सोयाबीन में मंदी पड़ी बीजेपी को भारी | जाने आगे तेजी की कितनी उम्मीद

 

किसान साथियों जैसा हमे पता है कि सोयाबीन का भारत में कृषि और अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान है, विशेषकर महाराष्ट्र जैसे राज्यों में। सोयाबीन की कीमतों में गिरावट ने किसानों को बड़ा आर्थिक झटका दिया है, जिससे उनकी आय प्रभावित हुई है और इसी के चलते राजनीतिक परिदृश्य में भी बदलाव आया है। देवेंद्र फणवीस ने 2024 के चुनाव परिणाम के बाद महाराष्ट्र में बीजेपी को हुए नुकसान की जिम्मेदारी लेते हुए यह स्वीकार किया कि सोयाबीन के दामों में गिरावट के कारण किसानों को नुकसान हुआ, जिससे चुनाव में भी उन्हें नुकसान उठाना पड़ा। उन्होंने बताया कि इसी वजह से किसानों ने सोयाबीन की दामों में सुस्ती की जांच की है। यह घटना बीजेपी के लिए महाराष्ट्र में वोट गवाने वाले अन्य मुद्दों में से एक प्रमुख कारण ये भी है । महाराष्ट्र में बीजेपी कि हार का एक बड़ा कारण किसानों की नाराजगी को माना जा रहा है।

सोयाबीन की कीमतों में गिरावट के कारण:
पाम ऑयल का प्रभाव: पाम ऑयल की कीमतों में गिरावट का सीधा असर सोयाबीन पर पड़ा है। पाम ऑयल का उपयोग बड़े पैमाने पर खाद्य तेल के रूप में किया जाता है और इसकी कीमतों में गिरावट से सोयाबीन के तेल की मांग कम हो जाती है, जिससे सोयाबीन की कीमतों पर दबाव बढ़ता है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिरावट: वैश्विक बाजार में सोयाबीन की कीमतों में गिरावट का असर भारतीय बाजार पर भी पड़ा है। अमेरिका और ब्राजील जैसे प्रमुख सोयाबीन उत्पादक देशों में उत्पादन में वृद्धि के कारण वैश्विक सप्लाई बढ़ गई है, जिससे कीमतों में गिरावट आई है।
स्थानीय उत्पादन में वृद्धि: महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में सोयाबीन का उत्पादन बढ़ा है, जिससे बाजार में सोयाबीन की अधिकता हो गई है और कीमतों में गिरावट आई है।
निर्यात में कमी: सोयाबीन और उससे बने उत्पादों के निर्यात में कमी आने से भी घरेलू बाजार में सोयाबीन की कीमतों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में सोयाबीन उत्पादन:
सोयाबीन उत्पादन में महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश देश के सबसे बड़े उत्पादक राज्यों में शामिल हैं। महाराष्ट्र देश में कुल उत्पादित सोयाबीन का लगभग 45% उत्पादन करता है।  विदर्भ, मराठवाड़ा, और पश्चिमी महाराष्ट्र में सोयाबीन का प्रमुख उत्पादन होता है। यहां के किसान परंपरागत और आधुनिक कृषि तकनीकों का मिश्रण अपनाते हैं।
मध्य प्रदेश कुल सोयाबीन उत्पादन का लगभग 40% योगदान देता है। मालवा, निमाड़, और बुदेलखंड क्षेत्र सोयाबीन के मुख्य उत्पादन क्षेत्र हैं। मध्य प्रदेश में सोयाबीन की खेती व्यापक रूप से मशीनीकृत है और किसानों ने हाइब्रिड बीजों को अपनाया है।

सोयाबीन की कीमतों में गिरावट और MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) से कम कीमत पर बिक्री किसानों के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
 केंद्र सरकार ने विपणन वर्ष 2023-24 के लिए सोयाबीन का MSP 4600 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया है। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में सोयाबीन की मौजूदा बाजार कीमतें अधिकतम 4400 रुपये और न्यूनतम 3500 रुपये प्रति क्विंटल तक दर्ज की जा रही हैं। इससे किसानों को MSP से 200 से 1100 रुपये प्रति क्विंटल तक कम कीमत पर अपनी फसल बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है।
इस परिस्थिति में किसानों का संघर्ष बढ़ रहा है और वे न्याय से मिलने वाले दाम की मांग कर रहे हैं। MSP की विधायी और व्यावसायिक बाजार दरों में अंतर को लेकर सरकार और किसानों के बीच निरंतर विवाद चल रहे हैं।

पिछले वर्षों का MSP भाव:
महाराष्ट्र के नासिक जिले के सोयाबीन किसान विजय केशव गुंज्याल ने बताया है कि पिछले दो सालों में सोयाबीन के दाम MSP से अधिक रहे थे, जिससे किसानों को फायदा हुआ था। लेकिन इस साल, मौजूदा वक्त में सोयाबीन के दाम MSP से कम हो रहे हैं, जिससे किसानों को नुकसान हो रहा है।
गुंज्याल जी ने इसका जिक्र करते हुए यह भी कहा है कि इस साल कम दामों ने किसानों की कमर तोड़ दी है, इसका मतलब है कि उन्हें अपनी फसल को न्याय से मिलने वाले मूल्य पर नहीं बेच पा रहे हैं। यह स्थिति किसानों के लिए आर्थिक संकट का कारण बन रही है और उन्हें सरकार से अधिक समर्थन और न्याय की मांग करनी पड़ रही है।
2022: सोयाबीन की कीमतें 8000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई थीं।यह MSP से काफी अधिक थी, जिससे किसानों को अच्छा मुनाफा हुआ।
2023: सोयाबीन की कीमतें 6000 रुपये प्रति क्विंटल तक थीं। यह भी MSP से अधिक थी, जिससे किसानों को संतोषजनक आय प्राप्त हुई।
2024 (वर्तमान स्थिति): सीजन की शुरुआत में सोयाबीन की कीमतें 5000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंची थीं। वर्तमान में कीमतें 4000 से 4400 रुपये प्रति क्विंटल के बीच हैं, जो MSP (4600 रुपये प्रति क्विंटल) से कम हैं।

किसानों के नुकसान के कारण:
महाराष्ट्र के सोयाबीन किसानों की स्थिति और उनके द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर, यह समझना महत्वपूर्ण है कि उन्हें वास्तविक में कैसे नुकसान हो रहा है और इसे कैसे आंकलन किया जा सकता है: महाराष्ट्र में सोयाबीन के बाजार मूल्य अधिकतम 4400 रुपये तथा न्यूनतम 3500 रुपये किंतु मार्केट में दिखा रहता है कि किसान को 600 रुपये प्रति क्विंटल नुकसान हो रहा है। जो किसानों के लिए चिंता का कारण बन रहा है। उनके अनुसार, सोयाबीन की लागत ही MSP से अधिक होती है, इसलिए MSP से सोयाबीन के भावों की तुलना गलत होती है।
नागपुर के सोयाबीन किसान विजय केशव गुंज्याल ने बताया कि पिछले सालों में जो दाम मिला था, उसमें किसानों को राहत मिली थी। इस साल की स्थिति में, मध्य प्रदेश में सूखे की वजह से सोयाबीन की फसल का नुकसान भी बढ़ गया है, जिससे एमपी के किसानों की स्थिति भी कठिन हो गई है

सोयाबीन के दामों में गिरावट के मुख्य कारण
सोयाबीन के दामों में इस साल की गिरावट के पीछे कुछ मुख्य कारण हैं, जिन्हें समझना महत्वपूर्ण है। मध्य भारत FPO फेडरेशन के सीईओ योगेश द्विवेद्धी ने इसे विस्तार से समझाया है कि पाम ऑयल, जो कि सोयाबीन की खली से निकलता है, इस साल ग्लोबल बाजार में उसके दाम में गिरावट हुई है। यह वजह भारतीय बाजार पर भी असर डाली है।
क्रूड पाम ऑयल की आयात पर भारत में कोई दायरा नहीं होता है, इसके कारण इसे मुक्त ड्यूटी के साथ आयात किया जा सकता है। इससे पाम ऑयल भारतीय बाजार में सस्ते दामों पर उपलब्ध होता है, जिससे सोयाबीन के दामों में गिरावट आती है।
बाजार में उपलब्ध सोयाबीन के तेलों में 50% तक पाम ऑयल की मिलावट हो रही है। यह मिलावट भी दामों में गिरावट का कारण बनती है।
इन कारणों के संयोजन से सोयाबीन के दाम इस साल में MSP से कम हो गए हैं। यह स्थिति किसानों के लिए चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि उन्हें अपनी उत्पादन की उचित मूल्य पर बेचने में मुश्किलें आ रही हैं।
सोपा ने रखी आयातित खाद्य तेलों पर सीमा शुल्क बढ़ाने की मांग, घरेलू तिलहन खेती को बढ़ावा देने पर जोर की अपील

भारत सरकार से आयातित खाद्य तेलों पर सीमा शुल्क और कृषि उपकर में भारी वृद्धि करने की मांग करते हुए, सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) ने चिंता जताते हुए कहा कि सस्ते आयात से घरेलू तिलहन उत्पादन और प्रसंस्करण उद्योग को गंभीर खतरा है। सोपा का कहना है कि कम सीमा शुल्क के कारण विदेशी खाद्य तेलों का आयात बढ़ रहा है, जिससे भारतीय किसानों को MSP मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है और वे तिलहन की खेती छोड़ने पर मजबूर हो रहे हैं। एसोसिएशन ने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर आगामी बजट में सीमा शुल्क और कृषि उपकर बढ़ाने की मांग की है।

सोपा का मानना है कि यह कदम घरेलू तिलहन उत्पादन को बढ़ावा देगा, किसानों की आय में वृद्धि करेगा और भारत को खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर बनाने में मदद करेगा। सोपा के अनुसार, अक्टूबर 2021 के बाद से ही सीमा शुल्क में कमी के चलते सस्ते खाद्य तेलों का आयात 20% से अधिक बढ़ गया है। सोपा ने सरकार से MSP को बढ़ाने और तिलहन उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए अन्य महत्वपूर्ण उपाय करने का भी आग्रह किया है।

मंडी भाव टुडे का मानना है कि सोपा का यह कदम भारत को खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर बनाने और किसानों को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।  सरकार को खाद्य तेलों की आयात ड्यूटी बढ़ाकर घरेलू तिलहन कृषि क्षेत्र को मजबूत करना चाहिए ताकि खाद्य तेलों के आयात का बोझ कम हो और देशी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिल सके ।

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मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।