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इस समय अगर आपका गेहूं पीला हो रहा है तो ये रिपोर्ट जरूर देख लेना

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इस समय अगर आपका गेहूं पीला हो रहा है तो ये रिपोर्ट जरूर देख लेना

किसान भाइयों, गेहूं की फसल की पैदावार में मौसम का बहुत बड़ा हाथ होता है, जो कभी फायदेमंद साबित होता है तो कभी चुनौतीपूर्ण। इस समय गेहूं की फसल के लिए मौसम में आए बदलाव, जैसे कि ठंडी, कोहरा और धुंध, बहुत महत्वपूर्ण हो सकते हैं। साथ ही, यह मौसम गेहूं की फसल में पीली रोली रोग (Yellow Rust) जैसे खतरनाक रोगों का कारण बन सकता है। गेहूं की फसल के लिए यह समय बहुत ही महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इस समय फसल में बलिया के बनने का समय होता है और यदि इस समय पर गेहूं की फसल में कोई बीमारी लग जाती है या पोषक तत्वों की कमी आ जाती है तो उसका बहुत अधिक नकारात्मक प्रभाव फसल के उत्पादन पर पड़ सकता है। इसलिए बलिया निकालने की अवस्था में गेहूं की फसल की सही देखभाल बहुत ही आवश्यक हो जाती है, खासकर मौसम के प्रभाव से और फसल में पीली रोली जैसे रोगों से बचाव के लिए आपको सही उर्वरकों और दवाइयां का उपयोग करना बहुत ही आवश्यक हो जाता है। इस रिपोर्ट में हम जानेंगे कि इस मौसम में गेहूं की फसल को मौसम के प्रभाव और रोगों से कैसे बचाएं और इस पर होने वाले प्रमुख रोगों से निपटने के लिए क्या उपाय करें। तो चलिए इन सब बातों पर विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं इस रिपोर्ट के माध्यम से।

मौसम का असर गेहूं

किसान साथियों, जनवरी के महीने में जैसे-जैसे ठंड बढ़ रही है, गेहूं की फसल पर इसका मिश्रित असर देखने को मिल रहा है। यह मौसम गेहूं के लिए आंशिक रूप से फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि ठंड के कारण फसल में टिलरिंग (प्रत्येक पौधे में नई शाखाएं निकलना) बढ़ती है और पैदावार में वृद्धि हो सकती है। हालांकि, धुंध और कोहरे के कारण रोगों का प्रसार भी तेज़ी से होता है, जिससे फसल में बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। प्राप्त जानकारी के अनुसार मौसम विभाग के अनुसार, कुछ दिनों में तापमान में बढ़ोतरी हो सकती है, लेकिन उसके पहले ठंड और धुंध का असर लगातार देखने को मिल सकता है। इसलिए किसानों को विशेष ध्यान देना जरूरी है, ताकि फसल की सुरक्षा की जा सके और उत्पादन में कोई कमी न आए।

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पीली रोली रोग (Yellow Rust)

किसान साथियों, पीली रोली रोग गेहूं की फसल में होने वाला एक खतरनाक कवकजनित रोग है। इस रोग का प्रकोप खासकर ठंडे और आर्द्र वातावरण में होता है, जो इस मौसम में अधिक संभावना बनाता है। इस रोग की पहचान आसान है, क्योंकि इसमें पौधों की पत्तियों पर पीले धब्बे और नारंगी रंग की धारियां बन जाती हैं। जैसे-जैसे यह रोग बढ़ता है, ये धारियां और धब्बे पूरे पौधे में फैलने लगते हैं। इसके बाद, इन धारियों से कवक के बीजाणु हवा में फैलते हैं, जो अन्य पौधों तक पहुंचकर रोग को और बढ़ाते हैं। इस रोग के प्रकोप से गेहूं की फसल की गुणवत्ता और पैदावार दोनों प्रभावित हो सकते हैं। यह बीमारी खासकर गेहूं की राज-1482, सी-306, लोक-1, पीबीडब्ल्यू-343, और जौ किस्म RD-2035 में ज्यादा देखने को मिलती है। इसलिए इन किस्मों के किसानों को अधिक सतर्क रहने की जरूरत है। और इस रोग से गेहूं की फसल के बचाव के जरूरी उपाय करने की आवश्यकता है।

पीली रोली रोग से बचाव के उपाय

किसान भाइयों, गेहूं की फसल को पीली रोली रोग के प्रभाव से बचने के लिए कुछ सरल और प्रभावी उपाय हैं, जिन्हें किसानों को अपनाना चाहिए। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, इस रोग से बचाव के लिए टेबुकोनाजोल 25.90% ईसी या प्रोपीकोनाजोल 25% ईसी का उपयोग करना चाहिए। इन दवाओं को 1 एमएल प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। इस दवा का छिड़काव पखवाड़े के अंतराल पर कम से कम दो बार करना चाहिए। आपको जैसे ही पीली रोली रोग के लक्षण (पीले धब्बे और नारंगी धारियां) दिखाई दें, तुरंत दवा का छिड़काव शुरू कर दें। क्योंकि रोगों का समय पर उपचार फसल को नुकसान से बचाता है और बीमारी के प्रसार को रोकता है। जिससे आपकी फसल स्वस्थ रहती है और फसल के उत्पादन में बढ़ोतरी होती है।

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अन्य रोगों से बचाव

किसान भाइयों, इस समय गेहूं की फसल में पीली रोली रोग के अलावा दीमक (White Grub) और मोयला (Root Rot) जैसे अन्य रोग भी हो सकते हैं, जिनसे फसल की जड़ प्रणाली को नुकसान होता है। इनका प्रभाव मिट्टी में नमी बढ़ने और तापमान कम होने के कारण बढ़ सकता है। जिससे फसल की बढ़वार पर अत्यधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। गेहूं की फसल को दीमक और मोयला से बचने के लिए निम्नलिखित उपाय कर सकते हैं:

मोयला का नियंत्रण

साथियों, गेहूं की फसल को मोयला रोग से बचाने के लिए डाइमिथोएट 30 ईसी 1 एमएल प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। इस दवाई का छिड़काव फसल में कीटों को मारने में मदद करेगा और फसल को इस रोग से मुक्त करने में सहायता प्रदान करेगा।

दीमक नियंत्रण

दोस्तों, गेहूं की फसल में अगर दीमक लग जाए तो यह पूरी फसल को नष्ट कर सकता है, क्योंकि दीमक पौधों की जड़ों को खोखला बना देता है, जिसके कारण पौधा धीरे-धीरे पूरी तरह खत्म हो जाता है। इसलिए फसल में दीमक को नियंत्रित करने के लिए क्लोरपायरीफॉस का इस्तेमाल करें। इसे 4 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचाई के साथ डालें। ताकि पानी के साथ दवाई का सही असर पौधों की जड़ों तक पहुंच सके। यह दीमक को नष्ट करने में मदद करेगा और फसल की जड़ों को बचाएगा।

नोट: रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर मौजूद सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। संबंधित किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।