केवल 250 रुपए के खर्चे में लद जाएगी फलियों से आपकी सरसों, फटाफट जानें क्या है नुस्खा।
किसान भाइयों, सरसों की फसल किसानों के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्रोत होने के साथ-साथ किसानों के लिए एक प्रमुख खाद्य और तेल का भी स्रोत है। इसकी खेती करने के लिए सही तरीके से सिंचाई और उर्वरक का प्रयोग करना बहुत जरूरी होता है। सही समय पर सिंचाई और सही मात्रा में उर्वरकों का उपयोग न केवल फसल की गुणवत्ता को बेहतर बनाता है, बल्कि उत्पादन में भी वृद्धि करता है। सरसों की फसल में फूलों और फलियों की संख्या को बेहतर बनाने के लिए पहली सिंचाई के बाद दूसरी सिंचाई के समय को सही ढंग से जानना और इसे सही तरीके से करना किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, इसलिए किसानों को इन गतिविधियों को सही ढंग से करना बहुत जरूरी है जिससे उनकी फसल का विकास सही दिशा में हो और अच्छे उत्पादन का लाभ मिल सके। इस रिपोर्ट में हम सरसों की दूसरी सिंचाई के महत्व, उसके समय और सही तरीके पर चर्चा करेंगे। इसके अलावा, हम यह भी समझेंगे कि सही खाद और उर्वरक का प्रयोग कैसे फसल की गुणवत्ता को बढ़ा सकता है और कैसे आप अपनी सरसों की फसल में बीमारी से बचाव कर सकते हैं। तो चलिए इन सब बातों पर विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं आज की इस रिपोर्ट में।
दूसरी सिंचाई का महत्व
किसान साथियों, जब हम पहली सिंचाई करते हैं, तो हम उम्मीद करते हैं कि पौधे स्वस्थ होंगे और उनकी बढ़त अच्छी होगी। इसी दौरान, पौधों में चौड़े पत्ते और बढ़ी हुई शाखाएं दिखने लगती हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि हमारी पहली सिंचाई सफल रही है। लेकिन जैसे-जैसे समय बढ़ता है और फसल का आकार बड़ा होता है, पौधों को ज्यादा पानी और सही पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इस समय सरसों की फसल के लिए दूसरी सिंचाई का समय बहुत महत्वपूर्ण है, खासकर जब हमारी फसल 45-55 दिन की हो चुकी होती है। इस समय में दूसरी सिंचाई से पौधों की बढ़त तेज हो सकती है। यदि पहली सिंचाई सही समय पर की गई थी, तो दूसरी सिंचाई के बाद पौधों में न केवल शाखाएं बढ़ेगी, बल्कि नए बूटे भी निकलेंगे। इसके परिणामस्वरूप, फसल में ज्यादा फूल और फलियां आएंगी, जो भविष्य में अच्छे उत्पादन की ओर इशारा करती हैं।
सही समय पर करें दूसरी सिंचाई
किसान साथियों, अब कई किसान भाइयों के मन में यह सवाल उठता है कि सरसों की फसल में दूसरी सिंचाई का सही समय क्या है। तो हम आपको बता दें कि सरसों की फसल में दूसरी सिंचाई का समय मिट्टी की स्थिति और मौसम पर निर्भर करता है। यदि आपकी मिट्टी भारी है और पानी जल्दी सूखता नहीं है, तो दूसरी सिंचाई को थोड़ा देर से करना चाहिए। वहीं, हल्की रेतीली मिट्टी में सिंचाई जल्दी करनी चाहिए। यदि मौसम में अचानक सर्दी बढ़ जाती है या बारिश कम हो रही है, तो पौधों को अतिरिक्त सिंचाई की आवश्यकता होती है। वैसे सामान्यत: अगर आपने पहली सिंचाई कर ली है और 45-55 दिन बाद दूसरी सिंचाई की जाए, तो यह पौधों की विकास प्रक्रिया को तेज करता है। इस समय पर सिंचाई से पौधे में नाइट्रोजन, पोटाश और फास्फोरस जैसे पोषक तत्वों की कमी पूरी हो सकती है, जो पौधों की बढ़त और फूलने की प्रक्रिया में सहायक होते हैं।
दूसरी सिंचाई में सही खाद का चुनाव
किसान भाइयों, सरसों की फसल के बेहतरीन उत्पादन के लिए केवल समय पर सिंचाई का प्रबंध ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि दूसरी सिंचाई के समय हमें कुछ खास उर्वरकों का इस्तेमाल भी करना चाहिए, ताकि पौधे में सही पोषण मिले और उत्पादन बढ़ सके। सबसे पहले, हमें नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का सही अनुपात देना चाहिए। यदि नाइट्रोजन की कमी है, तो यूरिया का प्रयोग किया जा सकता है। पोटाश की कमी के लिए 05234 या 13045 जैसे उर्वरक का उपयोग फसल के लिए काफी लाभदायक सिद्ध होता है। इसके अलावा, किसान भाई अपनी सरसों की फसल में बोरॉन (बोरों) का भी प्रयोग करें, क्योंकि यह फूलों और फलियों के अच्छे पोलिनेशन (गुणवत्तापूर्ण परागण) में मदद करता है। बोरॉन का इस्तेमाल फसल में फूलों की गुणवत्ता और फलियों के उत्पादन को बढ़ा सकता है। इस दौरान, उर्वरक को पौधों के आधार पर या ऊपर से स्प्रे करके दिया जा सकता है। अगर इस स्प्रे की सही मात्रा की बात करें तो 200 ग्राम एनपीके 00 52 34 और 150 ग्राम गौरव 50% इन दोनों को 160 से 180 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से इस घोल का फ़सल पर छिड़काव करें।
फसल में बीमारी से बचाव के उपाय
किसान साथियों, सरसों की फसल में उर्वरक और सिंचाई के साथ-साथ, यह देखना भी बहुत जरूरी है कि हम अपनी सरसों की फसल में बीमारी से बचाव के उपायों पर भी ध्यान दें। अगर मौसम में अचानक बदलाव आता है, जैसे सर्दी या नमी बढ़ने से फसल में व्हाइट रस्ट (धुंध या धुँध बीमारी) का खतरा बढ़ सकता है। इस बीमारी के कारण पौधों के तनों पर सफेद पाउडर जैसी परत बन जाती है और पौधे की वृद्धि रुक जाती है। इससे बचने के लिए, हमें फंकी साइड का इस्तेमाल करना चाहिए, जैसे सल्फर या कार्बन डिज़िम। इसके अलावा, मेटल मैनकोज़ेब जैसे फंगीसाइड्स का भी प्रयोग किया जा सकता है, जो पौधों को फंगल इंफेक्शन से बचाते हैं। इसके अतिरिक्त कीटनाशक मेलाथियान का छिड़काव सीधे फसल पर करें। कीटों की रोकथाम के लिए 4 किलो मेलाथियान पाउडर को प्रति एकड़ में छिड़काव किया जा सकता है। किसान भाई सरसों की फसल में कीटों के प्रकोप को कम करने के लिए प्रति एकड़ 250-300 मिली कात्यायनी डीमैट को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव भी कर सकते हैं, यह दवाई भी कीटों पर काफी असरदार साबित होती है।
नोट: रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर मौजूद सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। संबंधित किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।
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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।