चने की फसल में सिंचाई करने का सही समय क्या है | 90% लोग बिलुल भी नहीं जानते
किसान साथियो देश में चने की बुवाई का काम लगभग पूरा हो चुका है। अब चने की फसल को सिंचाई की आवश्यकता है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, चने की फसल में पहली सिंचाई फूल आने से पहले करनी चाहिए। दूसरी सिंचाई फलियों में दाने बनने के समय (बुवाई के लगभग 70-80 दिन बाद) करनी चाहिए। यह सिंचाई फसल की पैदावार बढ़ाने में मददगार होती है। अगर सर्दियों में बारिश होती है तो दूसरी सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है। लेकिन अगर बारिश नहीं होती तो अच्छी पैदावार के लिए हल्की सिंचाई करनी चाहिए। सिंचाई के लगभग एक सप्ताह बाद खेत में हल्की निराई-गुड़ाई करने से फसल को और अधिक लाभ मिलता है।
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, अनावश्यक सिंचाई से पौधे की पत्तियां और तना तो ज्यादा बढ़ते हैं, लेकिन फल और बीजों का विकास कम होता है। इससे कुल मिलाकर फसल की पैदावार कम हो जाती है। विशेषकर चने की फसल के लिए, जल निकास की उचित व्यवस्था बहुत जरूरी है। अगर खेत में पानी जमा हो जाए तो फसल खराब होने का खतरा रहता है। नए शोधों से पता चला है कि अगर चने की बुवाई देर से की गई हो या सिंचाई न की जा रही हो तो फसल को अतिरिक्त पोषण देने की जरूरत होती है। ऐसे में फली में दाने बनने के समय, 10 दिन के अंतराल पर दो बार, 2 प्रतिशत यूरिया के घोल का छिड़काव करना फायदेमंद होता है। यह उपाय फसल की पैदावार बढ़ाने में मदद कर सकता है।
चने की फसल में कब लगता है उकठा रोग
जिंक की कमी से फसलों में कई समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। सबसे पहले, पुरानी पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और बाद में जली हुई सी दिखाई देने लगती हैं। इस समस्या का समाधान जिंक सल्फेट का छिड़काव करके किया जा सकता है। दूसरी ओर, चने की फसल में उकठा रोग एक गंभीर समस्या है जो फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम नामक फफूंद के कारण होती है। इस रोग से संक्रमित पौधे का ऊपरी हिस्सा मुरझा जाता है, पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और अंत में पूरा पौधा सूख जाता है। यह रोग फसल के किसी भी चरण में हो सकता है, लेकिन आमतौर पर पौध अवस्था या फूल और फली लगने की अवस्था में अधिक प्रकोप होता है।
उकठा रोग से कैसे छुटकारा पाया जाये
चने की फसल में उकठा रोग एक गंभीर समस्या है। यह रोग तेजी से फैलता है और प्रभावित पौधे पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं, जिससे उत्पादन में भारी गिरावट आती है और फसल की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, इस रोग से निपटने का सबसे प्रभावी तरीका उकठा प्रतिरोधी किस्मों का चयन करना है। ये किस्में इस रोग के प्रति अधिक प्रतिरोधी होती हैं और फसल को नुकसान से बचाती हैं। ऐसी कुछ किस्मों में पूसा 372, पूसा 329, पूसा 362, पूसा चमत्कार (बीजी 1053-काबुली), पूसा 1003 (काबुली), केडब्ल्यूआर 108, जेजी 74, डीसीपी 92-3, जीएनजी 1581, जीपीएफ-2 और हरियाणा चना-1 शामिल हैं। इन किस्मों को बोने से किसान उकठा रोग से होने वाले नुकसान को कम कर सकते हैं और अपनी फसल को सुरक्षित रख सकते हैं।
नोट: रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर मौजूद सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। संबंधित किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।
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मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।