आलू की खेती से बढ़िया मुनाफा कमाना है तो ये रिपोर्ट देखना जरूरी है

 

आलू की बुवाई: धान की कटाई के बाद लाभदायक खेती

धान की फसल की कटाई के बाद किसान आमतौर पर आलू की फसल की बुवाई करते हैं। आलू एक ऐसी फसल है, जो कम क्षेत्रफल में अधिक उत्पादन देती है और 60 से 80 दिनों के भीतर किसानों को अच्छा उत्पादन और मुनाफा मिल सकता है। हालांकि, अगर किसान बुवाई के दौरान कुछ बातों का ध्यान रखें तो वे रोग रहित और उच्च गुणवत्ता वाली आलू की उपज प्राप्त कर सकते हैं, जिससे उत्पादन लागत भी कम हो जाएगी।

आलू की खेती का महत्व

आलू मुख्य फसलों में से एक है। यहां लगभग 15,000 हेक्टेयर क्षेत्र में आलू की खेती होती है, जिससे 5.5 लाख टन आलू का उत्पादन होता है। जिले में 2.5 लाख टन आलू भंडारण की क्षमता है। यदि किसान बुवाई के समय आवश्यक सावधानियां बरतें, तो वे 300 से 350 टन प्रति हेक्टेयर आलू का उत्पादन कर सकते हैं। और इसमें सफलतापूर्वक उत्पादन के लिए सही किस्म, समय, और तकनीकी विधियों का पालन आवश्यक है। यहाँ हम एक एकड़ आलू की खेती से जुड़े विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण करेंगे:
1. आलू का उत्पादन

उत्पादन राज्य:
उत्तर प्रदेश: 30% (120 क्विंटल प्रति एकड़)
पश्चिम बंगाल: 25%
बिहार: 13%
मध्य प्रदेश: 6%
 गुजरात: 6%
भारत में आलू का औसत उत्पादन एक एकड़ से 80 से 100 क्विंटल के बीच होता है।

2. आलू की उन्नत किस्में

आलू की अच्छी फसल के लिए उन्नत किस्म का चयन करना महत्वपूर्ण है। निम्नलिखित तीन किस्में प्रमुख हैं:

    कुफरी पुखराज
    कुफरी थार 3
    कुफरी संगम

इनके अलावा, आप अपने क्षेत्र की अन्य उन्नत किस्मों का भी चुनाव कर सकते हैं।

3. बुवाई का सही समय

आलू की बुवाई का सही समय बहुत महत्वपूर्ण है। बुवाई के लिए निम्नलिखित समय सारणी का पालन करें:

    अगेती बुवाई: 15 सितंबर के आसपास (70-90 दिन में फसल तैयार)
    सामान्य बुवाई: 15 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के बीच (90-100 दिन में फसल तैयार)
    पछे की बुवाई: 1 नवंबर से 15 नवंबर के बीच (120-130 दिन में फसल तैयार)

आलू की बुवाई और लागत

    बीज की लागत (भिजवारा):
        एक एकड़ आलू की खेती के लिए लगभग 10-12 क्विंटल बीज की आवश्यकता होती है।
        बीज की कीमत: ₹15 से ₹25 प्रति किलो।
        औसत कीमत: ₹20 प्रति किलो।
        कुल बीज लागत: 10 क्विंटल * 100 किलो * ₹20 = ₹24,000।

    बीज उपचार की लागत:
        बीजों को फफूंद और कीट से बचाने के लिए उपचार करना आवश्यक है।
        बीज उपचार की लागत: ₹600।

    खेत की तैयारी:
        खेत को अच्छी तरह से तैयार करना, जिसमें जुताई और मिट्टी की समतलीकरण शामिल है।
        कुल लागत: ₹4000।

    बेड मेकर का खर्च:
        अगर आप आलू की बुवाई बेड बनाकर करते हैं, तो बेड मेकर का खर्च होगा।
        बेड मेकर का खर्च: ₹800।

    जैविक खाद (देसी गोबर):
        जैविक खाद का इस्तेमाल मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए किया जाता है।
        देसी गोबर की लागत: ₹2500।

    रासायनिक उर्वरक और खाद:
        रासायनिक खाद का इस्तेमाल फसल को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करने के लिए किया जाता है।
        कुल लागत: ₹4600।

    बुवाई की लागत (लेबर):
        आलू के कंदों की बुवाई अगर लेबर द्वारा की जाती है तो इसकी लागत आएगी।
        लेबर की लागत: ₹2000।

    हार्वेस्टिंग का खर्च:
        आलू की खुदाई हार्वेस्टर मशीन द्वारा की जा सकती है।
        मशीन और लेबर का खर्च: ₹3000।

    कीटनाशक और फंगस नियंत्रण:
        आलू की फसल को फंगस और कीटों से बचाने के लिए स्प्रे करना आवश्यक है।
        कीटनाशक/फंगस नियंत्रण की लागत: ₹2000।

    ट्रांसपोर्ट खर्च:
        खेत से मंडी तक आलू को पहुंचाने के लिए ट्रांसपोर्ट का खर्चा।
        यह दूरी पर निर्भर करता है, औसतन: ₹4000।

सभी खर्चों को जोड़कर एक एकड़ आलू की खेती की कुल लागत आती है:

  • कुल लागत: ₹40,000 - ₹45,000 (स्थिति और परिवहन के आधार पर)।

4. आमदनी का अनुमान

आलू की फसल की आमदनी मंडी में विभिन्न कारणों से भिन्न हो सकती है। यहां एक उदाहरण दिया गया है:

    आलू का औसत मंडी मूल्य: ₹1260 प्रति क्विंटल।
    उत्पादन: 100 क्विंटल (मान लीजिए)।

कुल आमदनी:
कुल आमदनी=उत्पादन×मंडी मूल्य=100 क्विंटल×₹1260=₹1,26,000
कुल आमदनी=उत्पादन×मंडी मूल्य=100क्विंटल×₹1260=₹1,26,000

5. लागत और लाभ का विश्लेषण

कुल लागत: ₹44,500 (पिछले विवरण में दिए अनुसार)।

शुद्ध लाभ:
शुद्ध लाभ=कुल आमदनी−कुल लागत=₹1,26,000−₹44,500=₹81,500

इस तरह, एक एकड़ आलू की फसल से किसान लगभग ₹81,500 का लाभ कमा सकता है, जब फसल को सही समय पर लगाया जाए और बाजार में उचित दाम मिले। सही किस्म और बुवाई का समय चुनकर, किसान अपनी आय को बढ़ा सकते हैं।

किसान भाइयों आगे खेती कैसे करे उसका विस्तार विवरण है

खेत की तैयारी कैसे करें?

आलू की अच्छी फसल के लिए खेत की तैयारी अत्यंत महत्वपूर्ण है। आलू की बुवाई से पहले खेत की गहरी जुताई करें ताकि मिट्टी भुरभुरी और उपजाऊ हो जाए। खेत में 25 टन गोबर की सड़ी हुई खाद मिलाएं और फिर अंतिम जुताई करके खेत को समतल करें ताकि जल भराव की समस्या न हो और जल निकासी बेहतर बनी रहे। इससे आलू की जड़ों को पर्याप्त पोषण मिलेगा।

बीज शोधन का महत्व

बीज शोधन आलू की फसल को रोगों से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बीज शोधन के लिए 0.02 ग्राम मैंकोजेब (Mancozeb 75% WP) को प्रति लीटर पानी में घोलें और आलू के कटे या साबुत बीजों को 10 मिनट तक इस घोल में भिगोएं। बीजों को घोल से निकालकर छाया में सुखाएं, फिर उन्हें बुवाई के लिए तैयार करें। इस प्रक्रिया से आलू की फसल फफूंद रोगों से सुरक्षित रहती है।

उर्वरकों का सही इस्तेमाल

अच्छी उपज के लिए उर्वरकों का सही मात्रा में और सही समय पर उपयोग करना जरूरी है। नाइट्रोजन, फास्फोरस, और पोटाश: प्रति हेक्टेयर 100 से 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 45 से 60 किलोग्राम फास्फोरस और 100 किलोग्राम पोटेशियम का प्रयोग करें। दो किस्तों में उर्वरक डालें: आधी मात्रा बुवाई के समय और बाकी आधी 25-27 दिन बाद डालें। इससे पौधों को संतुलित पोषण मिलता है और उनका विकास बेहतर होता है।

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार आलू की फसल के लिए एक बड़ी समस्या हो सकती है, इसलिए इसका सही समय पर समाधान करना आवश्यक है। बुवाई के तुरंत बाद पेंडीमेथिलीन (Pendimethalin) नामक खरपतवारनाशक का इस्तेमाल करें। 500 मि.ली. से 1 लीटर दवा का घोल बनाकर खेत में छिड़काव करें। इससे खरपतवार नहीं उगेंगे और आलू की फसल को बेहतर पोषण मिलेगा।

सिंचाई के सही तरीके

आलू की फसल में सिंचाई का सही प्रबंधन उत्पादन को बढ़ाने में मदद करता है। परंपरागत सिंचाई की बजाय मिनी स्प्रिंकलर से सिंचाई करें। इससे न केवल जल संरक्षण होगा, बल्कि अगेती और पछेती झुलसा रोग से भी बचाव होगा।मिनी स्प्रिंकलर से सिंचाई करने पर आलू का आकार बड़ा होगा, मिट्टी नहीं चिपकेगी, और आलू की गुणवत्ता बढ़ेगी, जिससे बाजार में बेहतर भाव मिलेगा। इसके अलावा, 10 से 15% तक उत्पादन में भी वृद्धि हो सकती है।

झुलसा रोग से बचाव

आलू की फसल में झुलसा रोग की समस्या आम है, लेकिन इसे नियंत्रित किया जा सकता है।यदि फसल में झुलसा रोग आ जाए तो 2 ग्राम मैंकोजेब (Mancozeb 75% WP) को प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। इससे रोग का नियंत्रण आसानी से किया जा सकता है और फसल को सुरक्षित रखा जा सकता है।

आलू की खेती सही तरीकों से करने पर किसानों को बेहतर उपज और अधिक मुनाफा मिल सकता है। खेत की उचित तैयारी, बीज शोधन, सही उर्वरक और सिंचाई प्रबंधन के साथ-साथ रोग और खरपतवार नियंत्रण पर ध्यान देकर किसान आलू की फसल को रोगमुक्त और गुणवत्ता में उत्कृष्ट बना सकते हैं।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।