कपूर के इस्तेमाल से बढ़ाए अपनी फसल का उत्पादन | जाने क्या है इस्तेमाल का सही तरीका

 

नमस्कार किसान भाइयों, आज हम एक महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करेंगे जो किसान भाइयों के लिए काफी फायदेमंद है। यह विषय खासकर उन किसान भाइयों के लिए अधिक फायदेमंद है जो सब्जी की खेती करते हैं। खेती में फसल की सुरक्षा बहुत ही जरूरी होती है। किसान भाई अपनी क्षमता से अधिक खर्च करके फसल की बुआई करते हैं और दिन-रात मेहनत करने के बाद रोगों के कारण उनकी पूरी मेहनत बर्बाद हो जाती है। फसल में अलग-अलग रोग लगने से न केवल फसल के उत्पादन में कमी आती है बल्कि उसकी गुणवत्ता भी निम्न स्तर की हो जाती है। किसान भाइयों, आज हम आपको एक ऐसी वस्तु के बारे में बताएंगे जिसके उपयोग से आप न केवल अपनी फसलों में आने वाली बीमारियों से बचाव कर सकते हैं बल्कि यह आपके लिए आर्थिक रूप से भी बहुत ही किफायती है। हम बात कर रहे हैं कपूर की। कपूर, जो लगभग हर घर के पूजा घर में मिल जाता है, में कुछ ऐसे प्राकृतिक गुण होते हैं जो हमारी फसल को रोगों से बचाने में अत्यधिक लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं।

खेती में आने वाले विभिन्न प्रकार के रोग किसानों के लिए एक चिंता का विषय बने हुए हैं, खासकर सब्जी वर्गीय फसलों में। अगर इन फसलों में अधिक कीटनाशकों का प्रयोग किया जाए तो फसल की गुणवत्ता बिल्कुल ही निम्न स्तर की हो जाती है, जिसे मंडी में अच्छे भाव नहीं मिलते। सब्जी और हरी फसलों में रोगों की अधिक समस्या उस वक्त होती है जब मौसम में बदलाव होता है, जैसे कि गर्मी से बरसात या फिर बरसात से सर्दियों में। इस समय कीट और फंगस का अटैक बहुत बढ़ जाता है जो आपकी फसल को अत्यधिक नुकसान पहुंचा सकते हैं।

किसान भाई अपनी फसल को रोगों से बचाने के लिए ज्यादातर रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं ताकि उनकी फसल रोगमुक्त और स्वस्थ बन सके। लेकिन रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग अत्यधिक महंगा पड़ता है और इनके अत्यधिक उपयोग से न केवल रोगों से बचाव होता है बल्कि फसल की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। साथ ही, रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग मिट्टी और पर्यावरण के लिए भी हानिकारक हो सकता है। इसलिए हम आपके लिए कपूर का एक ऐसा फार्मूला लेकर आए हैं जो न केवल आपके लिए सस्ता है बल्कि प्राकृतिक रूप से भी फायदेमंद है। यह एक एंटीफंगल और कीटनाशक का काम करता है और इसके उपयोग से आप अपनी फसल की सुरक्षा अच्छी तरह कर सकते हैं। आज की इस रिपोर्ट में हम फसल में कपूर के उपयोग, स्प्रे करने की विधि, गुण और लाभ पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

कपूर का महत्व
किसान भाइयों, कपूर एक सफेद रंग की ठोस अवस्था में होता है जो चकोर आकार में मिलता है। वैसे तो कपूर हर घर में पूजा में इस्तेमाल होने वाला एक प्राकृतिक उत्पाद है जिसमें एक खास महक आती है। बाजार में नेफ्थलीन की गोलियां भी मिलती हैं जो बिल्कुल कपूर की तरह दिखती हैं, किंतु उनकी महक और गंध अलग होती है। कई बार दुकानदार गलती से कपूर के बदले नेफ्थलीन की गोलियां दे देते हैं। नेफ्थलीन की गोलियां गोलाकार होती हैं जबकि कपूर की गोलियां चकोर होती हैं, इसलिए जब भी आप कपूर लेने दुकान पर जाएं तो उसकी पहचान अवश्य करें। कपूर धार्मिक कार्यों में प्रयोग किए जाने के साथ-साथ एक प्राकृतिक एंटीफंगल और कीटनाशक का गुण भी रखता है। इसकी गंध कई प्रकार के कीट और फफूंद को दूर कर सकती है, जिससे फसल को नुकसान पहुंचाने वाले इन तत्वों से बचाया जा सकता है। किसान भाई, कपूर का प्रयोग फंगस की रोकथाम के लिए कर सकते हैं। फसल में आने वाले विभिन्न प्रकार के फंगस के कारण फसलें बहुत अधिक प्रभावित हो जाती हैं और कई बार तो पूरी फसल ही नष्ट हो जाती है। कपूर का प्रयोग इन फंगस की रोकथाम के लिए काफी प्रभावशाली है। यह न केवल फसल के रोगों से रोकथाम करता है बल्कि फसल की क्वालिटी और पैदावार को बढ़ाने में भी सहायक है।

कीट नियंत्रण
दोस्तों, आपकी फसल में विशेषकर सब्जी वर्गीय फसलों में मक्खी, मच्छर और छोटे-छोटे कीट होते हैं जो फसल को काफी अधिक नुकसान पहुंचाते हैं और इसकी गुणवत्ता पर अत्यधिक प्रभाव डालते हैं। यदि आप उन फसलों पर कपूर के घोल का छिड़काव करते हैं तो कपूर से उत्पन्न होने वाली गंध के कारण मच्छर और मक्खी आपकी फसल से दूर रहते हैं। कपूर आपकी फसल पर एक प्राकृतिक कीटनाशक की तरह कार्य करता है और इसमें आपका खर्च भी लगभग न के बराबर आता है। महंगे रासायनिक दवाओं के मुकाबले कपूर का उपयोग काफी सस्ता और आपकी फसल के लिए काफी किफायती है। इसका उपयोग करने से न केवल फसल पर आने वाला खर्च कम होता है बल्कि जैविक खेती को भी बढ़ावा मिलता है, जिससे पर्यावरण और प्रकृति की सुरक्षा हो पाती है।

कपूर का उपयोग खेती में कैसे करें
किसान साथियों, आप कपूर का उपयोग अपनी फसल में स्प्रे के रूप में कर सकते हैं। इसके लिए आप एक एकड़ जमीन के लिए 200 लीटर पानी में 200 ग्राम कपूर का घोल बना लें। अगर आप इस घोल को तैयार करने के लिए गर्म पानी का उपयोग करते हैं तो इससे आपका समय बच जाएगा क्योंकि गर्म पानी में कपूर जल्दी घुल जाता है। यह घोल तैयार होने के बाद आप इसमें नीम तेल का मिश्रण जरूर करें। नीम तेल की मात्रा आप 1 लीटर पानी में 1 मिलीलीटर के हिसाब से डालें, यानी 200 लीटर पानी में आप 200 मिलीलीटर नीम ऑयल मिलाएं। इस प्रकार कपूर और नीम तेल का इकट्ठा घोल तैयार करें। नीम तेल का कपूर के साथ मिश्रण करने पर यह आपकी फसल पर कीटों के लिए अत्यधिक प्रभावी सिद्ध हो सकता है। नीम ऑयल एक प्राकृतिक एंटीफंगल और कीटनाशक है जो फसल को कीटों से एक अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करता है। इस घोल का स्प्रे आप अपनी फसल पर 10 से 12 दिन के अंतराल पर कर सकते हैं। यह एक जैविक प्रक्रिया है जो आपकी फसल की गुणवत्ता को बनाए रखती है।

सावधानियां
किसान साथियों, कपूर का स्प्रे अपनी फसल पर करने से पहले आपको कुछ बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। आप इसका प्रयोग अपनी फसल के छोटे हिस्से पर करें क्योंकि इससे आपको पता लग जाएगा कि आपके बीज की क्वालिटी उत्तम न होने के कारण और मिट्टी में आवश्यक गुणवत्ता की कमी के कारण कहीं कपूर का उपयोग आपकी फसल पर नकारात्मक प्रभाव तो नहीं डाल रहा है। दूसरा, आपको इस बात का भी ध्यान रखना है कि इसका छिड़काव सुबह या शाम को ही करें। तेज धूप में स्प्रे न करें क्योंकि धूप में स्प्रे करने से पत्तों पर दुष्प्रभाव पड़ सकता है और इससे फसल पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है। स्प्रे करते समय इसकी मात्रा का भी ध्यान रखें। फसल और मौसम के अनुसार कपूर की मात्रा का उपयोग करें। यदि आपकी फसल छोटी है तो मात्रा कम रखें और यदि फसल बड़ी हो चुकी है तो मात्रा को थोड़ा बढ़ा सकते हैं।

लाभ
किसान साथियों, अगर आप कपूर का सही मात्रा और सही विधि से अपनी फसल में प्रयोग करते हैं तो कपूर आपकी फसल के लिए अत्यधिक फायदेमंद साबित हो सकता है। इसका उपयोग करने से मिट्टी में रासायनिक अवशेषों को नष्ट कर देता है, जिससे मिट्टी की सेहत और पीएच मान संतुलित बने रहते हैं। कपूर एक प्राकृतिक उत्पाद है और इसका उपयोग खेती में करने से पर्यावरण को सुरक्षित रखने में भी मदद मिलती है। यदि आप इसका उपयोग कीट और फंगस नियंत्रण के लिए करते हैं तो यह प्राकृतिक रूप से फसल की गुणवत्ता और दृष्टि से आपके लिए अत्यधिक फायदेमंद है। कपूर का उपयोग करने से आप रासायनिक कीटनाशकों पर खर्च होने वाले भारी खर्चे से भी बच सकते हैं, जिससे फसल पर आने वाला खर्च 40 से 50% तक कम हो जाता है।

नोट: रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। किसान भाई, संबंधित किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि वैज्ञानिकों की सलाह अवश्य लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।