चाकलेट की खेती से किसान कमा रहे लाखों | जाने सभी डिटेल्स

 

दोस्तों, आज हम आपको एक ऐसे व्यवसाय के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी मार्केट में हमेशा ही मांग रहती है। हम बात कर रहे हैं चॉकलेट की खेती के बारे में। जैसा कि आप जानते हैं, चॉकलेट बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी की पसंदीदा मिठाई है। इसीलिए आज हम आपको चॉकलेट की खेती के बारे में विस्तृत जानकारी देने जा रहे हैं। भारत में खेती-किसानी का एक समृद्ध इतिहास है, और सरकार भी किसानों के हित में विभिन्न योजनाएं लागू करती है, जिससे कि उन्हें आर्थिक रूप से सहायता मिल सके। यदि आप चॉकलेट की खेती करना चाहते हैं, तो यह आपके लिए एक बेहद लाभदायक व्यवसाय हो सकता है। आइए, जानते हैं कि चॉकलेट की खेती कैसे की जाती है और इससे आप कितना मुनाफा कमा सकते हैं।
चॉकलेट की खेती कैसे की जाती है?

कोको (चॉकलेट) की खेती एक खास तरह की खेती है, जो गर्म और आर्द्र जलवायु वाले क्षेत्रों में की जाती है। भारत में, दक्षिणी राज्यों जैसे कर्नाटक, केरल, और तमिलनाडु में इसकी खेती की जाती है। कोको की खेती के बारे में जानकारी निम्नलिखित है:

कोको के बीज का फर्मेंटेशन और प्रोसेसिंग:

कोको के फलों से बीज निकालकर उन्हें 8-10 दिन तक फर्मेंटेशन किया जाता है। इसके बाद चार दिन तक सूर्य की रोशनी में सुखाया जाता है।
फर्मेंटेशन के लिए बीजों को एक एयरटाइट बॉक्स में रखा जाता है, जहां पर हीट पैदा होती है और फर्मेंटेशन की प्रक्रिया होती है।
इसके बाद बीजों का रंग बदल जाता है, और वे चॉकलेट, बेकरी प्रोडक्ट्स, और अन्य स्वीट्स में उपयोग के लिए तैयार हो जाते हैं।

जलवायु और मिट्टी:
कोको के पेड़ को उष्णकटिबंधीय जलवायु की आवश्यकता होती है। इसके लिए 21°C से 32°C के बीच तापमान और 1000-3000 मिमी वर्षा आदर्श और 50% आर्द्रता आदर्श है।है। अच्छी जल निकासी वाली दोमट या लाल मिट्टी, जिसमें pH 5.0-6.5 के बीच हो, उपयुक्त होती है। 6-7 इंच गहरी, भुरभुरी मिट्टी जिसमें पानी का रुकावट न हो, जैसे कि दक्षिण भारत के क्षेत्रों में।

भारत में लोकप्रिय हाइब्रिड किस्में हैं, जैसे कि CRD 123 और 58। ये किस्में उच्च गुणवत्ता और अच्छा उत्पादन देती हैं।

पौधों का चयन और रोपण:

चॉकलेट की खेती करने के लिए आपको कोको के पौधों की रोपाई करनी होगी, क्योंकि चॉकलेट कोको से ही बनाई जाती है। कोको की खेती करने के लिए सबसे पहले आपको मिट्टी की अच्छी तैयारी करनी होगी। इसके लिए मिट्टी को एक या दो बार गहरी जुताई करनी चाहिए। जुताई के बाद, प्रति एकड़ 200 से 250 क्विंटल अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद को कल्टीवेटर की सहायता से मिट्टी में मिला दें। इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ेगी और पौधों को आवश्यक पोषक तत्व मिल सकेंगे।

कोको के पौधों को बीज, कलम या ग्राफ्टिंग से उगाया जा सकता है। इसके बाद, मिट्टी को समतल कर उसमें गड्ढे तैयार कर लें, जिनमें कोको के पौधे लगाए जाएंगे। ध्यान रखें कि कोको के पौधे आपस में 2 से 4 मीटर की दूरी पर लगाए जाएं, ताकि पौधों को बढ़ने के लिए पर्याप्त स्थान मिल सके। सही दूरी पर रोपाई करने से पौधों का विकास बेहतर होता है और उत्पादन भी अच्छा होता है। रोपण के लिए गड्ढे खोदे जाते हैं और पौधे लगाए जाते हैं। हर गड्ढे में 10-15 किलोग्राम गोबर की खाद मिलाई जाती है।

बीज के माध्यम से पके हुए कोको फल से बीज निकालकर लगाते हैं। सूखे बीज से बेहतर परिणाम नहीं मिलते, इसलिए पके हुए फल का उपयोग करें।  कलम से पौधे लगाना बेहतर होता है, क्योंकि यह तेजी से वृद्धि करता है और जल्दी फल देता है।

फसल की देखभाल:
कोको के पौधे छाया पसंद करते हैं, इसलिए इनके साथ केला, नारियल, सुपारी, या पपीता जैसे ऊंचे पौधे लगाए जाते हैं जो छाया प्रदान करते हैं। प्रारंभिक वर्षों में पौधों को नियमित रूप से पानी देना आवश्यक है। सूखे के समय सिंचाई की जाती है।

खाद और उर्वरक:
जैविक खाद जैसे कम्पोस्ट और वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग फायदेमंद होता है। एक कोको कृषक के ज़ीरो बजट प्राकृतिक खेती (ZBNF) मॉडल में जीवामृत का उपयोग किया जाता है। जीवामृत तैयार करने के लिए 200 लीटर पानी, 20 किलो गाय का गोबर, 10 लीटर गोमूत्र, 2 किलो गुड़, और 2 किलो बेसन का पाउडर मिलाकर 5-7 दिन तक घुमाया जाता है। इसे वेंचुरी सिस्टम के माध्यम से पौधों तक पहुँचाया जाता है।

रोग और कीट प्रबंधन:
जैविक तरीकों से कीटों और रोगों का प्रबंधन किया जाता है। नीम का तेल, गोमूत्र, और हर्बल स्प्रे का उपयोग किया जा सकता है।

फसल की कटाई:
कोको के पेड़ 3-4 साल में फल देने लगते हैं। कोको पॉड्स (फल) को परिपक्व होने पर पेड़ से काटा जाता है।
पॉड्स को काटने के बाद, बीज निकालकर उन्हें सूखाया और किण्वित किया जाता है, जिससे उनका स्वाद बढ़ता है।

बटर फ्रूट (एवोकाडो) और अन्य फसलें:

कोको के साथ, बटर फ्रूट (एवोकाडो), वनीला, सुपारी, इलायची, और केला जैसी फसलें भी उगाई जा सकती हैं। ये सभी फसलें आपस में एक-दूसरे की बढ़वार में सहायक होती हैं। कोको के पौधे छाया में अच्छे से बढ़ते हैं। 

सिंचाई और पानी प्रबंधन:

ड्रिप इरिगेशन का उपयोग कोको की खेती में फायदेमंद होता है, जिससे पानी की बचत होती है और पौधों को आवश्यक नमी मिलती है।

इस प्रकार की खेती को जैविक और स्थायी बनाने के लिए प्राकृतिक तरीकों और स्थानीय संसाधनों का उपयोग किया जाता है। ZBNF मॉडल को अपनाने से खेती की लागत कम होती है और फसल की गुणवत्ता में वृद्धि होती है।

लागत और कमाई

अब बात करते हैं लागत और कमाई की। चॉकलेट की खेती में आपकी प्रारंभिक लागत लगभग 30,000 से 35,000 रुपये तक आ सकती है। यह लागत मुख्यतः जुताई, खाद, और पौधों की खरीद पर होती है। यदि आप 1 से 2 एकड़ भूमि में कोको की खेती करते हैं, तो आप 70,000 से 80,000 रुपये तक का मुनाफा कमा सकते हैं। और एक साल में प्रति पेड़ 3 से 4 सौ किलोग्राम कोको बीन्स प्राप्त होते हैं। लाभ में भी अच्छी वृद्धि देखी जाती है।

अंतरराष्ट्रीय बाजार पर कोको के भाव जुलाई से अक्टूबर तक 160 रुपये प्रति किलोग्राम और फरवरी से जून तक 200 से 210 रुपये प्रति किलोग्राम होते हैं।

आपकी एक या दो एकड़ भूमि में 200 से 250 पौधे आसानी से लगाए जा सकते हैं। इन पौधों से प्राप्त होने वाले कोको का उपयोग चॉकलेट बनाने में किया जाता है, जो कि बाजार में एक उच्च मांग वाली वस्तु है। इस प्रकार, चॉकलेट की खेती न केवल एक आकर्षक व्यवसाय हो सकता है, बल्कि इससे आप अच्छा खासा मुनाफा भी कमा सकते हैं।

चॉकलेट की खेती के लिए सही जानकारी और थोड़ी मेहनत के साथ, आप एक सफल व्यवसायी बन सकते हैं और अच्छी आय प्राप्त कर सकते हैं। यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें आप अपने भविष्य को सुरक्षित और संपन्न बना सकते हैं।    

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।