ट्यूबवेल के पानी को बनाएँ नहर जैसा | उत्पादन होगा दोगुना | जाने क्या है तरीका

 

किसान भाइयों, कृषि के लिए पानी एक महत्वपूर्ण संसाधन है। सही मात्रा और गुणवत्ता का पानी न केवल फसलों की उपज और गुणवत्ता को बढ़ाता है, बल्कि यह मिट्टी की सेहत पर भी गहरा प्रभाव डालता है। पारंपरिक रूप से देखा जाए तो नहरों के द्वारा सिंचाई भारतीय कृषि का मुख्य आधार रही है, लेकिन समय के साथ नहर के पानी की कमी और सिंचाई की बढ़ती जरूरतों ने किसानों को ट्यूबवेल के पानी पर निर्भर बना दिया है। हालांकि ट्यूबवेल का पानी मीठा अवश्य होता है, लेकिन ट्यूबवेल का पानी अधिक लवणीयता और खनिजों की अधिकता के कारण मिट्टी और फसलों को नुकसान पहुंचा सकता है। इन बातों की जानकारी न होने और नहरों के पानी की कमी के कारण किसान भाई अंधाधुंध खेती के लिए ट्यूबवेल के पानी का इस्तेमाल कर रहे हैं। अगर सिंचाई के लिए लगातार अकेले ट्यूबवेल के पानी का उपयोग किया जाए तो यह धीरे-धीरे मिट्टी की उर्वरता शक्ति को कम कर देता है। इस रिपोर्ट में हम ट्यूबवेल के पानी के प्रभाव और ट्यूबवेल के पानी को खेती के लिए किस प्रकार उपयोग में लाया जाए, इन सभी बातों पर विस्तार से चर्चा करेंगे। इन सब बातों पर सही प्रकार से जानकारी लेने के लिए आइए पढ़ते हैं यह रिपोर्ट।

नहर और ट्यूबवेल के पानी की तुलना
किसान भाइयों, नहर का पानी फसलों के लिए बेहतर माना जाता है क्योंकि इसमें खनिजों का संतुलन और कम लवणीयता होती है। नहर के पानी से सिंचाई के बाद खेतों में 15 से 25 दिनों तक नमी बनी रहती है, जबकि ट्यूबवेल का पानी अधिक खारा होने के कारण 3-4 दिनों में नमी समाप्त हो जाती है। नहर का पानी प्राकृतिक पोषक तत्व प्रदान करता है और फसलों की पैदावार बढ़ाता है, जबकि ट्यूबवेल का पानी मिट्टी को कठोर और क्षारीय बना सकता है, जो पौधों के विकास को बाधित करता है। इसके अलावा, ट्यूबवेल का पानी खेत में खरपतवारों की अधिकता को भी बढ़ावा देता है। ट्यूबवेल के पानी के कारण मिट्टी में पीएच का स्तर बढ़ जाता है। खारे पानी से सिंचाई के कारण मिट्टी की क्षारीयता अधिक हो जाती है, जिससे पौधों की जड़ों की पोषक तत्वों को अवशोषित करने की क्षमता घट जाती है, जिसके कारण जैविक कार्बन की मात्रा में कमी आती है, और मिट्टी को आवश्यक पोषक तत्वों और उर्वरकों का प्रभाव कम हो जाता है। मिट्टी कठोर हो जाती है और फसलों की जड़ें विकास नहीं कर पातीं। इसके अलावा, मिट्टी में फफूंद और अन्य रोगजनक तत्व बढ़ जाते हैं, जो फसलों के लिए हानिकारक होते हैं।

समस्या का समाधान
जिप्सम का उपयोग

किसान साथियों, इस समस्या के समाधान के लिए आप जिप्सम का उपयोग कर सकते हैं। जिप्सम मिट्टी की लवणीयता को कम करने और पीएच संतुलित बनाए रखने का एक प्रभावी उपाय है। जिप्सम का उपयोग ट्यूबवेल के पानी से मिट्टी पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करता है। जिप्सम का उपयोग आप पहले वर्ष में खरीफ और रबी फसलों के दौरान प्रति एकड़ 4 बैग जिप्सम डालें, दूसरे और तीसरे वर्ष में प्रति सीजन 3 बैग जिप्सम का उपयोग करें। आप इसी प्रकार लगातार 4-5 वर्षों तक जिप्सम के उपयोग करें। इस प्रकार जिप्सम का उपयोग करने से ट्यूबवेल के पानी का प्रभाव खेत में कम हो जाता है और मिट्टी की संरचना में सुधार होता है और लवणीयता नियंत्रित रहती है।

जैविक खाद और वेस्ट डीकंपोजर
किसान भाइयों, ट्यूबवेल के पानी के प्रभाव को मिट्टी से कम करने के लिए जैविक खाद और वेस्ट डीकंपोजर जैसे उपाय भी अपना सकते हैं। जैविक खाद और वेस्ट डीकंपोजर मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। फसल अवशेषों को खेत में मिलाने से मिट्टी में जैविक कार्बन की मात्रा बढ़ती है। जैविक खादों जैसे गोबर की खाद, जीवामृत और गुड़ के घोल का उपयोग करें, ये न केवल मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करते हैं, बल्कि उत्पादन को भी बढ़ाते हैं।

मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए अन्य उपाय
किसान साथियों, मिट्टी के पीएच मान और स्वास्थ्य को संतुलित बनाए रखने के लिए सल्फर आधारित उर्वरकों का उपयोग बहुत लाभदायक होता है। यह मिट्टी के पोषण संतुलन को बनाए रखता है। इसके साथ ही, मैग्नीशियम क्लोराइड का उपयोग मिट्टी की कठोरता को कम करता है और जड़ों के विकास में सहायक होता है। इन रासायनिक उर्वरकों का नियंत्रित उपयोग करें और जैविक विकल्पों को प्राथमिकता दें। ट्यूबवेल और नहर के पानी को मिलाकर सिंचाई करें ताकि लवणीयता के प्रभाव को कम किया जा सके।

जैविक कार्बन की पूर्ति
दोस्तों, जैविक कार्बन की कमी खेतों की उपज और मिट्टी की संरचना को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रही है। पंजाब, हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यों में यह समस्या गंभीर है। जैविक खाद और वेस्ट डीकंपोजर के नियमित उपयोग से जैविक कार्बन को पुनः स्थापित किया जा सकता है। इससे न केवल मिट्टी की उर्वरता बढ़ेगी, बल्कि फसलों की पैदावार में भी वृद्धि होगी।

नोट: रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर मौजूद सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। संबंधित किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।