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धान के किसान अपनाएं यह नया तरीका | मिलेंगे आम के आम गुठलियों के दाम

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किसान साथियों धान की कटाई के बाद खेतों में बचे पुआल का उचित निपटान हमेशा से किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती रही है। अधिकतर किसान इसे जलाकर खेत को खाली कर देते हैं ताकि अगली फसल की बुवाई के लिए जगह तैयार हो सके। लेकिन यह तरीका मिट्टी की उर्वरता को भी गंभीर रूप से प्रभावित करता है। पुआल जलाने से वायु प्रदूषण में वृद्धि होती है, जिससे धुएं और कार्बन उत्सर्जन की समस्या पैदा होती है। इसके अलावा, मिट्टी की सतह पर मौजूद आवश्यक जैविक तत्व भी जलकर नष्ट हो जाते हैं, जिससे भूमि बंजर होने लगती है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, यह प्रक्रिया मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जीवों के लिए भी घातक साबित होती है, जिससे मिट्टी की जलधारण क्षमता और उर्वरता दोनों में गिरावट आती है।

इस समस्या के समाधान के लिए बिहार के रोहतास जिले में कृषि विज्ञान केंद्र, बिक्रमगंज के कृषि एवं मृदा वैज्ञानिक डॉ. रमाकांत सिंह और उनकी टीम ने एक अभिनव तरीका विकसित किया है। इस नए तरीके से पुआल को जलाने के बजाय उसे बायोचार में बदला जा सकता है, जिसे ‘काला सोना’ कहा जाता है। यह तकनीक किसानों के लिए एक बेहतरीन विकल्प साबित हो सकती है, जिससे वे अपनी मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के साथ-साथ पर्यावरण की रक्षा भी कर सकते हैं।

बायोचार क्या होता है

बायोचार एक प्राकृतिक उर्वरक है, जिसे पुआल को नियंत्रित ऑक्सीजन की उपस्थिति में जलाकर तैयार किया जाता है। यह चारकोल के समान होता है, लेकिन इसकी संरचना जैविक तत्वों से भरपूर होती है, जो मिट्टी की उर्वरता को लंबे समय तक बनाए रखते हैं। बायोचार उत्पादन की इस प्रक्रिया में केवल 2 से 3 दिन का समय लगता है, जिससे किसानों को जल्दी लाभ मिल सकता है। यह प्रक्रिया मिट्टी में ह्यूमस की मात्रा बढ़ाने के साथ-साथ जलधारण क्षमता को भी सुधारती है, जिससे फसल को अधिक समय तक नमी मिलती रहती है।

डॉ. सिंह और उनकी टीम द्वारा विकसित इस तकनीक में एक विशेष भट्ठी का उपयोग किया जाता है, जो पुआल को सीधे जलाने के बजाय उसे धीरे-धीरे कार्बोनेट में परिवर्तित करती है। इससे पुआल राख में नहीं बदलता, बल्कि उसकी उर्वरक गुणवत्ता बरकरार रहती है। इस प्रक्रिया से मिट्टी में पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है, जिससे फसल का उत्पादन अधिक होता है और किसानों को उर्वरकों पर कम खर्च करना पड़ता है।

बायोचार उत्पादन की प्रक्रिया

बायोचार उत्पादन के लिए पहले 12 फीट व्यास और 11 फीट ऊंचाई की एक विशेष भट्ठी तैयार की जाती है। इस भट्ठी में एक बीघा खेत के पुआल, यानी लगभग 10 क्विंटल तक का भंडारण किया जा सकता है। भट्ठी को इस प्रकार डिजाइन किया जाता है कि इसमें मझोले आकार के कई छेद होते हैं, जिन्हें शुरुआत में मिट्टी से बंद कर दिया जाता है। इसके बाद, ऊपर से आग लगाई जाती है और धीरे-धीरे सबसे ऊपर का छेद खोला जाता है, जिससे सीमित मात्रा में ऑक्सीजन (लगभग 8%) भीतर प्रवेश कर पाती है।

ऑक्सीजन की सीमित उपलब्धता के कारण आग नीचे की ओर धीरे-धीरे फैलती है और पुआल पूरी तरह जलने के बजाय चारकोल में बदलने लगता है। इस प्रक्रिया में उत्पन्न होने वाला धुआं नीले रंग का होता है, जो संकेत देता है कि पुआल जलने के बजाय कार्बन में परिवर्तित हो रहा है। इस दौरान, हर 3-4 घंटे में धीरे-धीरे अन्य छेद खोले जाते हैं, जिससे आग नियंत्रित तरीके से नीचे की ओर बढ़ती है और अंततः संपूर्ण पुआल बायोचार में तब्दील हो जाता है।

बायोचार के पोषक तत्व  

बायोचार का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह मिट्टी में आवश्यक पोषक तत्वों को बनाए रखने में मदद करता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, तैयार बायोचार में 0.46% नाइट्रोजन, 2.70% फॉस्फोरस और 3.80% पोटाश पाया जाता है, जो मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इसके अलावा, इसमें उच्च मात्रा में कार्बन भी मौजूद होता है, जो मिट्टी में मौजूद जैविक गतिविधियों को बढ़ावा देता है।

बायोचार का उपयोग मिट्टी की कैटायन एक्सचेंज कैपेसिटी (CEC) को सुधारने में सहायक होता है, जिससे पौधों को पोषक तत्व आसानी से उपलब्ध हो पाते हैं। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे एक बार खेत में डालने के बाद इसकी गुणवत्ता लंबे समय तक बनी रहती है, जिससे किसान हर वर्ष महंगे उर्वरकों की खरीद पर निर्भर नहीं रहते। यह प्राकृतिक उर्वरक किसानों को अधिक उत्पादन और कम लागत का लाभ देता है, जिससे उनकी आय में वृद्धि होती है।

बायोचार के लाभ

बायोचार तकनीक न केवल किसानों के लिए फायदेमंद है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी एक वरदान साबित हो सकती है। पुआल जलाने से होने वाले प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन में कमी आती है, जिससे वायु की गुणवत्ता बेहतर होती है। बिहार कृषि विश्वविद्यालय ने 2023 से इस तकनीक पर शोध करना शुरू किया था और अब तक इसके शानदार परिणाम सामने आए हैं। विभिन्न फसलों और मिट्टी की गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए आठ अलग-अलग प्रकार के परीक्षण किए गए हैं, जिनमें बायोचार के उपयोग से उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है।

सरकार और कृषि विभाग भी किसानों को इस तकनीक को अपनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। यदि अधिक किसान इस विधि को अपनाते हैं, तो इससे न केवल उनकी आमदनी में बढ़ोतरी होगी, बल्कि देश की खेती भी अधिक टिकाऊ और लाभकारी बन सकेगी। यह तकनीक आने वाले वर्षों में कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है और किसानों को रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम करने का एक स्थायी विकल्प प्रदान कर सकती है।

नोट: रिपोर्ट में दी गई जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध सार्वजनिक स्रोतों से एकत्रित की गई है। किसान भाई किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।