गेहूं की फसल में 25 दिन पर करें इन तीन उर्वरकों और स्प्रे का उपयोग
किसान साथियो, जब आपने अपनी गेहूं की बुआई सफलतापूर्वक कर दी है और आपकी फसल लगभग 25 दिन की अवस्था में पहुँच चुकी है, तो अब यह समय है जब आपको अपनी फसल को अतिरिक्त पोषण देने की आवश्यकता है। गेहूं की फसल के लिए यह समय बहुत अहम है, क्योंकि इसी दौरान गेहूं के पौधों में कल्ले (tillers) बनने की प्रक्रिया शुरू होती है और फसल की ग्रोथ का प्रारंभिक स्तर तय होता है। अगर इस समय पर सही उर्वरकों का प्रयोग किया जाए तो आपकी गेहूं की फसल अधिक हरी-भरी और स्वस्थ रहेगी और आपको बेहतर उपज प्राप्त होगी। साथ ही आपको यह भी ध्यान रखना चाहिए कि इस समय की उर्वरक खपत न केवल पौधों की बढ़त को प्रभावित करती है, बल्कि यह भविष्य में होने वाली पैदावार पर भी सीधा असर डालती है। इसलिए यह समय बहुत ही महत्वपूर्ण है और यदि इसे सही तरीके से निपटाया जाए तो फसल की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है। इस रिपोर्ट में हम तीन खास उर्वरकों के बारे में बात करेंगे, जिनका प्रयोग 25 दिन की अवस्था में करने से आपके गेहूं के पौधों की वृद्धि और कल्ले की संख्या में काफी वृद्धि हो सकती है। तो चलिए उन तीनों वर्गों के बारे में विस्तार से जानने के लिए पढ़ते हैं यह रिपोर्ट।
पहली सिंचाई का महत्व
किसान भाईयों, अगर आपने अपनी गेहूं की बुआई सही समय पर की है और अब आपके पौधों की उम्र 25 दिन के आसपास हो गई है, तो यह समय पहली सिंचाई करने का है। यह सिंचाई गेहूं की फसल के लिए बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पौधों की जड़ें मजबूत होती हैं और उनका सही ढंग से विकास होता है। इसके लिए पहली सिंचाई का समय भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। आपको फसल में सिंचाई दिन के समय करनी चाहिए, जब धूप कम होती है, ताकि मिट्टी में नमी बनी रहे और जड़ें बेहतर तरीके से विकसित हो सकें। ध्यान रखें कि पहली सिंचाई में पानी की अधिकता से बचें, क्योंकि अत्यधिक पानी से पौधों की जड़ें सड़ सकती हैं और इससे फसल को नुकसान भी हो सकता है। इसके बाद, 2 से 3 दिन के भीतर उर्वरकों का प्रयोग शुरू कर देना चाहिए, ताकि पौधों की पोषण की आवश्यकता पूरी हो सके। इससे फसल की वृद्धि तेज होगी और कल्ले (tillers) अच्छे से विकसित होंगे। ध्यान रखें उर्वरकों का उपयोग सिंचाई के एक-दो दिन के अंदर ही कर दें, अधिक देरी करने पर मिट्टी में नमी की मात्रा कम हो जाएगी और डाली गई उर्वरकों का पूरा फायदा पौधों को नहीं मिल पाएगा।
यूरिया का उपयोग
किसान भाइयों, गेहूं की फसल में पहली सिंचाई के साथ डाले जाने वाले उर्वरकों की बात करें तो सबसे पहले जो नाम आता है, वह है यूरिया। यूरिया एक प्रमुख नाइट्रोजन आधारित उर्वरक है, जो गेहूं की फसल की शुरुआती अवस्था में पौधों की हरियाली और ग्रोथ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जैसे-जैसे पौधों की उम्र बढ़ती है, वे अधिक नाइट्रोजन की मांग करते हैं, ताकि उनका विकास सही तरीके से हो सके और कल्ले अच्छी संख्या में उभर सकें। इसके लिए यूरिया की सही मात्रा का उपयोग बहुत ही आवश्यक है। क्योंकि अगर इसकी मात्रा आवश्यकता से कम होगी तो हमारे पौधों की ग्रोथ और विकास सही प्रकार से नहीं हो पाएगा और यदि इसकी अधिक मात्रा का उपयोग किया जाए तो यह फसल को हानि पहुंचा सकती है। यदि हम फसल में यूरिया के सही समय और सही मात्रा की बात करें तो बुवाई से 25 दिन के बाद प्रति एकड़ 40 से 45 किलो यूरिया का प्रयोग करना उचित रहता है। यूरिया का सही मात्रा में उपयोग करने से आपके पौधों की वृद्धि अच्छी रहेगी और गेहूं के पौधे हरे-भरे रहेंगे। यूरिया का प्रयोग मुख्य रूप से पौधों की जड़ें, पत्तियां और तने की वृद्धि को प्रोत्साहित करता है। लेकिन, मैं आपको बता दूं कि सिर्फ यूरिया डालने से ही गेहूं की फसल का सम्पूर्ण विकास नहीं हो सकता। यूरिया के साथ कुछ अन्य उर्वरकों का प्रयोग करना भी आवश्यक होता है।
जिंक का उपयोग
किसान भाईयों, जिंक एक महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्व है जो गेहूं की फसल की वृद्धि और कल्ले की संख्या बढ़ाने में अहम भूमिका निभाता है। यदि आपने बुआई के समय जिंक का उपयोग नहीं किया है, तो 25 दिन की अवस्था पर 33 प्रतिशत मोनो जिंक का उपयोग आपको यूरिया के साथ करना चाहिए। इस उर्वरक की 6 से 7 किलो प्रति एकड़ मात्रा का उपयोग गेहूं की फसल के लिए काफी फायदेमंद होता है। जिंक की उपस्थिति से गेहूं की फसल में हरियाली बढ़ती है, और यह जड़ों के विकास को भी उत्तेजित करता है। जिंक पौधों को बेहतर तरीके से पोषक तत्वों को अवशोषित करने में सक्षम बनाता है, जिससे पौधों में मजबूती और बेहतर ग्रोथ आती है। इसके अतिरिक्त, जिंक प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) की प्रक्रिया को भी बढ़ावा देता है, जिससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार होता है।
सल्फर का उपयोग
किसान भाईयों, जिस प्रकार अन्य उर्वरक गेहूं की फसल के लिए आवश्यक हैं, उसी प्रकार सल्फर भी गेहूं की फसल के लिए एक अहम उर्वरक है, खासकर यदि आपने बुआई के समय इसे नहीं डाला है। सल्फर का प्रयोग बुवाई के लगभग 25 दिन के बाद करने से फसल को कई फायदे मिलते हैं। सल्फर न केवल फंगीसाइड (fungicide) का काम करता है, बल्कि यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है, जिससे फसल में होने वाली बीमारियाँ कम होती हैं। सल्फर के कारण फसल की गुणवत्ता पर भी असर पड़ता है। गेहूं की फसल में सल्फर की सही मात्रा 5 किलो प्रति एकड़ है। गेहूं की फसल में सिंचाई के समय आप इसे यूरिया और जिंक के साथ मिलाकर भी उपयोग कर सकते हैं। सल्फर के प्रयोग से गेहूं के पौधों में हरियाली बनी रहती है और जड़ों का विकास भी बेहतर तरीके से होता है। सल्फर का प्रभाव पौधों में रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है, जिससे फसल को सुरक्षा मिलती है।
खरपतवार नियंत्रण
किसान भाईयों, गेहूं की फसल का यह समय खरपतवार के नियंत्रण के लिहाज से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस समय फसल में कई प्रकार की खरपतवार उत्पन्न हो जाती हैं, जो मिट्टी में मौजूद सभी आवश्यक तत्वों को अपनी तरफ खींच लेती हैं, जिसके कारण पौधों को आवश्यकताओं की प्राप्ति नहीं होती और उनकी वृद्धि रुक जाती है। यह आगे चलकर फसल के उत्पादन और गुणवत्ता में कमी का कारण बनता है। खरपतवार नियंत्रण के लिए आप यदि पर्याप्त श्रमिक उपलब्ध हों तो एक निराई-गुडाई फसल उगने के एक महीने बाद करने से खरपतवारों के नियंत्रण के साथ-साथ बारानी खेती में नमी संरक्षण में सहायक सिद्ध होती है। या फिर आप गेहूं में घास जैसे खरपतवारों के नियंत्रण के लिए आईसोप्रोटूरान (1250 ग्रा./है.) का प्रयोग कर सकते हैं। आईसोप्रोटूरान विभिन्न व्यापारिक नामों से उपलब्ध है। इसे रसायनों तथा दी गई मात्रा के अनुसार प्रयोग करना चाहिए, जैसे आप एरीलॉन / मासलान / हिम एग्रीलान (75%) -1700 ग्रा. प्रति हैक्टेयर का उपयोग कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, क्लोडीनाफाम-प्रोपार्जिल 15 डब्ल्यू. पी. 60 ग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के लिए प्रयोग किया जा सकता है। खरपतवारों के उगने के बाद रसायनों को उस समय प्रयोग करें जब उन पर 2-3 पत्तियां हों, तो खरपतवारों की अच्छी रोकथाम हो जाती है। निचले पर्वतीय क्षेत्रों में यह अवस्था 30-35 दिनों के बाद और मध्यवर्ती क्षेत्रों में 40-45 दिनों के बाद समय पर की गई बिजाई वाली फसल में आती है। हल्की भूमि में उपरोक्त खरपतवारनाशियों की मात्रा 20% कम कर दें। जहां जंगली जई की समस्या हो, तो इस रसायन का बिजाई के 20 दिन बाद छिड़काव करें। उब्बन घास के नियंत्रण के लिए आइसोप्रोटूरान रसायन की मात्रा 20% कम करके और 5% सेल्बट / टीपोल / सेन्डोविट स्टिकर मिला कर छिड़काव करें। यदि किसान खरपतवारनाशी के साथ स्टिकर का प्रयोग न कर रहे हों, तो रसायन की पूरी मात्रा डालनी होगी। यदि घास और चौड़ी पत्तियों वाले दोनों खरपतवारों की समस्या हो, तो क्लोडीनाफाम 60 ग्रा. / मेट सल्फयूरान मिथाइल 4 ग्रा. को फसल में 30-35 दिनों में डालें। गेहूं की बिजाई 15 सें.मी. दूरी की पंक्तियों या 22 सें.मी. पर एक से दूसरी दिशा में बिजाई की हो और आधा-आधा बीज और उर्वरक दोनों दिशाओं में डाला हो, तो गुल्ली डंडा और जंगली जई खरपतवारों की संख्या कम होती है। ऐसी स्थिति में आइसोप्रोटूरान की आधी मात्रा के प्रयोग से उपर्युक्त खरपतवारों की रोकथाम की जा सकती है, परंतु इन्हें बिजाई के 15 दिनों के बाद प्रयोग करना चाहिए। जिन खेतों में उब्बण खरपतवार की समस्या हो, वहां पर खरपतवारनाशी की पूरी मात्रा ही प्रयोग करें। लेकिन ध्यान रखें कि खरपतवारनाशकों का प्रयोग गेहूं में उस समय न करें जब कोई चौड़े पत्ते वाली फसल की बिजाई साथ में की हो। छिड़काव करते समय चौड़े फव्वारे वाली नॉजल का प्रयोग करें।
नोट: रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर मौजूद सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। संबंधित किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें
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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।