गेहूं में भरपूर कल्ले चाहिये तो पहली सिंचाई के समय बस ये काम कर लो

 

किसान साथियों गेहूं की फसल की प्रारंभिक अवस्था में पोषण प्रबंधन और पहली सिंचाई का समय बहुत महत्वपूर्ण होता है। 27 से 30 दिन की अवस्था में फसल में "क्राउन रूट" बनने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी होती है, क्राउन रूट बनने के बाद आप देखिए आपकी फसल की इस टाइम पर ओवरऑल कैसी ग्रोथ चल रही है अगर आपकी फसल किस दिन के ऊपर बीमार है उसके अंदर किसी भी तरह की कोई भी माइक्रो एंड न्यूट्रिशन डिफिशिएंसी दिखाई दे रही है  नीचे जड़ों के अंदर बीमारी लगी हुई है किसी भी है की उसके अंदर दीमक भी हो सकती है उसके अंदर निमेटोड भी हो सकती है उसके अंदर मोल या रोग भी हो सकता है   तो यह समय टिलरिंग (पौधे की शाखाओं) के विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इस चरण में किसी भी पोषक तत्व की कमी या प्रबंधन में कमी उत्पादन पर सीधा प्रभाव डाल सकती है। गेहूं का उत्पादन मुख्यतः फसल के हर पौधे में बनने वाले टिलर्स की संख्या पर निर्भर करता है। ज्यादा टिलर्स का मतलब है ज्यादा बालियां, जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है।

पहली सिंचाई के समय फसल की देखभाल करते हुए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए जाते हैं, जैसे कि पोषक तत्वों की पूर्ति, खरपतवार प्रबंधन, और पौधे की जड़ों की मजबूती। यह लेख इन सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को विस्तार से समझाने के लिए लिखा गया है ताकि किसान भाई इसे अपनाकर अपने उत्पादन को बेहतर बना सकें।
सिंचाई का सही समय

पहली सिंचाई 27 से 30 दिन की अवस्था में की जानी चाहिए। इस समय पौधों में कल्लों का निर्माण शुरू हो चुका हो। पौधों की जड़ें मिट्टी में मजबूती से जमी हों। फसल की जड़ें गहराई में फैल रही होती हैं, और पौधे की वृद्धि को पोषण और नमी की आवश्यकता होती है। फसल हरी-भरी और स्वस्थ दिख रही हो, लेकिन हल्का पीलापन नजर आ रहा हो। तो इस सही समय पर सिंचाई से पौधे स्वस्थ रहते हैं, और टिलरिंग बेहतर होती है। जितने अधिक कल्ले (tillers) बनेंगे, उतने ही ज्यादा दाने बनेंगे। इसका सीधा असर उत्पादन क्षमता पर पड़ता है। अगर इस समय पौधों को जरूरी पोषक तत्व नहीं मिले, तो उनकी वृद्धि रुक सकती है और उत्पादन में कमी आ सकती है।

पहली सिंचाई हमेशा सुबह या शाम के समय करें। सिंचाई के समय ध्यान रखें कि पानी खेत में समान रूप से फैले और किसी भी हिस्से में पानी का जमाव न हो। साथ ही सिंचाई के साथ पोषण देना अनिवार्य है ताकि पौधे स्वस्थ और हरे-भरे रहें। इसके लिए बेसल डोज़ में सभी आवश्यक खाद, जैसे डीएपी, पोटाश, और जिंक डालने के बाद, सिंचाई के समय 5 किलो जिंक (21% वाला) और 10-15 किलो डीएपी या यूरिया का उपयोग अवश्य करें। जिंक का उपयोग हमारे देश के अधिकतर खेतों में इसकी कमी को पूरा करता है और पौधों को हरा-भरा और स्वस्थ बनाए रखता है।
यदि बेसल डोज (बुवाई के समय की खाद) में डीएपी और पोटाश नहीं डाली गई है, तो पहली सिंचाई के समय इसे डालें। डीएपी: 10-15 किलोग्राम और पोटाश: 10-15 किलोग्राम।

यूरिया (Urea):
पहली सिंचाई के दौरान यूरिया डालने से पौधों को नाइट्रोजन मिलती है, जो उनकी हरितिमा और वृद्धि के लिए जरूरी है। तो 20-25 किलोग्राम यूरिया प्रति एकड़ प्रयोग करें। इसे पानी में घोलकर सिंचाई के साथ डालें।

खरपतवार नियंत्रण और दूसरी सिंचाई की तैयारी
पहली सिंचाई के 8-10 दिन बाद खेत में खरपतवार की स्थिति का आकलन करें। यदि खेत में चौड़ी पत्तियों वाले खरपतवार हैं, तो चौड़ी पत्ती के लिए उपयुक्त खरपतवारनाशक का उपयोग करें। यदि संकरी पत्तियों वाले खरपतवार हैं, तो संकरी पत्तियों के लिए उपयुक्त खरपतवारनाशक का प्रयोग करें। मिश्रित खरपतवार होने पर दोनों प्रकार के खरपतवारनाशकों के संयोजन का उपयोग किया जा सकता है। बाजार में उपलब्ध मिक्स्ड टेक्नोलॉजी खरपतवारनाशकों का उपयोग करने से फसल को झटका लगने की संभावना कम होती है। ध्यान रहे कि खरपतवारनाशक छिड़कने के बाद खेत में दोबारा प्रवेश न करें।

दूसरी सिंचाई 15-20 दिन के भीतर करें और इस समय 10-15 किलो डीएपी और हल्की मात्रा में यूरिया डालें।

तिलरिंग बढ़ाने और पौधों को मजबूत बनाने की तकनीक

फसल में अधिक कल्लों के विकास के लिए पहली सिंचाई के बाद जड़ों की स्थिति का निरीक्षण करें। यदि पौधों में जड़ों का विकास धीमा है या पीलापन दिख रहा है, तो 19:19:19 एनपीके और जिंक का छिड़काव करें। यदि परिणाम अपेक्षित न हो,
तो दूसरी सिंचाई के दौरान (40 से 45 दिन मे) , 10-15 किलो डीएपी, यूरिया, और ह्यूमिक एसिड का उपयोग करें। ह्यूमिक एसिड फसल में पहले से डाले गए पोषक तत्वों को पौधों के लिए उपलब्ध कराता है और उनकी वृद्धि को तेज करता है।
यदि फसल 35 दिन की हो चुकी है, तो तिलरिंग बढ़ाने के लिए एक फ्री तकनीक का उपयोग करें, जिसमें पहली सिंचाई के बाद खेत के ऊपर हल्के वजन का लकड़ी का पट्टा खींचा जाए। यह जड़ों की ऑक्सीजन आपूर्ति को बढ़ाता है और तिलिंग में सुधार करता है। साथ ही, फसल में रोग या कीट जैसे दीमक, निमेटोड या फफूंद का आकलन करें और आवश्यक उपचार करें।
नोट: रिपोर्ट में दी गई जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध सार्वजनिक स्रोतों से एकत्रित की गई है। किसान भाई किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।