क्या है सरसों की पहली सिंचाई का सबसे सही समय | 90% किसान नहीं जानते
किसान साथियो रबी सीजन में सरसों की खेती करने वाले किसानों के लिए भारतीय सरसों अनुसंधान संस्थान, सेवर, भरतपुर ने महत्वपूर्ण सूचना जारी किए हैं। बढ़ते तापमान के कारण सरसों की फसल में कॉलर रॉट नामक बीमारी फैलने का खतरा बढ़ गया है। इस बीमारी के कारण फसल झुलस सकती है। इसलिए, समय से पहले सिंचाई करने से किसानों को नुकसान हो सकता है। संस्थान के निदेशक, डॉ. पीके राय ने किसानों को सलाह दी है कि वे सरसों की पहली सिंचाई करते समय भूमि की नमी का ध्यान रखें। सिर्फ आवश्यकतानुसार ही सिंचाई करें। इससे न केवल सरसों की पैदावार बढ़ेगी बल्कि फसल को बीमारियों से भी बचाया जा सकेगा। सरसों की खेती किसानों के लिए एक लाभकारी विकल्प है। लेकिन, फसल को स्वस्थ रखने के लिए वैज्ञानिक तरीकों का पालन करना बेहद जरूरी है। संस्थान द्वारा जारी किए गए इन सुझावों का पालन करके किसान अपनी फसल को सुरक्षित रख सकते हैं और अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।
कब करनी चाहिए सरसों की पहली सिंचाई
भारतीय सरसों अनुसंधान संस्थान सेवर, भरतपुर ने किसानों को सरसों की फसल की सिंचाई और देखभाल के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव जारी किए हैं। संस्थान के अनुसार, किसानों को सरसों की पहली सिंचाई तभी करनी चाहिए जब भूमि की नमी 4 से 5 सेंटीमीटर की गहराई तक समाप्त हो जाए। अत्यधिक सिंचाई से फसल में कॉलर रॉट जैसी बीमारियां लग सकती हैं। जिन किसानों ने पहले ही सिंचाई कर ली है और उनकी फसल में झुलसने के लक्षण दिख रहे हैं, उन्हें स्ट्रेप्टोमाइसिन 200 पीपीएम और कार्बेंडाजिम 2 प्रतिशत का घोल बनाकर पौधों पर छिड़काव करना चाहिए। यह छिड़काव संक्रमित भाग पर अवश्य होना चाहिए। किसानों से अपील की गई है कि वे अपनी फसल की सुरक्षा के लिए इन निर्देशों का पालन करें। किसी भी तरह की समस्या या जानकारी के लिए किसान अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र या स्थानीय कृषि अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं।
सरसों को कैसे बचाये कॉलर रोट रोग से
कॉलर रोट, जिसे तना गलन भी कहा जाता है, एक गंभीर कवक जनित रोग है जो स्क्लेरोटियम रॉल्फिस नामक कवक के कारण होता है। यह रोग मुख्यतः पौधे के तने को प्रभावित करता है, विशेषकर जमीन के संपर्क में आने वाले हिस्से को। रोगग्रस्त पौधे के तने में सड़न शुरू हो जाती है जिसके परिणामस्वरूप पौधा फलने-फूलने की अवस्था में ही मुरझा जाता है। इस रोग के प्रारंभिक लक्षणों में पत्तियों पर छोटे, गहरे हरे रंग के धब्बे दिखाई देना शामिल है। ये धब्बे धीरे-धीरे बड़े होते हैं और अपना रंग खो देते हैं। फल पर भी गहरे, गीले धब्बे दिखाई देते हैं जिन पर सफेद रंग की वृद्धि देखी जा सकती है। रोगग्रस्त पौधे सिकुड़ जाते हैं लेकिन मिट्टी से जुड़े रहते हैं। यह रोगकारक मिट्टी में लंबे समय तक जीवित रह सकता है और युवा पौधों को अधिक आसानी से संक्रमित करता है। गर्म और आर्द्र मौसम इस रोग के फैलाव को बढ़ावा देता है, खासकर जब मिट्टी में अधिक नमी हो। यह रोग फसल के निचले हिस्से से शुरू होता है और धीरे-धीरे पूरे खेत में फैल जाता है, जिससे फसल को भारी नुकसान होता है।
सरसों की फसल में कब–कब की जाती है सिंचाई
सरसों की फसल को उचित विकास के लिए समय-समय पर सिंचाई की आवश्यकता होती है। सामान्यतः सरसों की फसल में पहली सिंचाई फूल आने से पहले 28 से 35 दिनों के बाद की जाती है। दूसरी सिंचाई फलियां बनने के समय यानी 70 से 80 दिनों के बाद की जाती है। हालांकि, यदि सर्दियों के मौसम में बारिश हो जाए तो दूसरी सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि बारिश का पानी ही फसल के लिए पर्याप्त होता है। ऐसे में भी किसान अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। यदि खेत में पानी की कमी हो या पानी खारा हो तो कम से कम एक बार सिंचाई ज़रूर करनी चाहिए। यदि सिंचाई का पानी क्षारीय है तो किसानों को पानी की जांच करवानी चाहिए और उचित मात्रा में जिप्सम और गोबर की खाद का इस्तेमाल करना चाहिए। इससे मिट्टी की क्षारीयता कम होगी और फसल को पोषक तत्व मिलेंगे।
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मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।