ज्यादा उत्पादन के लिए गेहूं में कब कितनी और क्या खाद डालनी है | इस रिपोर्ट जाने

 

किसान साथियो गेहूँ की बुवाई का सीज़न जोरों पर चल रहा है । गेहूं उगने के साथ ही किसानों के बीच प्रतिस्पर्धा होने लगती है कि किसकी खेती टॉप की लगी है। दोस्तो अच्छी पैदावार लेने के लिए यह जरूरी है कि आपका गेहूं शुरुआत से ही बढ़िया ग्रोथ के साथ चले। गेहूं की बुवाई के तुरंत बाद किसानों को कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है, जिसमें खरपतवार, रोगों और कीटों की रोकथाम प्रमुख हैं। लेकिन इनमें सबसे महत्वपूर्ण है गेहूं को संतुलित खाद देना। ज्यादातर किसान इसमे गलती कर देते हैं। आज की रिपोर्ट में हम आपको विस्तार से बतायेंगे की आपको किस समय कोन सी खाद कितनी मात्रा में देनी है।

डीएपी (डाई-अमोनियम फॉस्फेट)

डीएपी यानी डाई-अमोनियम फॉस्फेट, गेहूं की फसल के लिए अत्यंत आवश्यक उर्वरक है। इसमें 46% फॉस्फोरस और 18% नाइट्रोजन होता है, जो फसल के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

  • फॉस्फोरस का योगदान: फॉस्फोरस जड़ों के विकास में सहायक होता है। यह गेहूं के पौधों की जड़ें गहरी और मजबूत बनाता है, जिससे पौधे अधिक संख्या में टिलर्स (कल्ले) पैदा करते हैं। जितनी अच्छी और गहरी जड़ें होंगी, पौधों में उतनी ही अधिक टिलर बनने की क्षमता होगी।

  • नाइट्रोजन का प्रभाव: डीएपी में मौजूद नाइट्रोजन पौधों को प्रारंभिक वृद्धि में ऊर्जा देता है, जिससे उनकी बढ़वार बेहतर होती है। यह पौधों के स्टेम को मजबूत बनाने में भी सहायक है, जिससे आगे चलकर लंबी और स्वस्थ बालियाँ विकसित होती हैं और उनमें अधिक मात्रा में दाने भरते हैं।

डीएपी कब और कैसे डालें

डीएपी को बीज बोते समय मिट्टी में मिलाना सबसे प्रभावी तरीका है। बीज के साथ डीएपी का मिलान फसल की वृद्धि के शुरुआती चरणों में पोषक तत्वों की उचित उपलब्धता सुनिश्चित करता है। इससे पौधे का जड़ तंत्र मजबूत होता है और उसकी पकने की प्रक्रिया भी बेहतर होती है।

जिंक सल्फेट का उपयोग

जिंक सल्फेट, गेहूं की फसल के विकास के लिए आवश्यक माइक्रोन्यूट्रिएंट्स में से एक है। जिंक की कमी से पौधों की पत्तियाँ पीली पड़ने लगती हैं और उनका विकास रुक सकता है।

  • कब डालें: जिंक सल्फेट का उपयोग आमतौर पर पौधों के प्रारंभिक वृद्धि चरण में किया जाता है, जब पौधों को सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।
  • कैसे डालें: इसे अन्य उर्वरकों के साथ मिलाकर भी दिया जा सकता है, लेकिन ध्यान दें कि जिंक सल्फेट की अधिक मात्रा पौधों को नुकसान पहुँचा सकती है। इसकी मात्रा का सही निर्धारण मिट्टी की जांच के आधार पर किया जाना चाहिए।

मैग्नीशियम सल्फेट का महत्व

मैग्नीशियम पौधों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह क्लोरोफिल निर्माण में सहायक होता है, जो पौधों को सूर्य के प्रकाश से ऊर्जा प्राप्त करने में मदद करता है।

  • कब डालें: मैग्नीशियम सल्फेट का उपयोग तब किया जाता है जब पौधों में हरी पत्तियों की कमी हो या पत्तियाँ पीली पड़ने लगें। यह पौधों की पत्तियों को हरा-भरा बनाए रखने में सहायक होता है।
  • कैसे डालें: इसे स्प्रे के माध्यम से भी दिया जा सकता है, ताकि पौधों को तुरंत लाभ मिल सके। मैग्नीशियम की मात्रा का सही निर्धारण मिट्टी परीक्षण के आधार पर होना चाहिए।

सल्फर का उपयोग और संयोजन

सल्फर, पौधों के लिए आवश्यक एक अन्य महत्वपूर्ण तत्व है जो प्रोटीन निर्माण में सहायक होता है। इसकी कमी से पौधों की वृद्धि में बाधा उत्पन्न हो सकती है।

  • कब और कैसे डालें: सल्फर को फसल में वृद्धि के शुरुआती चरण में दिया जाना चाहिए। इसे डीएपी के साथ मिलाकर देना फायदेमंद होता है, क्योंकि डीएपी के साथ मिलाने से इसकी प्रभावशीलता बढ़ जाती है।
  • मात्रा का निर्धारण: सल्फर की मात्रा का निर्धारण मिट्टी की जांच के अनुसार करना चाहिए, ताकि फसल में इसका सही संतुलन बना रहे और पौधों की वृद्धि सुचारू रूप से हो।

खादों का संयोजन और प्रतिक्रियाएं

खादों का संयोजन करते समय ध्यान देना आवश्यक है कि कौन से उर्वरक एक-दूसरे के साथ संगत हैं और किन्हें मिलाने से पौधों को नुकसान हो सकता है।

  • जिंक और सल्फर का संयोजन: जिंक सल्फेट और सल्फर को एक साथ मिलाने से इनके लाभ पौधों में आसानी से अवशोषित होते हैं।
  • डीएपी और जिंक का संयोजन: डीएपी के साथ जिंक सल्फेट मिलाने से जिंक का अवशोषण तेजी से होता है, लेकिन इनकी मात्रा का निर्धारण सावधानीपूर्वक करना चाहिए।

डीएपी (डाई-अमोनियम फॉस्फेट)

डीएपी, गेहूं की फसल के लिए फॉस्फोरस का प्रमुख स्रोत है। फॉस्फोरस पौधों की जड़ों के विकास में मदद करता है और पौधों की ताकत बढ़ाता है, जिससे वे विपरीत मौसम में भी गिरते नहीं हैं।

  • डीएपी का प्रभाव: डीएपी में फॉस्फोरस की उच्च मात्रा होती है, जो पौधों के जड़ तंत्र को मजबूत बनाती है। गेहूं के पौधे की जड़ें जितनी मजबूत और गहरी होती हैं, उतने ही बेहतर परिणाम मिलते हैं, क्योंकि ये जड़ें पोषक तत्वों को सीधे डीएपी के कणों से प्राप्त कर पाती हैं।

  • डीएपी कब और कितनी मात्रा में डालें: डीएपी का सबसे अच्छा उपयोग बीज बोते समय होता है। यदि आप एक एकड़ जमीन में गेहूं की फसल लगा रहे हैं, तो इसमें एक बैग (50 किलो) डीएपी का उपयोग करें। इसे बेसल डोज के रूप में शुरुआती चरण में डालना अधिक फायदेमंद होता है ताकि फसल को इसकी पूरी मात्रा तुरंत मिल सके।

पोटाश (पोटैशियम) का महत्व और उसका उपयोग

पोटाश, गेहूं की फसल में पोषक तत्वों के परिवहन में सहायक होता है। पोटाश की कमी के कारण पौधों में पोषक तत्वों का वितरण सही से नहीं हो पाता है, जिससे उत्पादन प्रभावित होता है।

  • पोटाश का महत्व: पोटाश पौधे में मौजूद पोषक तत्वों को पौधे के हर भाग तक पहुँचाने में मदद करता है। इसके बिना, पौधों को दी गई अन्य उर्वरकों का प्रभाव भी कम हो जाता है। पोटाश पौधे की समग्र वृद्धि और मजबूत बालियों के निर्माण में सहायक होता है।

  • पोटाश कब और कितनी मात्रा में डालें: एक एकड़ खेत में लगभग 30-35 किलो पोटाश का उपयोग करना चाहिए। इसे बीज बोने के समय बेसल डोज के रूप में देना सबसे अच्छा होता है। इसके बाद, फसल के बालियाँ निकालने के समय, लगभग 15-20 किलो पोटाश को सिंचाई के माध्यम से दिया जा सकता है। इससे पौधों में पोटाश की निरंतरता बनी रहती है और बालियाँ मजबूत और स्वस्थ होती हैं।

  • फोलियर स्प्रे के माध्यम से पोटाश की पूर्ति: अगर आपने पोटाश पहले पर्याप्त मात्रा में नहीं दिया, तो गेहूं की बालियाँ निकलते समय आप एनपीके 0:52:34 या एनपीके 0:0:50 जैसे वाटर-सोल्यूबल फर्टिलाइज़र का फोलियर स्प्रे कर सकते हैं। इससे पौधों को पोटाश की कमी नहीं होती और फसल की गुणवत्ता में सुधार आता है।

गेहूं की फसल में नाइट्रोजन (यूरिया) का प्रयोग

यूरिया गेहूं की फसल में नाइट्रोजन का मुख्य स्रोत है, जो पौधों की संपूर्ण वृद्धि और उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नाइट्रोजन पौधे के क्लोरोफिल के निर्माण में सहायक होता है, जिससे पौधा हरा-भरा और स्वस्थ दिखाई देता है। नाइट्रोजन की कमी होने पर फसल का विकास रुक सकता है, और उत्पादन में कमी आ सकती है।

  • यूरिया कब और कितनी मात्रा में डालें: अगर आप एक एकड़ भूमि में गेहूं की बुवाई कर रहे हैं, तो कुल 100 किलो यूरिया की आवश्यकता होती है। इस 100 किलो यूरिया को तीन चरणों में बांटना चाहिए:

    • पहला चरण (बेसल डोज): जब आप गेहूं की बुवाई कर रहे हों, तो 20% यूरिया, यानी लगभग 20 किलो, बेसल डोज के रूप में खेत में डाल दें। इससे पौधे के अंकुरण के तुरंत बाद नाइट्रोजन की आवश्यक मात्रा मिलती है, जो प्रारंभिक विकास के लिए महत्वपूर्ण होती है।

    • दूसरा चरण (पहली सिंचाई): जब पहली सिंचाई का समय आता है, तो यूरिया की लगभग 50% मात्रा (50 किलो) खेत में डालें। इससे पौधे को उस समय नाइट्रोजन मिलती है, जब उसकी वेजिटेटिव ग्रोथ तेज़ी से बढ़ रही होती है। यह मात्रा पौधे की पत्तियों और तनों के विकास में सहायक होती है, जिससे फसल की मजबूती बढ़ती है।

    • तीसरा चरण (दूसरी सिंचाई): बची हुई 30% यूरिया (लगभग 30 किलो) को दूसरी सिंचाई के समय, जो कि लगभग 50 दिन के भीतर होनी चाहिए, डालें। इस अंतिम मात्रा से पौधे में नए कल्लों का विकास होता है, जो अंत में उत्पादक टिलर्स में बदल जाते हैं। इससे फसल की बालियां लंबी और अधिक स्वस्थ होती हैं।

यूरिया में नाइट्रोजन की उच्च मात्रा होने के कारण यह फसल की प्रारंभिक और वेजिटेटिव ग्रोथ के लिए महत्वपूर्ण है। नाइट्रोजन की उपलब्धता से पौधे में क्लोरोफिल का निर्माण होता है, जो प्रकाश-संश्लेषण को बढ़ाता है। इससे पौधे अधिक ऊर्जा प्राप्त करते हैं, जो फसल के संपूर्ण विकास में सहायक होती है। साथ ही, सही समय पर यूरिया देने से कल्ले अधिक और मजबूत होते हैं, जिससे गेहूं की फसल की उपज में वृद्धि होती है।

कुछ पोषक तत्वों की आवश्यकता भले ही कम होती है, लेकिन इनका महत्व मुख्य पोषक तत्वों जितना ही है। अगर ये तत्व कम हो जाएं, तो फसल का उत्पादन गंभीर रूप से प्रभावित हो सकता है, भले ही आप मुख्य पोषक तत्व जैसे यूरिया, डीएपी या पोटाश का सही इस्तेमाल करें। इनमें से प्रमुख पोषक तत्व जिंक और सल्फर हैं।

1. जिंक सल्फेट

जिंक गेहूं की फसल के लिए एक महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्व है, जो पौधों में क्लोरोफिल निर्माण में मदद करता है और उनकी हरे-भरे विकास में योगदान देता है। जिंक की कमी होने पर, गेहूं के पौधे अच्छे से विकसित नहीं हो पाते और प्रोडक्टिव टिलर्स नहीं बन पाते।

  • जिंक की आवश्यकता: गेहूं के पौधों में जिंक की कमी से टिलर (कल्ले) अच्छे से विकसित नहीं होते। इसलिए जिंक की सही मात्रा देना बेहद महत्वपूर्ण है।
  • जिंक का उपयोग:
    • बेसल डोज में जिंक: बेसल डोज में जिलेटेड या ऑक्साइड फॉर्म के जिंक का इस्तेमाल करें। 1-2 किलो प्रति एकड़ की दर से यह डाल सकते हैं।
    • 21% या 33% जिंक सल्फेट: यह पहली सिंचाई के समय यूरिया के साथ मिलाकर दें।
      • 21% जिंक: 10 किलो प्रति एकड़।
      • 33% जिंक: 7 किलो प्रति एकड़। जिंक को यूरिया के साथ मिलाकर ऊपर से छिड़कें और सिंचाई करें।

2. सल्फर

सल्फर भी एक महत्वपूर्ण द्वितीयक पोषक तत्व है और गेहूं की फसल के विकास में योगदान करता है। भारत में सल्फर की कमी पाई जाती है, और इसे सही समय पर देना आवश्यक है।

  • सल्फर के प्रकार:
    • बेंटोनाइट सल्फर: यह 90% सल्फर वाली दाल जैसी सल्फर है। यह धीरे-धीरे रिलीज होती है और फसल को लंबे समय तक पोषण देती है।
    • पाउडर फॉर्म सल्फर (90% या 80%): यह जल में घुलने वाली सल्फर है, जो फसल को तुरंत असर दिखाती है।
  • सल्फर का उपयोग:
    • बेसल डोज में सल्फर: गेहूं की बुवाई करते समय बेंटोनाइट सल्फर (10-15 किलो प्रति एकड़) बेसल डोज के रूप में डालें।
    • पहली या दूसरी सिंचाई में सल्फर: 90% या 80% सल्फर को यूरिया और अन्य खादों के साथ मिलाकर सिंचाई के समय डाल सकते हैं।
नोट: रिपोर्ट में दी गई जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध सार्वजनिक स्रोतों से एकत्रित की गई है। किसान भाई किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।