गेहूं में यूरिया, पोटाश और जिंक का सही डोज क्या है | 90% किसानों को नहीं पता | यहां जानें पूरी जानकारी
किसान भाइयों, खेती में खाद और उर्वरकों का सही उपयोग फसल की उपज और गुणवत्ता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। रबी फसल में गेहूं का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। देश में कई राज्यों में गेहूं की खेती (wheat cultivation) प्रमुखता से की जाती है। हर किसान चाहता है कि उसकी बोई गई फसल से उसे अधिक पैदावार प्राप्त हो, लेकिन जानकारी के अभाव में अपनी फसल की सही से देखभाल नहीं कर पाते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि फसल की पैदावार में गिरावट आ जाती है। यदि हम बात करें गेहूं की, तो इसकी फसल से किसान काफी बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए किसान गेहूं की बुवाई के समय से ही उर्वरकों का सही और संतुलित मात्रा में इस्तेमाल करके गेहूं की फसल की पैदावार बढ़ा सकते हैं। इतना ही नहीं, उर्वरकों का सही समय और संतुलित मात्रा में उपयोग करने से किसान भाई गेहूं की क्वालिटी में भी सुधार कर सकते हैं। यदि किसान इनका उपयोग सही समय और सही मात्रा में नहीं करते हैं, तो इससे न केवल आर्थिक नुकसान होता है, बल्कि फसल की वृद्धि और उत्पादन पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। गेहूं एक्सपर्ट डॉ. एन.पी. गुप्ता के अनुसार फास्फोरस, पोटाश, सल्फर और जिंक की पूरी मात्रा बुवाई के समय बेसल डोज के तौर पर दे सकते हैं, जबकि नाइट्रोजन की मात्रा को दो से तीन बार करके प्रयोग करना चाहिए। नाइट्रोजन का इस्तेमाल पहली सिंचाई और दूसरी सिंचाई के दौरान 50-50% करना चाहिए। इस रिपोर्ट में हम गेहूं की खेती में यूरिया, डीएपी, जिंक, पोटाश और एनपीके के सही उपयोग, समय और मात्रा के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
डीएपी और एनपीके का उपयोग
किसान भाइयों, डीएपी (डाय-अमोनियम फॉस्फेट) और एनपीके (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम) खाद गेहूं की शुरुआती वृद्धि के लिए उपयोगी होते हैं। गेहूं की फ़सल में डीएपी और एनपीके दोनों का इस्तेमाल किया जा सकता है। डीएपी में 46% फ़ॉस्फ़ोरस होता है, जो पौधों की जड़ों को मजबूत बनाता है और फूल-फल लगने में मदद करता है। डीएपी का इस्तेमाल दानेदार फ़सलों जैसे गेहूं, धान और मक्के के लिए फायदेमंद होता है। डीएपी में पोटैशियम नहीं होता, इसलिए इसे पोटैशियम की कमी वाली मिट्टी में दूसरे खादों के साथ मिलाकर इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर डीएपी की सही मात्रा की बात करें तो डीएपी की खुराक फ़सल और मिट्टी के हिसाब से होनी चाहिए। लेकिन सामान्य तौर पर डीएपी का उपयोग बुवाई के समय एक बैग प्रति एकड़ के हिसाब से डालना चाहिए। डीएपी में फास्फोरस के साथ नाइट्रोजन की मात्रा भी होती है, इसीलिए आपको नाइट्रोजन के लिए अलग से यूरिया डालने की आवश्यकता नहीं है। अगर हम एनपीके की बात करें तो एनपीके में नाइट्रोजन, फ़ॉस्फ़ोरस, और पोटैशियम तीनों पोषक तत्व होते हैं। एनपीके में मौजूद नाइट्रोजन पौधों की पत्तियों के विकास में मदद करता है, जबकि फ़ॉस्फ़ोरस स्वस्थ फूल, कलियां, जड़ें और फल पैदा करने में मदद करता है। एनपीके हल्की ज़मीन के लिए ज़्यादा अच्छा होता है। बेसल डोज में एनपीके की सीमित मात्रा का उपयोग करना चाहिए। उर्वरकों की अत्यधिक मात्रा फसल के लिए हानिकारक साबित हो सकती है, इसलिए आप फसल में संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करें।
यूरिया का सही उपयोग
किसान भाइयों, गेहूं की फसल में यूरिया का उपयोग बहुत ही जरूरी हो गया है। यूरिया पौधों को हरा-भरा रखने और ऊंचाई बढ़ाने के लिए आवश्यक पोषक तत्व नाइट्रोजन प्रदान करता है। गेहूं की फ़सल में यूरिया का इस्तेमाल करने से कई फ़ायदे होते हैं। यूरिया से गेहूं के तने मजबूत होते हैं और गिरने से बचते हैं। इससे गेहूं ज़्यादा लचीला बनता है, जिससे बारिश और तूफ़ान से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। यूरिया से गेहूं के पौधों का विकास जल्दी होता है। इसके कारण पौधों में कल्लों की संख्या बढ़ती है, जिससे ज़्यादा बालियां निकलती हैं और फ़सल की पैदावार बढ़ती है। पहली और दूसरी सिंचाई के साथ यूरिया का इस्तेमाल करने से गेहूं में पानी के साथ-साथ खाद भी पहुंचती है। इससे फ़सलें अच्छी तरह से पनपती हैं। किसानों को यूरिया का सही मात्रा में उपयोग करने के लिए पहली सिंचाई के समय 40 किलो यूरिया प्रति एकड़ देना चाहिए। दूसरी बार यूरिया का उपयोग उस समय करें जब फसल में कल्ले निकलने लगें और पौधे तेजी से बढ़ने लगें। तब 40 किलो यूरिया के साथ 10 किलो पोटाश मिलाकर देना चाहिए। यदि अधिक यूरिया दिया जाए, तो यह पौधे की जड़ों और पत्तियों को नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए उर्वरक का संतुलित मात्रा में ही उपयोग करें।
पोटाश का उपयोग
किसान साथियों, अन्य उर्वरकों की तरह पोटाश की भी गेहूं की फसल में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका है। पोटाश गेहूं की फसल में चमक और दानों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए आवश्यक है। पोटाश को आप बुवाई के समय डीएपी के साथ 5 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से डाल सकते हैं। उसके बाद दोबारा जब बालियां बननी शुरू हों और कल्ले निकल रहे हों, तब 10 किलो पोटाश प्रति एकड़ का उपयोग यूरिया के साथ करें। पोटाश फसल के दानों की चमक बढ़ाता है और बालियों को लंबा और स्वस्थ बनाता है।
जिंक का सही उपयोग
किसान भाइयों, गेहूं की फसल में जिंक का भी अपना एक महत्व है। जिंक पौधों में पीलेपन को दूर करने और पोषण संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। गेहूं की फसल में जिंक का पहला उपयोग पहले पानी के समय 40 किलो यूरिया के साथ 5 किलो जिंक मिलाकर छिड़काव करें। उसके बाद फसल में जिंक का दूसरा उपयोग अगर फसल में ओस गिरने के बाद पत्तियां पीली दिखें, तो सुबह 10 बजे के बाद जिंक का छिड़काव करें। जिंक का छिड़काव करते समय ध्यान रखें कि आवश्यकता से अधिक जिंक (5 किलो से ज्यादा) डालने पर फसल जल सकती है।
सावधानियां
किसान भाइयों, किसी भी उर्वरक या खाद का उपयोग पानी की उपलब्धता के अनुसार करें। जहां पानी की उपलब्धता कम मात्रा में है, वहां खाद की मात्रा कम कर देनी चाहिए। ऐसे क्षेत्रों में यूरिया की मात्रा 40 किलो के बजाय 20 किलो प्रति एकड़, जिंक 5 किलो के बजाय 2.5 किलो प्रति एकड़ डालनी चाहिए क्योंकि पानी की कमी होने पर पौधों को पर्याप्त नमी नहीं मिलने से उर्वरकों के अधिक उपयोग से फसल जल सकती है।
लाभ
किसान भाइयों, सही समय पर खाद देने से फसल को आवश्यक पोषण मिलता है। समय पर सही खाद देने से पौधे रोगमुक्त रहते हैं। असल में सही मात्रा में खाद का उपयोग करने से फसल का उत्पादन बढ़ता है और दाने बेहतर गुणवत्ता वाले होते हैं। जो किसानों को उत्पादन से प्राप्त होने वाली आय में वृद्धि करने में सहायता करते हैं।
नोट: रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट के सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। संबंधित किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।
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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।