जैविक खेती से भी गेहूं में मिल सकता है 80 मण का उत्पादन | जाने क्या है सही तरीका

 

किसान साथियों, हमारे देश में गेहूं की खेती का महत्व अत्यधिक है, क्योंकि यह देश के प्रमुख खाद्य पदार्थों में से एक है। हर साल बड़ी मात्रा में गेहूं की बुवाई होती है, और यह खाद्यान्न सुरक्षा के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण है। जहां एक ओर पारंपरिक गेहूं की खेती में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग होता है, वहीं जैविक गेहूं की खेती एक सुरक्षित और स्थिर विकल्प साबित हो रही है। इसमें न केवल पर्यावरण की सुरक्षा होती है, बल्कि किसानों को भी बेहतर उत्पाद, बेहतर उपज और ज्यादा मुनाफा मिलता है। जैविक कृषि में जैविक प्रमाणित बीजों का ही उपयोग करना चाहिए। यदि जैविक प्रमाणित बीज की उपलब्धता नहीं हो, तो किसी रसायन के बिना उपचारित सामान्य बीज का भी उपयोग कर सकते हैं। ड्यूरम गेहूं किस्म को कम पानी की आवश्यकता होती है। सीमित मात्रा में सिंचाई की अवस्था में भी यह अच्छी उपज देती है। जैविक खेती की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होता। इसके परिणामस्वरूप, उत्पादन में न केवल पोषण तत्व अधिक होते हैं, बल्कि यह पर्यावरण और कृषि भूमि के लिए भी सुरक्षित होता है। रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर जैविक खादों का उपयोग किया जाता है, जो मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखते हैं। इससे मिट्टी में प्राकृतिक सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ती है और भूमि की गुणवत्ता बेहतर होती है।

इस रिपोर्ट में हम गेहूं की जैविक बुवाई से संबंधित सभी पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे, ताकि किसान भाई सही मार्गदर्शन प्राप्त कर सकें और इस दिशा में सफलता प्राप्त कर सकें। गेहूं की जैविक विधि से बुवाई की गतिविधियों के बारे में विस्तारपूर्वक जानने के लिए चलिए पढ़ते हैं यह रिपोर्ट।

भूमि की तैयारी

किसान भाइयों, जैविक गेहूं की बुवाई वैसे तो सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन बुवाई के लिए दोमट मिट्टी या चिकनी दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त बताई जाती है। बुआई से पहले भूमि की अच्छी तैयारी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसे अच्छे से जोतकर समतल करना चाहिए, ताकि बीजों की बुवाई सही तरीके से की जा सके। भूमि में जैविक खाद जैसे गोबर की खाद, हरी खाद और वर्मी कंपोस्ट का समुचित मात्रा में प्रयोग करें। इसके लिए खेत में आपको 5 से 7 टन गोबर की गली-सड़ी हुई पुरानी खाद का उपयोग करना चाहिए, ताकि मिट्टी में पोषक तत्वों की कोई कमी न हो और भूमि की उर्वरता बनी रहे। जैविक खाद का उपयोग मिट्टी को अधिक उपजाऊ और स्वस्थ बनाए रखता है। अगर आपको गोबर की खाद उपलब्ध नहीं होती है, तो आप कंपोस्ट खाद का भी उपयोग कर सकते हैं।

बीज का चयन

किसान भाइयों, जैविक खेती की सफलता का मुख्य कारण उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का चयन करना है। जैविक खेती के लिए जैविक विधि से प्रमाणित बीजों का ही उपयोग करना चाहिए। इन बीजों को रासायनिक उपचार से मुक्त और प्रमाणित जैविक बीज होना चाहिए। यदि प्रमाणित बीज उपलब्ध नहीं होते हैं, तो सामान्य प्रक्रिया में बीज को 100°F पानी में गर्म करके बीज की प्रजाति के आधार पर 122°F पानी के स्नान में 20-25 मिनट तक गर्म करना चाहिए। उसके बाद बीज को ठंडे पानी में 5 मिनट तक ठंडा करके तेजी से सुखाना चाहिए। इसके बाद आप बीज का उपयोग बुवाई के लिए कर सकते हैं।

बीजों के चयन में ध्यान देने योग्य बातें जैसे बीजों की संरचना, स्वास्थ्य और उगने की क्षमता महत्वपूर्ण होती हैं। प्रमाणित बीजों से बेहतर गुणवत्ता की उपज प्राप्त होती है। बीज उपचार के लिए आप 5 से 6 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलो बीज उपयोग कर सकते हैं। ट्राइकोडर्मा से बीज उपचारित करने से बीज जनित और भूमि जनित रोगों से फसल को बचाया जा सकता है।

बुवाई का तरीका
किसान भाइयों, जैविक विधि से गेहूं की बुवाई में बीजों की गहराई और दूरी का सही चुनाव आवश्यक है। बीजों को आदर्श गहराई पर बोने से अंकुरण में मदद मिलती है, जिससे अच्छे पौधे उगते हैं। खेत में बीजों की उचित दूरी बनाए रखना आवश्यक है ताकि पौधे एक-दूसरे से संपर्क न करें और एक-दूसरे से पोषण ले सकें। गेहूं की बुआई के लिए, मिट्टी मध्यम मात्रा में पानी सोखने वाली होनी चाहिए। इसके लिए दोमट या चिकनी दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है। गेहूं की बुआई सिंचित क्षेत्रों में अधिक पैदावार देने वाली किस्मों की बुआई आमतौर पर नवंबर के पहले या दूसरे सप्ताह में करनी चाहिए। बुवाई की गहराई आमतौर पर मैक्सिकन प्रजातियों के लिए करीब 5 सेंटीमीटर, अर्ध बौनी किस्मों के लिए 5-6 सेंटीमीटर और बौनी किस्मों के लिए भी 5-6 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। गेहूं की बुआई के बाद, बीज को हल्की मिट्टी से ढक दें। बुवाई के लिए आप सिंचित क्षेत्र में 100 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर ले सकते हैं। अगर आप कम सिंचाई वाले क्षेत्रों में गेहूं की बिजाई कर रहे हैं तो आपको बीज की मात्रा 125 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर लेनी चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण
किसान साथियों, जैविक नियंत्रण में प्राकृतिक शत्रुओं का इस्तेमाल किया जाता है। इन्हें बायो-एजेंट कहते हैं। ये अपने लक्ष्य पर ही हमला करते हैं और पर्यावरण, मनुष्यों, और पशु-पक्षियों पर कोई बुरा असर नहीं डालते। खरपतवार नियंत्रण के लिए कीटों को उन महाद्वीपों से लाया जाता है जहां से हानिकारक खरपतवार आए हैं। इसमें कीट, रोगजनक, बैक्टीरिया, कवक, या अन्य जानवरों का इस्तेमाल किया जाता है। इन जैविक एजेंटों से खरपतवारों पर हमला होता है, जिससे उनका विकास कम हो जाता है या वे मर जाते हैं। जैविक नियंत्रण विधि से खरपतवारों की आबादी कम की जा सकती है, लेकिन उन्हें पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सकता।

कीट और रोग नियंत्रण
किसान साथियों, जैविक खेती में कीटों और रोगों से निपटने के लिए रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया जाता। इसके बजाय, प्राकृतिक कीटनाशकों जैसे नीम का तेल, तंबाकू का अर्क, और प्याज और लहसुन का रस का उपयोग किया जाता है। इन जैविक कीटनाशकों से फसलों को कीटों से बचाया जा सकता है। दीमक फसल की वृद्धि की किसी भी अवस्था में फसल को क्षति पहुंचा सकती है। यह समस्या सिंचित क्षेत्रों की अपेक्षा वर्षापोषित क्षेत्रों में अधिक प्रमुख है। गैर-सिंचित दशाओं में अविघटित कार्बनिक खाद के प्रयोग से भी दीमक के प्रकोप की संभावना बढ़ सकती है। बुआई के समय मृदा में नीम के पत्ते की खाद (5 क्विंटल/हेक्टेयर) अथवा नीम खाद (1 क्विंटल/हेक्टेयर) के प्रयोग से दीमक के आक्रमण से बचा जा सकता है। चूना और गंधक का मिश्रण जमीन में डालने से दीमक के प्रकोप में कमी आती है। लकड़ी की राख को पौधों के तनों के मूल में डालने से भी दीमक के प्रकोप में कमी आती है। पशु-मूत्र को पानी में 1:6 में मिलाकर बार-बार दीमक के घरों में डालने से उनके प्रसार को रोका जा सकता है। वीवेरिया या मेटाराईजियम फफूद का कण अवस्था में (6 ग्राम प्रति वर्ग मीटर) प्रयोग करें। गेहूं की फसल में रोग और कीड़ों से लड़ने के लिए, 12-15 मिलीमीटर गौमूत्र को एक लीटर पानी में मिलाकर स्प्रेयर पंप से छिड़काव करें। नीम की पत्तियों का घोल बनाकर भी फसल को सुरक्षित रखा जा सकता है। इसके लिए, 10-12 किलो नीम की पत्तियों को 200 लीटर पानी में भिगोकर चार दिन के लिए रखें। पानी हरा-पीला होने पर इसे छानकर, एक एकड़ की फसल पर छिड़काव करें।

सिंचाई प्रबंधन
किसान भाइयों, गेहूं की फसल में अगर सिंचाई की बात करें तो पहली सिंचाई बुआई के 20-25 दिनों बाद करनी चाहिए। दूसरी सिंचाई बुआई के 40-45 दिनों बाद करनी चाहिए। तीसरी सिंचाई बुआई के 65-70 दिनों बाद करनी चाहिए। चौथी सिंचाई बुआई के 90-95 दिनों बाद करनी चाहिए। पांचवी सिंचाई बुआई के 105 से 110 दिनों पर करनी चाहिए। अत्यधिक जलापूर्ति से बचने के लिए ड्रिप इरिगेशन प्रणाली का उपयोग किया जा सकता है। इससे जल की बचत होती है और फसलों को आवश्यक जल मिलता है। गेहूं की फसल में सिंचाई के लिए क्यारी विधि की तुलना में बार्डर विधि से 20-30 प्रतिशत पानी और मेहनत की बचत होती है। खेतों में पानी की नियमित जांच और जरूरत के हिसाब से सिंचाई करना आवश्यक है, ताकि फसल को सही मात्रा में पोषण और जल मिल सके।

लाभ
किसान भाइयों, जैविक खेती में रासायनिक उर्वरकों की जरूरत नहीं होती, जिससे फसल पर आने वाली लागत में भारी कमी आती है। हालांकि, जैविक बीज, जैविक खाद, और कीटनाशकों का प्रयोग अधिक होता है, लेकिन दीर्घकालिक दृष्टिकोण से इनकी लागत रासायनिक उर्वरकों और दवाइयों की तुलना में काफी कम होती है। रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कम होने से भूमि की उर्वरता और पीएच मान में सुधार होता है। संतान फसल के उत्पादन और गुणवत्ता में भी बढ़ोतरी होती है। जैविक विधि द्वारा की गई खेती से फसल की गुणवत्ता काफी बेहतर बनती है, जो बाजार में आपको अन्य फसलों के मुकाबले 15 से 20 प्रतिशत अधिक मूल्य दिलाने में सहायक होती है।

नोट:- रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। संबंधित किसी भी प्रक्रिया को अपनाने से पहले कृषि विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।