गेहूं की ये वैरायटीयां भरती हैं 40 क्विंटल तक पैदावार दम | जाइये 2025 में कौन सी किस्म रहेगी बेस्ट
किसान साथियों धान और कपास की फसल के बाद किसान अब गेहूं की बुवाई के लिए तैयारियां करने लगते हैं। बाजार में गेहूं की अनेक किस्में उपलब्ध होने के कारण किसानों को यह चुनने में अक्सर मुश्किल होती है कि कौन सी किस्म उनके खेत के लिए सबसे उपयुक्त है। अक्सर जल्दबाजी में की गई गलत पसंद किसानों को नुकसान पहुंचा सकती है। इसलिए किसान भाइयों के लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि वे ऐसी किस्में चुनें जो कम लागत में अधिक उत्पादन दें। आज हम कुछ ऐसी ही उन्नत गेहूं की किस्मों के बारे में चर्चा करेंगे जो किसानों के लिए लाभदायक साबित हो सकती हैं। इन किस्मों का चयन करते समय किसानों को अपनी मिट्टी और जलवायु की स्थिति को ध्यान में रखना चाहिए ताकि उन्हें अधिकतम उत्पादन प्राप्त हो सके। चावल के लाइव भाव देखने के लिए लिंक पर क्लिक करे
भारतीय किसानों के लिए गेहूं एक महत्वपूर्ण फसल है। हालांकि, देश में गेहूं का औसत उत्पादन प्रति एकड़ 20 क्विंटल के आसपास ही है। लेकिन, कृषि वैज्ञानिकों ने अब ऐसी उन्नत किस्में विकसित की हैं जो किसानों को 30 से 35 क्विंटल प्रति एकड़ तक उत्पादन देने में सक्षम हैं। ये किस्में विभिन्न जलवायु, मिट्टी और सिंचाई की स्थितियों के लिए अनुकूलित हैं। भारत में ज्यादातर किसान रबी के मौसम में गेहूं की खेती करते हैं। अच्छी और बेहतर उपज पाने के लिए समय पर खेती करना बहुत जरूरी है। उन्नत बीजों का उपयोग करके किसान न केवल अपनी फसल की गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं, बल्कि उत्पादन में भी वृद्धि कर सकते हैं। हमारी आज की रिपोर्ट में हम कुछ ऐसी ही उन्नत गेहूं की किस्मों के बारे में चर्चा करेंगे जो किसानों को उनके क्षेत्र के अनुकूल अधिक से अधिक उत्पादन देने में मदद कर सकती हैं। इन किस्मों को चुनते समय किसानों को अपनी मिट्टी, जलवायु और सिंचाई की सुविधाओं को ध्यान में रखना चाहिए।
किसान अपनी फसलों की उपज बढ़ाने के लिए खेतों की तैयारी पर विशेष ध्यान देते हैं। वे खेतों को जोतते हैं, खाद डालते हैं और सिंचाई करते हैं। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि सिर्फ खेत की तैयारी ही पर्याप्त नहीं है? उन्नत बीजों का चुनाव भी फसल की पैदावार और गुणवत्ता को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। गेहूं की खेती करने वाले किसानों के लिए तो यह बात और भी ज्यादा प्रासंगिक है। आजकल वैज्ञानिकों ने गेहूं की ऐसी कई उन्नत किस्में विकसित कर ली हैं जो प्रति हेक्टेयर 35 से 40 क्विंटल तक उत्पादन देने में सक्षम हैं। आइए जानते हैं कि इन किस्मों के बारे में और इनकी खेती कैसे की जाती है।
1.करण वंदना
किसान साथियो आज हम बात करेंगे गेहूं की एक ऐसी किस्म के बारे में जो न केवल उत्पादन में अधिक है बल्कि बीमारियों के प्रति भी प्रतिरोधी है। इस किस्म का नाम है 'करण वंदना' जिसे DBW 187 के नाम से भी जाना जाता है। इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के तहत आने वाले भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल ने विकसित किया है। करण वंदना किस्म की सबसे बड़ी खासियत इसकी उच्च उत्पादन क्षमता है। इस किस्म से एक हेक्टेयर में लगभग 95 क्विंटल तक गेहूं का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इसके अलावा, यह किस्म पीले रतुआ और ब्लास्ट जैसी बीमारियों के प्रति काफी प्रतिरोधी है, जिससे किसानों को फसल नुकसान से बचाने में मदद मिलती है। यह किस्म पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली और जम्मू जैसे राज्यों के लिए बेहद उपयुक्त है। इस किस्म की फसल लगभग 148 दिनों में तैयार हो जाती है। इसके अलावा, इस किस्म से तैयार ब्रेड की गुणवत्ता भी काफी अच्छी होती है। चावल के लाइव भाव देखने के लिए लिंक पर क्लिक करे
2.करण श्रिया
करण श्रिया गेहूं की एक नई और बेहतर किस्म है, जिसे डीबीडब्ल्यू 252 के नाम से भी जाना जाता है। इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के तहत आने वाले भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल द्वारा विकसित किया गया था और जून 2021 में किसानों के लिए लॉन्च किया गया था। यह किस्म कम समय में तैयार होने वाली किस्मों में से एक है और मात्र 127 दिनों में तैयार हो जाती है। करण श्रिया को सिर्फ एक बार सिंचाई की आवश्यकता होती है और यह सूखे के प्रति सहनशील है। इस किस्म की सबसे बड़ी खासियत इसकी उच्च उत्पादकता है। एक हेक्टेयर में इस किस्म से लगभग 55 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। करण श्रिया किस्म की बुवाई दिसंबर के अंत तक की जा सकती है और यह पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और उत्तर-पूर्व के तराई क्षेत्रों के किसानों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है। यह किस्म इन क्षेत्रों की जलवायु और मिट्टी के लिए उपयुक्त है और किसानों को अधिक उत्पादन और बेहतर आय देने में सक्षम है।
3 करण नरेन्द्र
गेहूं की उन्नत किस्मों में करण नरेंद्र (DBW-222) एक प्रमुख नाम है। इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के तहत आने वाले भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल द्वारा विकसित किया गया है। यह किस्म अपनी उच्च उत्पादन क्षमता के लिए जानी जाती है और एक हेक्टेयर में औसतन 82.1 क्विंटल तक उत्पादन दे सकती है। करण नरेंद्र गेहूं की गुणवत्ता भी काफी अच्छी होती है और इसे रोटी, ब्रेड और बिस्किट बनाने के लिए आदर्श माना जाता है। इस किस्म की बुवाई अगेती की जा सकती है, हालांकि फसल तैयार होने में थोड़ा अधिक समय लेती है, जो लगभग 140-145 दिनों का होता है। यह किस्म उत्तर भारत के कई राज्यों जैसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली और जम्मू के लिए उपयुक्त मानी जाती है। किसानों के बीच इसकी लोकप्रियता का प्रमुख कारण इसकी उच्च उपज और अच्छी गुणवत्ता है।
4.श्रीराम सुपर 272
कृषक भाइयों, आज हम आपसे एक ऐसी गेहूं की किस्म के बारे में बात करने जा रहे हैं जो अगाती और पछेती दोनों ही बुवाई के लिए उपयुक्त है। इस किस्म की खास बात यह है कि यह दोनों ही स्थितियों में अच्छी पैदावार देती है। आप इस किस्म को दिसंबर महीने तक भी बो सकते हैं। इस किस्म का पौधा लगभग 100 सेंटीमीटर तक लंबा होता है और यह लगभग 140 से 150 दिन में पककर तैयार हो जाता है। अगर आप इस किस्म को अगाती बोते हैं तो आपको प्रति एकड़ 40 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होगी और यदि आप इसे पछेती बोते हैं तो आपको 50 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होगी। यह किस्म हल्की, भारी या मध्यम, किसी भी प्रकार की मिट्टी में अच्छी तरह से उग सकती है। इस किस्म में रोगों का खतरा बहुत कम होता है और यह 28 से 30 क्विंटल प्रति एकड़ तक की पैदावार दे सकती है। चावल के लाइव भाव देखने के लिए लिंक पर क्लिक करे
5.श्रीराम सुपर 303
श्रीराम सुपर 303 गेहूं की एक बेहद लोकप्रिय और उच्च उत्पादक किस्म है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे आप चाहे जल्दी बोएं या देरी से, दोनों ही स्थितियों में यह अच्छी पैदावार देती है। अगर आप जल्दी बोते हैं तो प्रति एकड़ 40 किलो और देरी से बोते हैं तो 50 किलो बीज की आवश्यकता होती है। इस किस्म के पौधे मजबूत और लगभग 90 सेंटीमीटर ऊंचे होते हैं। मजबूत तने के कारण तेज हवा और बारिश में भी पौधे नहीं गिरते, जिससे उत्पादन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। यह किस्म मात्र 130-135 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। श्रीराम सुपर 303 में रोगों का प्रकोप बहुत कम होता है। शुरुआत में एक बार दवा का छिड़काव करने से रोगों से बचा जा सकता है। इस किस्म की बालियां लंबी होती हैं और दाने मोटे और भारी होते हैं, जिससे उत्पादन बढ़ता है। यह किस्म प्रति एकड़ 27 से 30 क्विंटल तक उत्पादन देने की क्षमता रखती है। कुल मिलाकर, श्रीराम सुपर 303 गेहूं की एक ऐसी किस्म है जो किसानों के लिए कई फायदे लेकर आती है। इसकी उच्च उपज, रोग प्रतिरोधक क्षमता और अनुकूलनशीलता इसे किसानों के बीच एक पसंदीदा विकल्प बनाती है।
6.W 187
W187 धान की किस्म किसानों के लिए एक बेहतरीन विकल्प साबित हो सकती है। इस किस्म की सबसे बड़ी खासियत इसकी उच्च पैदावार और मजबूत पौधा है। यह किस्म 102 से 103 सेंटीमीटर तक ऊंची होती है, जिससे यह पशुओं के चारे के लिए भी उपयुक्त हो जाती है। यदि आप इसकी बुवाई जल्दी करते हैं तो पैदावार और भी अधिक मिल सकती है। यह किस्म परिपक्व होने में लगभग 140 से 150 दिन लेती है और इसे 4-5 सिंचाई की आवश्यकता होती है। इस किस्म के लिए 40-45 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है। W187 किस्म रोग प्रतिरोधी है, जिससे किसानों को फसल को लेकर कम चिंता करनी पड़ती है। इस किस्म की बालियां बड़ी और दाने मोटे होते हैं। इसका दाना भारी होता है और तना मजबूत होने के कारण तेज हवा या बारिश में भी यह नहीं गिरता। इस किस्म से तैयार चावल का स्वाद भी बेहद लाजवाब होता है। अनुकूल परिस्थितियों में यह किस्म 30 से 35 क्विंटल प्रति एकड़ तक पैदावार दे सकती है।
7.WH 1402
किसान साथियों, हम सभी जानते हैं कि हमारे खेतों में कई ऐसे हिस्से होते हैं जहां मिट्टी रेतीली होती है और पानी की कमी भी रहती है। ऐसी परिस्थितियों में फसल उगाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य हो सकता है। लेकिन अब चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (हिसार) ने इस समस्या का समाधान निकाल लिया है। विश्वविद्यालय ने गेहूं की एक नई किस्म विकसित की है जिसका नाम डब्ल्यूएच 1402 है। इस किस्म की सबसे खास बात यह है कि इसे रेतीली मिट्टी में भी आसानी से उगाया जा सकता है और इसे पकने के लिए सिर्फ दो बार पानी देने की ही जरूरत होती है। पहली सिंचाई आपको बीज बोने के 20 से 25 दिन बाद करनी है और दूसरी सिंचाई 80 से 85 दिनों के बीच में। इस किस्म की बुवाई अक्टूबर के आखिरी सप्ताह से नवंबर के पहले सप्ताह तक की जा सकती है। बीज की मात्रा प्रति एकड़ 40 किलोग्राम लेनी चाहिए। खाद के लिए, आपको बीज बोते समय एक बैग डीएपी और 10 किलो जिंक सल्फेट डालना है। पहली सिंचाई के समय एक बैग यूरिया डालें। ध्यान रहे, इस किस्म को ज्यादा यूरिया की जरूरत नहीं होती क्योंकि इसे कम पानी की आवश्यकता होती है। डब्ल्यूएच 1402 की पैदावार 50 से 70 मन प्रति एकड़ तक हो सकती है। यह एक लाल बालियों वाली किस्म है और इसकी बोलियां मध्यम लाल रंग की होती हैं। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के डॉक्टर ओमप्रकाश बिश्नोई के अनुसार, इस किस्म से बनी रोटियों में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है और यह रोगों के प्रति भी प्रतिरोधी है। इसलिए, जिन किसानों के खेतों में रेतीली मिट्टी है और पानी की कमी है, उनके लिए डब्ल्यूएच 1402 एक बहुत ही उपयोगी किस्म साबित हो सकती है। इस किस्म को अपनाकर किसान कम पानी में भी अच्छी पैदावार ले सकते हैं। चावल के लाइव भाव देखने के लिए लिंक पर क्लिक करे
Note:- रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी सार्वजनिक स्रोतों और इंटरनेट के माध्यम से इकट्ठा की गई है कृषि संबंधित किसी भी जानकारी के लिए कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।
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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।