गेहूं की पहली सिंचाई के समय ये खाद डाल दो फिर सोचने की जरुरत नहीं | 80 मण होगा उत्पादन 

 

अगर अधिक उत्पादन लेना है तो गेहूं की पहली सिंचाई के साथ करें इन खादों का उपयोग।

किसान भाइयों, गेहूँ की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है, इसकी खेती के लिए अनुकूल तापमान बुवाई के समय 20-25 डिग्री सेंटीग्रेट उपयुक्त माना जाता है। गेहूँ की खेती मुख्यत: सिंचाई पर आधारित होती है। गेहूँ की खेती के लिए दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है, लेकिन इसकी खेती बलुई दोमट, भारी दोमट, मटियार तथा मार और कावर भूमि में की जा सकती है। साधनों की उपलब्धता के आधार पर हर तरह की भूमि में गेहूँ की खेती की जा सकती है। पूरे देशभर में गेहूँ एवं अन्य रबी फसलों की बुवाई का काम चल रहा है। सभी किसान भाई अच्छी पैदावार के लिए गेहूँ की फसल के लिए खाद की व्यवस्था में जुटे हुए हैं। कई किसान भाइयों को सही जानकारी ना होने की वजह से वह धड़ल्ले से खाद-उर्वरक का इस्तेमाल करते हैं। अमूमन किसानों को इसकी हानियां नहीं पता होती हैं। आपको बता दें कि, ज्यादा खाद-उर्वरक के उपयोग से मिट्टी की गुणवत्ता क्षीण होती है, वही कुछ सालों बाद में साइड इफेक्ट्स भी देखने को मिल सकते हैं। ऐसे में आज हम आपको इस रिपोर्ट के माध्यम से बताएंगे कि खाद उर्वरक का उपयोग कब, कितना एवं कितने दिनों के अंतराल में करना चाहिए। यहां आपको पूरी सटीक जानकारी दी जाएगी। आज की इस रिपोर्ट में हम गेहूँ की फसल की पहली सिंचाई और उसके साथ कौन-कौन सी खाद डालनी चाहिए। गेहूँ के पौधे की पहली स्टेज, यानी क्राउंड रूट के निकलने पर, फसल की ग्रोथ और उत्पादकता को कैसे बढ़ाया जा सकता है, इन सब बातों पर विस्तार से चर्चा की जाएगी। तो चलिए इन सभी जानकारी के बारे में विस्तार से जानने के लिए पढ़ते हैं यह रिपोर्ट।

फास्फोरस और नाइट्रोजन
किसान भाइयों, फास्फोरस गेहूँ की फसल में प्रकाश संश्लेषण में मदद करता है और नाइट्रोजन का उपयोग फसल की ग्रोथ और फुटाव बढ़ाने के लिए किया जाता है। शुरुआत में ही फास्फोरस और नाइट्रोजन की सही मात्रा डालने से फसल की जड़ें मजबूत होती हैं और शुरुआती ग्रोथ बेहतर होती है। नाइट्रोजन से गेहूँ के स्टेम का विकास होता है और पत्तियां बड़ी होती हैं। फास्फोरस से जड़ों का विकास होता है, टिलर बनते हैं, और अनाज भरता है। फास्फोरस की सही मात्रा होने पर गेहूँ की पैदावार में 50% तक की बढ़ोतरी हो सकती है। अगर उनकी सही मात्रा की बात की जाए तो प्रति एकड़ 60 किलो नाइट्रोजन और 24 किलो फास्फोरस की गेहूँ की फसल में आवश्यकता पड़ती है। फास्फोरस की पूरी मात्रा आप बिजाई के समय खेत में डाल सकते हैं, जबकि नाइट्रोजन की मात्रा को तीन हिस्सों में करके खेत में डालना चाहिए।

जिंक का सही उपयोग
किसान भाइयों, जिंक भी गेहूँ की फसल के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन इसका सही मिश्रण और समय पर उपयोग आवश्यक है। नाइट्रोजन और जिंक का मिश्रण गलत तरीके से छिड़कने से दाने सड़ सकते हैं। इस कारण से, इन तत्वों का संतुलित मिश्रण और समय पर उपयोग करना जरूरी है। जिंक की वजह से गेहूँ के पौधों में हरापन आता है और ज्यादा कलियां लगती हैं। जिंक की कमी से पौधों की बढ़वार रुक जाती है और पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं। जिंक की वजह से गेहूँ की फसल तेज़ी से बढ़ती है और पैदावार बढ़ती है। जिंक पौधों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, और क्लोरोफिल के संश्लेषण में मदद करता है। जिंक की वजह से पौधों में एंजाइमेटिक गतिविधियां बेहतर होती हैं। आप गेहूँ की फसल में जिंक सल्फेट मोनोहाइड्रेट 33% का उपयोग बुवाई के समय 2-3 किलोग्राम/एकड़ की दर से सीधे मिट्टी में डाल सकते हैं और यदि आवश्यक हो, तो खड़ी फसलों में 40-45 दिनों (अनाज की फसलों के लिए 25 से 30 दिन) के अंतराल पर समान मात्रा में डाल सकते हैं।

सिंचाई व्यवस्था
किसान भाइयों, गेहूँ की फसल में पहले पानी की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण होती है क्योंकि यह समय पौधों की तेजी से वृद्धि करने का होता है। गेहूँ की फसल में पहला पानी 18 से 20 दिन के बाद देना चाहिए। आपको पहली सिंचाई के साथ नाइट्रोजन की मात्रा भी डालनी आवश्यक है, फिर नाइट्रोजन का दूसरा छिड़काव 40-42 दिन के बाद दूसरी सिंचाई के साथ कर देना चाहिए। साथ ही, इस बात का भी ध्यान रखें कि सिंचाई मिट्टी की अवस्था को ध्यान में रखते हुए करें क्योंकि मिट्टी का प्रकार हर क्षेत्र में अलग हो सकता है।

एनपीके 19-19-19 का उपयोग
किसान भाइयों, गेहूँ की फसल में यदि शुरुआत में पोषक तत्वों की कमी रह गई हो, तो एनपीके 19-19-19 का उपयोग पहले पानी से पहले किया जा सकता है, ताकि जड़ों तक सभी पोषक तत्व पहुँच सकें और फसल की ग्रोथ को बढ़ाया जा सके। अगर आपको लगे कि आपकी फसल पीली होने लगी है, तो आप समझ लें कि आपकी फसल में पोषक तत्वों की कमी हो गई है। एनपीके 19-19-19 में नाइट्रोजन 19%, फास्फोरस 19%, और पोटैसियम 19% पाया जाता है, इसका उपयोग आप सभी प्रकार की फसलों में पौधों और फसलों के वृद्धि, विकास और बढ़वार के लिए कर सकते हैं। यह खाद फसल के सम्पूर्ण विकास में मदद करता है और यह पौधे के जड़ों को तेजी से बढ़ने में मदद करता है। यह पौधे में हरा रंग (क्लोरोफिल) को बढ़ाता है और यह पौधे के वानस्पतिक विकास के लिए आवश्यक तत्व है।

कीटों और रोगों से बचाव
किसान भाइयों, गेहूँ की फसल को रोगों और कीटों से बचने के लिए आपको कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। इसके लिए आपको गर्मियों में गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। बुआई वाले खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। बीज को सदैव स्वस्थ, रोगमुक्त और बीजोपचार के बाद ही बोना चाहिए। आप बुआई से पहले पुरानी फसल के अवशेषों और रोगग्रस्त पौधों को जला दें और खेत को साफ रखें। कीटों के बने रहने को खत्म करने के लिए उपयुक्त फसल चक्र अपनाएं। रासायनिक खाद का प्रयोग हमेशा संतुलित मात्रा में करना चाहिए, क्योंकि फसलों में नाइट्रोजन के अधिक प्रयोग से रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है। अतिरिक्त और रोगग्रस्त पौधों को खेत से निकालकर नष्ट कर दें। फसल में किसी रोग के लक्षण होने पर 500 मिली. बायो ट्रूपर 120 से 150 लीटर पानी प्रति एकड़ की दर से प्रयोग कर प्रभावित फसल पर छिड़काव करें।

नोट: रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट के सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। संबंधित किसी भी जानकारी को मिलाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।