विदेशी बाजारों में गेहूं को लेकर क्या है स्थिति | जाने इस रिपोर्ट में
ग्लोबल गेहूं की सप्लाई में कमी
दोस्तों हाल के दिनों में गेहूं के ग्लोबल सप्लाई चेन में कमी आने की प्रमुख वजह यह है कि प्रमुख गेहूं उत्पादक देशों जैसे अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, और काला सागर क्षेत्र (Black Sea) के किसान अपने उत्पादन को बाजार में नहीं बेच रहे हैं। यह स्थिति इसलिए उत्पन्न हुई है क्योंकि इन देशों में गेहूं की कीमतें अपेक्षाकृत कम हो गई हैं। जब किसान कम कीमतों से संतुष्ट नहीं होते, तो वे अपनी फसल को स्टोर करने का विकल्प चुनते हैं, जिससे बाजार में गेहूं की कमी हो जाती है। इसका असर एशिया और मिडिल ईस्ट के मिलर्स (मिलिंग कंपनियों) पर भी पड़ा है, जो इन देशों से गेहूं का आयात करते हैं। इस दौरान, गेहूं की कीमतों में बढ़ोतरी की आशंका जताई जा रही है, जो वैश्विक खाद्य महंगाई को और बढ़ा सकती है।
विशेषज्ञों के अनुसार, 2025 के मध्य तक वैश्विक गेहूं का भंडार 9 वर्षों के सबसे निचले स्तर पर पहुँच सकता है। इस स्थिति का मुख्य कारण यह है कि ऊंची ब्याज दरें (High Interest Rates) गेहूं के स्टोरेज को प्रभावित कर रही हैं। जब ब्याज दरें बढ़ती हैं, तो स्टोरेज पर खर्च भी बढ़ जाता है, जिससे उत्पादन और आपूर्ति में कमी आती है। इसके साथ ही, उत्तरी गोलार्ध (Northern Hemisphere) में गेहूं की फसल की स्थिति भी चिंता का विषय बनी हुई है, क्योंकि मौसम में बदलाव के कारण फसल की ग्रोथ प्रभावित हो रही है। इस वजह से गेहूं के उत्पादन में गिरावट का खतरा बढ़ गया है, और इसके परिणामस्वरूप गेहूं की कीमतें वैश्विक स्तर पर बढ़ सकती हैं।
कम कीमतों के कारण गेहूं की बिक्री हुई कम
अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, और काला सागर क्षेत्र के किसानों की समस्या यह है कि इन क्षेत्रों में गेहूं की कीमतें काफी कम हो गई हैं, जिससे किसान अपनी फसल को बेचने में असमर्थ हैं। उदाहरण के लिए, काला सागर क्षेत्र में 12.5% प्रोटीन वाले गेहूं की कीमत फिलहाल $65 प्रति मीट्रिक टन है, जो कुछ हफ्ते पहले $250 प्रति मीट्रिक टन हुआ करती थी। इसी तरह, ऑस्ट्रेलियाई प्रीमियम वाइट गेहूं की कीमत $290 से गिरकर $80 प्रति मीट्रिक टन हो गई है। किसानों की इस मंदी के कारण ग्लोबल गेहूं बाजार में सप्लाई की कमी आ रही है
ऑस्ट्रेलियाई और अमेरिकी किसानों की स्थिति
ऑस्ट्रेलियाई किसान अभी गेहूं बेचने में हिचकिचा रहे हैं क्योंकि वे बेहतर कीमतों का इंतजार कर रहे हैं। इन किसानों ने गेहूं की बजाय दूसरी फसलों जैसे छोले (Chickpeas) और कैनोला (Canola) को बेचने का निर्णय लिया है, जिससे वे तात्कालिक नकदी प्राप्त कर सकें। इस समय, गेहूं के मुकाबले इन फसलों की कीमतें अधिक आकर्षक हैं। वहीं, अमेरिकी किसान भी घरेलू कीमतों में बढ़ोतरी की उम्मीद में अपने गेहूं का स्टोरेज कर रहे हैं। इन किसानों के इस रवैये ने वैश्विक गेहूं की उपलब्धता को और कम कर दिया है, और इसके परिणामस्वरूप कीमतों में उतार चढ़ाव आ रहे है
एशिया और मिडिल ईस्ट में गेहूं के हालत
एशिया और मिडिल ईस्ट में मिलर्स के लिए गेहूं की सप्लाई एक बड़ा संकट बन चुकी है। एशिया में गेहूं का स्टॉक कवरेज अब दो महीने से भी कम रह गया है, जबकि मिडिल ईस्ट में यह आंकड़ा 45 दिनों से भी कम हो गया है। इस कमी के कारण, इन क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा को गंभीर खतरा पैदा हो सकता है। इन देशों के लिए गेहूं का आयात बेहद महत्वपूर्ण है, और सप्लाई चेन में रुकावट के कारण वहां के मिलर्स को मुश्किलों आ रही है
यूएसडीए का अनुमान और रूस की भूमिका
अमेरिका का कृषि विभाग (USDA) यह अनुमान लगा रहा है कि ग्लोबल गेहूं स्टॉक 2025 के मध्य तक 9 साल के निचले स्तर पर पहुँच सकता है, भले ही दक्षिणी गोलार्ध (Southern Hemisphere) में अच्छा उत्पादन हो। हालांकि, रूस में कुछ किसान अपने स्टॉक को बेच रहे हैं, जिससे संकट थोड़ी देर के लिए कम हुआ है, लेकिन रूस का निर्यात कोटा पिछले साल के 29 मिलियन टन से काफी कम हो गया है। यह स्थिति भी गेहूं के निर्यात में बाधा उत्पन्न कर रही है।
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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।
खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव
सभी इन घटनाक्रमों को देखते हुए, ग्लोबल गेहूं बाजार में बढ़ते सप्लाई रिस्क का सामना करना पड़ रहा है। सप्लाई में कमी के कारण गेहूं की कीमतें अस्थिर हो सकती हैं, जिससे वैश्विक खाद्य महंगाई को बढ़ावा मिल सकता है। गेहूं की कमी से खाद्य सुरक्षा पर भी बड़ा खतरा मंडरा रहा है, क्योंकि गेहूं एक महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ है, जो कई देशों की खाद्य आपूर्ति का अहम हिस्सा है। इस कमी का असर विशेष रूप से गरीब और विकासशील देशों पर पड़ेगा, जहां गेहूं की खपत बहुत अधिक है।
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