सरसों में 15 क्विंटल से ज्यादा का उत्पादन लेना है तो बस यह एक काम कर लेना
नमस्कार किसान साथियों इस वक्त तक सरसों की बालियाँ लंबी-चौड़ी हो गई हैं, उनमें घनी-घनी फलियाँ लगी हुई हैं, किसान प्रायः यह सोचकर निश्चिंत हो जाते हैं कि उनकी फसल तो बहुत अच्छी लगी है परंतु किसान भाइयों, ध्यान रहे—यही वह समय है, जब एक गंभीर बीमारी फसल पर हमला करती है । हालाँकि वास्तविकता यह है कि ठीक इसी समय पर फसल में एक गंभीर बीमारी (फंगस) पनप सकती है, जो उत्पादन को लगभग 60% तक घटा देती है। अतः बालियों के भर जाने के बाद भी सावधानी रखना अत्यंत आवश्यक हो जाता है।
दोस्तों कई खेतों में सरसों की फलियाँ लंबी व घनी नज़र आती हैं, जिससे किसान भ्रम में पड़ जाते हैं कि अब फसल में कोई खतरा नहीं है। कुछ किसान भाई तो खेत के बाहरी क्षेत्र का ही मुआयना कर संतुष्ट हो जाते हैं और यह मान लेते हैं कि पूरी फसल स्वस्थ है। हालाँकि, खेत के बीचोंबीच नमी अधिक होने या धूप की कमी होने पर फंगस तेज़ी से फैलता है, और यदि समय पर जाँच न की जाए तो यह धीरे-धीरे पूरे खेत में फैलकर भारी नुकसान पहुँचा सकता है।
फंगस की बीमारी शुरुआत में आसानी से दिखाई नहीं देती और पौधे अंदर से ही संक्रमित होने लगते हैं। जहाँ-जहाँ नमी अधिक होती है, वहाँ फंगस को पनपने का बेहतर वातावरण मिलता है। बाहर से फसल हरी-भरी दिखती है, परंतु अंदर ही अंदर यह बीमारी फैलकर फलियों को ठीक से विकसित नहीं होने देती। परिणामस्वरूप, कटाई के समय वास्तविक उपज अपेक्षा से बहुत कम रह जाती है, जिससे किसान को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।
बीमारी को रोकने के लिए किसान भाइयों को नियमित रूप से खेत के भीतर तक जाकर निरीक्षण करना चाहिए। यदि कहीं भी फसल के पत्तों पर धब्बे, फलियों पर सफेद आवरण या पौधों में अस्वाभाविक लक्षण दिखाई दें, तो तुरंत कृषि विशेषज्ञों से परामर्श लेकर उपयुक्त फफूंदनाशक दवाओं का छिड़काव करना चाहिए। साथ ही, संतुलित उर्वरकों और उचित जल निकासी की व्यवस्था से पौधे स्वस्थ रहते हैं और रोग फैलने की संभावना कम हो जाती है।
फंगस की प्रारंभिक पहचान
जैसे ही सरसों में फंगस लगनी शुरू होती है, किसान भाइयों को प्रारंभ में पहचान करने के लिए पौधे के निचले पत्तों पर ध्यान देना चाहिए। इन पत्तों पर बहुत बारीक, सफेद-से बिंदु नज़र आने लगते हैं, जो कि खेत के अंदरूनी भाग में अधिक दिखाई देते हैं, क्योंकि वहाँ नमी ज़्यादा होती है और प्रकाश कम पहुँचता है। यदि आप पत्ते को उँगलियों से रगड़ेंगे, तो एक सफेद-सा पाउडर हाथ में लग जाएगा, जो बाद में काले धब्बों का रूप ले लेता है। यही धब्बे आगे चलकर फलियों को प्रभावित करते हैं और पौधे कमज़ोर हो जाते हैं। इससे दाने भी चमकदार व मोटे न बनकर बारीक और हल्के रह जाते हैं
प्रायः उन जगहों पर लगती है, जहाँ नमी की मात्रा अधिक रहती है और सूर्य के प्रकाश की किरणें पौधे के नीचे तक नहीं पहुँच पातीं। घनी सरसों के बीच का भाग ऐसा ही वातावरण बनाता है। यदि किसान भाई बाहर से ही खेत देखकर निश्चिंत हो जाएँ, तो संभव है कि अंदर फंगस फैलती रहे और समय रहते उसकी रोकथाम न हो पाए।
फंगस का उपचार व बचाव
किसान साथियों फंगस को रोकने के लिए दो प्रकार की फफूंदनाशक दवाओं का उपयोग कर सकते हैं—सिस्टमिक और कॉन्टैक्ट फंगीसाइड। पहले फंगीसाइड के रूप में कार्बेन्डाज़िम और मैन्कोज़ेब का मिश्रण उपयोग किया जा सकता है। इन्हें पाउडर के रूप में दो-दो ग्राम प्रति लीटर पानी के अनुपात से मिलाया जाता है। आमतौर पर प्रति एकड़ लगभग 700 ग्राम मैन्कोज़ेब और 700 ग्राम कार्बेन्डाज़िम की ज़रूरत होती है। इस प्रकार मिले हुए घोल का छिड़काव पौधे पर करने से फसल को दोहरी सुरक्षा मिलती है, क्योंकि कॉन्टैक्ट फंगीसाइड पत्तियों पर लगी फंगस को ख़त्म करता है, जबकि सिस्टमिक फंगीसाइड पौधे की जड़ों तक पहुँचकर आंतरिक रूप से फंगस का अंत करता है। यदि यह छिड़काव समय पर और ठीक तरह से किया जाए, तो फसल पर लगे रोग को काफ़ी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।
घनी सरसों में कैसे करे स्प्रे
बहुत-से किसान भाई सरसों की अत्यधिक घनी फसल के कारण छिड़काव नहीं कर पाते, क्योंकि पौधों के बीच में घुसना मुश्किल हो जाता है। ऐसी स्थिति में मार्केट मे कुछ ऐसे भी फंगीसाइड उपलब्ध है जिसका उपयोग करके जड़ के माध्यम से दवा पहुँचा सकते हैं। इसके लिए लगभग तीन मिलीलीटर दवा को प्रति लीटर पानी में मिलाकर, उसी तरह घोल तैयार करना पड़ता है जैसे ग्लूकोज़ मिलाया जाता है। इसके बाद इस घोल को पौधों की जड़ों तक पहुँचाने के लिए पानी देते समय धीरे-धीरे खेत में डाल दिया जाता है। यह दवा चूँकि सिस्टमिक होती है, इसलिए जड़ों से पौधे के तनों व पत्तियों तक पहुँचकर फंगस को नष्ट करने में मदद करती है। इस विधि से उन स्थानों पर भी उपचार संभव हो पाता है, जहाँ स्प्रे करना संभव नहीं होता |
पाले से बचाव
कई क्षेत्रों में अत्यधिक ठंड के कारण पाला पड़ने से सरसों की फसल प्रभावित होती है। इससे भी उत्पादन कम हो सकता है। पाले से बचाव के लिए आखिरी पानी देते समय सल्फर का उपयोग करना लाभकारी होता है, क्योंकि सल्फर फसल को अतिरिक्त गरमाहट प्रदान करती है। इससे न केवल पौधे को ठंड से सुरक्षा मिलती है, बल्कि तेल की मात्रा बढ़ने जैसी अन्य कई बेहतरी भी होती है।
सल्फर का महत्त्व
सल्फर का प्रयोग करने से फसल में कई लाभ देखने को मिलते हैं। सबसे पहले, यह पौधे को गर्माहट देकर पाले से बचाती है। दूसरा, इससे तेल की मात्रा में वृद्धि होती है, जो सरसों की गुणवत्ता को बेहतर बनाती है। तीसरा, सल्फर का नियमित उपयोग फंगस जैसी बीमारियों से भी बचाव करता है, क्योंकि इससे पौधे की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। अतः किसान भाइयों को सलाह दी जाती है कि वे सरसों के विकास के महत्वपूर्ण चरणों में सल्फर का प्रयोग ज़रूर करें,
कई किसान भाई यह बड़ी गलती कर बैठते हैं कि सरसों पहले ही घनी होने पर भी उसमें अतिरिक्त पानी चला देते हैं, जबकि इस समय पौधों में नमी पहले से ही पर्याप्त होती है। दरअसल, ज़्यादा नमी फंगस को पनपने का आदर्श वातावरण देती है, खासकर वहाँ जहाँ सूर्य की किरणें नहीं पहुँच पातीं। बार-बार पानी देने से न सिर्फ फसल में अनावश्यक नमी बढ़ती है, बल्कि फंगस के प्रसार की संभावना भी तेज़ हो जाती है। जो किसान भाई मध्य प्रदेश की काली मिट्टी में खेती करते हैं, उन्हें विशेष ध्यान रखना चाहिए। यदि वे स्प्रिंकलर सिस्टम से पानी देते हैं, तो डेढ़-दो घंटे का हल्का पानी ही पर्याप्त रहता है।
फसल में पोषक तत्वों का स्प्रे
कुछ किसान भाइयों के खेतों में सरसों की फलियाँ बनने के साथ-साथ फूल भी आ रहे होते हैं। ऐसी स्थिति में, यदि खेत में आसानी से चलकर स्प्रे किया जा सकता है, तो 0-52-34 जैसे उर्वरक का छिड़काव करना बहुत फ़ायदेमंद होता है। केवल पानी में मिलाकर डालने से आधा ही लाभ मिलता है, क्योंकि असली फायदा तब होता है, जब यह उर्वरक पत्तियों पर पड़ता है। पत्तियों पर पड़ने के बाद प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया के माध्यम से पौधे के भीतर पोषक तत्वों का निर्माण तीव्र हो जाता है, जो फलियों तक पहुँचकर दानों को मोटा व चमकदार बनाते हैं।
0-52-34 NPK फर्टिलाइज़र का महत्व
0-52-34 में नाइट्रोजन शून्य होती है, जो फसल की ऊँचाई बढ़ाने की जगह फास्फोरस (52) और पोटाश (34) पर मुख्य रूप से केंद्रित रहता है। फास्फोरस जड़ों को मज़बूत करता है और पौधों के तन व फलियों के विकास में बड़ी भूमिका निभाता है। दूसरी ओर, पोटाश दानों में चमक लाता है और उनकी गुणवत्ता बढ़ाता है। इससे फलियाँ भरपूर बनती हैं और दाने बड़े तथा सुडौल आकार के होते हैं, जिससे उत्पादन में उल्लेखनीय बढ़ोतरी होती है।
छिड़काव के लिए उपयोग में लाई जाने वाली टंकी यदि पहले कभी खरपतवारनाशक या अन्य दवाओं के लिए इस्तेमाल की गई हो, तो उसे अच्छी तरह साफ़ करना आवश्यक है। अत्यधिक घनी सरसों में जब चलकर स्प्रे करना मुश्किल हो, तब भी अलग से कोई व्यवस्था करके 0-52-34 का छिड़काव करने का प्रयास करना चाहिए। यह उर्वरक उन छोटी-छोटी फलियों और नए फूलों को भी पौष्टिक तत्व प्रदान करता है, जो सामान्यतः विकसित नहीं हो पाते। इससे लगभग 25% तक अतिरिक्त उत्पादन की संभावना बनती है, क्योंकि नए व कमजोर फूल-फलियाँ भी मज़बूती से दाने बनाने लगती हैं।
नोट: रिपोर्ट में दी गई जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध सार्वजनिक स्रोतों से एकत्रित की गई है। किसान भाई किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।
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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।