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गेहूं में बढ़िया उत्पादन पाने के लिए उर्वरकों का सही अनुपात क्या रखें | इस रिपोर्ट में जानें

गेहूं में बढ़िया उत्पादन पाने के लिए उर्वरकों का सही अनुपात क्या रखें | इस रिपोर्ट में जानें
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किसान साथियों, भारत में गेहूं एक प्रमुख फसल है और इसकी बेहतर उपज के लिए उर्वरक का सही संयोजन और सही समय पर उपयोग आवश्यक है, ताकि किसान भाई अधिक से अधिक उपज और गुणवत्ता प्राप्त कर सकें। गेहूं का लगभग 97% क्षेत्र सिंचित है। भारत में पंजाब, हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश मुख्य फसल उत्पादक क्षेत्र हैं। गेहूं की प्रजातियों का चुनाव भूमि एवं साधनों की दशा एवं स्थिति के अनुसार किया जाता है। गेहूं की मुख्यतः तीन प्रकार की प्रजातियां होती हैं: सिंचित दशा वाली, असिंचित दशा वाली एवं उसरीली भूमि की असिंचित दशा वाली। गेहूं की फसल में अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए सही उर्वरक और उनकी मात्रा, तथा अन्य सभी कार्य जो फसल के उत्पादन को प्रभावित करते हैं, इन सब पर आज की रिपोर्ट में विस्तार से चर्चा करेंगे। किसान भाइयों को यह ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि वे अपने खेत की सभी जरूरतों और खाद के अनुसार सही संयोजन का चुनाव करें। जो किसान भाई जैविक विधि से खेती करते हैं, वे अपनी फसल में जैविक खाद का उचित मात्रा में उपयोग कर फसल की गुणवत्ता और उत्पादन को सुधार सकते हैं। इन सब के बारे में विस्तार से जानने के लिए आइए पढ़ते हैं आज की यह रिपोर्ट।

पोषक तत्व

किसान साथियों, गेहूं की फसल की बुआई के समय फसल को मुख्य रूप से तीन प्रमुख पोषक तत्वों – नाइट्रोजन (N), फास्फोरस (P), और पोटेशियम (K) – की आवश्यकता होती है। अगर हम उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्रों में समय से बुवाई करने की बात करें तो इन क्षेत्रों में:

नाइट्रोजन (N): 60 किलोग्राम प्रति एकड़

फास्फोरस (P2O5): 25 किलोग्राम प्रति एकड़

पोटेशियम (K2O): 15 किलोग्राम प्रति एकड़


की मात्रा को संतुलित माना जाता है। कृषि विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार फास्फोरस और पोटेशियम की पूरी मात्रा बुआई के समय बेसल डोज के रूप में डाल देनी चाहिए, परंतु नाइट्रोजन को तीन भागों में सिंचाई के साथ अलग-अलग समय पर देना चाहिए। इस प्रकार उर्वरकों का सही और संतुलित मात्रा में उपयोग करने पर पौधों को जरूरी पोषक तत्व मिलते रहते हैं, जिससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादन में वृद्धि होती है। नाइट्रोजन की कुल 60 किलोग्राम मात्रा को आप तीन हिस्सों में बांटकर फसल में डालें। बेसल डोज में आप 20 किलोग्राम नाइट्रोजन बुआई के समय खेत में डालें और दूसरी बार 20 किलो नाइट्रोजन की मात्रा पहली सिंचाई के दौरान डालें। गेहूं में पहली सिंचाई बुआई के लगभग 25 दिन बाद करें। बाकी बची हुई 20 किलो नाइट्रोजन की मात्रा को दूसरी सिंचाई के साथ डाल दें। गेहूं में दूसरी सिंचाई का सही समय 40 से 45 दिन के बीच का होता है।

उर्वरकों के विकल्प

किसान साथियों, अगर आपको ये सभी पोषक तत्व अलग-अलग मात्रा में आसानी से उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं, तो आप इनके विकल्प के तौर पर अन्य उर्वरकों का इस्तेमाल कर सकते हैं, जो आपकी फसल की पैदावार को बढ़ाने में सहायक होते हैं। नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश के कुछ अन्य विकल्प निम्नलिखित हैं:

1. एनपीके 12:32:16

मात्रा: 75 किलोग्राम एनपीके

यूरिया: 24 किलोग्राम

म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP): 7 किलोग्राम

इस संयोजन में एनपीके 12:32:16 का उपयोग करना लाभकारी है, क्योंकि इसमें सभी तीन प्रमुख तत्व – नाइट्रोजन, फास्फोरस, और पोटेशियम – सही अनुपात में होते हैं।

2. डीएपी (DAP) का उपयोग

मात्रा: 52 किलोग्राम डीएपी

यूरिया: 24 किलोग्राम

म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP): 27 किलोग्राम


डीएपी में 18% नाइट्रोजन और 46% फास्फोरस होता है, जिससे नाइट्रोजन और फास्फोरस दोनों तत्वों की पूर्ति होती है। लेकिन इसमें पोटेशियम नहीं होता, इसलिए अतिरिक्त पोटेशियम के लिए म्यूरेट ऑफ पोटाश का उपयोग करना आवश्यक होता है।

3. सिंगल सुपर फास्फेट (SSP) का उपयोग

मात्रा: 150 किलोग्राम एसएसपी

यूरिया: 44 किलोग्राम

म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP): 27 किलोग्राम

एसएसपी में फास्फोरस के साथ-साथ सल्फर और कैल्शियम भी होता है, जो फसल के लिए लाभकारी है। हालांकि, इसमें नाइट्रोजन और पोटेशियम नहीं होते, इसलिए अतिरिक्त यूरिया और म्यूरेट ऑफ पोटाश के माध्यम से इन तत्वों की पूर्ति की जाती है।

उर्वरक का महत्व

किसान साथियों, विभिन्न प्रकार की फसलों में फसल के उत्पादन और विकास के लिए अलग-अलग प्रकार के पोषक तत्वों की जरूरत होती है। यदि आप फसल के अनुसार इनका सही मात्रा में उपयोग नहीं करते हैं, तो पौधों के विकास में कमी आ सकती है, जिसका असर फसल की गुणवत्ता और उत्पादन पर पड़ता है। पोटेशियम की बात करें तो यह विशेष रूप से फसल के दानों के आकार को बढ़ाने में मदद करता है। यदि पौधों में पोटाश की कमी होगी, तो दाना छोटा और कम गुणवत्ता वाला रह जाता है। नाइट्रोजन की जरूरत फसल की बढ़वार और विकास के लिए होती है। नाइट्रोजन को खेत में डालने का सही समय पहली और दूसरी सिंचाई के बाद होता है, जिससे पौधों को संतुलित पोषण मिलता है और उनकी वृद्धि सही प्रकार से होती है। नाइट्रोजन की पूर्ति के लिए आप पहली सिंचाई के बाद 40 किलोग्राम यूरिया प्रति एकड़ डालें, और इसी प्रकार दूसरी सिंचाई के बाद भी 40 किलोग्राम यूरिया डालें। इससे फसल की जड़ों को मजबूती के साथ-साथ आवश्यक पोषण भी मिलता है, और पौधों का विकास तेजी से होता है।

जैविक खाद का उपयोग

किसान साथियों, यदि कोई किसान भाई जैविक खेती कर रहे हैं, तो वे अपने खेत में गोबर की गली हुई खाद या कंपोस्ट खाद का उपयोग कर सकते हैं। गोबर की खाद या कंपोस्ट फसल के लिए अत्यंत लाभकारी होती है, जो फसल की गुणवत्ता और उत्पादन को बढ़ाने के साथ-साथ पर्यावरण को सुरक्षित रखने में भी महत्वपूर्ण योगदान देती है। अगर आप अपने खेत में जैविक खाद का उपयोग करना चाहते हैं तो प्रति एकड़ 4 से 5 टन गली-सड़ी खाद का उपयोग कर सकते हैं। इसे खेत में बुआई से 10 से 15 दिन पहले डालें और फिर 3-4 बार खेत को कल्टीवेटर और रोटावेटर से अच्छी तरह तैयार करें, ताकि खाद में मौजूद सूक्ष्म पोषक तत्व मिट्टी में सही प्रकार से मिल सकें और पौधों की जड़ों के सहारे समय पर मिल सकें।

नोट: रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर मौजूद सार्वजनिक स्रोतों से एकत्र की गई है। किसान भाई संबंधित किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।