बाजार में आ गया है सरसों की पैदावार बढ़ाने का कैप्सूल | जाने कैसे करना है इसका इस्तेमाल

 

किसान साथियों इस वक्त खेती में पानी की कमी और बदलते मौसम की वजह से किसानों के सामने नई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। सरसों जैसी फसलें, जो कम पानी में भी उगाई जाती हैं, कभी-कभी पानी की कमी की वजह से कम पैदावार देती हैं। इस समस्या का समाधान करने के लिए हाइड्रोजेल तकनीक एक शानदार उपाय है। यह तकनीक खेती को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए विकसित की गई है, जिसमें फसलों को उनकी जरूरत के हिसाब से पानी उपलब्ध कराया जाता है।

हाइड्रोजेल एक ऐसा अद्भुत इनपुट है जो न केवल पानी की बचत करता है, बल्कि फसल की उत्पादकता को भी बढ़ाता है। यह कैप्सूल जैसे दानों के रूप में आता है, जिसे किसान खेतों में डालते हैं। यह अपने अंदर भारी मात्रा में पानी जमा करता है और धीरे-धीरे पौधों को देता है, जिससे सिंचाई की जरूरतें कम हो जाती हैं। आइए, इसे विस्तार से समझें।

हाइड्रोजेल क्या है और यह कैसे काम करता है?

हाइड्रोजेल एक विशेष प्रकार का कैप्सूल जैसे दानों वाला पदार्थ है, जो मिट्टी में मिलाने के बाद बड़ी मात्रा में पानी को सोख लेता है। इसकी खासियत यह है कि यह अपने वजन का 350 गुना तक पानी जमा कर सकता है। जब खेत में पानी की कमी होने लगती है, तो यह धीरे-धीरे पौधों की जड़ों को पानी देता है। जब खेत में सिंचाई की जाती है या बारिश होती है, तो हाइड्रोजेल उस पानी को अपने अंदर फिर से जमा कर लेता है। यह प्रक्रिया बार-बार होती रहती है, जिससे मिट्टी लंबे समय तक नम बनी रहती है। यह तकनीक सरसों जैसी फसलों के लिए बहुत उपयोगी है, क्योंकि इसे जरूरत के अनुसार पानी मिलता रहता है और पौधे सूखने से बच जाते हैं।

सरसों की फसल के लिए हाइड्रोजेल क्यों है कारगर?

भारत में सरसों की खेती बड़े पैमाने पर होती है, खासतौर पर उन क्षेत्रों में जहां पानी की किल्लत रहती है। पानी की कमी सरसों की ग्रोथ और उत्पादन पर गंभीर असर डाल सकती है। आईसीएआर की एक रिपोर्ट बताती है कि पानी की कमी से सरसों की पैदावार में 17% से 94% तक कमी हो सकती है। ऐसे में हाइड्रोजेल तकनीक किसानों के लिए एक अच्छा विकल्प है।

हाइड्रोजेल सरसों के पौधों को शुरू से लेकर अंत तक सहायता प्रदान करता है। फसल की शुरुआत में यह पौधों की जड़ों को मजबूत बनाता है, और बाद में जब फसल बढ़ रही होती है, तो यह पौधों को उनकी जरूरत के अनुसार पानी प्रदान करता है। यह तकनीक न केवल उत्पादन को बढ़ाती है बल्कि फसल की क्वालिटी भी अच्छी कार देती है

हाइड्रोजेल का उपयोग कैसे करें?

खेत में डालने की प्रक्रिया:

हाइड्रोजेल का उपयोग करना बहुत आसान है। इसे सरसों की बुवाई के समय मिट्टी में मिलाया जाता है। बुवाई के बाद इसे किसी खास देखभाल की जरूरत नहीं होती। जहां पानी की बहुत कमी हो, वहां हाइड्रोजेल को 5 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करना चाहिए। वहीं, सामान्य सिंचाई वाले इलाकों में इसे 2.5 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से डाला जाता है। 

हाइड्रोजेल प्रयोग के फायदे

हाइड्रोजेल का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह पानी की बचत करता है। जब सरसों के पौधों को उनकी जरूरत के अनुसार पानी मिलता है, तो उनकी वृद्धि बेहतर होती है और उत्पादन बढ़ता है। इसके अलावा, यह किसानों की सिंचाई पर निर्भरता को भी कम करता है।

अगर किसान 5 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से हाइड्रोजेल का उपयोग करते हैं, तो सरसों की पैदावार में 35% तक वृद्धि हो सकती है, जिससे उन्हें लगभग ₹18,000 प्रति हेक्टेयर का शुद्ध लाभ होता है। वहीं, 2.5 किलो प्रति हेक्टेयर हाइड्रोजेल डालने पर उपज में 23% तक वृद्धि होती है, जिससे किसान को ₹15,000 प्रति हेक्टेयर का फायदा मिल सकता है।

हालांकि हाइड्रोजेल तकनीक बहुत फायदेमंद है, लेकिन इसके कुछ पहलू हैं जिन पर ध्यान देना जरूरी है। सबसे पहले, हाइड्रोजेल की कीमत अन्य कृषि इनपुट्स की तुलना में थोड़ी अधिक हो सकती है, जिससे छोटे किसानों को इसे अपनाने में दिक्कत हो सकती है। दूसरी बात, इसके उपयोग के बारे में सभी किसानों को जानकारी नहीं है। इसलिए, किसानों को चाहिए कि वे कृषि विशेषज्ञों से सलाह लें और इसे सही तरीके से इस्तेमाल करें। सरकारी योजनाओं और सब्सिडी का लाभ लेकर हाइड्रोजेल को अपनाना आसान हो सकता है।

नोट: रिपोर्ट में दी गई जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध सार्वजनिक स्रोतों से एकत्रित की गई है। किसान भाई किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।