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गेहूं में अगर ज़बरदस्त बढ़वार और कल्लों से भरा खेत चाहिए तो बस ये जादुई खाद डाल दो

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गेहूं की फसल का उत्पादन सीधे तौर पर उसकी पहली सिंचाई और खाद प्रबंधन पर निर्भर करता है। गेहूं की फसल में पहली सिंचाई और खाद प्रबंधन का सही ढंग से उपयोग पौधों की जड़ों (क्राउन रूट्स) और कल्ले (टिलर्स) के विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इससे न केवल पौधों की मजबूती बढ़ती है बल्कि भविष्य में अधिक उत्पादन की संभावना भी सुनिश्चित होती है। यदि बुवाई के समय बेसल डोज में आवश्यक खाद नहीं दी गई है, तो पहली सिंचाई के समय इसे संतुलित मात्रा में डालकर फसल को आवश्यक पोषण प्रदान किया जा सकता है। इसके विपरीत, यदि इस चरण में लापरवाही बरती गई, तो उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इस लेख में गेहूं की पहली सिंचाई के समय, खाद प्रबंधन, और इससे जुड़ी वैज्ञानिक जानकारी को विस्तार से बताया गया है।

पहली सिंचाई का सही समय

पहली सिंचाई का समय फसल के विकास में अहम भूमिका निभाता है। गेहूं की पहली सिंचाई बुवाई के 21 से 30 दिन के बीच की जानी चाहिए। यदि बुवाई के समय नमी पर्याप्त थी, तो सिंचाई 25-28 दिनों के भीतर करें। यदि मौसम गर्म है और पौधों की ग्रोथ तेजी से हो रही है, तो सिंचाई 21 दिनों के आसपास करना उचित रहेगा।

उदाहरण: फसल की बुवाई 31 अक्टूबर को की गई थी। 20 नवंबर को (21वें दिन) सिंचाई शुरू की गई। अगले खेतों में यह प्रक्रिया लगभग एक महीने के बाद पूरी होगी। सिंचाई का सही समय और प्रभाव मिट्टी की नमी और मौसमी परिस्थितियों पर निर्भर करता है। यदि मिट्टी में नमी कम है, तो जल्दी सिंचाई आवश्यक है। इस साल का तापमान अधिक है, जिससे पौधों की ग्रोथ तेज हो रही है। इसलिए, सिंचाई का समय थोड़ा पहले करना पड़ा।

खाद प्रबंधन और पोषक तत्वों की भूमिका

गेहूं की पहली सिंचाई के साथ खाद का सही प्रयोग फसल की वृद्धि में महत्वपूर्ण है। डीएपी, यूरिया, पोटाश के साथ-साथ पूरक पोषक तत्व (जिंक, सल्फर, और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स) से कल्लों की संख्या बढ़ेगी। क्राउन रूट्स बेहतर तरीके से विकसित होंगी। और टिलर्स प्रोडक्टिव बनेंगे, जिससे बालियां लंबी और दानों से भरी होंगी। गेहूं की फसल के विकास को समझने के लिए उसकी जड़ों और टिलर्स की भूमिका को जानना जरूरी है।

सेमिनल रूट्स मतलब बुवाई के तुरंत बाद यह जड़ें बनती हैं और फसल के शुरुआती विकास में मदद करती हैं। 15-17 दिनों के बाद यह समाप्त हो जाती हैं।

क्राउन रूट्स: 15-17 दिनों के बाद बनने वाली मुख्य जड़ें। क्राउन रूट्स का सही विकास फसल को मजबूत बनाता है।

21 दिन की फसल तक इस चरण में टिलर्स बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। सही पोषण मिलने पर टिलर्स की संख्या और गुणवत्ता बढ़ती है।

 यदि फसल को इस समय संतुलित पोषण न मिले, तो टिलर्स की संख्या कम रह जाती है। क्राउन रूट्स ठीक से विकसित नहीं हो पातीं। ऐसे मे पहली सिंचाई के साथ संतुलित मात्रा में खाद डालें। आवश्यक पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए समय पर पूरक पोषक तत्वों का प्रयोग करें।

पहली सिंचाई के दौरान खाद प्रबंधन 

यदि बुवाई के समय डीएपी, पोटाश या सिंगल सुपर फॉस्फेट जैसी खादें नहीं दी गई थीं, तो पहली सिंचाई के समय यह आखिरी अवसर होता है जब पौधों को उनकी आवश्यकता अनुसार पोषण प्रदान किया जा सकता है। यदि बुवाई के समय डीएपी नहीं दिया गया था, तो 30-35 किलो प्रति एकड़ डीएपी पहली सिंचाई से पहले डालना चाहिए। यह पौधों की जड़ों को आवश्यक फॉस्फोरस प्रदान करता है, जो जड़ों की वृद्धि और पोषण में सहायक है। एनपीके 12:32:16: यदि यह उपलब्ध है, तो एक बैग (50 किलो) प्रति एकड़ डालें। यह फॉस्फोरस, नाइट्रोजन, और पोटाश का संतुलित मिश्रण है, जो फसल के समग्र विकास में मदद करता है।सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी): यदि अन्य खाद उपलब्ध नहीं हैं, तो 60 किलो प्रति एकड़ सिंगल सुपर फॉस्फेट का उपयोग करें। इसे सिंचाई से पहले खेत में समान रूप से फैलाना आवश्यक है।

पोटाश का महत्त्व और उपयोग

पोटाश का उपयोग फसल की गुणवत्ता और उत्पादन बढ़ाने में अहम भूमिका निभाता है। यदि बुवाई के समय पोटाश नहीं डाला गया था, तो म्यूरेट ऑफ पोटाश (लाल चूरे वाला) 20-30 किलो प्रति एकड़ सिंचाई से पहले खेत में डालें। यह पौधों की जड़ों को मजबूत बनाता है और बालियों को लंबा व दानों को भरने में मदद करता है। बाजार में पोटाश के नाम पर कई अन्य उत्पाद बिकते हैं। केवल म्यूरेट ऑफ पोटाश का ही उपयोग करें।

बेसल डोज पहले से देने वाले किसानों के लिए सुझाव

जिन किसानों ने बुवाई के समय डीएपी, पोटाश और यूरिया सही मात्रा में दिया है, उन्हें पहली सिंचाई के दौरान निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:

सिंचाई के बाद 10-15 किलो यूरिया प्रति एकड़ डालें। यदि मिट्टी की उर्वरता में कमी है, तो 19:19:19 घुलनशील उर्वरक का छिड़काव करें। पौधों की बढ़वार को बढ़ाने और फसल को रोगों से बचाने के लिए यूरिया का उपयोग करें।

सिंचाई से पहले खेत की मिट्टी भुरभुरी होनी चाहिए, ताकि खाद आसानी से मिट्टी में घुल सके। खाद डालने के बाद खेत में हल्की सिंचाई करें, ताकि पोषक तत्व जड़ों तक पहुंच सकें। खेत में जलभराव न होने दें, क्योंकि इससे पौधों की जड़ें सड़ सकती हैं।

जड़ों का विकास और कल्ले बढ़ानेका तरीका

क्राउन रूट्स का महत्त्व:
पहली सिंचाई पौधों की क्राउन रूट्स को विकसित करने में मदद करती है। ये जड़ें पौधों को पोषण और मजबूती प्रदान करती हैं।

टिलरिंग (कल्ले बढ़ाना):
पौधों से अधिक कल्ले निकलने के लिए पहली सिंचाई के दौरान पोषण संतुलन बनाए रखना जरूरी है। यह फसल की उत्पादन क्षमता को सीधा प्रभावित करता है।

विशेष परिस्थितियों में खाद प्रबंधन

डीएपी या पोटाश पहले से डालने पर:
यदि बुवाई के समय डीएपी और पोटाश दिया गया था, तो केवल यूरिया या सॉल्युबल उर्वरकों का उपयोग करें।

मिट्टी की उर्वरता कम होने पर:
19:19:19 और 00:52:34 (मोनो पोटैशियम फॉस्फेट) का उपयोग करें। ये फसल के विकास और दानों की गुणवत्ता में सुधार लाते हैं।

खेत में सिंचाई के बाद हल्की जुताई करें, ताकि मिट्टी भुरभुरी बनी रहे। जल निकासी की उचित व्यवस्था सुनिश्चित करें। खेत में खरपतवार नियंत्रण के लिए रसायनों या हाथ से निकाले जाने की विधि अपनाएं।

यूरिया का प्रयोग

गेहूं की फसल में पहली सिंचाई के दौरान पोषक तत्वों का संतुलित उपयोग पौधों के विकास और उत्पादन क्षमता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस बार 20 दिनों में फसल की अद्भुत ग्रोथ देखने को मिली है, जो दोनों किस्मों की उत्कृष्टता और सही उर्वरक प्रबंधन का परिणाम है। पहली सिंचाई में पौधों को आवश्यक पोषण प्रदान करने के लिए 45 किलो यूरिया का उपयोग किया गया है। यदि बुवाई के समय यूरिया की 1/4 मात्रा दी गई थी, तो अब 2/4 हिस्सा देना चाहिए। यूरिया पौधों की वृद्धि में मदद करता है और जड़ों को मजबूत बनाता है। इसके साथ ही फास्फोरस जो पहले से मिट्टी में मौजूद है, जड़ों को स्वस्थ बनाकर कल्ले (टिलर्स) के विकास में सहायक होगा।

इसके बाद फसल में सूक्ष्म पोषक तत्वों (माइक्रोन्यूट्रिएंट्स) की पूर्ति के लिए 21% जिंक सल्फेट का उपयोग किया गया है। जिंक की कमी गेहूं की फसल की वृद्धि को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है। एक एकड़ भूमि में 10 किलो 21% जिंक सल्फेट या 33% जिंक सल्फेट के 7 किलो का उपयोग करना पर्याप्त होता है। विशेष रूप से रेतीली या हल्की मिट्टी वाले क्षेत्रों में जिंक की कमी आमतौर पर अधिक होती है, जिसके कारण इसे डालना आवश्यक हो जाता है। जिंक का उपयोग पौधों में क्लोरोफिल के निर्माण को बढ़ावा देता है, जिससे फसल लहलहाने लगती है और हरा-भरा स्वरूप प्राप्त करती है।

इस उर्वरक मिश्रण का उपयोग मिट्टी में पहले से मौजूद पोषक तत्वों के साथ मिलकर पौधों को नाइट्रोजन, फास्फोरस, और जिंक की समुचित आपूर्ति करेगा। यह पौधों की जड़ों, कल्लों और पत्तियों के समुचित विकास में मददगार होगा, साथ ही क्लोरोफिल के बेहतर निर्माण से फसल की गुणवत्ता और उत्पादन क्षमता में वृद्धि होगी।

सल्फर का महत्व

बेसल डोज में डीएपी, यूरिया और पोटाश जैसे आवश्यक उर्वरकों के साथ सल्फर को शामिल करना जरूरी है। सल्फर, जो 90% सांद्रता में उपलब्ध है, पहली सिंचाई के समय दिया गया। यह क्लोरोफिल निर्माण, प्रोटीन संश्लेषण और मिट्टी में फंगीसाइड के रूप में कार्य करता है। सल्फर का उपयोग न केवल पौधे की वृद्धि के लिए बल्कि मिट्टी में आवश्यक पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए भी किया गया। यह विशेष रूप से हल्की या रेतीली मिट्टी वाले क्षेत्रों और उन खेतों के लिए आवश्यक है जहां बार-बार गेहूं उगाई जाती है।

इसके साथ ही, फसल में जिंक की कमी को पूरा करने के लिए 21% जिंक सल्फेट को 10 किलो प्रति एकड़ की दर से डाला गया। जिन खेतों में जिंक पहले से नहीं डाला गया है या जिनमें इसकी कमी रहती है, वहां यह अनिवार्य है। जिंक सल्फेट न केवल पौधों की जड़ों को मजबूत करता है बल्कि गेहूं के पौधों को हरा-भरा बनाकर उनकी वृद्धि में मदद करता है। साथ ही, यह "मोयला बीमारी" जैसी समस्याओं को नियंत्रित करने में सहायक है, जो अक्सर हल्की मिट्टी में देखने को मिलती है।

इसके अलावा, फसल में कीटों और बीमारियों की रोकथाम के लिए 100 ग्राम प्रति एकड़ की दर से "कॉन्फिडो" जैसे कीटनाशक का उपयोग किया गया। यह दीमक और अन्य कीटों से फसल को बचाने के लिए प्रभावी है। बीजों को बुवाई से पहले ट्रीट करने के बाद यह अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करता है। खेत में इस मिश्रण को समान रूप से छिड़कने के बाद सिंचाई की गई।

सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन में यह ध्यान रखा गया कि यूरिया के साथ जिंक, सल्फर, और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों को मिलाने से पहले खेत सूखा हो। स्प्रिंकलर से सिंचाई करने पर उर्वरक का बेहतर अवशोषण होता है, जबकि फ्लड सिंचाई वाले क्षेत्रों में उर्वरकों के लीच डाउन होने का खतरा रहता है। डीएपी, सिंगल सुपर फास्फेट या अन्य फास्फोरिक उर्वरकों के साथ जिंक को मिलाने से बचने की सख्त सलाह दी गई है। जिंक का उपयोग यूरिया के साथ अगली सिंचाई में किया जा सकता है।

सिंचाई के बाद खरपतवार नियंत्रण की भी सिफारिश की गई। सही उर्वरक प्रबंधन और सिंचाई तकनीकों का पालन करने से फसल की वृद्धि उल्लेखनीय होगी, और गेहूं की फसल अगली सिंचाई तक अत्यंत सशक्त और हरी-भरी दिखाई देगी।

नोट: रिपोर्ट में दी गई जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध सार्वजनिक स्रोतों से एकत्रित की गई है। किसान भाई किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।