धान की इस वैरायटी पर लगा प्रतिबंध | जाने पूरी खबर

 

किसान साथियों पंजाब में इस साल धान की बुआई देरी से होने की संभावना है, खासकर मालवा क्षेत्र में, जो राज्य का सबसे बड़ा धान उत्पादक क्षेत्र है। मुख्यमंत्री भगवंत मान के गृह जिले संगरूर में लगभग 2,38,000 हेक्टेयर में धान की खेती होती है। पूर्व में, किसान मुख्यतः पूसा 44 धान की किस्म की खेती करते थे, जिससे प्रति एकड़ 35 से 40 क्विंटल धान का उत्पादन होता था। लेकिन पराली जलाने की समस्या के कारण, सरकार ने किसानों से पूसा 44 छोड़कर अन्य किस्में अपनाने का अनुरोध किया। इन किस्मों में बासमती और पीआर 126, 27, 28, 29, 31 शामिल हैं।
पंजाब के मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया है कि सरकार किसानों से उनके धान का एक-एक दाना खरीदेगी। इसका उद्देश्य किसानों को नई किस्मों की ओर प्रोत्साहित करना और पराली जलाने की समस्या को कम करना है। इस वर्ष, संगरूर जिले में धान की बुवाई का परिदृश्य काफी बदल गया है। 20 एकड़ जमीन वाले किसान केवल चार से पांच एकड़ में ही पूसा 44 धान की खेती कर रहे हैं। कृषि विभाग के अनुसार, इस बार संगरूर जिले में लगभग 35% पूसा 44 धान ही बोया गया है।
इसकी मुख्य वजह यह है कि सरकार ने किसानों को पूसा 44 के बीज नहीं बेचे हैं। परिणामस्वरूप, केवल उन्हीं किसानों ने इसकी रोपाई की है, जिन्होंने पहले से अपने घर पर बीज स्टोर करके रखे थे। सरकार के इस कदम का उद्देश्य पराली जलाने की समस्या को कम करना और किसानों को नई किस्मों की ओर प्रेरित करना है।
पंजाब सरकार ने पूसा 44 धान की किस्म की खेती पर रोक लगाने का फैसला किया है, क्योंकि इस किस्म की पराली जलाने की समस्या बहुत गंभीर है। पूसा 44 धान की किस्म पकने में 125 से 130 दिन का समय लेती है और इसकी बुआई 10 से 15 जून तक शुरू हो जाती है। कटाई के समय इसकी पराली सबसे ज्यादा होती है, जिसे किसान जलाकर नष्ट कर देते हैं, जिससे प्रदूषण बढ़ता है और सरकार के लिए चिंता का विषय बन जाता है।
सरकार दे रही दूसरी किस्मों को बढ़ावा
सरकार अब धान की दूसरी किस्मों को बढ़ावा दे रही है, जिनमें पीआर 126, 27, 28 और 31 शामिल हैं। इन किस्मों की बुआई का समय जुलाई के पहले सप्ताह से 20 जुलाई तक होता है। ये किस्में 33 से 35 क्विंटल प्रति एकड़ की उपज देती हैं, जो किसानों के लिए भी फायदेमंद है। किसान सरकार की बात मान रहे हैं क्योंकि
सरकार ने पूसा 44 के बीज नहीं बेचे, इसलिए किसान इन नई किस्मों की ओर मुड़ रहे हैं।
नई किस्मों की पराली की मात्रा कम होती है, जिससे जलाने की समस्या कम होती है।
सरकार ने किसानों से धान का एक-एक दाना खरीदने का वादा किया है, जिससे उन्हें अपनी उपज बेचने में समस्या नहीं होगी।
इस प्रकार, सरकार की नई नीतियों और समर्थन के कारण किसान नई किस्मों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।

पंजाब में पूसा 44 की जगह जिन नई किस्मों को बढ़ावा दिया जा रहा है, वे खेत में पकने में केवल 90 से 95 दिन का समय लेती हैं। इन किस्मों की बुआई के लिए किसान सुपर सीडर और हैप्पी सीडर मशीन का उपयोग कर सकते हैं। इन मशीनों का उपयोग सीधे खेत में बुआई के लिए किया जा सकता है, जिससे हाथ से बुआई की आवश्यकता नहीं पड़ती।
 मशीनों के उपयोग
सुपर सीडर और हैप्पी सीडर मशीन से बुआई करने पर पानी की काफी बचत होती है, क्योंकि बुआई का समय जुलाई में होता है जब मॉनसून की बारिश शुरू हो जाती है।
इन मशीनों से बुआई करने में समय और श्रम दोनों की बचत होती है।
मशीनों से सीधे बुआई की जा सकती है, जिससे बुआई का काम आसानी से और तेजी से पूरा होता है।
सुपर सीडर और हैप्पी सीडर मशीनें पराली को खेत में ही काटकर बुआई कर देती हैं, जिससे पराली जलाने की समस्या भी कम होती है।
इन लाभों के कारण, किसान अब तेजी से इन नई किस्मों और आधुनिक मशीनों का उपयोग कर रहे हैं, जिससे खेती अधिक लाभदायक और पर्यावरण के अनुकूल हो रही है। किसानों के अनुसार, इस साल पूसा 44 धान की खेती में काफी कमी आई है। किसान अमरीक सिंह और नजर सिंह ने बताया कि वे इस बार पिछले साल के मुकाबले आधे से भी कम खेत में पूसा 44 धान की बुआई कर रहे हैं।
अमरीक सिंह के पास 26 एकड़ जमीन है। वे सिर्फ 10 से 12 एकड़ में ही पूसा 44 धान लगा रहे हैं। करीब 8 जुलाई के बाद वे अपने खेत में धान की दूसरी किस्म लगाएंगे।
नजर सिंह के पास 40 एकड़ जमीन है। वे इस बार करीब 15 एकड़ जमीन में पूसा 44 धान और बाकी जमीन में अन्य किस्में लगाएंगे।
इस बदलाव के कारणों में मुख्य रूप से सरकार की नई नीतियाँ और पराली जलाने की समस्या शामिल हैं। किसान अब धान की नई किस्में अपना रहे हैं, जिनसे उन्हें अच्छी उपज मिलने के साथ-साथ पराली जलाने की समस्या का समाधान भी मिल रहा है। नई किस्मों के लिए सुपर सीडर और हैप्पी सीडर मशीनों का उपयोग करने से पानी और श्रम की बचत होती है, जिससे खेती अधिक कुशल और पर्यावरण अनुकूल बन रही है।

कृषि विभाग के अधिकारियों ने पुष्टि की है कि इस साल पूसा 44 धान की खेती में उल्लेखनीय कमी आई है। पिछले साल संगरूर में लगभग 2 लाख 38 हजार हेक्टेयर में धान की खेती हुई थी, जिसमें से लगभग 50% खेतों में पूसा 44 धान लगाया गया था।  क्युकी इस साल न तो सरकारी और न ही प्राइवेट कंपनियों ने पूसा 44 धान के बीज बेचे हैं। जिन किसानों के पास खुद के बीज थे, केवल उन्हीं ने इसे अपने खेतों में लगाया है। अनुमान के अनुसार, इस बार केवल 30 से 35% किसानों ने ही पूसा 44 धान लगाया है। पूसा 44 धान की किस्म पकने में सबसे ज्यादा समय लेती है, जो इसे पराली जलाने की समस्या के लिए जिम्मेदार बनाती है।
वैकल्पिक किस्में:
पंजाब सरकार ने किसानों को पीआर 126, 27, 28, और 31 जैसी धान की अन्य किस्में लगाने की सिफारिश की है।
ये किस्में तेजी से पकती हैं और पराली की समस्या को कम करती हैं।
इस बदलाव का उद्देश्य पराली जलाने की समस्या को कम करना और पर्यावरण को सुरक्षित बनाना है। नई किस्में न केवल पर्यावरण के अनुकूल हैं बल्कि उत्पादन भी बेहतर देती हैं, जिससे किसानों को भी लाभ होता है।
पंजाब मे जल संकट की स्थिति
पंजाब में धान की खेती के कारण हर साल जलस्तर गिरता जा रहा है, जिससे राज्य में जल संकट की स्थिति उत्पन्न हो रही है। इस समस्या से निपटने के लिए पंजाब सरकार कई महत्वपूर्ण कदम उठा रही है।
सरकार किसानों के खेतों तक नहर का पानी पहुंचाने की कोशिश कर रही है, जिससे भूजल के अति दोहन को रोका जा सके।
सरकार किसानों से अपील कर रही है कि वे कम पानी वाली धान की किस्में उगाएं। इन किस्मों में पीआर 126, 27, 28, और 31 शामिल हैं, जो तेजी से पकती हैं और कम पानी की जरूरत होती है।
सरकार ने किसानों को आश्वासन दिया है कि उनके धान का एक-एक दाना खरीदा जाएगा, जिससे किसान नई किस्मों की ओर आसानी से आकर्षित हो रहे हैं। इन प्रयासों का मुख्य उद्देश्य जलस्तर को स्थिर करना और कृषि को अधिक टिकाऊ बनाना है। इससे न केवल पर्यावरण को फायदा होगा, बल्कि किसानों को भी जल संकट से निपटने में मदद मिलेगी।

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मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।