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गेहूं में टॉप उत्पादन लेने का फार्मूला मिल गया है | जाने गेहूं में कब, कैसे और क्या डालें

गेहूं में टॉप उत्पादन लेने का फार्मूला मिल गया है | जाने गेहूं में कब, कैसे और क्या डालें
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किसान साथियो रबी के मौसम में गेहूं की खेती किसानों की प्रमुख आय का स्रोत होती है। अच्छे भाव मिलने की उम्मीद में किसान बड़े पैमाने पर गेहूं की खेती करते हैं। हालांकि, कई किसानों को गेहूं की फसल में कल्ले न लगने और फूटाव न होने की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। खाद और सिंचाई समय पर देने के बावजूद भी यह समस्या देखी जा रही है। किसानों का मानना है कि खेत में सब कुछ डालने के बाद भी कल्ले नहीं बन रहे हैं। यह समस्या गेहूं की पैदावार को प्रभावित कर सकती है। आइए, कृषि विशेषज्ञों से इस समस्या का समाधान जानते हैं और समझते हैं कि आखिर क्यों गेहूं की फसल में कल्ले नहीं लग रहे हैं। चावल के लाइव भाव देखने के लिए लिंक पर क्लिक करे
 
गेहूं की फसल के लिए क्या जरूरी
गेहूं की अच्छी पैदावार के लिए उर्वरक, न्यूट्रिशन और समय पर सिंचाई बहुत महत्वपूर्ण है। ये सभी कारक मिलकर फसल में कल्लों के फुटाव को बढ़ाते हैं। हालांकि, कई बार इन सब उपायों के बावजूद भी कल्लों का फुटाव कम हो सकता है। ऐसी स्थिति में कुछ अतिरिक्त उपाय किए जा सकते हैं। सबसे पहले तो यह सुनिश्चित करना चाहिए कि खादों और न्यूट्रिशन को सही मात्रा में और सही समय पर दिया जा रहा हो। इनका अनुचित उपयोग फसल को नुकसान पहुंचा सकता है। इसके अलावा, खेत की मिट्टी की जांच करवाकर यह पता लगाया जा सकता है कि मिट्टी में किन पोषक तत्वों की कमी है। इस जानकारी के आधार पर खादों का चुनाव किया जाना चाहिए। यदि फिर भी कल्लों का फुटाव कम हो रहा है, तो कुछ जैविक खादों का उपयोग किया जा सकता है। जैसे कि वर्मीकम्पोस्ट, गोबर की खाद आदि। ये खादें मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में मदद करती हैं और फसल की ग्रोथ को बढ़ावा देती हैं। इसके अलावा, कुछ खास तरह के सूक्ष्म जीवों का उपयोग भी किया जा सकता है जो पौधों की जड़ों को मजबूत बनाते हैं और पोषक तत्वों को अवशोषित करने में मदद करते हैं।

आप की फसल में क्यों ज्यादा फुटाव नहीं होता
किसान भाईयों, क्या आपने कभी सोचा है कि आपकी खेत में खाद और उर्वरक डालने के बाद भी फसल उतनी अच्छी क्यों नहीं हो पाती जितनी आप चाहते हैं? इसका एक प्रमुख कारण यह हो सकता है कि आपकी मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की कमी हो। ऑर्गेनिक कार्बन मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों को पौधों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब हम अपनी फसलों में जिंक, सल्फर, मैग्नीशियम या अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व डालते हैं, तो भी अगर मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की कमी है तो ये पोषक तत्व पौधों तक पूरी तरह से नहीं पहुंच पाते। चावल के लाइव भाव देखने के लिए लिंक पर क्लिक करे

गेहूं की फसल में कल्ले न लगने की समस्या का क्या है समाधान
गेहूं की फसल में यदि कल्ले नहीं लग रहे हैं तो किसान चिंतित हो जाते हैं। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, कैल्शियम की कमी के कारण पौधे जमीन से पोषक तत्वों को ठीक से ग्रहण नहीं कर पाते जिससे कल्लों का विकास प्रभावित होता है। इस समस्या के समाधान के लिए आप 10 किलोग्राम कैल्शियम नाइट्रेट प्रति एकड़ का प्रयोग कर सकते हैं। साथ ही, खेत में नियमित रूप से गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट का प्रयोग करने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और पौधों को पोषक तत्व आसानी से मिल पाते हैं। गेहूं की फसल में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा बढ़ाने के लिए वर्मी कंपोस्ट, ह्यूमिक एसिड या सीवीड (जो सागरिका के नाम से बाजार में उपलब्ध है) का उपयोग किया जा सकता है। ये उत्पाद मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा बढ़ाते हैं और पौधों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करते हैं। कल्लों के विकास को बढ़ावा देने के लिए आप गेहूं की फसल में माइक्रो न्यूट्रिएंट्स का छिड़काव भी कर सकते हैं। इसके लिए चेल्टेड जिंक 100 ग्राम, मैग्नीशियम सल्फेट 1 किलोग्राम, मैंगनीज सल्फेट 500 ग्राम, यूरिया 1 किलोग्राम और बोरोन 100 ग्राम को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।

फसल में जिंक एवं सल्फर का प्रयोग
फसलों के स्वस्थ विकास के लिए जिंक और सल्फर दोनों ही पोषक तत्वों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। ये दोनों पोषक तत्व एक-दूसरे के पूरक होते हैं और मिलकर पौधों को कई फायदे पहुंचाते हैं। जिंक और सल्फर का आपस में गहरा संबंध होता है। यदि आप अपनी फसलों में जिंक का इस्तेमाल कर रहे हैं तो सल्फर का प्रयोग करना भी उतना ही जरूरी है। अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो जिंक पौधों द्वारा ठीक से अवशोषित नहीं हो पाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि उच्च पीएच वाली मिट्टी में जिंक अघुलनशील हो जाता है और पौधे इसे आसानी से नहीं ले पाते हैं। जब मिट्टी का पीएच 8 से अधिक होता है तो जिंक की उपलब्धता मात्र 15 से 20% तक ही रह जाती है। इसके विपरीत, यदि मिट्टी का पीएच 5 से 7.5 के बीच है तो जिंक की उपलब्धता बढ़कर 60 से 70% तक हो जाती है। इसलिए, जिंक का प्रयोग करते समय मिट्टी के पीएच स्तर को ध्यान में रखना बहुत जरूरी है। जिंक और सल्फर मिलकर पौधों में कई महत्वपूर्ण जैव रासायनिक प्रक्रियाओं को संचालित करते हैं। ये पोषक तत्व पौधों की वृद्धि, विकास, बीज उत्पादन और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करते हैं।

गेहूं की फसल के लिए मैग्नीशियम क्यों जरूरी है?
कई किसान गेहूं की फसल में मैग्नीशियम के उपयोग को लेकर असमंजस में रहते हैं। वे अक्सर जिंक और सल्फर जैसे अन्य पोषक तत्वों पर अधिक ध्यान देते हैं। लेकिन यह जानना जरूरी है कि मैग्नीशियम भी गेहूं की फसल के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितने कि अन्य पोषक तत्व। मैग्नीशियम एक द्वितीयक पोषक तत्व है और पौधे को कम मात्रा में इसकी आवश्यकता होती है। हालांकि, यह पौधे के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मैग्नीशियम क्लोरोफिल का एक प्रमुख घटक है, जो पौधों को हरा रंग देता है और प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में मदद करता है। इसके अलावा, मैग्नीशियम पौधे में ऊर्जा उत्पादन और पोषक तत्वों के परिवहन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। चावल के लाइव भाव देखने के लिए लिंक पर क्लिक करे

क्यों डालते है गेहूं की फसल मैग्नीशियम
मैग्नीशियम फसलों के विकास के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण पोषक तत्व है। यह कल्लों के फूटने से लेकर पौधे के हरेपन को बनाए रखने तक कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाता है। मैग्नीशियम को आमतौर पर मैग्नीशियम सल्फेट के रूप में बाजार में उपलब्ध किया जाता है। इस खाद में 9.5% मैग्नीशियम और 12% सल्फर होता है। मैग्नीशियम की कमी से पौधे के निचले पत्ते पीले पड़ जाते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मैग्नीशियम पौधे में नीचे से ऊपर की ओर जाता है और ऊपरी पत्ते निचले पत्तों से मैग्नीशियम को खींच लेते हैं। इस लेख में हम मैग्नीशियम की कमी के लक्षणों और इसे कब और कितनी मात्रा में प्रयोग करना चाहिए, इस बारे में विस्तार से जानेंगे।

गेहूं की फसल को बेहतर बनाता है मैग्नीशियम
फसलों की वृद्धि और विकास में मैग्नीशियम एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व है। यह कल्लों के फूटने से लेकर पौधे के हरे-भरे रहने तक कई महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मैग्नीशियम मुख्य रूप से मैग्नीशियम सल्फेट के रूप में उपलब्ध होता है, जिसमें मैग्नीशियम और सल्फर दोनों मौजूद होते हैं। इस खाद में मैग्नीशियम की मात्रा लगभग 9.5% और सल्फर की मात्रा 12% होती है। मैग्नीशियम की कमी से पौधे के निचले पत्ते पीले पड़ने लगते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मैग्नीशियम पौधे में ऊपर से नीचे की ओर गति करता है। जब पौधे में मैग्नीशियम की कमी होती है, तो ऊपरी पत्ते निचले पत्तों से मैग्नीशियम खींच लेते हैं जिससे निचले पत्ते पीले पड़ जाते हैं।

गेहूं में क्या काम करता है मैग्नीशियम
मैग्नीशियम पौधों के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण पोषक तत्व है। यह प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसके परिणामस्वरूप पौधों में हरापन बढ़ता है। इसके अलावा, मैग्नीशियम फास्फोरस को सक्रिय करने में भी मदद करता है। फास्फोरस पौधे के विभिन्न भागों में पोषक तत्वों के परिवहन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मैग्नीशियम कल्लों के फूटने में भी मदद करता है, क्योंकि यह मिट्टी में मौजूद अन्य पोषक तत्वों को पौधे तक पहुंचाने में सहायक होता है। दिलचस्प बात यह है कि मैग्नीशियम में सल्फर भी पाया जाता है, इसलिए इसका उपयोग करने से खेत में सल्फर की कमी को भी कुछ हद तक पूरा किया जा सकता है। कुल मिलाकर, मैग्नीशियम पौधों के स्वस्थ विकास के लिए एक आवश्यक पोषक तत्व है।

गेहूं में कितना डालना चाहिए मैग्नीशियम
मैग्नीशियम का प्रयोग खेतों में एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व के रूप में किया जाता है, लेकिन इसका उपयोग सोच-समझकर करना चाहिए। मिट्टी की जांच करवाना बेहद जरूरी है, क्योंकि मिट्टी की पीएच और अन्य गुणों के आधार पर मैग्नीशियम की आवश्यकता अलग-अलग होती है। आमतौर पर, 6 से कम पीएच वाली मिट्टी में मैग्नीशियम की कमी पाई जाती है। मैग्नीशियम को मिट्टी में सीधे डालने के साथ-साथ पौधों पर स्प्रे के रूप में भी छिड़का जा सकता है। अगर आप मिट्टी में मैग्नीशियम सल्फेट का उपयोग करना चाहते हैं, तो प्रति एकड़ 10 किलोग्राम की मात्रा पर्याप्त होती है। वहीं, अगर आप स्प्रे के माध्यम से मैग्नीशियम का उपयोग करना चाहते हैं, तो प्रति एकड़ 1 किलोग्राम की मात्रा पर्याप्त होगी। मैग्नीशियम को यूरिया और अन्य खादों के साथ मिलाकर भी उपयोग किया जा सकता है। इससे खादों की प्रभावशीलता बढ़ती है और पौधों को आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं। चावल के लाइव भाव देखने के लिए लिंक पर क्लिक करे

इस प्रकार डाले खेतों में मेग्नीशियम
खेतों में मैग्नीशियम का उपयोग दो मुख्य तरीकों से किया जा सकता है। पहला तरीका है मिट्टी में मैग्नीशियम सल्फेट का प्रयोग। इस विधि में, प्रति एकड़ भूमि पर लगभग 10 किलोग्राम मैग्नीशियम सल्फेट मिलाया जाता है। दूसरा तरीका है पौधों पर सीधे मैग्नीशियम का स्प्रे करना। इस विधि में, प्रति एकड़ भूमि पर लगभग 1 किलोग्राम मैग्नीशियम का प्रयोग किया जाता है। मैग्नीशियम को यूरिया और अन्य खादों के साथ मिलाकर भी इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे खादों की प्रभावशीलता बढ़ जाती है।

नोट:- ऊपर रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी सार्वजनिक स्रोतों और इंटरनेट के माध्यम से इकट्ठा की गई है, कृषि संबंधित है किसी भी जानकारी के लिए आप कृषि वैज्ञानिकों की सलाह अवश्य लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।