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आवक बढ़ने के चलते क्या धड़ाम हो जायेंगें चने के रेट | जाने चने की तेजी मंदी रिपोर्ट में

आवक बढ़ने के चलते क्या धड़ाम हो जायेंगें चने के रेट | जाने चने की तेजी मंदी रिपोर्ट में
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किसान साथियों, इस समय भारतीय आयातकों के लिए ऑस्ट्रेलिया से चना मंगाना एक मुश्किल और घाटे का सौदा बन चुका है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि उन्होंने पहले ऊंचे दामों पर चने की खरीद का अनुबंध किया था, लेकिन अब भारतीय बाजार में चने की कीमतें काफी गिर चुकी हैं। इससे आयातकों को बड़ा नुकसान हो रहा है, क्योंकि जो चना उन्होंने महंगे दामों पर खरीदा था, अब वह नई कीमतों की तुलना में महंगा पड़ रहा है। इससे व्यापारियों के लिए इस माल को बेचना और भी मुश्किल हो गया है।

जब भारतीय व्यापारियों ने ऑस्ट्रेलिया से चना खरीदने का अनुबंध किया था, तब अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमतें ऊंची थीं। लेकिन सितंबर 2024 से जनवरी 2025 के बीच भारतीय बाजार में चने के भाव 30% तक गिर चुके हैं। इस गिरावट की वजह से व्यापारियों के लिए यह सौदा अब नुकसानदायक हो गया है। पहले जो डील मुनाफे वाली लग रही थी, वह अब एक बड़ा घाटा बन गई है। इस स्थिति को देखते हुए कुछ आयातकों ने ऑस्ट्रेलियाई निर्यातकों से अनुबंध रद्द करने की कोशिश की, जबकि कुछ व्यापारी निर्यातकों पर मूल्य संशोधन (Re-Negotiation) के लिए दबाव बना रहे हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, कुछ आयातकों ने अनुबंधित चने की खेप समय पर नहीं मंगाई (डिफॉल्ट किया), जिससे यह स्पष्ट होता है कि वे अब इस सौदे से बाहर निकलने का प्रयास कर रहे हैं।

इस समस्या को और बढ़ाने वाला एक बड़ा कारण यह भी है कि भारत में मार्च-अप्रैल के दौरान नई चने की फसल आने वाली है। जैसे ही नई फसल बाजार में आएगी, मंडियों में चने की आपूर्ति और बढ़ जाएगी। जब पहले से ही बाजार में चने का पर्याप्त स्टॉक मौजूद है और नई आवक भी शुरू हो जाएगी, तो चने की कीमतें और गिरने की संभावना है। ऐसे में आयातकों को जो चना महंगे दामों पर खरीदना पड़ा था, उसकी कीमत नई फसल के मुकाबले ज्यादा रहेगी, जिससे उनकी बिक्री और भी मुश्किल हो सकती है। अगर सरकारी खरीद (MSP) सुस्त रही, तो चने के दाम और ज्यादा दबाव में आ सकते हैं, जिससे आयातकों की परेशानी और बढ़ जाएगी।

सरकार ने मई 2024 में देसी चने के आयात को शुल्क मुक्त कर दिया था, ताकि घरेलू बाजार में चने की आपूर्ति बढ़ाई जा सके और कीमतों को काबू में रखा जा सके। इस नीति को 31 मार्च 2025 तक बढ़ा दिया गया, जिससे भारतीय बाजार में चने का आयात बढ़ गया और उसकी कीमतें और नीचे आ गईं। जब भारी मात्रा में आयात हुआ और नई फसल आने की तैयारी होने लगी, तो आयातकों के लिए संकट और गहरा गया। जो व्यापारियों ने ऊंचे दाम पर ऑस्ट्रेलिया से चना खरीदा था, अब वे न तो उसे अच्छे दाम पर बेच पा रहे हैं और न ही अनुबंध से बाहर निकलने का आसान तरीका मिल रहा है।

अगर आने वाले महीनों में चने की कीमतें और गिरती हैं, तो यह संकट और गहरा सकता है। भारतीय आयातकों के लिए यह समय बेहद चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि वे अब दोहरी मुश्किल में फंसे हैं—पहले ऊंचे दामों पर किया गया सौदा और अब गिरती कीमतों के कारण बढ़ता घाटा। अगर सरकार ने MSP पर अधिक मात्रा में खरीद नहीं की, तो यह समस्या और विकट हो सकती है। इसलिए, बाजार के हालात पर व्यापारियों और सरकार को नजर बनाए रखनी होगी ताकि आयातकों को अनावश्यक नुकसान से बचाया जा सके और बाजार में संतुलन बना रहे।

ऑस्ट्रेलिया में चने का रिकॉर्ड उत्पादन

इस साल ऑस्ट्रेलिया में चने की पैदावार पिछले वर्षों की तुलना में तीन गुना अधिक हुई है। यह एक ऐतिहासिक रिकॉर्ड है, जिसने वैश्विक बाजार में चने की आपूर्ति को काफी बढ़ा दिया है। ऑस्ट्रेलिया दुनिया में देसी चना (काबुली और अन्य किस्मों) का सबसे बड़ा निर्यातक देश है और वहां का उत्पादन भारतीय बाजार को सीधे प्रभावित करता है। इस बार अच्छी जलवायु परिस्थितियों और अनुकूल कृषि नीतियों के कारण ऑस्ट्रेलिया में चने की बंपर फसल हुई, जिससे उनके पास निर्यात के लिए काफी मात्रा में स्टॉक उपलब्ध है। और इसी वजह से ऑस्ट्रेलिया ने 2024 की दूसरी छमाही में भारत को करीब 11 लाख टन चने के निर्यात का अनुबंध किया था। लेकिन जबसे भारतीय बाजार में चने की आपूर्ति अधिक हो गई है, तब से चना की कीमतों में भारी गिरावट देखने को मिल रही हैसितंबर 2024 से जनवरी 2025 के बीच चने के दामों में 30% से ज्यादा की गिरावट आ चुकी है

इसके अलावा, कनाडा और रूस से भी भारी मात्रा में पीली मटर (Yellow Peas) का आयात किया गया है, जिसने भारतीय बाजार में चने की मांग को और कम कर दिया है। चूंकि पीली मटर का उपयोग चने के विकल्प के रूप में किया जाता है, इसलिए जब यह बड़ी मात्रा में आयात हुआ, तो चना की मांग में और कमी आ गई। इसका सीधा असर चना के दामों पर पड़ा, जिससे भारतीय आयातकों को भारी वित्तीय नुकसान झेलना पड़ रहा है। अब जो आयातक पहले ऑस्ट्रेलिया से ऊंचे दाम पर चना खरीदने के अनुबंध कर चुके थे, वे भारी घाटे में फंस गए हैं और अब ऑस्ट्रेलियाई चने में पहले जैसी रुचि नहीं दिखा रहे हैं

कितना चना संकट में है?

वर्तमान हालात को देखते हुए, भारतीय व्यापारियों ने नवंबर 2024 से मार्च 2025 तक ऑस्ट्रेलिया से जितना चना खरीदने का अनुबंध किया था, उसमें से करीब 15% यानी 2.25 लाख टन का आयात अब संकट में है। इन व्यापारियों ने यह चना पहले ऊंचे दाम पर खरीदा था, लेकिन अब जब बाजार में कीमतें काफी गिर गई हैं, तो इस आयात पर भारी नुकसान हो सकता है। इस स्थिति से बचने के लिए कई आयातक ऑस्ट्रेलियाई निर्यातकों से कीमतें दोबारा तय करने की मांग कर रहे हैं। कुछ आयातकों के अनुबंध रद्द करने (डिफॉल्ट करने) की भी खबरें आ रही हैं, क्योंकि उनके लिए अब यह सौदा लाभदायक नहीं रह गया है।

अगर बाजार में चने की कीमतों में और गिरावट आती है, तो यह संकट और गहरा सकता है। भारतीय आयातकों को इस समय अपने महंगे सौदों के कारण भारी वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है, और कई व्यापारी अब ऑस्ट्रेलिया से चने का आयात करने से बच रहे हैं।

नई फसल से चने के दाम और गिर सकते हैं

जब किसी वस्तु की उपलब्धता बढ़ती है, तो स्वाभाविक रूप से उसकी कीमतों पर असर पड़ता है। भारत में मार्च-अप्रैल के दौरान चना की नई फसल की कटाई शुरू होने वाली है, जिससे बाजार में आपूर्ति तेजी से बढ़ेगी। वर्तमान में भी मंडी में चने का पर्याप्त स्टॉक मौजूद है, क्योंकि पिछले कुछ महीनों में ऑस्ट्रेलिया और अन्य देशों से चने का भारी मात्रा में आयात किया गया था। अब, जब नई फसल बाजार में आएगी, तो यह स्टॉक और बढ़ जाएगा, जिससे बाजार में चने की अधिकता हो जाएगी

इससे सबसे ज्यादा प्रभावित वे व्यापारी और आयातक होंगे, जिन्होंने पहले ऊंचे दामों पर चना खरीदा था। जब बाजार में अधिक आपूर्ति होगी, तो खरीदारों को सस्ती कीमत पर चना उपलब्ध होने लगेगा। ऐसे में पहले ऊंचे दामों पर स्टॉक किए गए चने की बिक्री और मुश्किल हो जाएगी, क्योंकि उपभोक्ता और व्यापारी नई फसल का सस्ता चना खरीदना पसंद करेंगे। इसके अलावा, अगर किसी भी कारण से चने की खपत में कमी आती है, तो कीमतों में गिरावट की संभावना और बढ़ सकती है

कुछ बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि नई फसल आने के बाद भी अगर सरकारी खरीद सुस्त रहती है, तो चने के दाम और अधिक गिर सकते हैं। इसी कारण किसान और व्यापारी अभी से संभावित भावों को लेकर चिंतित हैं। वे इस बात का आकलन कर रहे हैं कि फसल की अधिकता से बाजार पर कितना दबाव पड़ेगा और चने के दाम कितने नीचे आ सकते हैं। कुल मिलाकर, अगर चने की नई फसल की अच्छी आवक होती है और मांग में कोई बड़ा बदलाव नहीं आता है, तो चने के दाम में गिरावट जारी रहने की संभावना है

नए चने की आवक
किसान साथियों कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात की मंडियों में नए चने की आवक धीरे-धीरे शुरू हो चुकी है। फिलहाल, कर्नाटक और महाराष्ट्र में आवक का दबाव बना हुआ है। गदग मंडी में प्रतिदिन 8,000 से 11,000 क्विंटल की आवक हो रही है, जहां चना मंडी लूज 5,000 से 6,000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर कारोबार कर रहा है।

महाराष्ट्र के लातूर में चने की दैनिक आवक 15,000 से 20,000 क्विंटल के बीच बनी हुई है, जहां क्वालिटी के अनुसार इसका भाव 5,700 से 6,200 रुपये प्रति क्विंटल है।

गुजरात में फिलहाल चने की हल्की आवक हो रही है, जहां इसका कारोबार 5,500 से 5,780 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर चल रहा है। व्यापारियों के अनुसार, जब तक आवक का दबाव नहीं बढ़ता, तब तक गुजरात में मंडी लूज चने का भाव 5,500 रुपये प्रति क्विंटल के नीचे जाने की संभावना नहीं है। निचले स्तर पर स्टॉकिस्टों की सक्रियता बनी रहेगी, जिससे बाजार में ज्यादा गिरावट की उम्मीद नहीं है। यदि कीमतें 5,500 रुपये प्रति क्विंटल से नीचे जाती हैं, तो ऑस्ट्रेलियाई चने की लागत भी प्रतिस्पर्धी नहीं रह जाएगी।

भारत में चने का रकबा (खेती का क्षेत्र) बढ़ा

इस साल भारत में किसानों ने चने की खेती के लिए पिछले साल के मुकाबले अधिक क्षेत्र (रकबा) में फसल बोई है। यह सरकार द्वारा फसल को प्रोत्साहन देने, किसानों की बढ़ती रुचि और मौसम की अनुकूल परिस्थितियों के कारण संभव हुआ है। रबी सीजन के दौरान चने की अच्छी बुवाई हुई, जिससे उत्पादन भी अधिक होने की संभावना है। जब किसी फसल का उत्पादन अधिक होता है, तो उसकी आपूर्ति में बढ़ोतरी होती है और बाजार में कीमतों पर दबाव पड़ता है। इसी कारण इस बार चने के बाजार में भाव कमजोर या स्थिर रहने की संभावना जताई जा रही है

भारत में चने की कुल खेती का एक बड़ा हिस्सा मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक जैसे राज्यों में होता है। इस बार अधिक उत्पादन होने से बाजार में चने की उपलब्धता बनी रहेगी, जिससे व्यापारी और किसानों को उम्मीद है कि सरकारी खरीद अच्छी मात्रा में होगी, ताकि दामों में ज्यादा गिरावट न हो। न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर सरकारी खरीदारी होगी या नहीं, यह भी बाजार के लिए बहुत अहम रहेगा। अगर सरकार बड़ी मात्रा में चने की खरीद नहीं करती है, तो बाजार में अधिक आपूर्ति के कारण भाव और कमजोर हो सकते हैं

कई किसानों के लिए यह चिंता का विषय है कि अगर मंडी में चने की आपूर्ति जरूरत से ज्यादा हो गई, तो उन्हें अपनी फसल बहुत कम कीमत पर बेचनी पड़ सकती है। खासकर छोटे और मध्यम किसान, जिनके पास भंडारण की सुविधा नहीं होती, उन्हें तुरंत अपनी फसल बेचनी पड़ती है। ऐसे में, अगर बाजार में कीमतें कम रहीं, तो उनकी मेहनत का उचित लाभ नहीं मिल पाएगा। इस स्थिति में, सरकार द्वारा किए गए नीतिगत निर्णय महत्वपूर्ण साबित होंगे, क्योंकि MSP पर सरकारी खरीद की मात्रा यह तय करेगी कि किसानों को कितना फायदा या नुकसान होगा।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।