गेहूं, चना और सरसों की बुवाई से पहले कर ले यह काम | उत्पादन के टूट जायेंगे सारे रिकॉर्ड

 

किसान साथियो डॉक्टर हसन ने किसानों को बेहतर पैदावार के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं। उन्होंने बताया कि फसल बोने से पहले बीजों का उपचार करना बेहद जरूरी है। इससे बीजों में मौजूद हानिकारक जीवाणु नष्ट हो जाते हैं और फसल स्वस्थ रहती है। इसके अलावा, मसूर, चना या सरसों जैसी दलहनी फसलों की बुआई से पहले खेतों में नीम की खली डालने की सलाह दी है। नीम की खली मिट्टी में मौजूद हानिकारक कीड़ों को नष्ट करने में मदद करती है और फसल की पैदावार बढ़ाने में सहायक होती है। डॉक्टर हसन के अनुसार, खेत में नीम की खली की मात्रा 25 से 30 किलोग्राम प्रति एकड़ होनी चाहिए।

जैविक खेती में ट्राइकोडर्मा और स्यूडोमोनास का करे उपयोग
जैविक खेती में मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और फसलों को रोगों से बचाने के लिए ट्राइकोडर्मा और स्यूडोमोनास जैसे सूक्ष्म जीवों का इस्तेमाल किया जाता है। ये सूक्ष्म जीव मिट्टी में उपस्थित हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करते हैं और पौधों की वृद्धि को बढ़ावा देते हैं। खेत की तैयारी से पहले, एक किलो ट्राइकोडर्मा को गोबर की 50 किलो खाद में मिलाकर पानी के साथ अच्छी तरह मिला लेना चाहिए। इस मिश्रण को बोर में भरकर कुछ दिनों के लिए रख देना चाहिए। इसके बाद इस मिश्रण को खेत में डालने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और फसलों को रोगों से बचाया जा सकता है। यह जैविक तरीका खेतों में रासायनिक खादों के प्रयोग को कम करने में मदद करता है।

कीटों से फसल को बचाने का क्या है तरीका
कृषि विशेषज्ञों ने बताया है कि फसल की बुवाई के बाद जब कीड़े लगना शुरू हो जाएं, तो दानेदार कीटनाशकों का इस्तेमाल करना सबसे कारगर उपाय है। इनमें कार्टैप 4 ग्राम, इमिडाक्लोप्रिड 0.3 ग्राम या फिप्रोनिल 0.3 ग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करना फायदेमंद होता है। इन दवाइयों का प्रयोग करने से फसल को कीड़ों से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है और उत्पादन में वृद्धि हो सकती है।

कैसे करे मलानी रोग से बचाव
मलानी रोग से फसलों को बचाने के लिए विशेषज्ञों ने एक प्रभावी उपाय सुझाया है। उनके अनुसार, कार्बेंडाजिम नामक फंगीसाइड का इस्तेमाल करके इस रोग से बचा जा सकता है। इस फंगीसाइड को 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर पौधों पर छिड़काव करना चाहिए। यह उपाय पौधों को नुकसान पहुंचाए बिना मलानी रोग के खतरे को काफी हद तक कम कर सकता है। यह उपाय किसानों के लिए बेहद उपयोगी है। इससे वे अपनी फसलों को मलानी रोग से होने वाले नुकसान से बचा सकते हैं और अच्छी पैदावार ले सकते हैं।

जैविक खेती में छिड़के नीम का तेल
जैविक खेती में कीटों के प्रकोप को कम करने के लिए नीम का तेल एक अत्यंत प्रभावी और सुरक्षित विकल्प है। नीम के तेल में पाया जाने वाला अजादिरैक्टिन नामक तत्व विभिन्न प्रकार के कीटों को नियंत्रित करने में मदद करता है। यह कीटों के विकास, भोजन और प्रजनन को बाधित करता है। अजादिरैक्टिन की मात्रा के अनुसार नीम के तेल की प्रभावशीलता बढ़ती है। आम तौर पर, 1500 पीपीएम से लेकर 10000 पीपीएम तक की अजादिरैक्टिन की मात्रा वाले नीम के तेल का उपयोग किया जाता है। यह प्राकृतिक कीटनाशक फसलों को बिना नुकसान पहुंचाए कीटों को नियंत्रित करने में मदद करता है और पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित है।

नोट : रिपोर्ट में दी गई जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध सर्वजनिक स्रोतों से एकत्र की गई है। किसान भाई संबंधित किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य ले लें।

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मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।