गेहूं में खरपतवार कर सकता है भारी नुकसान | अभी से करें यह इलाज | मिलेगा भरपूर उत्पादन
गेहूं में खरपतवार को दूर भगा कर फसल से ज्यादा मुनाफा कमाएं, जानिए इसका आसान तरीका
किसान भाइयों, हमारे देश में गेहूं की खेती कृषि क्षेत्र का एक प्रमुख हिस्सा है, जो लाखों किसानों की आजीविका का आधार है। देश में जलवायु और कृषि-प्रथाओं की विविधता के कारण गेहूं की बुआई, सिंचाई, उर्वरक प्रबंधन और खरपतवार नियंत्रण में क्षेत्रीय सलाह और वैज्ञानिक दृष्टिकोण आवश्यक हो जाता है। इस वर्ष, नवंबर के प्रथम सप्ताह तक अधिकांश क्षेत्रों में गेहूं की बुआई लगभग 80% पूरी हो चुकी है। हालांकि, धान की देर से कटाई और बदलते तापमान ने इस प्रक्रिया को कुछ स्थानों पर प्रभावित किया है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR) के क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र, इंदौर ने किसानों के लिए गेहूं की खेती संबंधी महत्वपूर्ण सुझाव जारी किए हैं। इन सुझावों में बुआई, बीज दर, सिंचाई, उर्वरक और खरपतवार नियंत्रण जैसे विषयों पर विस्तृत मार्गदर्शन दिया गया है। आज की इस रिपोर्ट में हम इन वैज्ञानिक सिफारिशों को विस्तार से समझने और जानने की कोशिश करेंगे कि कैसे आप अपने खेतों में इन गतिविधियों को अमल में लाकर अधिकतम उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। इन सब बातों पर विस्तार से जानने के लिए चलिए पढ़ते हैं आज की यह रिपोर्ट।
बुआई और बीज उपचार
किसान साथियों, गेहूं की बुआई करते समय सही प्रजाति का चुनाव करना बेहद आवश्यक है। प्रजाति का चयन अपने संसाधनों और सिंचाई की उपलब्धता के आधार पर करें। अर्धसिंचित क्षेत्रों के लिए कम पानी वाली प्रजातियां जैसे कुरुक्षेत्रा 506 और सारथी उपयुक्त हैं। इसके अलावा, पूर्ण सिंचित क्षेत्रों के लिए अधिक उपज देने वाली प्रजातियां जैसे HD 2967 और PBW 550 का उपयोग करें। ये किस्में मिट्टी और जलवायु के हिसाब से गुणवत्ता युक्त और अधिक उत्पादन देने वाली हैं। जब आप गेहूं की बुआई करें, तो बुआई से पहले बीजों को 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम या थायरम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें ताकि फसल को रोगों से बचाया जा सके। गेहूं की बुआई के लिए आप 40 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से बीज की मात्रा लें। अगर गेहूं की बुआई के सही समय की बात करें, तो 20 नवंबर तक की बुआई का सही समय माना जाता है। इस समय की गई बुआई की फसल समय से पककर तैयार हो जाती है।
उर्वरक प्रबंधन
किसान भाइयों, गेहूं की खेती में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का सही अनुपात में उपयोग बहुत ही आवश्यक है। अगर किसान मिट्टी की जांच नहीं कर पाए हैं, तो एक एकड़ जमीन पर 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 25 किलोग्राम फास्फोरस और 25 किलोग्राम पोटैश का इस्तेमाल करें। सिंचित गेहूं में बोने के समय 125 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटैश प्रति हेक्टेयर की दर से दें। देशी किस्मों में 60:30:30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के अनुपात में उर्वरक दें। असिंचित गेहूं की देशी किस्मों में 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 किलोग्राम फास्फोरस और 20 किलोग्राम पोटैश प्रति हेक्टेयर की दर से दें। नाइट्रोजन खाद का उपयोग तीन चरणों में करें। बुआई से पहले बेसल डोज में नाइट्रोजन की 50% मात्रा डालें और फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई से पहले खेत में मिला दें। बची हुई नाइट्रोजन की मात्रा को दो भागों में बाँटें। पहली सिंचाई (20 दिन बाद) के साथ नाइट्रोजन की आधी मात्रा डालें और दूसरी सिंचाई (40-45 दिन बाद) के साथ शेष नाइट्रोजन दें। मिट्टी की सेहत बनाए रखने और पीएच मान को संतुलित रखने के लिए हर तीन वर्षों में जैविक खाद जैसे हरी खाद, गोबर खाद या जीवांश पदार्थ का उपयोग अवश्य करें। इससे मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी दूर होती है।
खरपतवार की रोकथाम
किसान साथियों, गेहूं की फसल में खरपतवार (Weeds) एक बड़ी समस्या होती हैं, जो फसल की वृद्धि और पोषण को प्रभावित करते हैं। खरपतवार के कारण मिट्टी में मौजूद पोषक तत्व पौधों को पूरी मात्रा में प्राप्त नहीं हो पाते। अगर समय पर खरपतवारों का नियंत्रण नहीं किया जाए, तो यह आपकी फसल के उत्पादन को प्रभावित कर सकते हैं। खरपतवारों का समय पर समाधान करके आप अपनी फसल की उत्पादकता बढ़ा सकते हैं।खरपतवारनाशक दवाओं का छिड़काव मौसम साफ (न वर्षा, न कोहरा) रहने पर ही करें। मजदूरों की सहायता से फसल के बीच छिपे खरपतवारों को हाथ से निकालें। कुछ विशेष खरपतवारों और उनके समाधान के लिए निम्न उपाय करें:
1.सामान्य खरपतवार
किसान भाइयों, अगर आपकी गेहूं की फसल में सामान्य खरपतवार हो गई है तो आप 24 D Sodium Salt 650 ग्राम प्रति हेक्टेयर को 600 लीटर पानी में मिला कर इसका छिड़काव करें। इन खरपतवारों के लिए मेटसल्फ्युरॉन मिथाइल 4 ग्राम प्रति हेक्टेयर का उपयोग भी प्रभावी है। इसके प्रभाव से आपकी फसल में खरपतवार नष्ट हो जाएंगे और मिट्टी में मौजूद सभी पोषक तत्व पौधों को सही मात्रा में प्राप्त होंगे।
2.चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार
किसान साथियों, गेहूं की फसल में कंडाई जैसे चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को नष्ट करने के लिए आप पायरोक्सासल्फोन 85%@60 ग्राम प्रति एकड़ या क्लोडिनाफॉप 60 ग्राम प्रति हेक्टेयर का उपयोग करें। इन रसायनों का छिड़काव बुआई के 30-35 दिन बाद मिट्टी में नमी रहने पर करें, या सिंचाई के बाद करें।
3.बथुआ नियंत्रण
किसान भाइयों, गेहूं की फसल में बथुआ की रोकथाम के लिए आपको समय रहते इसका समाधान करना आवश्यक है, क्योंकि अगर आपने बथुआ की रोकथाम में देरी कर दी तो बथुए के बीज पूरे खेत में फैल जाते हैं और वह आपकी फसल के लिए अगले साल भी समस्या बन सकते हैं। इसकी रोकथाम के लिए आप फसल में समय पर निराई-गुड़ाई और खरपतवार नाशक दवाओं का छिड़काव करें। बथुए को नष्ट करने के लिए 24 D Sodium Salt 500-700 ग्राम प्रति हेक्टेयर का छिड़काव अत्यधिक लाभकारी माना जाता है। बथुआ की रोकथाम के लिए किसान भाई बुआई के बाद 1-2 दिनों के अंदर पेंडामेथेलिन 30 ई सी 3.3 लीटर को 800-1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
सिंचाई प्रबंधन
किसान भाइयों, गेहूं की फसल में सिंचाई का महत्वपूर्ण योगदान होता है, खासकर पहली सिंचाई का विशेष रूप से ध्यान रखने की आवश्यकता होती है। गेहूं में पहली सिंचाई पर सही समय और फसल की आवश्यकता के अनुसार पानी दें। सिंचित क्षेत्र में पहली सिंचाई बुआई के 20 दिन बाद करें और फिर दूसरी सिंचाई उसके 25 दिन के अंतराल के बाद करें। इस प्रकार गेहूं की फसल में सिंचित क्षेत्र में कम से कम 4 सिंचाई अवश्य करें। अर्धसिंचित क्षेत्रों में पहली सिंचाई 35-40 दिन के अंतराल पर करें और इसी प्रक्रिया के अनुसार फसल में दो से तीन सिंचाई जरूर करें। ध्यान रखें गेहूं की पहली और दूसरी सिंचाई के समय नाइट्रोजन खाद का प्रयोग अवश्य करें। सिंचाई के दौरान खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था रखें। नालियों द्वारा पानी का समान वितरण सुनिश्चित करें।
रोग नियंत्रण
किसान भाइयों, गेहूं की फसल में रोगों की रोकथाम का उपाय भी बहुत आवश्यक है क्योंकि अगर फसल में रोगों का समय पर उपचार नहीं किया जाए तो यह न केवल फसल के उत्पादन को प्रभावित करते हैं, बल्कि फसल की गुणवत्ता को भी कम करते हैं। गेहूं की फसल में गेरुआ रोग (Rust) और कुपोषण प्रमुख समस्याएं हो सकती हैं। इनसे बचाव के लिए किसान भाई नई और रोग प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करें। बीजों को उपचारित करके ही बुवाई करें और आवश्यकता अनुसार समय पर कीटनाशकों का भी प्रयोग करें। फसल में रोगों की रोकथाम के लिए जैविक विधियों को अधिक से अधिक अपनाएं। खेत में फसल अवशेष जलाने के बजाय उनका खाद बनाएं, क्योंकि खेत में अवशेषों को जलाने से फसल के लिए आवश्यक सूक्ष्मजीव जो फसल की रोगों से रोकथाम करते हैं, वह भी नष्ट हो जाते हैं। बीजों को उपचारित करने के लिए, कार्बाक्सिन 75% या कार्बनडाजिम 50% का इस्तेमाल किया जाता है। 2.5-3.0 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज के लिए पर्याप्त होती है। कण्डवा रोग से बचने के लिए, टेबूकोनोजाल 1 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज का इस्तेमाल किया जाता है। पीला रतुआ रोग के लिए, प्रोपिकोनाजोल का छिड़काव किया जा सकता है। इसकी मात्रा 200 मिलीलीटर प्रति एकड़ के हिसाब से 200 लीटर पानी में घोलकर बनाई जाती है। ख़स्ता फफूंदी के नियंत्रण के लिए, किसान भाई KTM - थायोफेनेट मिथाइल 70% WP, Concor - डिफ़ेनकोनाज़ोल 25% ईसी, Azozole - एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 18.2% + डिफ़ेनोकोनाज़ोल 11.4% एससी और Azoxy - एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 23% एससी का उपयोग कर सकते हैं।
नोट: रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर मौजूद सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। संबंधित किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।
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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।