कि मिल्किंग स्टेज पर केवल पोटाश और जरूरी माइक्रो न्यूट्रिएंट्स जैसे मैग्नीशियम और फेरस सल्फेट का ही उपयोग करना चाहिए।

वैरायटी का महत्व

किसान भाइयों, गेहूं की खेती में वैरायटी का भी बड़ा योगदान होता है। जैसे की एआई 8759 और डीबी 303 जैसी विभिन्न वैरायटी के बीच फर्क होता है। जहां एआई 8759 में बाली का आकार छोटा होता है, वहीं डीबी 303 में बाली का आकार बड़ा होता है। हर वैरायटी की अपनी विशेषताएं होती हैं और यह पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करता है कि किस वैरायटी में दाना कितना बड़ा होगा, उसकी चमक कैसी होगी और बाली का आकार कैसा होगा। इस कारण से किसानों को यह समझने की आवश्यकता है कि अलग-अलग वैरायटी के फसल में परिणाम भिन्न हो सकते हैं।

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फंगीसाइड का उपयोग

किसान साथियों, गेहूं की फसल में मिल्किंग स्टेज पर जितने आवश्यकता उर्वरकों के सही उपयोग की होती है उतनी ही आवश्यकता इस समय पर फसल को बीमारियों से बचने की भी होती है क्योंकि इस स्टेज पर आकर गेहूं की फसल में रस्ट (Rust) जैसी बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है, खासकर जब मौसम में बदलाव आता है। आपको बता दें कि रस्ट एक प्रकार का फंगल इन्फेक्शन है जो गेहूं की बालियों और पत्तियों पर प्रभाव डालता है। यदि आपने अब तक फंगीसाइड (Fungicide) का छिड़काव नहीं किया है, तो इसे करने की आवश्यकता है। क्योंकि फंगीसाइड के उपयोग से फसल में रस्ट जैसी बीमारियों से बचाव होता है और फसल की सेहत बनी रहती है। यह एक छोटी सी लागत में फसल की सुरक्षा कर सकता है, जिससे नुकसान की संभावना कम हो जाती है। इसके लिए Azoxy (Azoxystrobin 23% SC) की 200 मिली को प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें या फिर Dr. Zole (Azoxystrobin 11.00% + Tebuconazole 18.30% SC) का 300 मिली प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें।

नोट: रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर मौजूद सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। संबंधित किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।