हरियाणा में DAP को लेकर क्या है स्थिति | जानिए इस रिपोर्ट में

 

किसान भाइयों, भारत में रबी फसलों की बुआई का समय शुरू होते ही डीएपी (डाय-अमोनियम फॉस्फेट) खाद की मांग बढ़ जाती है। इसके बिना फसलों की बुआई करना आज के इस वैज्ञानिक कृषि के युग में संभव नहीं है। डीएपी एक महत्वपूर्ण खाद है, जो गेहूं, सरसों और अन्य रबी फसलों की बढ़त और उत्पादन के लिए आवश्यक होती है। रबी सीजन में समय पर और पर्याप्त मात्रा में खाद न मिलने की वजह से किसानों को अपनी फसलों की बुआई में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। डीएपी की कमी और कालाबाजारी के चलते कई किसानों को लंबे समय तक लाइन में लगना पड़ता है, जिससे उनकी परेशानी और बढ़ जाती है, साथ ही उनका फसल पर आने वाला खर्च भी ब्लैक में खाद खरीदने के कारण दोगुना हो जाता है, जो किसानों के ऊपर एक अतिरिक्त आर्थिक भार का कार्य करता है। रबी सीजन में डीएपी की कमी को पूरा करना एक मुश्किल कार्य बनता जा रहा है। लेकिन अगर सरकार और प्रशासन कोशिश करके सही कदम उठाए, तो किसानों को बुआई के समय डीएपी की वजह से आने वाली परेशानियों से बचाया जा सकता है। सरकारी डीएपी की कमी को पूरा करने के लिए समय पर सप्लाई और सरकारी वितरण प्रणाली को मजबूत करके तथा प्राइवेट डीलर्स पर नजर रख कर कालाबाजारी को रोकने में अगर सफल होती है, तो डीएपी के संकट से किसानों को बचाया जा सकता है। वैसे तो डीएपी की किल्लत देश के सभी राज्यों में बनी हुई है, लेकिन आज हम हरियाणा राज्य में डीएपी की बढ़ती मांग और भारी कमी के बारे में चर्चा करेंगे। इस रिपोर्ट में हम डीएपी की मौजूदा स्थिति, सरकार की ओर से की जा रही आपूर्ति, किसानों की चिंताओं और सुझावों पर चर्चा करेंगे, ताकि किसानों को आने वाली परेशानियों से बचाया जा सके और उन्हें सही समय पर खाद उपलब्ध हो सके। इन सभी बातों पर विस्तृत जानकारी के लिए आइए पढ़ते हैं यह रिपोर्ट।

हरियाणा में डीएपी की मांग
किसान भाइयों, रबी फसलों की बुआई के समय में डीएपी खाद की मांग बढ़ जाती है। किसानों को इस खाद की जरूरत फसलों की वृद्धि और उत्पादन बढ़ाने के लिए होती है। पिछले वर्ष अक्टूबर से दिसंबर के बीच हरियाणा में 2.10 लाख मीट्रिक टन डीएपी खाद की खपत हुई थी, लेकिन इस वर्ष अब तक केवल 1.15 लाख मीट्रिक टन डीएपी ही किसानों को मिल पाया है। इस कमी के कारण किसानों को लाइनों में लगकर घंटों इंतजार करना पड़ रहा है और कई किसान इस किल्लत की वजह से निराश हैं। विश्वसनीय जानकारी के अनुसार, वर्तमान में प्रदेश में 1.38 लाख मीट्रिक टन डीएपी का स्टॉक है, लेकिन डीएपी की बढ़ती मांग और कृषि में इसकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए यह स्टॉक अभी भी किसानों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। हरियाणा के सभी जिलों में 23,655 मीट्रिक टन का स्टॉक उपलब्ध है, लेकिन सरकार उसे सही तरीके से वितरित नहीं कर पा रही है, जिसके कारण कई जिलों में खपत से अधिक डीएपी उपलब्ध है और कई जिले ऐसे हैं, जहां डीएपी की बड़ी कमी बनी हुई है। डीएपी का राज्य में सही वितरण करने में भी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं, जिसका खामियाजा किसानों को फसल की बुआई में देरी और फसल पर आने वाले खर्चे में बढ़ोतरी के रूप में भुगतना पड़ रहा है। डीएपी खाद की कमी के कारण बाजार में कालाबाजारी बढ़ गई है। किसानों का कहना है कि उन्हें सरकारी एजेंसियों से डीएपी मिल नहीं रहा, जबकि प्राइवेट दुकानदार इस कमी का फायदा उठाकर अधिक कीमत पर खाद बेच रहे हैं। कुछ जगहों पर तो निर्धारित कीमत से ज्यादा मूल्य वसूलने की शिकायतें भी सामने आई हैं। और कई दुकानों पर तो किसानों को डीएपी के साथ अन्य उत्पाद भी लेने के लिए मजबूर किया जा रहा है। ऐसे में किसानों को ज्यादा दाम पर खाद खरीदने के अलावा और कोई विकल्प नहीं रह जाता है। इस समस्या का समाधान करने के लिए सरकार को किसी विशेष योजना के तहत ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि किसानों को हो रहे आर्थिक नुकसान और डीएपी की कमी को पूरा किया जा सके। डीएपी की कमी का यह सिलसिला अब हर साल सरकार की एक आदत सी बन गई है। डीएपी की खपत के आंकड़ों की जानकारी होने के बावजूद राज्य सरकारें फसल की बुआई से पहले डीएपी की पूरी मात्रा का स्टॉक करने में असमर्थ हैं, जिसका नुकसान किसानों को उठाना पड़ता है। किसान डीएपी और अन्य खाद की खरीद सरकारी एजेंसी के माध्यम से ही करना चाहते हैं, ताकि उन्हें समय पर और उचित मूल्य में खाद की प्राप्ति हो सके।

हरियाणा के विभिन्न जिलों में डीएपी की स्थिति
कृषि विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, हरियाणा के विभिन्न जिलों में डीएपी की खपत और उपलब्धता की स्थिति अलग-अलग है। हिसार, सिरसा, कैथल, और रोहतक जैसे जिलों में डीएपी की भारी कमी बनी हुई है और अन्य जिलों में भी डीएपी की पूर्ति नहीं हो पा रही है। राज्य के विभिन्न जिलों में डीएपी की स्थिति इस प्रकार है:
अंबाला: खपत - 8,155 मीट्रिक टन, उपलब्धता - 8,677 मीट्रिक टन
भिवानी: खपत - 14,377 मीट्रिक टन, उपलब्धता - 6,577 मीट्रिक टन
दादरी: खपत - 3,296 मीट्रिक टन, उपलब्धता - 2,943 मीट्रिक टन
फरीदाबाद: खपत - 2,499 मीट्रिक टन, उपलब्धता - 1,555 मीट्रिक टन
फतेहाबाद: खपत - 15,947 मीट्रिक टन, उपलब्धता - 7,777 मीट्रिक टन
गुड़गांव: खपत - 3,235 मीट्रिक टन, उपलब्धता - 2,115 मीट्रिक टन
हिसार: खपत - 17,143 मीट्रिक टन, उपलब्धता - 7,424 मीट्रिक टन
झज्जर: खपत - 6,526 मीट्रिक टन, उपलब्धता - 5,612 मीट्रिक टन
जींद: खपत - 14,061 मीट्रिक टन, उपलब्धता - 11,645 मीट्रिक टन
कैथल: खपत - 14,022 मीट्रिक टन, उपलब्धता - 9,530 मीट्रिक टन
करनाल: खपत - 14,120 मीट्रिक टन, उपलब्धता - 11,959 मीट्रिक टन
कुरुक्षेत्र: खपत - 11,933 मीट्रिक टन, उपलब्धता - 7,067 मीट्रिक टन
महेंद्रगढ़: खपत - 6,630 मीट्रिक टन, उपलब्धता - 4,827 मीट्रिक टन
मेवात: खपत - 3,874 मीट्रिक टन, उपलब्धता - 3,331 मीट्रिक टन
पलवल: खपत - 7,546 मीट्रिक टन, उपलब्धता - 5,181 मीट्रिक टन
पंचकूला: खपत - 1,787 मीट्रिक टन, उपलब्धता - 1,026 मीट्रिक टन
पानीपत: खपत - 6,405 मीट्रिक टन, उपलब्धता - 4,404 मीट्रिक टन
रेवाड़ी: खपत - 6,053 मीट्रिक टन, उपलब्धता - 4,546 मीट्रिक टन
रोहतक: खपत - 8,540 मीट्रिक टन, उपलब्धता - 6,496 मीट्रिक टन
सिरसा: खपत - 23,495 मीट्रिक टन, उपलब्धता - 11,397 मीट्रिक टन
सोनीपत: खपत - 13,155 मीट्रिक टन, उपलब्धता - 9,210 मीट्रिक टन
यमुनानगर: खपत - 7,582 मीट्रिक टन, उपलब्धता - 5,553 मीट्रिक टन
कुल खपत: 2,10,380 मीट्रिक टन; कुल उपलब्धता: 1,38,852 मीट्रिक टन

ऊपर दिए गए आंकड़ों से यह पता चलता है कि राज्य में डीएपी की कितनी कमी बनी हुई है और डीएपी की मांग को देखा जाए तो उपलब्धता में अभी बहुत अधिक कमी है, जो किसानों की परेशानी का सबसे बड़ा कारण है। इस तरह की स्थिति से निपटने के लिए जरूरी है कि राज्य सरकारें डीएपी की सप्लाई चेन को सुधारें और यह सुनिश्चित करें कि हर जिले में समय पर खाद पहुंच सके।

सरकारी नीतियों में बदलाव
दोस्तों, किसानों को डीएपी की समय पर उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए सरकारी नीतियों में बदलाव की आवश्यकता है। किसानों का कहना है कि सरकार को डीएपी की आपूर्ति चेन को मजबूत बनाने के लिए कदम उठाने होंगे, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हर जिले में समय पर और पर्याप्त मात्रा में डीएपी खाद उपलब्ध हो। इसके लिए सरकार को एक प्रभावी और पारदर्शी प्रणाली की जरूरत है। सरकार को बिजाई के सीजन से पहले ही पर्याप्त मात्रा में खाद का स्टॉक कर लेना चाहिए,ताकि बिजाई सीजन के दौरान खाद की कमी की स्थिति उत्पन्न हो, इसके अलावा, सरकार को प्राइवेट डीलरों पर नजर रखनी चाहिए, ताकि डीएपी की कालाबाजारी रोकी जा सके और किसानों को सस्ते और उचित मूल्य पर खाद मिल सके।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।